• प्रश्न :

    प्रश्न. “भारत में फारसी साहित्यिक संस्कृति एक सेतु थी, सीमा नहीं।” मध्यकालीन भारत के सामाजिक-राजनीतिक संदर्भ में इस कथन का परीक्षण कीजिये। (150 शब्द)

    18 Aug, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 1 संस्कृति

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • मध्यकालीन भारत में एक सांस्कृतिक और राजनीतिक भाषा के रूप में फारसी के उदय को संदर्भ में रखते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • सामाजिक–राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में फारसी को एक सेतु के रूप में विवेचना कीजिये।
    • फारसी भाषा के कुछ तत्त्वों को सीमाओं के रूप में प्रस्तुत कीजिये।
    • फारसी भाषा की स्थायी विरासत पर चर्चा करते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    दिल्ली सल्तनत और तत्पश्चात मुगलों के शासनकाल में फारसी भारत में प्रशासन, साहित्य एवं संस्कृति की भाषा बन गई। इसने विभाजन करने के बजाय, शासकों और प्रजा, सूफीवाद एवं भक्ति, संस्कृत व स्थानीय भाषाओं के बीच एक समन्वय का निर्माण किया।

    मुख्य भाग:

    मध्यकालीन भारत में एक सेतु के रूप में फारसी

    • प्रशासनिक सेतु
      • फारसी ने विविध शासक अभिजात वर्ग– तुर्क, अफगान, फारसी और भारतीय मुसलमानों के बीच एक कड़ी/सेतु के रूप में कार्य करते हुए एक साझा प्रशासनिक कार्यढाँचा बनाया।
      • राजस्व अभिलेख, फरमान और कानूनी दस्तावेज़ फारसी में संरक्षित किये जाते थे, जिससे यह शासन की एकीकृत भाषा बन गई।
    • साहित्यिक और बौद्धिक सेतु:
      • अमीर खुसरो ने इंडो-फारसी (भारतीय-फारसी) सांस्कृतिक समन्वय का प्रतिनिधित्व किया। उनकी फारसी रचनाओं में भारतीय बिंब और रूपक झलकते थे, वहीं उनकी हिंदवी कविताएँ फारसी सौंदर्यशास्त्र से ओतप्रोत थीं।
      • अकबर के दरबार ने संस्कृत के शास्त्रीय ग्रंथों का फारसी में अनुवाद प्रायोजित किया:
      • महाभारत को रज़्मनामा के रूप में
      • रामायण को रामनामा के रूप में
      • उपनिषदों को सिर्र-ए-अकबर के रूप में (बाद में दारा शिकोह के अधीन अनुवादित)।
      • इन कृतियों ने भारतीय दर्शन और महाकाव्यों को फारसी वैश्विक बौद्धिक जगत में पहुँचाया, जिससे ज्ञान की दृष्टि और भी व्यापक हुई।
    • सांस्कृतिक और धार्मिक सेतु:
      • सूफियों ने प्रेम, समानता और ईश्वरीय एकत्व के आध्यात्मिक विचारों को व्यक्त करने के लिये फारसी भाषा का प्रयोग किया। निज़ामुद्दीन औलिया के प्रवचनों (फवैद-उल-फुआद) जैसी रचनाएँ अभिजात वर्ग एवं आम लोगों, दोनों तक पहुँचीं।
      • सूफी साहित्य में प्रयुक्त रूपक भक्ति परंपरा से मेल खाते थे, जहाँ कबीर और गुरु नानक जैसे संतों ने परंपरागत रूढ़ियों से परे भक्ति और ईश्वर–समर्पण पर बल दिया।
      • इस प्रकार फारसी साहित्यिक संस्कृति अंतरधार्मिक संवाद और साझा आध्यात्मिकता का माध्यम बन गई।
    • भाषाई और सामाजिक सेतु:
      • फारसी का स्थानीय बोलियों के साथ मेल होने से 'रेख्ता' (प्रारंभिक उर्दू) का विकास हुआ, जो फारसी, अरबी और भारतीय बोलचाल का मिश्रण था। यह आगे चलकर कविता, सूफी परंपरा और जन-संस्कृति की भाषा बन गई।
      • फारसी शब्दावली ने हिंदी, पंजाबी और बंगाली जैसी भारतीय भाषाओं को समृद्ध किया तथा रोज़मर्रा की बोलचाल (जैसे: दुनिया, किताब, इंसान) में समाहित हो गई।
      • दिल्ली, आगरा और लाहौर जैसे शहरी केंद्र महानगरीय केंद्र बन गए जहाँ फारसी ने विभिन्न समुदायों के बीच एक साझा सांस्कृतिक माध्यम के रूप में कार्य किया।

    फारसी सीमा के तत्त्व

    • दरबारों में फारसी प्रायः अभिजात वर्ग की भाषा मानी जाती थी, जो किसानों और ग्रामीण जनता के लिये सहज उपलब्ध नहीं थी; वे अपनी लोकभाषाओं पर ही निर्भर रहे।
    • दरबारी प्रभुत्व के कारण संस्कृत विद्वानों की स्थिति कई बार हाशिये पर चली जाती थी और उन्हें या तो अनुकूलन करना पड़ता था या फिर अन्यत्र संरक्षण खोजना पड़ता था।
    • इस प्रकार फारसी कभी-कभी दरबारी विशिष्टता और सामाजिक पदानुक्रम का प्रतीक बन जाती थी।

    निष्कर्ष:

    अपनी अभिजात्य सीमाओं के बावजूद, फारसी भाषा ने सांस्कृतिक सेतु का कार्य किया। इसने इंडो-फारसी साहित्य को जन्म दिया, स्थानीय भाषाओं के विकास को प्रोत्साहित किया तथा भक्ति–सूफी परंपराओं के संगम को संभव बनाया। यह विभिन्न सभ्यताओं, आस्थाओं और भाषाओं के बीच सेतु बनकर भारत की साझा सांस्कृतिक धरोहर के केंद्र में रही।