• प्रश्न :

    प्रश्न. भारत के असंगठित क्षेत्र को औपचारिक बनाने की प्रक्रिया में मौजूद संरचनात्मक, वित्तीय और विनियामक चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये, साथ ही इसके रोज़गार सृजन की क्षमता को बनाए रखने की आवश्यकता की भी विवेचना कीजिये।
    (250 शब्द)

    13 Aug, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भारत के अनौपचारिक क्षेत्र को संक्षेप में परिभाषित कीजिये।
    • भारत के अनौपचारिक क्षेत्र को औपचारिक बनाने में संरचनात्मक, वित्तीय और नियामक चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये।
    • इसकी रोज़गार सृजन क्षमता को बनाए रखने हेतु उपाय सुझाइये।
    • आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    अनौपचारिक रोज़गार आमतौर पर उन श्रमिकों को संदर्भित करता है, जो ऐसे कार्यों में कार्यरत हैं जहाँ उन्हें प्रचलित श्रम कानूनों के तहत सामाजिक सुरक्षा लाभ प्राप्त नहीं होते हैं। नीति आयोग (2021) के अनुसार , भारत का लगभग 90% कार्यबल अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत है, जो सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 50% का योगदान देता है। भारत के विशाल अनौपचारिक क्षेत्र को औपचारिक बनाना उत्पादकता, कल्याण और राजस्व के लिये आवश्यक है, किंतु इसे सुव्यवस्थित ढंग से न करने पर संरचनात्मक, वित्तीय और नियामक बाधाएँ आजीविका को ये जोखिम भरा बना देती हैं।

    मुख्य भाग:

    संरचनात्मक चुनौतियाँ

    • विखंडित उद्यम संरचना:
      • अधिकांशतः सूक्ष्म एवं नैनो उद्यम, जिनकी पूँजी गहनता कम तथा लाभ सीमित होता है, अनुपालन की निश्चित लागतों को वहन करने से बचते हैं। इनमें से अनेक कंपनियाँ उप-ठेका शृंखलाओं पर कार्य करती हैं, जिससे प्रत्यक्ष नियमन जटिल हो जाता है।
      • ये उद्यम भौगोलिक रूप से बिखरे हुए और दस्तावेज़ीकरण में कमज़ोर होते हैं, जिससे इन्हें ई-श्रम जैसे प्लेटफॉर्म पर शामिल करना कठिन होता है। हालाँकि अब तक 29 करोड़ श्रमिक पंजीकृत किये गए हैं, फिर भी बड़ी संख्या श्रमिक अभी भी वंचित हैं।
    • गतिविधियों की विषमता:
      • असंगठित क्षेत्र में स्ट्रीट वेंडिंग, निर्माण कार्य, घरेलू विनिर्माण, घरेलू श्रम तथा प्लेटफॉर्म आधारित कार्य सम्मिलित हैं। अतः एकल नीतिगत उपकरण इन सभी पर लागू नहीं हो सकता।
    • निम्न उत्पादकता और कौशल-अंतराल:
      • असंगठित श्रमिक प्रायः प्रशिक्षण से वंचित होते हैं, जिससे औपचारिक उद्यमों में उनका संक्रमण कठिन हो जाता है।
      • आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) 2022-23 के अनुसार , 60% से अधिक अनौपचारिक श्रमिक अल्प-कुशल व्यवसायों में लगे हुए हैं।
    • डिजिटल विभाजन:
      • पंजीकरण और अनुपालन हेतु डिजिटल पोर्टल पर निर्भरता उन श्रमिकों को बाहर कर देती है जिनके पास स्मार्टफोन अथवा इंटरनेट साक्षरता का अभाव है।

    वित्तीय चुनौतियाँ

    • ऋण संबंधी बाधाएँ:
      • असंगठित उद्यम प्रायः साहूकारों पर निर्भर रहते हैं; औपचारिक बैंकिंग की पहुँच सीमित है। मुद्रा योजना (2015) के अंतर्गत 19 लाख करोड़ रुपए से अधिक वितरित किये गए, फिर भी अनेक उधारकर्त्ता छोटे-छोटे ऋणों में ही फँसे हुए हैं।
    • अनुपालन की लागत
      • GST रिटर्न दाखिल करना अथवा डिजिटल लेखांकन बनाए रखना सूक्ष्म उद्यमियों के लिये महँगा साबित होता है।
      • विश्व बैंक की रिपोर्ट (2020) के अनुसार, कई बार अनुपालन की लागत संभावित लाभ से अधिक हो जाती है।
    • कर भार का भय:
      • अनेक श्रमिकों को आशंका है कि औपचारीकरण से करों में वृद्धि होगी और पेंशन या स्वास्थ्य-सेवा जैसे लाभ अनुपातिक रूप से नहीं मिलेंगे।
    • सामाजिक सुरक्षा का वित्तपोषण:
      • EPFO अथवा ESIC जैसे लाभों का विस्तार, राजकोष और छोटे उद्यम, दोनों पर दबाव डालता है, जिसके कारण कुछ इकाइयाँ पंजीकरण से बचती हैं।

    नियामक चुनौतियाँ

    • विधिक प्रावधानों की जटिलता:
      • यद्यपि 2020 में श्रम संहिताओं (Labour Codes) के रूप में एकीकरण हुआ है, फिर भी राज्य-स्तरीय नियमों में असंगति भ्रम उत्पन्न करती है।
    • नौकरशाही बाधाएँ:
      • लंबी पंजीकरण और लाइसेंस प्रक्रिया छोटे उद्यमों को औपचारिक ढाँचे में आने से हतोत्साहित करती है।
    • कमज़ोर प्रवर्तन:
      • कमज़ोर निगरानी के कारण असंगठित श्रमिक अब भी कानूनी सुरक्षा से बाहर रहते हैं। असंगठित श्रमिक सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008 सीमित सफलता ही प्राप्त कर सका है।
    • श्रमिक संरक्षण बनाम नियोक्ता व्यवहार्यता
      • कठोर श्रम नियम सूक्ष्म उद्यमों को हतोत्साहित करते हैं, जिससे वे अनुपालन-लागत से बचने हेतु असंगठित ही बने रहते हैं।

    भारत में असंगठित क्षेत्र के औपचारीकरण हेतु सरकारी पहलें

    • उद्यम पंजीकरण: सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSMEs) को औपचारिक पहचान प्रदान करता है।
    • वस्तु एवं सेवा कर (GST): कर क्रेडिट के माध्यम से पंजीकरण को प्रोत्साहित करता है।
    • प्रधानमंत्री रोज़गार प्रोत्साहन योजना (PMRPY): सरकार नई नियुक्तियों के लिये कर्मचारी भविष्य निधि (EPF) हिस्से का भुगतान करती है।
    • ई-श्रम पोर्टल: असंगठित श्रमिकों का राष्ट्रीय डाटाबेस।
    • प्रधानमंत्री श्रम योगी मानधन (PM-SYM): असंगठित श्रमिकों के लिये पेंशन योजना।
    • प्रधानमंत्री स्ट्रीट वेंडर आत्मनिर्भर निधि (PM SVANidhi): रेहड़ी-पटरी विक्रेताओं को ऋण उपलब्ध कराती है।
    • मुद्रा योजना (MUDRA): संपार्श्विक (collateral-free) ऋण प्रदान करती है।
    • श्रम संहिताएँ (2019–20): नियामकीय ढाँचे को समेकित और सरलीकृत किया।

    औपचारीकरण के साथ रोज़गार क्षमता का संरक्षण

    • चरणबद्ध एवं प्रोत्साहन-आधारित औपचारिकीकरण- सूक्ष्म व्यवसायों के लिये कर छूट, ऋण पहुँच और सरलीकृत जीएसटी स्लैब।
    • कौशल विकास- अनौपचारिक श्रमिकों के कौशल को उन्नत करने के लिये प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY)के अंतर्गत अनुकूलित कार्यक्रम।
    • डिजिटल प्लेटफॉर्म और पहुँच: ई-श्रम पोर्टल को और सशक्त बनाना तथा लाभों की राज्य-स्तरीय पोर्टेबिलिटी सुनिश्चित करना।
    • क्लस्टर-आधारित मॉडल - एमएसएमई क्लस्टर अनुपालन लागत को कम कर सकते हैं। उदाहरण: तिरुपुर टेक्सटाइल क्लस्टर ने सरलीकृत मानदंड और मशीनीकरण अपनाया।
    • अंतर्राष्ट्रीय अनुभव- ब्राजील के SIMPLES कानून ने सूक्ष्म उद्यमों के लिये करों को सरल बना दिया, जिससे रोज़गार को नुकसान पहुँचाए बिना अनुपालन को बढ़ावा मिला।

    निष्कर्ष:

    भारत के असंगठित क्षेत्र को औपचारिक बनाना केवल एक कानूनी प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन है। जैसा कि अमर्त्य सेन ने कहा है कि विकास से स्वतंत्रता और सुरक्षा दोनों में वृद्धि होनी चाहिये। अतः औपचारीकरण ऐसा हो, जो श्रमिकों को गरिमा और सुरक्षा प्रदान करे, न कि उनकी रोज़गार क्षमता को क्षीण करे। इस दिशा में संतुलित, समावेशी और प्रोत्साहन-आधारित दृष्टिकोण ही आगे की राह है।