• प्रश्न :

    प्रश्न. “अनियंत्रित प्रगति का पहला शिकार नदी की शुद्धता होती है।” भारत में नदियों के प्रदूषण को रोकने के लिये प्रभावी अपशिष्ट जल शोधन लागू करने में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)

    06 Aug, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरण

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • अनियंत्रित आर्थिक प्रगति के बीच भारत में नदी प्रदूषण के मुद्दे का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • भारत में नदी प्रदूषण की प्रकृति पर चर्चा कीजिये।
    • अपशिष्ट जल शोधन के प्रभावी कार्यान्वयन में आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालिये।
    • आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय: 

    तीव्र आर्थिक विकास की दौड़ में, भारत की नदियाँ शहरी विस्तार, औद्योगिक विस्तार और पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों की उपेक्षा का खामियाज़ा भुगत रही हैं। CPCB के एक अध्ययन (2018) के अनुसार, 323 नदियों में 351 नदी खंडों में से 13% गंभीर रूप से प्रदूषित थे और 17% मध्यम रूप से प्रदूषित थे। कई सरकारी हस्तक्षेपों के बावजूद, कई प्रणालीगत मुद्दों के कारण प्रभावी अपशिष्ट जल शोधन की चुनौती बनी हुई है।

    मुख्य भाग : 

    भारत में नदी प्रदूषण की प्रकृति

    • भारत में नदियाँ घरेलू सीवेज, औद्योगिक अपशिष्ट, ठोस अपशिष्ट और कृषि अपवाह के मिश्रण से प्रदूषित होती हैं। इसका मुख्य कारण अशोधित अपशिष्ट जल है।
    • भारत शहरी केंद्रों से उत्पन्न कुल सीवेज का केवल 28% का ही शोधन करता है (CPCB, 2021)।
    • शहरी केंद्रों में प्रतिदिन उत्पन्न होने वाले 72,368 मिलियन लीटर (MLD) सीवेज में से, वास्तविक शोधन केवल 20,236 MLD (CPCB, 2021) है।
    • गंगा और यमुना जैसी प्रमुख नदियाँ सबसे प्रदूषित हैं, जिनके कई हिस्सों में बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (BOD) का स्तर सुरक्षित सीमा से कहीं अधिक है।

    प्रभावी अपशिष्ट जल शोधन को लागू करने में चुनौतियाँ

    • औद्योगिक प्रदूषण: कपड़ा, चर्मशोधन और रसायन जैसे उद्योग गंगा (कानपुर), यमुना (दिल्ली) एवं दामोदर (झारखंड) जैसी नदियों में विषाक्त अपशिष्ट (जैसे: सीसा, पारा, आर्सेनिक) निर्मुक्त करते हैं।
      • कई कारखाने अपशिष्ट शोधन संयंत्रों (ETP) की उपेक्षा करते हैं या उनका दुरुपयोग करते हैं, प्रायः नियामक मानदंडों को गलत तरीके से पूरा करने के लिये अपशिष्ट को तनु कर देते हैं।
    • अपर्याप्त बुनियादी अवसंरचना:
      • कई शहरों में पर्याप्त सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (STP) नहीं हैं या पुरानी सुविधाएँ हैं।
      • उदाहरण: वर्ष 2023 में, राष्ट्रीय राजधानी में 60% से अधिक STP, यमुना नदी को पुनर्जीवित करने के लिये NGT द्वारा अनिवार्य किये जाने के बावजूद, प्रमुख प्रदूषण मानकों को पूरा करने में विफल रहे।
    • वित्तीय और संसाधन संबंधी बाधाएँ: 
      • STP के निर्माण और संचालन के लिये उच्च पूँजी निवेश की आवश्यकता होती है।
      • नगरपालिकाओं को प्रायः बजटीय सीमाओं का सामना करना पड़ता है, जिससे ऐसे बुनियादी अवसंरचना की संवहनीयता प्रभावित होती है।
    • शहरी-ग्रामीण विषमता:
      • अपशिष्ट जल प्रबंधन अत्यधिक शहर-केंद्रित है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों, जहाँ प्रायः नदियाँ निकलती हैं, में बुनियादी सीवेज प्रणालियों का भी अभाव है।
      • वर्ष 2022 तक, केवल 75% ग्रामीण भारतीय परिवारों को शौचालय अथवा शौचालय जैसी बुनियादी स्वच्छता सुविधाएँ प्राप्त थीं।
    • संस्थागत विखंडन:
      • CPCB, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (SPCB) तथा शहरी स्थानीय निकाय जैसी अनेक संस्थाएँ एक-दूसरे से ओवरलैपिंग अधिकारों के साथ कार्य करती हैं, जिससे समन्वय की कमी उत्पन्न होती है।
    • जन उदासीनता तथा अल्प-जागरूकता:
      • नागरिक प्रायः अपशिष्ट जल प्रदूषण के परिणामों से अनभिज्ञ होते हैं।
      • समुदाय-आधारित निगरानी की अनुपस्थिति के कारण स्थानीय स्तर पर उत्तरदायित्व की भावना विकसित नहीं हो पाती।

    आगे की राह

    • स्वल्पकालिक उपाय:
      • सभी नये तथा वर्तमान आवासों के साथ सीवेज पाइपलाइन का अनिवार्य रूप से जुड़ा होना चाहिये।
      • SPCB के माध्यम से निगरानी, रिपोर्टिंग और सत्यापन (MRV) तंत्र को मज़बूत बनाना चाहिये।
      • STP की स्थापना में सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
    • दीर्घकालिक रणनीतियाँ:
      • पारिस्थितिक नियोजन के साथ एकीकृत नदी बेसिन प्रबंधन।
      • ‘नदी मित्र’ कार्यक्रम जैसी समुदाय-नेतृत्व वाली पहल।
      • विकेंद्रीकृत, पर्यावरण-अनुकूल तकनीकों को प्रोत्साहन।
        • केरल के अलाप्पुझा ने विकेंद्रीकृत अपशिष्ट शोधन को अपनाया और UNEP द्वारा सतत् स्वच्छता के एक मॉडल के रूप में इसकी प्रशंसा की गई।
      • ‘प्रदूषक भुगतान सिद्धांत’ के माध्यम से सख्त अनुपालन सुनिश्चित करना।

    निष्कर्ष: 

    नमामि गंगे, AMRUT और स्वच्छ भारत मिशन जैसी योजनाओं ने सीवेज शोधन एवं स्वच्छता के बुनियादी अवसंरचना में सुधार किया है। इन सफलताओं के आधार पर, भारत को अपनी नदियों के सतत् संरक्षण के लिये सिद्ध मॉडलों को आगे बढ़ाने, सख्त अनुपालन लागू करने और विकेंद्रीकृत अपशिष्ट जल समाधानों को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।