प्रश्न . “पृथ्वी की जलवायु प्रणाली में महासागरों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।” भारतीय मौसम पैटर्न पर महासागरीय धाराओं और एल नीनो जैसी घटनाओं के प्रभाव का परीक्षण कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- पृथ्वी की जलवायु प्रणाली में महासागरों की भूमिका का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- भारतीय मौसम पैटर्न पर महासागरीय धाराओं और एल नीनो जैसी घटनाओं के प्रभाव का परीक्षण कीजिये।
- आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
पृथ्वी की सतह के 70% से अधिक भाग पर महासागरों का विस्तार है, जो ऊष्मा एवं नमी के विशाल भंडार के रूप में कार्य करते हैं। महासागरीय धाराओं जैसी बड़ी परिसंचरण प्रणालियों तथा एल नीनो, ला नीना और हिंद महासागर द्विध्रुवीयता (IOD) जैसी जटिल जलवायु घटनाओं के माध्यम से महासागर पृथ्वी की जलवायु प्रणाली को गहराई से प्रभावित करते हैं। इनका प्रभाव विशेषकर भारतीय मानसून, चक्रवातों और वर्षा वितरण पर स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।
मुख्य भाग:
पृथ्वी की जलवायु प्रणाली में महासागरों की भूमिका:
- महासागर सौर ऊर्जा को संग्रहित करते हैं तथा सतही एवं गहन जल प्रवाह के माध्यम से उसका परिवहन करते हैं।
- जलवाष्पीकरण के माध्यम से निहित ऊष्मा वायुमंडल में स्थानांतरित होती है जिससे तापमान नियंत्रित होता है।
- महासागर पवन पैटर्न और मेघ विरचन की प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं, जिससे वर्षा और वायुदाब पेटियाँ निर्धारित होती हैं।
- महासागर और वायुमंडल के मध्य यह जटिल अंतःक्रिया विभिन्न क्षेत्रों की जलवायु को निर्धारित करती है, जिसमें भारतीय उपमहाद्वीप भी सम्मिलित है।
भारतीय मौसम पर महासागरीय धाराओं का प्रभाव
- भूमध्य रेखा के निकट उष्ण/गर्म धाराएँ (जैसे: एगुलस धारा) वाष्पीकरण को बढ़ाती हैं, जिससे मानसून प्रणाली को नमी मिलती है।
- शीत धाराएँ (जैसे: पश्चिमी ऑस्ट्रेलियाई धारा) वाष्पीकरण को कम करके वर्षा को बाधित करती हैं।
- सोमाली धारा, जो अपने मौसमी परिवर्तन के लिये जानी जाती है, अरब सागर में अपवेलिंग (अपवाह) की प्रक्रिया को प्रभावित करती है और दक्षिण-पश्चिम मानसून की शुरुआत को चिह्नित करती है।
- हिंद महासागर द्विध्रुव (IOD) वर्षा की तीव्रता को प्रभावित करता है:
- सकारात्मक IOD: पश्चिमी हिंद महासागर के गर्म होने से भारत में वर्षा में वृद्धि होती है।
- नकारात्मक IOD: पश्चिमी क्षेत्र के ठंडे होने से मानसून गतिविधियाँ बाधित होती हैं।
- उदाहरण: वर्ष 2019 में, यद्यपि एल नीनो कमज़ोर था, फिर भी एक प्रबल सकारात्मक IOD के कारण भारत में लगभग सामान्य मानसून हुआ।

एल नीनो, ला नीना और भारत पर उनका प्रभाव
एल नीनो:
- एल नीनो एक जलवायु पैटर्न है जो पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में सतही जल के असामान्य रूप से गर्म होने को दर्शाता है।
- यह एल नीनो-दक्षिणी दोलन (ENSO) नामक एक व्यापक परिघटना का ‘गर्म चरण/अवस्था’ है।
- एल नीनो में पूर्वी प्रशांत महासागर में पेरू के तट पर गर्म धाराओं के प्रकट होने के साथ-साथ समुद्री एवं वायुमंडलीय घटनाएँ शामिल हैं, जो व्यापारिक पवनों और वॉकर परिसंचरण को कमज़ोर कर देती हैं।
- इसके कारण भारत तक पहुँचने वाली आर्द्र पवनें कम हो जाती हैं, जिससे मानसून कमज़ोर पड़ता है और वर्षा बाधित होता है।
- भारत में, एल नीनो आमतौर पर मानसून को कमज़ोर करता है, जिसके परिणामस्वरूप औसत से अधिक शुष्क स्थितियाँ और अनावृष्टि होती है। इससे सूखा, जल की कमी और कृषि को नुकसान हो सकता है।
- वर्ष 2015 में एल नीनो के कारण भारत में मानसून में 14% की कमी दर्ज की गई थी, जिससे कृषि संकट उत्पन्न हुआ।

ला नीना
- ला नीना ENSO की ‘शीत अवस्था’ है, जिसमें प्रशांत महासागर के पूर्वी उष्णकटिबंधीय भाग में सतही जल सामान्य से ठंडे हो जाते हैं।
- ला नीना चरण में, व्यापारिक पवनें प्रबल हो जाती हैं, जिससे जल की बड़ी मात्रा पश्चिमी प्रशांत महासागर की ओर निर्देशित हो जाती है और पूर्वी प्रशांत महासागर में तापमान कम हो जाता है।
- इसके परिणामस्वरूप सामान्य से अधिक वर्षा होती है, जिससे कुछ क्षेत्रों में बाढ़ आ सकती है, जबकि अन्य क्षेत्रों में जलाशयों और कृषि को लाभ पहुँच सकता है।
- ला नीना की हालिया अवधि क्रश 2020 से 2023 तक रही, जिसने भारत में कई राज्यों में वर्षा पैटर्न को प्रभावित किया।

निष्कर्ष:
महासागर वैश्विक और क्षेत्रीय जलवायु प्रणालियों का अभिन्न अंग हैं। भारत के लिये महासागरीय धाराएँ और ENSO-संबंधी घटनाएँ मानसून की प्रबलता, कृषि उत्पादन एवं आपदा मोचन को निर्धारित करने में निर्णायक भूमिका निभाती हैं। ऐसे में ARGO फ्लोट्स, उपग्रह आधारित आँकड़ों और विकसित मानसून पूर्वानुमान मॉडल जैसी उन्नत महासागरीय निगरानी प्रणालियों को सुदृढ़ करना जलवायु अनुकूलन एवं सतत् विकास की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम है।