• प्रश्न :

    प्रश्न. भारत की स्थापत्य विरासत समन्वयवाद की भावना को दर्शाती है। इंडो-इस्लामिक और औपनिवेशिक स्थापत्यकला के संदर्भ में चर्चा कीजिये। (150 शब्द)

    04 Aug, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 1 संस्कृति

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भारत में स्थापत्य समन्वयवाद की विरासत का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • इंडो-इस्लामिक और औपनिवेशिक स्थापत्यकला के संदर्भ में चर्चा कीजिये।
    • इसकी समकालीन प्रासंगिकता के साथ उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    भारत की स्थापत्य विरासत इसकी समृद्ध सांस्कृतिक चरणों को दर्शाती है और विविध परंपराओं के सामंजस्यपूर्ण मिश्रण की भावना को अभिव्यक्त करती है। इंडो-इस्लामिक एवं उपनिवेशकालीन शैलियाँ आपसी अनुकूलन और सभ्यतागत सम्मान का उदाहरण प्रस्तुत करती हैं, जिससे स्थापत्य 'विविधता में एकता' का प्रतीक बन जाता है।

    मुख्य भाग:

    इंडो-इस्लामिक स्थापत्यकला: रूपों का सम्मिश्रण

    • भारत में इस्लामी शासन के आगमन के साथ फारसी और मध्य एशियाई स्थापत्य परंपराएँ आईं, जिनका मौजूदा हिंदू एवं बौद्ध रूपों के साथ रचनात्मक रूप से समावेश हो गया।
    • इससे एक विशिष्ट इंडो-इस्लामिक स्थापत्य शैली का उदय हुआ जिसमें निम्नलिखित शामिल थे:
      • इस्लामी विशेषताएँ जैसे: गुंबद, मेहराब, मीनारें और सुलेख।
      • भारतीय तत्त्व जैसे: कॉर्बेल्ड मेहराब, कमल आकृतियाँ, छतरियाँ एवं एलंकृत नक्काशी।
    • ये संरचनाएँ सांस्कृतिक विजय का नहीं, बल्कि सह-अस्तित्व का प्रतीक हैं, जहाँ इस्लामी शासकों ने स्थानीय कारीगरों को संरक्षण दिया और क्षेत्रीय सौंदर्यशास्त्र को अपनाया।
    • प्रमुख उदाहरण:
      • कुतुब मीनार परिसर (दिल्ली): पहले से मौजूद हिंदू और जैन मंदिरों की सामग्रियों का उपयोग करके निर्मित, यह मस्जिद इस्लामी डिज़ाइन एवं स्वदेशी शिल्प कौशल के मिश्रण को दर्शाती है।
      • हुमायूँ का मकबरा (दिल्ली): दोहरे गुंबद वाली फारसी संरचना को भारतीय छतरियों के साथ संयोजित किया गया।
      • फतेहपुर सीकरी (उत्तर प्रदेश): अकबर द्वारा बसाया गया नगर, जिसमें गुजराती, राजस्थानी और फारसी शैलियों का मिश्रण है; दीवान-ए-खास और बुलंद दरवाज़ा इसके उदाहरण हैं।
      • गोल गुम्बज़ (बीजापुर): फारसी प्रभाव का एक विशाल गुंबद, जिसे स्थानीय दक्कनी निर्माण सामग्री और संरचनात्मक तकनीकों से बनाया गया है।

    औपनिवेशिक स्थापत्य: साम्राज्य का सम्मिश्रण

    • ब्रिटिश शासन के दौरान गोथिक, बारोक और नव-शास्त्रीय (Neoclassical) जैसी यूरोपीय वास्तुशैलियों का भारत में आगमन हुआ। इन्हें भारत की जलवायु और पारंपरिक शैलियों के अनुसार ढाला गया।
    • इंडो-सारसेनिक शैली इस दौर का एक प्रमुख उदाहरण है, जो भारतीय और यूरोपीय वास्तु तत्त्वों के एक सचेत मिश्रण को दर्शाती थी।
    • यह स्थापत्य शैली उपनिवेशकों और उपनिवेशित समाज के बीच संवाद संवाद को दर्शाती है, जिसके परिणामस्वरूप एक साझा स्थापत्य विरासत का निर्माण हुआ।
    • उल्लेखनीय उदाहरण:
      • विक्टोरिया मेमोरियल (कोलकाता): मुगल गुंबदों, इस्लामी मेहराबों और स्थानीय संगमरमर से सजी एक यूरोपीय शैली की इमारत।
      • गेटवे ऑफ इंडिया (मुंबई): एक यूरोपीय लेआउट में हिंदू मंदिर डिज़ाइन और इंडो-इस्लामिक मेहराबों के तत्त्वों का संयोजन।
      • छत्रपति शिवाजी टर्मिनस (मुंबई): विक्टोरियन गोथिक पुनरुद्धार शैली की इमारत, जिसमें भारतीय पत्थर की नक्काशी और योजनाबद्धता झलकती है।
      • लुटियंस दिल्ली: क्लासिकल ब्रिटिश योजना के साथ भारतीय विशेषताओं वाले गुंबद, जालियाँ और खुले आँगनों जैसे तत्त्वों का समावेश।

    निष्कर्ष:

    कुतुब मीनार, लाल किला और मुंबई का विक्टोरियन-गोथिक समूह जैसे स्मारकों का UNESCO विश्व धरोहर के रूप में चयन, इनके सांस्कृतिक महत्त्व एवं वैश्विक पहचान को दर्शाता है। आज जब सांस्कृतिक खंडन की प्रवृत्ति बढ़ रही है, तब इन ऐतिहासिक स्थलों का संरक्षण विश्व मंच पर बहुलतावाद, साझा विरासत और अंतर-सांस्कृतिक संवाद के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दृढ़ करता है।