प्रश्न. जॉन रॉल्स ने ‘न्याय को निष्पक्षता’ के रूप में महत्त्व दिया। विश्लेषण कीजिये कि यह सिद्धांत किस प्रकार सरकारी पदाधिकारियों द्वारा सीमित संसाधनों के वितरण में विभिन्न सार्वजनिक हितों के बीच संतुलन बनाने में उपयोगी हो सकता है। (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- जॉन रॉल्स के ‘न्याय के रूप में नैतिक समानता’ के सिद्धांत का संक्षेप में परिचय दीजिये।
- विश्लेषण कीजिये कि सरकारी अधिकारी सार्वजनिक संसाधन आवंटन में इस सिद्धांत का उपयोग किस प्रकार कर सकते हैं।
- शासन में इसकी प्रासंगिकता को पुष्ट करते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
जॉन रॉल्स का ‘न्याय के रूप में नैतिक समानता’ का सिद्धांत एक ऐसे समाज की कल्पना पर आधारित है जहाँ संसाधनों और अवसरों का वितरण समानता तथा नैतिक औचित्य के आधार पर हो। उनके दो प्रमुख सिद्धांत—सभी के लिये समान बुनियादी स्वतंत्रताएँ तथा 'अंतर सिद्धांत' (यानि यदि कोई असमानता हो भी, तो वह सबसे कमज़ोर वर्ग के हित में होनी चाहिये) विशेषकर सीमित संसाधनों का प्रबंधन करने में संलग्न लोक सेवकों के लिये एक सुदृढ़ नैतिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं।

मुख्य भाग:
सार्वजनिक संसाधन आवंटन में अनुप्रयोग
- अज्ञानता का पर्दा अर्थात् आवरण:
- रॉल्स ने प्रस्तावित किया कि न्यायपूर्ण निर्णय एक काल्पनिक 'मूल स्थिति' से उत्पन्न होते हैं, जहाँ निर्णय लेने वाले व्यक्ति 'अज्ञानता के आवरण' (Veil of ignorance) के पीछे होते हैं, अर्थात वे यह नहीं जानते कि समाज में उनका स्वयं का क्या स्थान है। यह सिद्धांत निष्पक्षता और तटस्थता को बढ़ावा देता है।
- उदाहरण: जब किसी IAS अधिकारी को शहरी और ग्रामीण बुनियादी अवसंरचना विकास के लिये धन आवंटित करना हो, तो उसे चुनावी दबाव या उच्च वर्ग के प्रभाव जैसे पूर्वग्रहों से बचते हुए केवल वस्तुनिष्ठ ज़रूरतों के आधार पर निर्णय लेना चाहिये।
- अंतर सिद्धांत:
- अंतर सिद्धांत के अनुसार, असमानताएँ तभी न्यायसंगत मानी जा सकती हैं जब वे सबसे कमज़ोर वर्ग के हित में हों। अतः लोक सेवकों को नीति-निर्माण में कमज़ोर और वंचित समूहों को प्राथमिकता देनी चाहिये।
- उदाहरण: कोविड-19 महामारी के दौरान स्वास्थ्य संसाधनों के आवंटन में, ज़िला अधिकारियों ने जनजाति बहुल बस्तियों (जिनकी पहुँच सबसे कम है) में मोबाइल स्वास्थ्य सेवा इकाइयाँ तैनात करके ‘रॉल्स के निष्पक्षता-सिद्धांत’ का उदाहरण प्रस्तुत किया।
- अवसर की निष्पक्ष समानता:
- सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि सभी नागरिकों को, चाहे उनकी पृष्ठभूमि कुछ भी हो, सार्वजनिक वस्तुओं और सेवाओं तक समान अभिगम प्राप्त हो।
- उदाहरण: शिक्षा के क्षेत्र में, पिछड़े क्षेत्रों में नवोदय विद्यालय स्थापित करने के लिये संसाधन आवंटित करने से यह सुनिश्चित होता है कि ग्रामीण या वंचित क्षेत्रों के बच्चों को शहरी छात्रों के समान शैक्षणिक अवसर प्राप्त हों।
- कुशलता और समानता के बीच संतुलन:
- प्रशासनिक पदाधिकारियों को विकास के लक्ष्यों के साथ-साथ सामाजिक समानता का भी ध्यान रखना चाहिये, ऐसा न हो कि संसाधन केवल पहले से ही समृद्ध क्षेत्रों में सिमट कर रह जायें।
- उदाहरण: स्मार्ट सिटी मिशन के तहत, सरकार ने छोटे शहरों की उपेक्षा न हो, यह सुनिश्चित करने के लिये अमृत योजना की शुरूआत की, जो शहरी विकास को समावेशिता के साथ सामंजस्य स्थापित करने का एक रॉल्सवादी प्रयास है।
- लोक सेवकों के लिये नैतिक निहितार्थ:
- लोक सेवकों को न केवल क्रियान्वयनकर्त्ता के रूप में, बल्कि न्याय और निष्पक्षता के नैतिक संरक्षक के रूप में भी भूमिका निभानी चाहिये, साथ ही आँकड़ों-तथ्यों, हितधारकों से परामर्श एवं आवश्यकता-आधारित योजना के आधार पर निर्णय लेने चाहिये।
- उदाहरण: केरल में 'पार्टिसिपेटरी बजटिंग' (सहभागी बजट निर्णय) की प्रक्रिया में समुदायों को स्थानीय व्यय से जुड़े निर्णयों में भागीदारी मिलती है, जो रॉल्स के न्याय, सहमति और समावेशिता जैसे सिद्धांतों को प्रस्तुत करती है।
निष्कर्ष:
रॉल्स की 'निष्पक्षता के रूप में न्याय' (Justice as Fairness) की अवधारणा लोक सेवकों के लिये एक नैतिक मार्गदर्शन प्रदान करती है, जिससे वे संसाधनों का वितरण निष्पक्षता, समानता और नैतिक वैधता के साथ कर सकें। इस सिद्धांत के अनुसार जब वंचित वर्ग को प्राथमिकता दी जाती है, तो शासन एक न्यायसंगत और समावेशी प्रक्रिया में परिवर्तित होता है, जो भारतीय संविधान के आदर्शों के अनुरूप होती है।