प्रश्न. उपभोग समानता के मामले में भारत का स्थान उच्च है, फिर भी यहाँ धन का संकेंद्रण बढ़ता जा रहा है। भारत में आर्थिक वृद्धि और न्यायसंगत वितरण के बीच बढ़ते अंतर का विश्लेषण कीजिये। इस अंतर को न्यूनतम करने के लिये किन नीतिगत उपायों की आवश्यकता है? (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत में उपभोग समानता और बढ़ते धन संकेंद्रण के विरोधाभास का संक्षेप में परिचय दीजिये।
- भारत में आर्थिक विस्तार और वितरणात्मक न्याय के बीच के वियोग का विश्लेषण कीजिये।
- इस अंतर को न्यूनतम करने के लिये आवश्यक नीतिगत उपायों का सुझाव दीजिये।
- एक विवेकपूर्ण टिप्पणी के साथ उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
भारत, जो अब विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था (PIB के अनुसार) है, एक आश्चर्यजनक विरोधाभास प्रस्तुत करता है। उपभोग के मामले में यह सबसे समान समाजों में शुमार है, जिसका गिनी गुणांक 25.5 (विश्व बैंक) है, जो इसे विश्व स्तर पर चौथे स्थान पर रखता है, फिर भी यह गंभीर धन संकेंद्रण से ग्रस्त है।
मुख्य भाग:
उपभोग समानता
- कल्याणकारी योजनाएँ बुनियादी समानता सुनिश्चित करती हैं:
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS), PM-KISAN, आयुष्मान भारत और MGNREGA जैसी सरकारी योजनाओं ने गरीबों को न्यूनतम उपभोग सुरक्षा प्रदान की है।
- इन योजनाओं ने उपभोग समानता को बढ़ावा दिया है, जो उपभोग पर गिनी गुणांक जैसे मानकों में परिलक्षित होता है।
- संपत्ति समानता का अभाव:
- यद्यपि उपभोग अस्थायी रूप से समान है, धन-सृजन संसाधनों—शिक्षा, नौकरी, संपत्ति, ऋण तक पहुँच अत्यधिक विषम बनी हुई है।
- इस प्रकार, दैनिक उपभोग स्तरों की सतह के नीचे संरचनात्मक असमानता बनी रहती है।
विकास और वितरण के बीच वियोजन
- ऑक्सफैम इंडिया (2023): शीर्ष 1% भारतीयों के पास कुल संपत्ति का 40% से अधिक है।
- विश्व असमानता रिपोर्ट (2022): भारत विश्व के सबसे असमान देशों में से एक है, जहाँ शीर्ष 10% और शीर्ष 1% आबादी के पास कुल राष्ट्रीय आय का क्रमशः 57% एवं 22% हिस्सा है।
- निम्नतम 50% का हिस्सा घटकर 13% रह गया है।
बढ़ती संपत्ति असमानता के कारण
- प्रतिगामी कर व्यवस्थाएँ: कॉर्पोरेट और संपत्ति कराधान में गिरावट; अप्रत्यक्ष कर का बढ़ता बोझ।
- संपत्ति स्वामित्व में असमानता: भूमि, स्टॉक और अचल संपत्ति कुछ ही हाथों में केंद्रित हैं।
- बेरोज़गारी में वृद्धि: स्वचालन, गिग इकॉनमी और अनौपचारिकीकरण ने आय के अवसरों को सीमित कर दिया है।
- अनौपचारिक क्षेत्र 90% से अधिक कार्यबल को रोज़गार देता है, लेकिन फिर भी उसे कम वेतन मिलता है।
- सीमित सामाजिक गतिशीलता: गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं, शिक्षा तथा ऋण की समुचित उपलब्धता न होने के कारण सामाजिक उन्नयन की संभावनाएँ सीमित हो जाती हैं।
- भारत की लगभग 74% आबादी स्वस्थ आहार का खर्च नहीं उठा सकती थी और 39% को पर्याप्त पोषक आहार नहीं मिल पाता था।
- कॉर्पोरेट-केंद्रित वृद्धि: आर्थिक उदारीकरण ने MSME की तुलना में बड़े उद्यमों को प्राथमिकता दी।
- क्रोनी कैपिटलिज़्म: निजीकरण और नियामक नियंत्रण ने असमान रूप से व्यावसायिक अभिजात वर्ग को प्राथमिकता दी है।
- गरीबों पर कर का बोझ: देश में कुल वस्तु एवं सेवा कर (GST) का लगभग 64% हिस्सा निचले 50% आबादी से आया, जबकि सत्र 2021-22 में केवल 4% हिस्सा शीर्ष 10% से आया। (ऑक्सफैम रिपोर्ट, 2023)
वितरणात्मक न्याय के निहितार्थ
- सामाजिक विखंडन: बढ़ती असमानता आक्रोश और पहचान-आधारित राजनीति को बढ़ावा दे सकती है।
- सामाजिक गतिशीलता में कमी: गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और डिजिटल उपकरणों तक पहुँच की कमी गरीबों को गरीबी में फँसाती है।
- लोकतांत्रिक घाटा: नीति-निर्माण पर असमान प्रभाव एक-व्यक्ति-एक-मत के आदर्श को कमज़ोर करता है।
इस अंतर को न्यूनतम करने के लिये नीतिगत उपाय
- प्रगतिशील कराधान: उच्च-निवल-मूल्य वाले व्यक्तियों के लिये उत्तराधिकार कर को पुनः लागू करने और पूंजीगत लाभ कराधान पर पुनर्विचार करने पर विचार किया जाना चाहिये।
- सार्वभौमिक बुनियादी सेवाएँ: क्षमताओं को बढ़ाने के लिये शिक्षा, स्वास्थ्य और इंटरनेट तक अभिगम सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
- श्रम बाज़ार सुधार: न्यूनतम वेतन कानूनों को सुदृढ़ किया जाना चाहिये, गिग वर्कर्स को सामाजिक सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिये।
- संपत्ति पुनर्वितरण: भूमि सुधार, भूमिहीनों के लिये आवास और लक्षित MSME ऋण सुनिश्चित किये जाने चाहिये।
- ग्रामीण रोज़गार और बुनियादी अवसंरचना: MGNREGA का विस्तार किया जाना चाहिये और ग्रामीण संपर्कता में निवेश किया जाना चाहिये।
- पारदर्शी आँकड़े: लक्षित नीतियों को सूचित करने के लिये नियमित असमानता ऑडिट किया जाना चाहिये।
निष्कर्ष:
जैसा कि अमर्त्य सेन कहते हैं, वास्तविक विकास केवल आर्थिक विकास में नहीं, बल्कि क्षमताओं के विस्तार और समानता को बढ़ावा देने में निहित है। सतत् विकास लक्ष्य SDG10 (असमानताएँ कम करना) को पूरा करने के लिये लक्षित नीतियों, पुनर्वितरणीय कराधान और सार्वजनिक