• प्रश्न :

    प्रश्न. “यद्यपि भारत का नवीकरणीय ऊर्जा संक्रमण आवश्यक है, लेकिन फिर भी पर्याप्त नहीं है।” बड़े पैमाने पर सौर एवं पवन ऊर्जा परियोजनाओं में पर्यावरणीय और सामाजिक-आर्थिक समझौतों का विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)

    23 Jul, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरण

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भारत की नवीकरणीय ऊर्जा महत्त्वाकांक्षाओं के संदर्भ में संक्षिप्त जानकारी के साथ उत्तर दीजिये।
    • भारत के लिये नवीकरणीय ऊर्जा परिवर्तन की आवश्यकता और इसकी सीमाओं पर गहन विचार प्रस्तुत कीजिये।
    • बड़े पैमाने पर नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं में पर्यावरणीय और सामाजिक-आर्थिक समझौतों पर प्रकाश डालिये।
    • न्यायसंगत और सतत् ऊर्जा परिवर्तन के लिये उपायों का सुझाव दीजिये और उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय: 

    भारत की नवीकरणीय क्षमता वर्ष 2024 में 200 गीगावाट से अधिक हो गई, इसलिये यह परिवर्तन उत्सर्जन को कम करने और वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता प्राप्त करने की दिशा में ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु समयोचित एवं आवश्यक है।

    • हालाँकि, यह परिवर्तन अभी पर्याप्त नहीं है, क्योंकि बड़े पैमाने पर सौर और पवन परियोजनाएँ प्रायः जटिल पर्यावरणीय व सामाजिक-आर्थिक समझौते उत्पन्न करती हैं, जिससे उनकी दीर्घकालिक संवहनीयता, समता एवं समावेशिता को लेकर चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।

    मुख्य भाग:

    भारत का नवीकरणीय ऊर्जा परिवर्तन: आवश्यकता बनाम सीमाएँ

    नवीकरणीय ऊर्जा परिवर्तन की आवश्यकता

    यह परिवर्तन अभी तक पर्याप्त क्यों नहीं है

    जलवायु प्रतिबद्धताएँ: भारत ग्रीनहाउस गैसों का तीसरा सबसे बड़ा वैश्विक उत्सर्जक है। पेरिस समझौते और सतत् विकास लक्ष्य 13 के तहत राष्ट्रीय विकास लक्ष्यों (NDC) को पूरा करने के लिये जीवाश्म ईंधन के उपयोग को कम करना महत्त्वपूर्ण है।

    पारिस्थितिक न्याय की अनदेखी: कई नवीकरणीय परियोजनाएँ निष्कर्षण मॉडल का पालन करती हैं, जिससे जैवविविधता को नुकसान पहुँचता है और पिछले पर्यावरणीय अन्यायों की पुनरावृत्ति होती है।

    ऊर्जा सुरक्षा: 85% कच्चे तेल के आयात पर निर्भरता के साथ, नवीकरणीय ऊर्जा बाह्य भेद्यताओं को कम कर सकती है तथा आत्मनिर्भरता बढ़ा सकती है।

    सामाजिक-आर्थिक असमानता: ग्रामीण गरीब, जनजातीय और महिलाएँ जैसे सीमांत समूह प्रायः नवीकरणीय ऊर्जा विस्तार के लाभों से वंचित रह जाते हैं।

    बढ़ती ऊर्जा माँग: अगले दो दशकों में भारत 25% की दर से ऊर्जा माँग वृद्धि में सबसे बड़ा हिस्सा बनाएगा, नवीकरणीय ऊर्जा इस वृद्धि को पूरा करने का एक स्थायी तरीका प्रदान करती है।

    अविकसित चक्रीय अर्थव्यवस्था: सौर पैनलों और टरबाइन ब्लेडों के लिये प्रभावी ई-अपशिष्ट प्रबंधन नीतियों का अभाव दीर्घकालिक स्थिरता के लिये खतरा है।

    वैश्विक और घरेलू नेतृत्व: ISA और राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन जैसी पहल भारत की वैश्विक स्वच्छ ऊर्जा स्थिति को बढ़ावा देती हैं।

    ग्रिड और स्टोरेज चुनौतियाँ: ग्रिड एकीकरण और भंडारण की कमी से ऊर्जा में कटौती होती है, जिससे नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन की दक्षता कम हो जाती है। वर्तमान में, भारत को वर्ष 2032 तक 74GW/411GWh ऊर्जा भंडारण की आवश्यकता है।

    बड़े पैमाने पर नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं में पर्यावरणीय समझौते

    • भूमि उपयोग और आवास विखंडन: सौर और पवन फार्मों के लिये विशाल भूमि की आवश्यकता होती है।
      • उदाहरण के लिये कर्नाटक में पावगड़ा सौर पार्क 13,000 एकड़ से अधिक क्षेत्र में विस्तृत है। ऐसी परियोजनाएँ प्रायः सार्वजनिक भूमि, वन भूमि या पारिस्थितिक रूप से सुभेद्य क्षेत्रों पर अतिक्रमण करती हैं, जिससे निर्वनीकरण होता है और जैवविविधता का नुकसान होता है।
    • वन्यजीवों और पक्षियों पर प्रभाव: पवन टर्बाइनों को पक्षियों की उच्च मृत्यु दर से जोड़ा गया है, जिनमें राजस्थान और गुजरात में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड जैसी लुप्तप्राय प्रजातियाँ भी शामिल हैं। 
      • सौर फार्म मरुस्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र को बाधित कर सकते हैं, सतह के एल्बिडो को बदल सकते हैं तथा स्थानीय वनस्पतियों और जीवों को नुकसान पहुँचा सकते हैं।
    • महत्त्वपूर्ण खनिज निष्कर्षण का दबाव: नवीकरणीय ऊर्जा आपूर्ति शृंखला दुर्लभ मृदा धातुओं और महत्त्वपूर्ण खनिजों (लिथियम, कोबाल्ट, निकल) पर निर्भर करती है, जिनके निष्कर्षण से महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिक क्षरण होता है तथा प्रायः मूल निवासियों के भूमि अधिकारों का उल्लंघन होता है, विशेषकर विकासशील देशों में।
    • सौर ऊर्जा का वाटर फूटप्रिंट: हालाँकि सौर PV प्रणालियाँ संचालन के दौरान कम जल का उपयोग करती हैं, सौर तापीय संयंत्रों को ठंडा करने और सफाई के लिये पर्याप्त जल की आवश्यकता होती है, जिससे राजस्थान जैसे जल-संकटग्रस्त क्षेत्रों पर दबाव पड़ सकता है।
    • जीवन-अंत निपटान और ई-अपशिष्ट: अनुमान है कि वर्ष 2050 तक, भारत में 1.8 मिलियन टन सौर PV अपशिष्ट उत्पन्न होगा। एक मज़बूत पुनर्चक्रण पारिस्थितिकी तंत्र के अभाव में, यह एक गंभीर पर्यावरणीय खतरा उत्पन्न करता है।

    बड़े पैमाने की परियोजनाओं के सामाजिक-आर्थिक समझौते

    • भूमि अधिग्रहण और आजीविका विस्थापन: परियोजनाएँ प्रायः लघु और सीमांत किसानों, पशुपालकों एवं वन-आश्रित समुदायों को विस्थापित करती हैं। गुजरात के कच्छ क्षेत्र में, नवीकरणीय पार्कों के कारण मालधारी पशुपालक समुदायों के साथ संघर्ष हुआ है, जिससे पारंपरिक चरागाह अधिकार प्रभावित हुए हैं।
    • ऊर्जा सुलभता और केंद्रीकरण: हालाँकि बड़े पैमाने की परियोजनाएँ केंद्रीय ग्रिड में ऊर्जा पहुँचाती हैं, लेकिन वे प्रायः ऊर्जा की कमी वाले ग्रामीण क्षेत्रों को दरकिनार कर देती हैं। यह केंद्रीकृत मॉडल उद्योग और शहरी केंद्रों को लाभान्वित करता है, लेकिन विकेंद्रीकृत ऊर्जा सुलभता एवं स्थानीय विकास के लिये बहुत कम योगदान देता है।
    • रोज़गार सृजन बनाम रोज़गार गुणवत्ता: नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र, हालाँकि रोज़गार सृजनकारी हैं, प्रायः अस्थायी, कम-कुशल निर्माण कार्य प्रदान करते हैं।
    • सामुदायिक भागीदारी का अभाव: कई परियोजनाएँ स्थानीय समुदायों की स्वतंत्र, पूर्व और सूचित सहमति (FPIC) के बिना क्रियान्वित की जाती हैं, जिससे सामाजिक अशांति उत्पन्न होती है। अपर्याप्त पारदर्शिता और मुआवज़ा तंत्र का अभाव असंतोष को बढ़ाता है।

    एक न्यायसंगत और सतत् ऊर्जा परिवर्तन की ओर

    • विकेंद्रीकृत नवीकरणीय मॉडलों को बढ़ावा: स्थानीय लाभ सुनिश्चित करने और भूमि उपयोग संबंधी विवादों को कम करने के लिए ये ग्रामीण एवं जनजातीय बहुल क्षेत्रों में रूफटॉप सौर ऊर्जा, समुदाय-आधारित माइक्रोग्रिड व सौर-पवन हाइब्रिड परियोजनाओं को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
    • पर्यावरणीय विनियमन को सुदृढ़ करना: बड़े पैमाने की परियोजनाओं, विशेष रूप से पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्रों में, के लिये व्यापक पर्यावरणीय और वन्यजीव प्रभाव आकलन (EIA/WIA) को अनिवार्य किया जाना चाहिये।
    • समावेशी भूमि और आजीविका नीतियाँ सुनिश्चित करना: निष्पक्ष भूमि अधिग्रहण प्रथाओं को लागू किया जाना चाहिये, FPIC, समय पर मुआवज़ा और आजीविका बहाली सुनिश्चित किया जाना चाहिये। भूमि पट्टा मॉडल किसानों के लिये नियमित आय भी सुनिश्चित कर सकते हैं।
    • नवीकरणीय ऊर्जा के लिये एक चक्रीय अर्थव्यवस्था विकसित करना: सौर PV पुनर्चक्रण के लिये दिशानिर्देश बनाए जाने चाहिये और कम प्रभाव वाली प्रौद्योगिकियों में अनुसंधान एवं विकास को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। पर्यावरणीय और सामाजिक सुरक्षा उपायों के साथ हरित खनिज आपूर्ति शृंखला ओं में निवेश किया जाना चाहिये।
    • ग्रिड और भंडारण अवसंरचना में सुधार: रुकावटों को प्रबंधित करने और ऊर्जा कटौती को कम करने के लिये स्मार्ट ग्रिड, बैटरी भंडारण एवं पंप हाइड्रो में निवेश किया जाना चाहिये।

    निष्कर्ष:

    भारत का नवीकरणीय ऊर्जा में परिवर्तन कम कार्बन उत्सर्जन वाले भविष्य के लिये महत्त्वपूर्ण है, लेकिन इसे केवल तकनीकी रूप से कुशल होने से आगे बढ़कर पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील एवं सामाजिक रूप से समावेशी बनने की आवश्यकता है। अंततः, “संवहनीयता केवल स्वच्छ ऊर्जा की ओर स्थानांतरण करना ही नहीं है - बल्कि यह भी सुनिश्चित करने के बारे में है कि उस ऊर्जा का लाभ सभी तक पहुँचे।”