• प्रश्न :

    प्रश्न. "हिंद-प्रशांत केवल एक भौगोलिक क्षेत्र नहीं, बल्कि एक रणनीतिक दृष्टिकोण है।" चीन की आक्रामकता और विकसित होते क्षेत्रीय गठबंधनों की पृष्ठभूमि में भारत की हिंद-प्रशांत रणनीति का विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)

    22 Jul, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंध

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भारत के लिये हिंद-प्रशांत क्षेत्र के महत्त्व और समसामयिक घटनाओं के संबंध में संक्षिप्त जानकारी के साथ उत्तर दीजिये।
    • भारत के लिये एक रणनीतिक दृष्टिकोण के रूप में हिंद-प्रशांत के पक्ष में तर्क प्रस्तुत कीजिये।
    • एक रणनीतिक चुनौती के रूप में चीन की मुखरता पर गहन विचार प्रस्तुत कीजिये।
    • क्षेत्रीय गठबंधनों के विकास में भारत के लिये अवसरों पर प्रकाश डालिये।
    • भारत की हिंद-प्रशांत रणनीति को सुदृढ़ करने के उपाय बताइये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय: 

    वर्ष 2023 में G20 शिखर सम्मेलन में भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे (IMEC) का आरंभ और हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (वर्ष 2025-27) की भारत की आगामी अध्यक्षता, हिंद-प्रशांत को केवल एक भौगोलिक विस्तार के रूप में नहीं, बल्कि एक रणनीतिक रंगमंच के रूप में भारत के विकसित होते दृष्टिकोण को दर्शाती है।

    मुख्य भाग:

    भारत के लिये एक रणनीतिक दृष्टिकोण के रूप में हिंद-प्रशांत क्षेत्र:

    • समुद्री सुरक्षा और रणनीतिक स्वायत्तता: भारत का 95% से अधिक व्यापार और ऊर्जा आयात हिंद-प्रशांत क्षेत्र से होकर गुजरता है, खासकर होर्मुज़ और मलक्का जलडमरूमध्य जैसे अवरोध बिंदुओं से।
      • भारत का SAGAR (क्षेत्र में सभी के लिये सुरक्षा और विकास) सिद्धांत और मिशन-आधारित तैनाती चीन की बढ़ती नौसैनिक उपस्थिति का मुकाबला करने में उसके समुद्री-प्रथम दृष्टिकोण का संकेत देती है।
    • आर्थिक विकास और व्यापार विविधीकरण: इंडो-पैसिफिक इकॉनोमिक फ्रेमवर्क (IPEF) में शामिल होकर और ऑस्ट्रेलिया व UAE के साथ FTA पर हस्ताक्षर करके, हिंद-प्रशांत क्षेत्र चीन पर अत्यधिक निर्भरता से जोखिम कम करने के भारत के प्रयासों का आधार है।
      • भारत वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं, विशेष रूप से सेमीकंडक्टर, फार्मास्यूटिकल्स और स्वच्छ प्रौद्योगिकी में एकीकरण के लिये चाइना प्लस वन रणनीति का लाभ उठा रहा है।
    • संपर्क और बुनियादी अवसंरचना कूटनीति: IMEC गलियारा और चाबहार बंदरगाह का पुनरोद्धार, अंतर-क्षेत्रीय संपर्क को आकार देने के भारत के उद्देश्य को दर्शाता है।
      • भारत द्वारा वैश्विक डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना भंडार (GDPIR) का आरंभ, डिजिटल अवसंरचना के माध्यम से उसके सॉफ्ट-पावर नेतृत्व को दर्शाता है।
    • ब्लू इकॉनमी और जलवायु अनुकूलन: भारत IORA, आपदा रोधी अवसंरचना गठबंधन (CDRI) और ब्लू इकॉनमी पहलों के माध्यम से महासागरीय संधारणीयता का नेतृत्व कर रहा है, जिसका उद्देश्य जलवायु-संवेदनशील विकास के साथ चीन के अवसंरचना-प्रधान BRI का मुकाबला करना है।

    चीन की हठधर्मिता: एक रणनीतिक चुनौती

    • समुद्री सैन्यीकरण: दक्षिण चीन सागर में चीन का विस्तार, जिबूती, ग्वादर और हंबनटोटा में दोहरे उपयोग वाले बंदरगाहों का विकास एवं PLA नौसेना का आधुनिकीकरण, दक्षिण चीन सागर सुरक्षा (SLOC) के लिये खतरे उत्पन्न करते हैं।
    • ऋण कूटनीति और भू-आर्थिक लाभ: बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के माध्यम से, चीन ने आर्थिक निर्भरताएँ स्थापित कर ली हैं, जिसका भारत स्थायी बुनियादी अवसंरचना की कूटनीति के माध्यम से मुकाबला करता है।
      • चीन अपनी गहरी आर्थिक स्थिति के कारण भू-आर्थिक रूप से भी प्रभावी है, जबकि भारत को वित्तीय कमी, तकनीकी प्रगति और धीमी परियोजना क्रियान्वयन की समस्या से जूझना पड़ रहा है।
    • डिजिटल और मानक प्रतिद्वंद्विता: GDPIR और G20 कूटनीति के माध्यम से भारत के ओपन डिजिटल पब्लिक गुड्स मॉडल के विपरीत, चीन बंद, राज्य-केंद्रित डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ावा दे रहा है।

    उभरते क्षेत्रीय गठबंधन: भारत के लिये अवसर

    • मिनी-लेटरल और रणनीतिक अभिसरण: क्वाड (भारत-अमेरिका-जापान-ऑस्ट्रेलिया) समुद्री सुरक्षा, आपूर्ति शृंखलाओं और उभरती तकनीक पर केंद्रित है।
      • भारत-फ्राँस-ऑस्ट्रेलिया और भारत-इंडोनेशिया-ऑस्ट्रेलिया त्रिपक्षीय संगठन हिंद महासागर एवं प्रशांत क्षेत्र में मुद्दा-आधारित गठबंधनों को बढ़ावा देते हैं।
    • बहुपक्षीय आर्थिक मंच: यद्यपि भारत ने व्यापार स्तंभ से बाहर रहने का विकल्प चुना है, फिर भी IPEF आपूर्ति शृंखला लचीलापन, स्वच्छ अर्थव्यवस्था और निष्पक्ष मानकों के लिये एक अवसर प्रदान करता है। 
      • BIMSTEC और IPOI में भारत की भागीदारी आर्थिक और सुरक्षा अभिसरण वाले क्षेत्रीय समूहों में इसकी उपस्थिति को मज़बूत करती है।

    भारत की हिंद-प्रशांत रणनीति का सुदृढ़ीकरण 

    • समुद्री क्षमता और अग्रिम उपस्थिति का विस्तार: नौसेना आधुनिकीकरण, मिशन-आधारित तैनाती में तेज़ी लाना चाहिये और हिंद-प्रशांत देशों के साथ दोहरे उपयोग वाले लॉजिस्टिक्स समझौते विकसित किया जाना चाहिये।
      • गहरे समुद्र के बंदरगाहों, MDA (समुद्री डोमेन जागरूकता) प्रणालियों और तटीय रडार नेटवर्क में निवेश किया जाना चाहिये।
    • आर्थिक एकीकरण बढ़ाएँ: ASEAN, ऑस्ट्रेलिया और संयुक्त अरब अमीरात के साथ मुक्त व्यापार समझौतों को गहरा बनाया जाना चाहिये और आपूर्ति शृंखला, डिजिटल अर्थव्यवस्था एवं IPEF के स्वच्छ प्रौद्योगिकी स्तंभों में सक्रिय रूप से भाग लिया जाना चाहिये।
      • व्यापार सुगमता अवसंरचना, सीमा शुल्क दक्षता और व्यापार सुगमता का विस्तार किया जाना चाहिये।
      • यदि भारत एक प्रमुख वैश्विक शक्ति बनना चाहता है, तो उसे अगले 10-15 वर्षों में 10 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने की आवश्यकता है। इसके लिये निवेश में वृद्धि, परियोजना निष्पादन में सुधार और संरचनात्मक बाधाओं को दूर करने की आवश्यकता है।
    • ब्लू इकॉनमी और जलवायु कूटनीति में नेतृत्व: ISA और CDRI जैसे भारत-नेतृत्व वाले मंचों के तहत ब्लू इकॉनमी, द्वीपीय संधारणीयता और जलवायु वित्तपोषण को मुख्यधारा में लाने के लिये IORA अध्यक्षता का उपयोग किया जाना चाहिये।

    निष्कर्ष

    भारत की इंडो-पैसिफिक (हिंद-प्रशांत) नीति को अलग-अलग पहलों के समूह से आगे बढ़कर एक स्पष्ट और बहुआयामी रणनीति का रूप लेना चाहिये, जो सुरक्षा, आर्थिक एकीकरण, जलवायु कूटनीति एवं सभ्यतागत नेतृत्व को साथ जोड़ती हो।

    "हिंद-प्रशांत क्षेत्र के अशांत जल में वही देश भविष्य की दिशा तय करेंगे जो दूरदृष्टि, मूल्यों और सत्यनिष्ठा के साथ आगे बढ़ेंगे।" — भारत को ऐसे ही एक राष्ट्र के रूप में उभरने की आवश्यकता है।