• प्रश्न :

    प्रश्न 1. सही और गलत के बीच की रेखा परिप्रेक्ष्य की स्याही से खींची जाती है।

    प्रश्न 2. विज्ञान भले ही तारों की व्याख्या कर सकता है, लेकिन केवल तर्क ही हमारे पथ का मार्गदर्शन कर सकता है।

    19 Jul, 2025 निबंध लेखन निबंध

    उत्तर :

    1. अपने निबंध को समृद्ध करने के लिये उद्धरण:

    • महात्मा गांधी: "शांति का कोई रास्ता नहीं है, शांति ही रास्ता है।"
      • अल्बर्ट आइंस्टीन: "शांति बल से नहीं कायम की जा सकती; इसे केवल समझ से ही प्राप्त किया जा सकता है।"
      • सोरेन कीर्केगार्ड: "सत्य एक व्यक्तिपरकता है।"
      • सैद्धांतिक और दार्शनिक आयाम:
      • नैतिक सापेक्षवाद बनाम निरपेक्षवाद: यह अवधारणा कि 'सही' और 'गलत' जैसे नैतिक मूल्य सांस्कृतिक, ऐतिहासिक तथा व्यक्तिगत परिप्रेक्ष्य से निर्धारित होते हैं, इस धारणा के विपरीत है कि कोई सार्वभौमिक नैतिक मानक होता है।
      • परिप्रेक्ष्य आधारित नैतिकता (Ethics of Perspective): नैतिक दृष्टिकोण से देखा जाये तो जो एक संस्कृति या संदर्भ में 'सही' माना जाता है, वही किसी अन्य में 'गलत' समझा जा सकता है। यह इस बात को दर्शाता है कि नैतिक निर्णय निश्चित नहीं होते, बल्कि परिवर्तनीय होते हैं।
      • रचनावादी ज्ञानमीमांसा (Constructivist Epistemology): इस सिद्धांत के अनुसार ज्ञान अनुभवों एवं बोध के माध्यम से निर्मित होता है। इस दृष्टिकोण से 'सही' और 'गलत' के बीच का भेद व्यक्तिगत एवं सामूहिक अनुभवों द्वारा निर्मित होता है, न कि पहले से निर्धारित।
      • बौद्ध दर्शन और द्वैत की प्रकृति: बौद्ध चिंतन के अनुसार 'सही' और 'गलत' जैसे द्वैत मानसिक संरचनाएँ हैं, जो दुःख का कारण बनती हैं। इन द्वैतों से ऊपर उठकर ही समग्र पारस्परिकता की गहन समझ प्राप्त की जा सकती है।
      • नैतिक व्यक्तिवाद (Ethical Subjectivism): यह विचारधारा मानती है कि नैतिक मत व्यक्ति की भावनाओं की अभिव्यक्ति होते हैं, न कि कोई वस्तुनिष्ठ सत्य। अतः 'सही' और 'गलत' की अवधारणाएँ विषयपरक एवं सापेक्ष होती हैं।
    • नीति और ऐतिहासिक उदाहरण:
      • सिविल राइट्स आंदोलन: 20वीं शताब्दी के मध्य में अमेरिका में समानता का अधिकार एक नैतिक दृष्टिकोण था, जिसके लिये रंगभेद के विरोधियों ने संघर्ष किया। जबकि उस समय के कई समर्थकों के लिये नस्लीय पृथक्करण 'सही' माना गया, जो नैतिक मूल्यों की सापेक्षता को उजागर करता है।
      • उपनिवेशवाद: यूरोपीय औपनिवेशिक शक्तियों ने अपने कार्यों को 'सही' और 'सभ्यतामूलक मिशन' के रूप में देखा, जबकि उपनिवेशित समाजों ने इन्हें 'शोषण' एवं 'दमन' के रूप में अनुभव किया। यह परिप्रेक्ष्य आधारित नैतिक असहमति को दर्शाता है।
      • युद्ध और नैतिक दुविधाएँ: विभिन्न समयों और संस्कृतियों में युद्ध के औचित्य अलग-अलग माने गये हैं। उदाहरण के लिये, द्वितीय विश्व युद्ध को मित्र राष्ट्रों द्वारा 'अनिवार्य बुराई' के रूप में उचित ठहराया गया, जबकि धुरी राष्ट्रों के लिये यह एक 'रक्षात्मक कार्यवाही' थी।
      • उपनिवेशवाद: यूरोपीय उपनिवेशीकरण को उपनिवेशवादियों और एक सभ्यता मिशन द्वारा "सही" माना जाता था, जबकि उपनिवेशित लोगों ने इसे उत्पीड़न के रूप में देखा, जो युद्ध में नैतिक दुविधाओं को उजागर करता है: युद्ध के औचित्य अक्सर संस्कृतियों और युगों के बीच भिन्न होते हैं। 
        • विभिन्न समयों और संस्कृतियों में युद्ध के औचित्य अलग-अलग माने गये हैं। उदाहरण के लिये, द्वितीय विश्व युद्ध को मित्र राष्ट्रों द्वारा 'अनिवार्य बुराई' के रूप में उचित ठहराया गया, जबकि धुरी राष्ट्रों के लिये यह एक 'रक्षात्मक कार्रवाई' थी।
    • समकालीन उदाहरण:
      • समलैंगिक विवाह: समलैंगिक विवाह को लेकर 'सही' या 'गलत' होने का नैतिक दृष्टिकोण समाजों में भिन्न-भिन्न है। अनेक देशों में इसे अधिकार के रूप में मान्यता प्राप्त है, जबकि भारत सहित कई अन्य देशों में यह अभी भी विवादास्पद और निषिद्ध है।
      • पशु अधिकार: कृषि, मनोरंजन और अनुसंधान से जुड़े क्षेत्रों में पशुओं के साथ व्यवहार को लेकर नैतिक बहस से पता चलता है कि नैतिक आचरण की परिभाषा समाजों की सोच के अनुसार बदलती रहती है।
      • जलवायु परिवर्तन से संबंधित नीतियाँ: कुछ लोगों के लिये आक्रामक जलवायु नीतियाँ 'सही' हैं क्योंकि ये पृथ्वी की रक्षा करती हैं, जबकि अन्य इन्हें आर्थिक हानि के परिप्रेक्ष्य में 'गलत' मानते हैं। यह इस बात को स्पष्ट करता है कि एक ही विषय पर नैतिक दृष्टिकोण किस प्रकार विभाजित हो सकते हैं।

    2. विज्ञान भले ही तारों की व्याख्या कर सकता है, लेकिन केवल तर्क ही हमारे पथ का मार्गदर्शन कर सकता है।

    • अपने निबंध को समृद्ध करने के लिये उद्धरण:
      • कार्ल सागन: "कहीं न कहीं, कुछ अविश्वसनीय जानने की प्रतीक्षा कर रहा है।"
      • इमैनुएल कांट: "विज्ञान संगठित ज्ञान है। बुद्धि एक संगठित जीवन है।"
      • अरस्तू: "जितना अधिक आप जानते हैं, उतना ही अधिक आपको एहसास होता है कि आप नहीं जानते।"
    • सैद्धांतिक और दार्शनिक आयाम:
      • विज्ञान और तर्कसंगतता: विज्ञान हमें हमारे चारों ओर की दुनिया की तथ्यात्मक जानकारी प्रदान करता है, चाहे वह ब्रह्मांड की संरचना हो या जैविक प्रक्रियाओं की प्रकृति। किंतु इस ज्ञान का उपयोग मानव व्यवहार तथा निर्णय-निर्धारण को संचालित करने हेतु हम तर्क के माध्यम से करते हैं।
      • व्यावहारिक ज्ञान (फ्रोनेसिस): अरस्तू की व्यावहारिक बुद्धिमत्ता की अवधारणा यह इंगित करती है कि केवल ज्ञान पर्याप्त नहीं होता, जब तक उसे विवेकपूर्वक और सुसंगत ढंग से प्रयोग में न लाया जाये। विभिन्न परिस्थितियों में सर्वश्रेष्ठ मार्ग चुनने हेतु तर्क आवश्यक है।
      • नैतिक निर्णय लेना और तर्क: यद्यपि विज्ञान किसी कार्य के संभावित परिणामों के संदर्भ में आँकड़े प्रदान कर सकता है, लेकिन तर्क हमें इन तथ्यों को संतुलित ढंग से परखने और ऐसे निर्णय लेने में सहायता करता है जो हमारे नैतिक मूल्यों, सामाजिक उद्देश्यों और भावनात्मक आवश्यकताओं के अनुरूप हों।
      • उत्तरआधुनिकतावाद और विज्ञान की सीमाएँ: उत्तर-आधुनिक विचारधारा वस्तुनिष्ठ वैज्ञानिक ज्ञान पर अत्यधिक निर्भरता की आलोचना करती है तथा इस बात पर बल देती है कि तर्क का प्रयोग ही विज्ञान द्वारा प्रदत्त तथ्यों को अर्थपूर्ण बनाता है। यह विचारधारा मानवीय दृष्टिकोण, अनुभव और व्याख्या को भी निर्णय-निर्धारण में महत्त्वपूर्ण मानती है।
      • मानवीय एजेंसी और स्वेच्छाचारिता: तर्क द्वारा मानव निर्णयों का संचालन यह दर्शाता है कि मनुष्य केवल जैविक जीव नहीं है जो मात्र प्रवृत्तियों के अधीन हो, बल्कि वह अपने जीवन को सक्रिय रूप से आकार देने में सक्षम प्राणी है। यह तर्कशीलता ही मनुष्य को आत्मनिर्णय की क्षमता प्रदान करती है।
    • नीति और ऐतिहासिक उदाहरण:
      • अंतरिक्ष दौड़ (शीत युद्ध काल): विज्ञान ने तारों तक पहुँचने का ज्ञान प्रदान किया, परंतु अंतरिक्ष अन्वेषण की दिशा को राजनीतिक विचारधाराओं, राष्ट्रीय गौरव तथा अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धा पर केंद्रित राष्ट्रों की रणनीतिक सोच ने निर्देशित किया।
      • प्रबोधन युग (The Enlightenment): इस आंदोलन ने मानव प्रगति के मार्गदर्शन हेतु तर्क को महत्त्व दिया, जिससे वैज्ञानिक खोज़ संभव हुईं। साथ ही, इसने ऐसे नैतिक ढाँचे भी प्रस्तुत किये जो मानव समाज का मार्गदर्शन कर सकें।
      • पर्यावरण नीतियाँ और तर्क: जलवायु परिवर्तन पर वैज्ञानिक अनुसंधान अत्यंत आवश्यक है, परंतु इस ज्ञान का तर्कसंगत उपयोग ही सतत् नीतियों तथा वैश्विक सहयोग के माध्यम से पृथ्वी के भविष्य को आकार देता है।
    • समकालीन उदाहरण:
      • कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और नैतिकता: कृत्रिम बुद्धिमत्ता का विकास वैज्ञानिक ज्ञान द्वारा संचालित है, परंतु इसका उपयोग किस प्रकार हो, यह निर्णय गोपनीयता, रोज़गार तथा स्वायत्तता जैसे पक्षों से जुड़ी नैतिक तर्कशीलता द्वारा लिया जायेगा।
      • जीन एडिटिंग और CRISPR: जीन संपादन विज्ञान में अपार संभावनाएँ हैं, परंतु विशेषतः मानव आनुवंशिक परिवर्तन के संदर्भ में इसके उपयोग का मार्गदर्शन तर्क और नैतिकता से ही किया जाना चाहिये।
      • नवीकरणीय ऊर्जा की ओर संक्रमण: जीवाश्म ईंधनों से नवीकरणीय ऊर्जा की ओर स्थानांतरण ऊर्जा प्रौद्योगिकी में वैज्ञानिक प्रगति से प्रेरित है, परंतु यह संक्रमण कितनी तीव्रता और प्रभावशीलता से होगा, यह आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय तत्त्वों के बीच संतुलन पर आधारित तर्कशील निर्णयों पर निर्भर करेगा।