• प्रश्न :

    विक्रम, राज्य सरकार के किसी विभाग में कार्यरत एक पर्यावरण अधिकारी हैं जो निर्माण एवं औद्योगिक क्षेत्रों में पर्यावरणीय नियमों की निगरानी और उनके अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिये ज़िम्मेदार है। हाल ही में, एक बड़ी रियल एस्टेट कंपनी ने शहर के बाह्य क्षेत्र में एक नए आवासीय परिसर का प्रस्ताव रखा है और विक्रम के विभाग को इस परियोजना के पर्यावरणीय प्रभाव का मूल्यांकन करने का काम सौंपा गया है। कंपनी ने आवश्यक पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी है, जिसमें कहा गया है कि निर्माण का स्थानीय पर्यावरण पर न्यूनतम प्रभाव पड़ेगा।

    रिपोर्ट की समीक्षा करते समय, विक्रम को कई विसंगतियाँ और चूक नज़र आती हैं। स्थानीय वन्यजीवों, मृदा की गुणवत्ता और जल स्रोतों पर पड़ने वाले प्रभाव के संदर्भ में महत्त्वपूर्ण विवरणों को या तो कम दर्शाया गया है या पूरी तरह से अनदेखा कर दिया गया है। विक्रम के प्रारंभिक विश्लेषण से पता चलता है कि निर्माण का स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र पर गंभीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है, लेकिन डेवलपर्स ने एक स्थानीय चैरिटी को एक बड़ा दान दिया है जिससे विक्रम का विभाग जुड़ा हुआ है। इस चैरिटी ने पूर्व में में कई पर्यावरणीय पहलों को वित्त पोषित किया है, साथ ही विक्रम को पता है कि यह चैरिटी, विभाग की प्रतिष्ठा को बढ़ाएगा तथा भविष्य में और अधिक वित्तीय संसाधन आकर्षित करेगा।

    इसके अतिरिक्त, विक्रम के वरिष्ठ अधिकारी, जो विभाग के प्रमुख हैं, ने सार्वजनिक रूप से इस परियोजना की सराहना करते हुए इसे शहर के विकास के लिये अत्यंत आवश्यक बताया है तथा संकेत दिया है कि यदि पर्यावरणीय रिपोर्ट अनुकूल पाई जाती है तो रियल एस्टेट कंपनी को शीघ्र स्वीकृति मिल सकती है।

    विक्रम पर्यावरणीय नियमों का पालन करने के अपने कर्त्तव्य, दीर्घकालिक पारिस्थितिक परिणामों को लेकर अपनी चिंता और अपने विभाग के लिये भविष्य में वित्त पोषण के अवसरों के बदले में विकास का समर्थन करने के दबाव के बीच उलझा हुआ महसूस कर रहे हैं।

    (a) पर्यावरणीय समीक्षा प्रक्रिया की विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिये विक्रम को इस स्थिति में क्या करना चाहिये ?

    (b) यदि रियल एस्टेट कंपनी विसंगतियों के बावजूद विक्रम पर रिपोर्ट को स्वीकृति देने का दबाव डालती है, तो वह अपने निर्णय को किस प्रकार उचित ठहरा सकता है?

    (c) इस मामले में व्यक्तिगत हित और बाह्य दबाव पर्यावरणीय नैतिकता से किस प्रकार समझौता करते हैं तथा भविष्य की परियोजनाओं में इस तरह के टकराव को रोकने के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?

    18 Jul, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 4 केस स्टडीज़

    उत्तर :

    परिचय:

    एक पर्यावरण अधिकारी के रूप में, विक्रम को एक विशिष्ट नैतिक दुविधा का सामना करना पड़ता है जिसमें पेशेवर कर्त्तव्य और बाह्य दबावों —संस्थागत एवं व्यक्तिगत दोनों, के बीच द्वंद्व शामिल है। उनके निर्णयों में शासन के नैतिक मानकों को बनाए रखते हुए पारिस्थितिक संधारणीयता, प्रशासनिक सत्यनिष्ठा और जनहित के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक है।

    (a) पर्यावरणीय समीक्षा प्रक्रिया की विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिये विक्रम को इस स्थिति में क्या करना चाहिये ?

    • EIA रिपोर्ट का विस्तृत पुनर्मूल्यांकन: विक्रम को विसंगतियों को इंगित करते हुए एक तथ्यात्मक और साक्ष्य-आधारित मूल्यांकन तैयार करना चाहिये।
      • पर्यावरण संबंधी चिंताओं की पुष्टि करने के लिये वैज्ञानिक डेटा, उपग्रह इमेजरी या विशेषज्ञ परामर्श का उपयोग करना चाहिये।
    • सभी अवलोकनों एवं संवादों का वस्तुनिष्ठ दस्तावेजीकरण: व्यक्तिगत दायित्व से बचने के लिये अवलोकनों और संवादों का विस्तृत रिकॉर्ड बनाए रखना चाहिये।
      • इससे जवाबदेही सुनिश्चित होती है और मनमाने निर्णयों से सुरक्षा मिलती है।
    • चिंताओं का आंतरिक तथा औपचारिक ढंग से प्रस्तुतीकरण: आंतरिक रिपोर्ट के माध्यम से विभाग प्रमुख को निष्कर्षों से अवगत कराया जाना चाहिये।
      • मामले को सार्वजनिक हित और दीर्घकालिक पारिस्थितिक क्षति के मुद्दे के रूप में प्रस्तुत किया जाना चाहिये, न कि व्यक्तिगत राय के रूप में।
      • भाषा संयमित होनी चाहिये, अर्थात् भावनात्मक अथवा आरोपात्मक शैली से बचना चाहिये तथा शासकीय और नैतिक शिष्टाचार का पालन करना चाहिये।
    • शमन उपायों और विकल्पों का सुझाव: सिफारिश करना चाहिये कि परियोजना को केवल सख्त पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों के साथ ही स्वीकृति दी जाए।
      • एक संशोधित EIA रिपोर्ट, अतिरिक्त पर्यावरणीय ऑडिट अथवा स्थल-विशिष्ट शमन योजनाएँ (जैसे: बफर ज़ोन, जल संरक्षण रणनीतियाँ) प्रस्तावित की जा सकती हैं।
      • यह दृष्टिकोण स्थायी विकास के सिद्धांतों के अनुरूप है, न कि केवल विरोध या अनियंत्रित अनुमोदन के।
    • विधिक और संस्थागत कार्यढाँचे का उपयोग: जाँच को उचित ठहराने के लिये पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, EIA अधिसूचना (2006) या जैव विविधता अधिनियम के प्रावधानों का उपयोग करें। पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, EIA अधिसूचना (2006), या जैवविविधता अधिनियम के प्रावधानों का हवाला देते हुए समुचित जाँच को न्यायोचित ठहराया जाना चाहिये
      • यदि विभागीय स्तर पर निराकरण संभव न हो, तो स्वतंत्र मूल्यांकन समिति या राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (SEIAA) जैसे नियामक निकायों को संज्ञान में लिया जाना चाहिये।
    • दान से संबंधित आचार संहिता का पालन: दान को नियामक मूल्यांकन से स्पष्ट रूप से अलग रखने की सिफारिश करें। इस बात की सिफारिश की जानी चाहिये कि दान को नियामक मूल्यांकन से पूर्णतः अलग रखा जाये।
      • किसी धर्मार्थ संस्था को दिया गया दान, भले ही लाभदायक हो, वैधानिक कर्त्तव्यों को प्रभावित नहीं करना चाहिये। हितों के टकराव से बचने के लिये वित्तपोषण में पारदर्शिता आवश्यक है।
    • यदि आवश्यक हो तो जिम्मेदारी से आगे बढ़ें: यदि कोई अनुचित दबाव उत्पन्न हो या प्रक्रिया की निष्पक्षता से समझौता हो, तो आंतरिक विकल्पों को पूर्णतः अपनाने के पश्चात व्हिसल-ब्लोअर तंत्र का सहारा लिया जाना चाहिये।
    • यह कदम भी केवल नैतिकता एवं कानूनी दायित्व के अनुरूप होना चाहिये।

    (b) यदि रियल एस्टेट कंपनी विसंगतियों के बावजूद विक्रम पर रिपोर्ट को स्वीकृति देने का दबाव डालती है, तो वह अपने निर्णय को किस प्रकार उचित ठहरा सकता है?

    रियल एस्टेट कंपनी जैसे निहित स्वार्थों के दबाव का सामना करते हुए, विक्रम को विधिक तर्क, नैतिक कर्त्तव्य और जनहित के आधार पर उचित ठहराना चाहिये। उनकी औचित्य-स्थापना पेशेवर, तथ्यपरक तथा सुशासन एवं सतत् विकास के सिद्धांतों पर आधारित होनी चाहिये।

    • कानूनी और नियामक औचित्य
      • वैधानिक दायित्व: विक्रम पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 तथा पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन (EIA) अधिसूचना, 2006 के अंतर्गत निर्धारित अपने दायित्व का उल्लेख कर सकते हैं, जो सटीक तथा व्यापक पर्यावरणीय मूल्यांकन की आवश्यकता को अनिवार्य बनाता है।
      • उचित प्रक्रिया: विसंगतियों की उपस्थिति EIA रिपोर्ट को गैर-अनुपालन योग्य बनाती है। ऐसी स्थिति में कोई भी अनुमोदन कानूनी रूप से संदिग्ध होगा।
      • सार्वजनिक उत्तरदायित्व: नियमों की अवहेलना करके लिये गए निर्णयों के लिये सरकारी अधिकारी उत्तरदायी होते हैं; उचित जाँच के बिना अनुमोदन करने पर कानूनी या अनुशासनात्मक कार्रवाई हो सकती है।
    • नैतिक और व्यावसायिक औचित्य
      • निष्ठा एवं निष्पक्षता: विक्रम को स्पष्ट करना चाहिये कि उनकी भूमिका एक निष्पक्ष मूल्यांकनकर्त्ता की है, न कि त्रुटिपूर्ण रिपोर्टों को अनुमोदन प्रदान करने वाले एक सहयोगी की।
      • सार्वजनिक विश्वास: विक्रम यह तर्क दे सकते हैं कि उनका निर्णय नागरिकों को स्वच्छ और सुरक्षित पर्यावरण प्रदान करने के अधिकार (संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत) की रक्षा करता है।
      • हितों का टकराव: यदि कोई निर्णय दान या बाह्य दबाव के प्रभाव में लिया जाता है तो वह नैतिक मानकों का उल्लंघन होगा तथा शासन प्रणाली में जनविश्वास को क्षति पहुँचेगी।
    • तथ्य-आधारित स्पष्टीकरण
      • कंपनी को रिपोर्ट में पाई गई दस्तावेज़ी विसंगतियों (जैसे: जल स्रोतों, वन्यजीव प्रभाव आदि की जानकारी का अभाव) से अवगत कराया जाना चाहिये।
      • यह स्पष्ट रूप से बताना चाहिये कि तकनीकी दृष्टिकोण से यह रिपोर्ट वर्तमान रूप में अनुमोदन योग्य नहीं है।
      • इस बात पर बल दिया जाना चाहिये कि सुधार एवं पुनः प्रस्तुतीकरण संभव है और स्वीकार करने योग्य है।
    • रचनात्मक विकल्प
      • कंपनी को आश्वस्त करना चाहिये कि यह परियोजना की अस्वीकृति नहीं है, बल्कि अधिक जिम्मेदार और कानून-अनुपालक दृष्टिकोण का आह्वान है।
      • संशोधित पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) लागू करने या पर्यावरण सुरक्षा उपायों को शामिल करने जैसे कदम सुझाए जाने चाहिये।
      • यह रेखांकित किया जाना चाहिये कि उचित अनुपालन आगे चलकर अनुमोदन की गति को बढ़ायेगा तथा विधिक विवादों के जोखिम को कम करेगा।

    (c) इस मामले में व्यक्तिगत हित और बाह्य दबाव पर्यावरणीय नैतिकता से किस प्रकार समझौता करते हैं तथा भविष्य की परियोजनाओं में इस तरह के टकराव को रोकने के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?

    पर्यावरणीय नैतिकता से समझौता करने वाले व्यक्तिगत हित और बाह्य दबाव:

    • प्रबंधन उत्तरदायित्व का उल्लंघन: संरक्षण उत्तरदायित्व का उल्लंघन: एल्डो लियोपोल्ड की 'भूमि नीति' के अनुसार, मनुष्य 'भूमि समुदाय के सदस्य हैं, उसके विजेता नहीं'।
      • पर्यावरणीय क्षति की उपेक्षा में विक्रम की संभावित संलिप्तता प्रकृति के प्रति इस नैतिक संरक्षण उत्तरदायित्व का उल्लंघन करती है।
    • सावधानी सिद्धांत (Precautionary Principle) की अवहेलना: जैवविविधता एवं जल स्रोतों पर स्पष्ट जोखिम के बावजूद अनुमोदनों में शीघ्रता का दबाव 'सावधानी सिद्धांत' के विरुद्ध है, जो यह निर्देश देता है कि यदि अपरिवर्तनीय क्षति की संभावना हो तो वैज्ञानिक निश्चितता की पूर्णता के अभाव में भी निवारक कार्रवाई की जानी चाहिये।
    • हितों का टकराव और वस्तुनिष्ठता का ह्रास: दान या विभागीय छवि संवर्द्धन के माध्यम से व्यक्तिगत लाभ की संभावना निर्णय-निर्माण में पक्षपात उत्पन्न कर सकती है, जो कि तात्कालिक लाभ को दीर्घकालिक जनकल्याण पर वरीयता देने के कारण उपयोगितावादी नैतिकता (Utilitarian Ethics) का उल्लंघन है।
    • अंतर-पीढ़ीगत न्याय (Intergenerational Equity) की उपेक्षा: लालच-प्रेरित विकास भावी पीढ़ियों के लिये सुरक्षित एवं स्थिर पर्यावरण के अधिकार को प्रभावित करता है, जो 'अंतर-पीढ़ीगत न्याय' के सिद्धांत के विपरीत है, जो समय के पार निष्पक्षता की माँग करता है।
    • मानव-केंद्रित सोच बनाम पारिस्थितिक नैतिकता: बाह्य दबाव मानव-केंद्रित विकास (Anthropocentrism) को बढ़ावा देते हैं, जो 'गहन पारिस्थितिकी' के उन सिद्धांतों की अवहेलना है जो समस्त जीवों के अंतर्निहित मूल्य को मान्यता देते हैं, न कि केवल मानव उपयोगिता के आधार पर।

    भविष्य की परियोजनाओं में ऐसे टकरावों से बचाव हेतु उपाय:

    • प्रासंगिक जवाबदेही के लिये संस्थागत तंत्र: तृतीय पक्ष के विशेषज्ञों के साथ स्वतंत्र EIA समीक्षा बोर्ड हितों के टकराव को कम कर सकते हैं।
      • अनुचित कॉर्पोरेट प्रभाव को रोकने के लिये दान और संबद्धता का अनिवार्य सार्वजनिक प्रकटीकरण।
    • नैतिक क्षमता निर्माण: सिविल सेवा प्रशिक्षण में पर्यावरणीय नैतिकता एवं नैतिक चिंतन (जैसे: लियोपोल्ड की भूमि नैतिकता, पीटर सिंगर के पशु-अधिकार) को सम्मिलित किया जाना चाहिये ताकि पारदर्शिता, ईमानदारी एवं पारिस्थितिक उत्तरदायित्व की भावना विकसित हो।
    • कानूनी और विनियामक सुधार: जानबूझकर किये गए डेटा चूक के लिये प्रदूषक भुगतान सिद्धांत के तहत दंड को सख्त किया जाना चाहिये।
      • पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 और EIA 2006 दिशानिर्देशों के तहत सख्त अनुपालन लागू किया जाना चाहिये।
    • सार्वजनिक भागीदारी और पारदर्शिता: परियोजना समीक्षा में सार्वजनिक सुनवाई और सामुदायिक भागीदारी लोकतांत्रिक निगरानी सुनिश्चित करती है।
      • पारिस्थितिक नारीवादी अंतर्दृष्टि हमें यह सोचने के लिये प्रेरित करती है कि पर्यावरणीय क्षरण किस प्रकार असुरक्षित आबादी (जैसे: जल की कमी वाले महिला-नेतृत्व वाले समुदाय) पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
    • सतत् विकास को बढ़ावा: लालच से प्रेरित शोषण के स्थान पर आवश्यकता आधारित विकास (जैसे, नवीकरणीय ऊर्जा, सतत शहरीकरण) को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
      • जलवायु-संवेदनशील शहरी नियोजन को लागू किया जाना चाहिये, विकासात्मक लक्ष्यों के साथ पारिस्थितिक संरक्षण को संतुलित किया जाना चाहिये।

    निष्कर्ष:

    'गहन पारिस्थितिकी' के दर्शन से प्रेरित होकर विक्रम को यह समझने की आवश्यकता है कि प्रकृति केवल एक संसाधन नहीं, बल्कि एक जीवंत तंत्र है, जिसकी अपनी अंतर्निहित गरिमा एवं मूल्य हैं, जो मानव उपयोगिता से स्वतंत्र हैं। इस प्रकार, पर्यावरणीय नैतिकता का पालन न केवल एक व्यावसायिक उत्तरदायित्व है, अपितु मानव विकास और प्रकृति के अधिकारों के मध्य संतुलन बनाये रखने हेतु एक नैतिक अनिवार्यता है।