• प्रश्न :

    प्रश्न. "लोक सेवा में सतत् नैतिक व्यवहार के लिये न केवल दृढ़ विश्वास, बल्कि मानसिक दृढ़ता की भी आवश्यकता होती है।" 'नैतिक श्रांति' की प्रवृत्ति पर चर्चा कीजिये तथा यह बताइये कि सिविल सेवा में इसका समाधान किस प्रकार किया जा सकता है। (150 शब्द)

    17 Jul, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • प्रश्न के कथन के संदर्भ में संक्षेप में बताते हुए और उसे नैतिक श्रांति से जोड़कर उत्तर दीजिये।
    • नैतिक श्रांति के संदर्भ में संक्षेप में बताइये।
    • सिविल सेवाओं में नैतिक श्रांति के कारणों और परिणामों पर गहन विचार प्रस्तुत कीजिये।
    • सिविल सेवाओं में नैतिक श्रांति को दूर करने के उपायों को रेखांकित कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    अरस्तू ने कहा था कि "नैतिक उत्कृष्टता एक आदत का परिणाम है।" किंतु सिविल सेवा में यह आदत प्रायः एक ऐसे परिवेश में जीवित रहनी पड़ती है जो नैतिक विरोधाभासों, राजनीतिक हस्तक्षेप और संस्थागत जड़ता से ग्रस्त होता है।

    • जहाँ नैतिक दृढ़ता व्यक्ति को नैतिक दिशा देती है, वहीं मानसिक दृढ़ता उस दिशा को कठिन परिस्थितियों में बनाये रखने की आंतरिक शक्ति है।
      • इस मानसिक दृढ़ता के अभाव में लोक सेवकों को जिस स्थिति का सामना करना पड़ता है, उसे 'नैतिक श्रांति' (Ethical Fatigue) कहा जाता है।

    नैतिक श्रांति की घटनाएँ:

    • नैतिक श्रांति, वह मानसिक, भावनात्मक और नैतिक श्रम/क्लांति है जो उन व्यक्तियों द्वारा बार-बार नैतिक रूप से परस्पर विरोधी परिस्थितियों का सामना करने पर अनुभव की जाती है, जहाँ सही काम करने के लिये संस्थागत या सामाजिक प्रोत्साहन बहुत कम होता है।

    सिविल सेवाओं में नैतिक श्रांति के कारण:

    • संस्थानिक भ्रष्टाचार और गलत के सामान्यीकरण की प्रवृत्ति: निरंतर भ्रष्ट व्यवहार का सामना करते-करते व्यक्ति समझौते को सामान्य मानने लग जाता है।
      • उदाहरण: बढ़ा-चढ़ाकर पेश की गई परियोजना फाइलों को स्वीकृति देने के लिये दबाव डाला गया एक कनिष्ठ अधिकारी शुरू में विरोध कर सकता है, लेकिन अंततः प्रणालीगत सड़न के कारण झुक जाता है।
    • नैतिक आचरण के लिये पुरस्कार या मान्यता का अभाव: नैतिक निर्णय प्रायः अदृश्य, अप्रतिष्ठित या दंडित भी होते हैं।
      • उदाहरण: नियमों में ढील देने से इनकार करने पर कर्त्तव्यनिष्ठ अधिकारियों को दरकिनार कर दिया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप उनका मनोबल गिरता है।
    • नैतिक अलगाव और सहयोगियों का दबाव: नैतिक अधिकारी "चलता है" रवैये के कारण सहकर्मियों/सहयोगियों से स्वयं को अलग-थलग महसूस कर सकते हैं।
      • सहकर्मियों की अनैतिक प्रवृत्तियों से असहमति जताने पर अप्रत्यक्ष रूप से बहिष्करण और मानसिक दबाव झेलना पड़ता है। परिणामस्वरूप समूह में स्वीकृत गलत मानदंडों के खिलाफ खड़ा होना कठिन हो जाता है, क्योंकि व्यक्ति अपने साथियों से अलग दिखना नहीं चाहता।
    • निरंतर प्रतिरोध के कारण भावनात्मक श्रांति: अनैतिक आदेशों या परिवेश के साथ बार-बार टकराव तनाव, निराशावाद और अलगाव की ओर ले जाता है।

    सिविल सेवाओं में नैतिक श्रांति का समाधान:

    • निष्पादन मूल्यांकन में नैतिकता को शामिल करना: प्रदर्शन मूल्यांकन दक्षता से आगे बढ़कर चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में नैतिक व्यवहार को भी शामिल करना चाहिये।
      • नैतिक साहस, पारदर्शिता और नियमों के पालन को ACR संकेतकों के रूप में जोड़ने से नैतिक स्थिरता को बढ़ावा मिलेगा। यह पेशेवर सफलता के एक हिस्से के रूप में नैतिकता को भी सामान्य बनाएगा।
    • मानसिक और भावनात्मक सहायता प्रदान करना: सिविल सेवाओं को परामर्शदाताओं, सहकर्मी-सहायता समूहों और भावनात्मक कल्याण कार्यक्रमों तक अभिगम प्रदान करनी चाहिये।
      • नैतिक निर्णय प्रायः मानसिक तनाव के साथ आते हैं, विशेषकर जब अधिकारी शक्तिशाली हितों के खिलाफ खड़े होते हैं। ऐसे में सहायता प्रणालियाँ श्रांति और नैतिक विघटन को रोकने में सहायता कर सकती हैं।
    • नैतिकता प्रशिक्षण को निरंतर और व्यावहारिक बनाना: नैतिकता प्रशिक्षण सिद्धांत से आगे बढ़कर वास्तविक जीवन के केस स्टडी, दुविधाओं और सहकर्मी चर्चाओं पर केंद्रित होना चाहिये।
      • नैतिक तर्क, दबाव में निर्णय लेने और मूल्य संघर्षों पर नियमित मॉड्यूल दीर्घकालिक नैतिक सहनशक्ति का निर्माण करेंगे। पुनरावृत्ति से स्वतःस्फूर्त नैतिक प्रतिक्रियाएँ विकसित होती हैं।
    • व्हिसलब्लोअर सुरक्षा तंत्र को मज़बूत बनाना: नैतिक अधिकारियों को गलत कामों का पर्दाफाश करते समय सुरक्षित महसूस करना चाहिये।
      • व्हिसलब्लोअर संरक्षण अधिनियम का सुदृढ़ कार्यान्वयन और अनॉनिमस रिपोर्टिंग प्लेटफॉर्म का निर्माण अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। यह अधिकारियों को आश्वस्त करता है कि जब वे सही कार्य करते हैं तो व्यवस्था उनके साथ खड़ी होती है।
    • शीर्ष स्तर पर नैतिक नेतृत्व को बढ़ावा: वरिष्ठ प्रशासणिक अधिकारी को उदाहरण प्रस्तुत करते हुए यह दिखाना चाहिये कि मूल्यों से समझौता किये बिना परिणाम प्राप्त करना संभव है।
      • ई. श्रीधरन (मेट्रो मैन) और किरण बेदी जैसे नेताओं ने उदाहरण प्रस्तुत करते हुए यह दर्शाया कि सत्यनिष्ठा एवं परिणाम एक साथ संभव हैं।

    निष्कर्ष:

    • भगवद् गीता "योगः कर्मसु कौशलम्" पर बल देती है जिसका अर्थ है— कर्म में उत्कृष्टता योग का एक रूप है। सिविल सेवा में नैतिक उत्कृष्टता केवल एक बार का कार्य नहीं, बल्कि दबाव में निरंतर अभ्यास है। प्रणालीगत विरोध का सामना करने के लिये दृढ़ विश्वास के साथ-साथ समुत्थानशक्ति भी होना चाहिये।