प्रश्न. "करुणा के बिना सत्यनिष्ठा कठोरता है, और सत्यनिष्ठा के बिना करुणा दुर्बलता है।" लोक सेवा में सत्यनिष्ठा और करुणा के बीच संतुलन के महत्त्व पर चर्चा कीजिये। उपयुक्त उदाहरणों द्वारा स्पष्ट कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- सत्यनिष्ठा और करुणा के बीच संतुलन की आवश्यकता के संदर्भ में संक्षेप में बताते हुए उत्तर दीजिये।
- करुणा के बिना सत्यनिष्ठा कठोरता है और सत्यनिष्ठा के बिना करुणा कमज़ोरी है, इस संदर्भ में प्रमुख तर्क दीजिये।
- लोक सेवा में ईमानदारी और करुणा के संतुलन के तर्कों पर गहन विचार प्रस्तुत कीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
- महात्मा गांधी ने एक बार कहा था, "स्वयं की खोज़ करने का सबसे अच्छा तरीका है, दूसरों की सेवा में स्वयं को खो देना।" यह सत्यनिष्ठा (नैतिक और विधिक सिद्धांतों का पालन) को करुणा (दूसरों के प्रति सहानुभूतिपूर्ण भावना) के साथ संतुलित करने की नैतिक आवश्यकता को दर्शाता है।
- लोक सेवा में, इन दोनों गुणों की परस्पर संगतता आवश्यक है: सत्यनिष्ठा निष्पक्षता और जवाबदेही सुनिश्चित करती है, जबकि करुणा शासन को मानवीय बनाती है।
मुख्य भाग:
करुणा के बिना सत्यनिष्ठा कठोरता है
इसका तात्पर्य यह है कि मानवीय संवेदनशीलता के बिना नियमों का कड़ाई से पालन अमानवीय या अन्यायपूर्ण परिणामों को जन्म दे सकता है।
- कल्याणकारी योजनाओं का वितरण यांत्रिक हो जाना: केवल दस्तावेज़ीकरण पर ध्यान केंद्रित करने वाले अधिकारी वास्तविक लाभार्थियों को लाभ देने से इनकार कर सकते हैं।
- उदाहरण: झारखंड में एक 70 वर्षीय आदिवासी महिला को आधार बायोमेट्रिक सत्यापन न होने के कारण पेंशन देने से मना कर दिया गया, जो करुणा से रहित कठोर सत्यनिष्ठा को दर्शाता है।
- प्रशासन के प्रति जनता की लापरवाही की धारणा: सहानुभूति के बिना नियम-बद्ध निर्णय नागरिकों को शासन से अलग कर देते हैं।
- उदाहरण: कोविड लॉकडाउन के दौरान, प्रवासी श्रमिकों के लिये प्रावधान किये बिना कर्फ्यू के सख्त पालन से मानवीय त्रासदी हुई; नियम तो लागू किये गए, लेकिन शुरुआती चरणों में करुणा की अनदेखी की गई।
- न्याय की भावना को आघात: न्याय का तात्पर्य केवल नियम लागू करना नहीं है, बल्कि निष्पक्षता सुनिश्चित करने के संदर्भ में भी है।
- उदाहरण: अनाथ बच्चों को मामूली फॉर्म त्रुटियों के कारण छात्रवृत्ति देने से इनकार करना कठोर व्यवस्था अनुपालन को दर्शाता है, लेकिन नैतिक परीक्षण में विफल रहता है।
ईमानदारी के बिना करुणा कमज़ोरी है।
इसका अर्थ है कि नैतिक सीमाओं के बिना भावनाएँ पूर्वाग्रह, पक्षपात को बढाती हैं या संस्थाओं को कमज़ोर कर सकती हैं।
- अधिकार के दुरुपयोग का जोखिम: अति-सहानुभूति नियमों की अनदेखी या अनुशासनहीनता को बढ़ावा दे सकती है।
- उदाहरण: एक स्कूल प्रिंसिपल द्वारा व्यक्तिगत दलीलों के आधार पर चुनिंदा छात्रों की फीस माफ़ करना अन्याय को जन्म देता है।
- ‘निष्पक्षता पर पक्षपात’ की करुणा वंशवाद या चयनात्मक व्यवहार में बदल सकती है।
- उदाहरण: एक स्थानीय अधिकारी भावनात्मक दबाव के कारण बाढ़ राहत राशि को अपने मित्रों या मुखर समूहों को दे देता है और वास्तविक पीड़ितों की उपेक्षा करता है।
- संस्थागत विश्वास का क्षरण: भावनाओं के आगे नियमों को तोड़ना व्यवस्था को अप्रत्याशित और अविश्वसनीय बना देता है।
- उदाहरण: अयोग्य व्यक्तियों को करुणा के आधार पर हथियार लाइसेंस देना सुरक्षा के लिये खतरा और मानदंडों का उल्लंघन हो सकता है।
- अल्पकालिक सहानुभूति, दीर्घकालिक नुकसान: नैतिक निर्णय के बिना भावनात्मक रूप से लिये गए कार्य स्थिति को और बिगाड़ सकते हैं।
- उदाहरण: यातायात नियमों का बार-बार उल्लंघन करने वालों को केवल इसलिये माफ करना क्योंकि उन्होंने “भावनात्मक रूप से दलील दी थी”, विधि के शासन और सार्वजनिक अनुशासन को कमज़ोर करता है।
लोक सेवा में सत्यनिष्ठा और करुणा का संतुलन:
- प्रशासनिक असंवेदनशीलता को रोकता है और उत्तरदायी शासन सुनिश्चित करता है: केवल नियमों का पालन करने से, विशेष रूप से कल्याणकारी योजनाओं के वितरण में, कमज़ोर नागरिक अलग-थलग पड़ सकते हैं।
- उदाहरण: एक ज़िला मजिस्ट्रेट द्वारा बायोमेट्रिक विफलता के दौरान आदिवासी क्षेत्रों में ऑफलाइन राशन वितरण की अनुमति देना, भुखमरी से संबंधित संकट के प्रति संवेदनशील रहते हुए सार्वजनिक वितरण प्रणाली की सत्यनिष्ठा की रक्षा करना।
- जटिल परिस्थितियों में नैतिक निर्णय लेने को बढ़ावा: सत्यनिष्ठा नैतिक स्पष्टता प्रदान करती है; करुणा संदर्भ लाती है। साथ मिलकर, ये दोनों निष्पक्षता से समझौता किये बिना नैतिक दुविधाओं को हल करने में सहायता करते हैं।
- उदाहरण: एक पुलिस अधिकारी द्वारा एक नाबालिग को छोटी-मोटी चोरी के लिये गिरफ्तार न करने का निर्णय लेना, बल्कि उसके लिये परामर्श और शैक्षिक सहायता की व्यवस्था करना, उदारता नहीं, बल्कि सैद्धांतिक करुणा को दर्शाता है।
- व्यवस्था के भीतर सार्वजनिक मनोबल और प्रेरणा को मज़बूत करना: जो अधिकारी करुणा और विवेक दोनों के साथ नेतृत्व करते हैं, वे सेवा के भीतर नैतिक आचरण को प्रेरित करते हैं।
- उदाहरण: एक वरिष्ठ रेलवे अधिकारी द्वारा नियमों को सख्ती से लागू करते हुए ट्रैक के किनारे रहने वाले बच्चों की शिक्षा का मार्गदर्शन और प्रायोजन करना, एक ऐसे संतुलन को दर्शाता है जो नैतिक संगठनात्मक संस्कृति का निर्माण करता है।
निष्कर्ष:
लोक सेवा में नैतिकता जहाँ एक संरचना प्रदान करती है, वहीं करुणा उसमें प्राण भरती है। जैसा कि कन्फ्यूशियस ने उचित ही कहा है, "जो सही है उसे देखकर भी न करना, यह साहस की कमी है।"
जब लोक सेवक निर्दोष नैतिकता का मानव संवेदनशीलता से संयोजन करते हैं, तो वे मात्र नियमों के पालनकर्त्ता नहीं रह जाते, बल्कि परिवर्तनकारी न्याय के वाहक भी बनते हैं।