• प्रश्न :

    प्रश्न. स्वतंत्रता, समानता और राष्ट्रवाद के आदर्शों ने 18वीं व 19वीं शताब्दियों में क्रांतियों की दिशा तय करने तथा वैश्विक व्यवस्था को पुनर्परिभाषित करने में किस प्रकार योगदान दिया। (250 शब्द)

    14 Jul, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • 18वीं और 19वीं शताब्दी की क्रांतियों के संदर्भ में संक्षिप्त जानकारी के साथ उत्तर दीजिये। 
    • स्वतंत्रता और उसके प्रभाव, समानता एवं क्रांति में उसकी भूमिका तथा राष्ट्रवाद व उसके प्रभाव को रेखांकित कीजिये।
    • एक उद्धरण के साथ उचित निष्कर्ष दीजिये। 

    परिचय: 

    18 वीं और 19वीं शताब्दियाँ विश्व इतिहास के निर्णायक युग थे, जहाँ स्वतंत्रता और समानता के आदर्शों ने दीर्घकालिक साम्राज्यों एवं राजतंत्रों को चुनौती दी। प्रबोधन के विचारकों से प्रेरित होकर, अमेरिकी क्रांति और फ्राँसीसी क्रांति जैसी क्रांतियों ने स्वतंत्रता एवं लोकतांत्रिक शासन की वैश्विक आकांक्षा को जन्म दिया। 

    • राष्ट्रवाद, जैसा कि इटली और जर्मनी के एकीकरण में देखा गया, ने राजनीतिक परिदृश्य को नया रूप दिया, वहीं आत्मनिर्णय की भावना ने उपनिवेशवाद के अंत की नींव रखी।

    मुख्य भाग

    स्वतंत्रता और उसका प्रभाव: 

    • प्रबोधन के आदर्श: अठारहवीं शताब्दी के प्रबोधन विचारकों जैसे जॉन लॉक, रूसो और वोल्टेयर ने स्वतंत्रता को व्यक्ति का एक अपरिहार्य अधिकार बताया।
      • लॉक के प्राकृतिक अधिकारों की धारणा और रूसो के समाज अनुबंध ने क्रांतिकारी आंदोलनों को प्रेरित किया।
    • अमेरिकी क्रांति (वर्ष 1776): अमेरिकी क्रांति, जो प्रबोधन के सिद्धांतों से प्रेरित थी, स्वतंत्रता की घोषणा के रूप में सामने आई, जिसने औपनिवेशिक शासन से मुक्ति और स्वतंत्रता के अंतर्निहित अधिकार पर बल दिया। इसने नए राष्ट्र में लोकतांत्रिक सिद्धांतों की नींव रखी।
    • फ्राँसीसी क्रांति (वर्ष 1789): फ्राँसीसी क्रांति निरंकुश राजतंत्र और सामंती व्यवस्था की प्रत्यक्ष प्रतिक्रिया थी। 
      • राजशाही और सामंती व्यवस्था के विरोध में हुई इस क्रांति का मूलमंत्र था — "Liberté, égalité, fraternité" (स्वतंत्रता, समानता, भ्रातृत्व)। यह एक ऐसे गणराज्य की स्थापना की ओर अग्रसर थी जो व्यक्तियों के अधिकारों पर आधारित हो।

    समानता और क्रांति में इसकी भूमिका

    • सामाजिक और राजनीतिक समानता: फ्राँसीसी क्रांति और उसके बाद के नेपोलियन सुधारों ने समानता के मुद्दे को प्रमुखता दी, विशेष रूप से अभिजात वर्ग के विशेषाधिकारों का उन्मूलन तथा विधि के समक्ष सभी व्यक्तियों की समानता की घोषणा। 
      • मानव और नागरिक अधिकारों की घोषणा (वर्ष 1789) समानता को मौलिक अधिकार के रूप में पुष्टि करने वाला एक महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ था। 
    • दास प्रथा का उन्मूलन: समानता के आदर्शों ने दास प्रथा के उन्मूलन में भी योगदान दिया, विशेष रूप से हैती क्रांति (1791-1804) के बाद, जिसके कारण दुनिया में पहला स्वतंत्र अश्वेत गणराज्य स्थापित हुआ, जिसने औपनिवेशिक शक्तियों के नस्लीय पदानुक्रम को चुनौती दी।
    • मताधिकार का विस्तार: 19वीं शताब्दी के दौरान, समानता राजनीतिक अधिकारों में भी परिवर्तित हो गई, क्योंकि विभिन्न यूरोपीय देशों और अमेरिका में मताधिकार का विस्तार होने लगा, जिसने 20वीं शताब्दी में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के लिये आधार तैयार किया।

    राष्ट्रवाद और उसका प्रभाव

    • राष्ट्रवादी आंदोलनों का उदय: एक राजनीतिक विचारधारा के रूप में राष्ट्रवाद ने साझा संस्कृति, भाषा और इतिहास द्वारा परिभाषित राष्ट्र-राज्य के महत्त्व पर ज़ोर दिया। 
      • यह साम्राज्यवाद और बहुराष्ट्रीय साम्राज्यों के प्रभुत्व के विरुद्ध प्रतिक्रिया थी, विशेष रूप से यूरोप एवं लैटिन अमेरिका में।
    • फ्राँसीसी क्रांति और राष्ट्रवाद: फ्राँसीसी क्रांति ने पुरानी सामंती व्यवस्था से अलग होकर फ्राँसीसी राष्ट्रीय पहचान की भावना को जन्म दिया, जो नेपोलियन युद्धों के दौरान और अधिक प्रबल हो गई। 
      • नेपोलियन के विजयों ने पूरे यूरोप में राष्ट्रवादी विचारों को फैलाया, जिससे अन्य देशों में भी इसी प्रकार के आंदोलन शुरू हो गये।
    • यूरोप और लैटिन अमेरिका में राष्ट्रवाद का उदय: 19वीं शताब्दी के आरंभ में यूरोप (जैसे: जर्मनी और इटली का एकीकरण) और लैटिन अमेरिका (जैसे: साइमन बोलिवर और जोस डी सैन मार्टिन के स्वतंत्रता आंदोलन) में राष्ट्रवादी भावनाओं का प्रसार हुआ, क्योंकि इन क्षेत्रों ने औपनिवेशिक शासन को समाप्त करने या अपने विखंडित क्षेत्रों को एकीकृत करने की मांग की थी।
    • वर्ष 1848 की क्रांतियाँ: ‘राष्ट्रों की वसंत ऋतु’ के नाम से प्रसिद्ध, यूरोप भर में ये विद्रोह राष्ट्रवादी और लोकतांत्रिक आदर्शों से प्रेरित थे।
      • यद्यपि उन्हें बड़े पैमाने पर दबा दिया गया, लेकिन उन्होंने इस क्षेत्र में भविष्य के राष्ट्रवादी और उदारवादी आंदोलनों की नींव रखी।

    वैश्विक व्यवस्था पर प्रभाव

    • राजतंत्रीय निरंकुशता का अंत: स्वतंत्रता और समानता के आदर्शों ने निरंकुश राजतंत्रों के पतन एवं गणतंत्रवाद के प्रसार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। 
      • अमेरिकी और फ्राँसीसी क्रांतियों के साथ-साथ राष्ट्रवादी आंदोलनों के उदय ने पारंपरिक सत्ता संरचनाओं को चुनौती दी, जो सदियों से विश्व पर हावी थीं।
    • नये राज्यों और राजनीतिक प्रणालियों का उदय: 19वीं शताब्दी में राष्ट्रवाद पर आधारित नये राज्यों का गठन हुआ, जैसे इटली और जर्मनी तथा साम्राज्यों का विघटन हुआ, जिनमें ओटोमन साम्राज्य और हैब्सबर्ग साम्राज्य भी शामिल थे, जो अपने क्षेत्रों के भीतर राष्ट्रवादी आंदोलनों के कारण काफी कमज़ोर हो गये थे।
    • औपनिवेशिक प्रभाव: राष्ट्रवाद और आत्मनिर्णय की मांग का भी औपनिवेशिक विश्व पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा। 
      • जब यूरोपीय शक्तियाँ आंतरिक उथल-पुथल से जूझ रही थीं, तो औपनिवेशिक क्षेत्रों, विशेष रूप से एशिया और अफ्रीका में, साम्राज्यवादी प्रभुत्व का विरोध शुरू हो गया, जिससे 20वीं सदी के विउपनिवेशीकरण के बीज बोये गये।

    निष्कर्ष

    स्वतंत्रता, समानता और राष्ट्रवाद के आदर्श परिवर्तनकारी शक्तियाँ थीं जिन्होंने 18वीं एवं 19वीं शताब्दी में वैश्विक राजनीति को पुनर्परिभाषित किया। उन्होंने न केवल क्रांतियों को आकार दिया, बल्कि आधुनिक लोकतांत्रिक समाजों की नींव भी रखी। जैसा कि थॉमस जेफरसन ने एक बार कहा था, "स्वतंत्रता के वृक्ष को समय-समय पर देशभक्तों और अत्याचारियों के रक्त से सींचा जाना चाहिये। " ये आदर्श विश्व भर में न्याय और स्वतंत्रता की खोज़ को प्रेरित करते रहते हैं।