• प्रश्न :

    1. भविष्य उन लोगों का होता है जो परिवर्तन के अनुकूल ढल सकते हैं, न कि उनका जो इसका विरोध करते है 

    2. जितना अधिक हम संसार को 'हम' और 'वे' में बाँटते हैं, हम उतना ही अधिक 'हम सब' की भावना से कटते जाते हैं।

    12 Jul, 2025 निबंध लेखन निबंध

    उत्तर :

    1. भविष्य उन लोगों का होता है जो परिवर्तन के अनुकूल ढल सकते हैं, न कि उनका जो इसका विरोध करते हैं।

    • अपने निबंध को समृद्ध करने के लिये उद्धरण:
      • चार्ल्स डार्विन: “यह आवश्यक नहीं कि सबसे शक्तिशाली या सबसे बुद्धिमान प्रजाति ही अस्तित्व में रहें, बल्कि उन प्रजातियों का ही अस्तित्व कायम रहता है जो परिवर्तन के प्रति सबसे अधिक समुत्थानशील होती हैं।”
      • एल्विन टॉफ़लर: "इक्कीसवीं सदी का निरक्षर वह नहीं होगा जो पढ़-लिख नहीं सकता, बल्कि वह होगा जो सीखने, भुलाने और पुनः सीखने की क्षमता नहीं रखता।"
      • हेराक्लिटस: "जीवन में एकमात्र स्थायी वस्तु परिवर्तन ही है।"
    • सैद्धांतिक और दार्शनिक आयाम:
      • विकासवादी अनुकूलन बनाम जड़ता: जीव विज्ञान में, अनुकूलन ही किसी प्रजाति का अस्तित्व सुनिश्चित करता है। इसी प्रकार, सामाजिक, तकनीकी एवं राजनीतिक परिदृश्य में, समुत्थानशीलन/लचीलापन ही प्रासंगिकता और नवजीवन की कुंजी है।
      • हेगेल का द्वंद्वात्मक आदर्शवाद: यह सिद्ध करता है कि यथार्थ मानसिक या आत्मिक होता है तथा इसका विकास 'थीसिस-एंटीथीसिस-सिंथेसिस' की प्रक्रिया अर्थात्, विचार और विरोध से ही नये सत्य की उत्पत्ति होती है।
      • अनित्यता का दर्शन (अनिच्चा): बौद्ध दर्शन के अनुसार जो व्यक्ति अपरिवर्तनशील रहता है, वह दुःख को आमंत्रित करता है। मुक्ति के लिये परिवर्तन को आत्मसात करना आवश्यक है।
      • लचीलापन और समुत्थानशक्ति: मनोवैज्ञानिक अध्ययनों से पता चलता है कि जो लोग विपरीत परिस्थितियों के साथ तालमेल बिठा लेते हैं, वे और भी मज़बूत होते जाते हैं। समुत्थानशीलन केवल जीवित रहने का गुण नहीं है, यह भावनात्मक बुद्धिमत्ता और विकास की मानसिकता से जुड़ा एक उच्च-स्तरीय कौशल है।
      • भारतीय दर्शन— कर्म और स्वधर्म की गति: भगवद्गीता में समय, संदर्भ और भूमिका के अनुसार कर्त्तव्य की बात की गयी है, जिसका आशय है कि इस गतिशील संसार में परिवर्तन/समुत्थानशीलता ही धर्म है।
    • नीति और ऐतिहासिक उदाहरण:
      •  भारत का आर्थिक उदारीकरण (1991): यह एक साहसिक नीतिगत बदलाव था, जिसने भारत की अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित किया, बाज़ारों को खोला और विकास को बढ़ावा दिया, अन्यथा प्रतिरोध से देश का आर्थिक पतन हो सकता था।  
      • युद्धोत्तर जापानी पुनर्निर्माण: जापान ने सैन्यवाद को त्याग कर समुत्थानशील नवाचार (जैसे: लीन मैन्युफैक्चरिंग, प्रौद्योगिकी) के माध्यम से स्वयं का पुनर्निर्माण किया, जिससे वह वैश्विक शक्ति बना।
      • चीन की 'रिफॉर्म एंड ओपनिंग अप' नीति (1978): देंग ज़ियाओपिंग द्वारा कम्युनिज़्म की कठोरता से हटकर व्यावहारिक आर्थिक बदलावों की ओर बढ़ना, राष्ट्रीय स्तर पर अनुकूलनशीलता का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
      • कोविड-19 प्रतिक्रिया: जिन देशों ने डिजिटल स्वास्थ्य प्रणालियों, दूरस्थ कार्य अवसंरचना और सामाजिक सहायता तंत्रों को शीघ्रता से अपनाया, उनका प्रदर्शन उन देशों की तुलना में बेहतर रहा, जिन्होंने नए मॉडलों का विरोध किया।  
    • समकालीन उदाहरण:
      • जलवायु अनुकूलन: जलवायु-अनुकूल फसलों से लेकर हरित शहरी बुनियादी अवसंरचना तक, जलवायु परिवर्तन से निपटने में समुत्थानशीलता महत्त्वपूर्ण है।
      • कार्यस्थल का विकास: गिग इकॉनमी, दूरस्थ कार्य और AI-संचालित कार्य निरंतर अधिगम और समुत्थानशीलता कॅरियर का स्थायित्व सुनिश्चित करते हैं, जो लोग इस बदलाव का विरोध करते हैं, उन्हें अप्रचलन/मूल्यह्रास का सामना करना पड़ता है।
      • NEP-2020 और शिक्षा: बहु-विषयक शिक्षा और समालोचनात्मक सोच को बढ़ावा देती है, जो छात्रों को रटने के बजाय अनिश्चित भविष्य के लिये तैयार करता है, क्योंकि अब 'रटंत ज्ञान' पर्याप्त नहीं है।
      • स्टार्ट-अप और नवाचार की संस्कृति: स्टार्ट-अप केंद्र के रूप में भारत का उदय, वैश्विक रुझानों, डिजिटल प्लेटफॉर्मों और बाज़ार में होने वाले निरंतर बदलाव के प्रति इसके युवाओं की समुत्थानशक्ति को दर्शाता है।   

    2. जितना अधिक हम संसार को 'हम' और 'वे' में बाँटते हैं, हम उतना ही अधिक 'हम सब' की भावना से कटते जाते हैं।

    • अपने निबंध को समृद्ध करने के लिये उद्धरण:
      • मार्टिन लूथर किंग जूनियर: "हम सब भले ही अलग-अलग जहाज़ों में आये हों, पर अब एक ही नाव में हैं।"
      • बराक ओबामा: "सबसे मज़बूत लोकतंत्र लगातार और जीवंत बहस से विकसित होते हैं, परंतु वे तभी टिकते हैं जब हर पृष्ठभूमि और विश्वास के लोग छोटे-छोटे मतभेदों को दरकिनार कर एक साझा मार्ग अपनाते हैं।"
      • नेल्सन मंडेला: "अगर आप अपने दुश्मन के साथ शांति बनाना चाहते हैं, तो आपको उसके साथ मिलकर काम करना होगा। तब वह आपका सहयोगी बन जायेगा।"
      • अज्ञात: "एकजुट रहें तो हम शक्तिशाली बने रहेंगे, परंतु विभाजित रहें तो हमारा पतन निश्चित है"। 
    • सैद्धांतिक और दार्शनिक आयाम:
      • सामाजिक मनोविज्ञान– समूह के भीतर बनाम समूह से बाहर का पूर्वाग्रह: अपने ही समूह का पक्ष लेने की मानवीय प्रवृत्ति पूर्वाग्रह, भय और विखंडन को जन्म देती है। इससे सामाजिक विश्वास एवं एकजुटता कमज़ोर होती है।
      • उबुंटू दर्शन (अफ्रीकी विचार): "मैं हूँ क्योंकि हम हैं।" सच्ची मानवता सामूहिक संबद्धता में पाई जाती है, विभाजन में नहीं।
      • भारतीय दर्शन– वसुधैव कुटुंबकम: समस्त विश्व एक परिवार है।  जाति, धर्म और नस्ल जैसी कृत्रिम सीमाएँ, उस आध्यात्मिक व सामाजिक एकता को कमज़ोर करती हैं जिसका भारतीय दर्शन प्रचार करता है। 
      • राजनीतिक सिद्धांत - पहचान की राजनीति बनाम सार्वभौमिकता: यद्यपि पहचान की पहचान महत्त्वपूर्ण है, किंतु अत्यधिक ध्रुवीकरण सामूहिक लोकतांत्रिक भावना को कमज़ोर करता है।   
    • नीति और ऐतिहासिक उदाहरण:
      • 1857 का विद्रोह: 1857 के विद्रोह में राष्ट्रीय एकता की भावना का अभाव था। इसमें कोई साझा विचारधारा या अखिल भारतीय दृष्टिकोण ('हम' की भावना नहीं) नहीं था, जिससे यह एक एकीकृत राष्ट्रीय आंदोलन से अधिक स्थानीय विद्रोहों ('हम') की एक शृंखला बन गया।
      • रवांडा नरसंहार (1994): औपनिवेशिक विरासत और प्रचार द्वारा बढ़ायी गयी जातीय वर्गीकृतियाँ (हूतु बनाम तुत्सी) ने साझा मानवीय चेतना को कुचल दिया, जिसके परिणामस्वरूप भयावह हिंसा की घटनाएँ हुई।
      • नागरिक अधिकार आंदोलन: विधिक और सांस्कृतिक अलगाव को समाप्त करके अमेरिकी लोकतंत्र में 'हम' के विचार को पुनर्स्थापित करने का प्रयास किया गया।
      • यूरोपीय संघ: एक सफल मामला जहाँ पूर्व प्रतिद्वंद्वियों (फ्राँस, जर्मनी, आदि) ने साझा आर्थिक और राजनीतिक संस्थाओं के माध्यम से एकता का निर्माण किया, राष्ट्रवादी अलगाव के स्थान पर 'हम' को चुना।
    • समकालीन उदाहरण:
      • भाषा आधारित संघर्ष: भारत में भाषा विवाद प्रायः 'हम बनाम वे' के विभाजन को दर्शाता है, जहाँ क्षेत्रीय भाषाई पहचानें किसी प्रमुख भाषा (जैसे: हिंदी) के कथित थोपे जाने से खतरा महसूस करती हैं।
        • इससे सांस्कृतिक अलगाव और क्षेत्रीय प्रतिरोध उत्पन्न होता है, जो एक एकीकृत राष्ट्रीय पहचान के विचार को चुनौती देता है।
      • शरणार्थी संकट और आव्रजन बहस: पश्चिम में बढ़ता विदेशी द्वेष 'मूल निवासियों' और 'बाहरी लोगों' के बीच विभाजन उत्पन्न करता है, जिससे मानवतावाद एवं वैश्विक सहयोग कमज़ोर होता है।
      • सोशल मीडिया इको चैम्बर्स: एल्गोरिदम-ड्रिवेन कंटेंट पर्सनलाइजेशन ने वैचारिक अलगाव उत्पन्न कर दिया है, जिससे राजनीतिक और सांस्कृतिक विभाजन और गहरा गया है।
      • पहागाम हमले पर एकजुटता: पहागाम हमले के बाद भारत में वैचारिक मतभेदों के बावजूद प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक दलों के बीच एकजुटता (सांसद शशि थरूर के नेतृत्व में सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल) देखी गई, जिसमें राष्ट्रीय हित को राजनीतिक प्रयासों से ऊपर रखा गया।