प्रश्न. "संस्थागत उत्तरदायित्व और प्रदर्शन मानकों के इस युग में, क्या लोक प्रशासन में परोपकारिता के लिये अभी भी स्थान है? विवेचना कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- परोपकारिता के बारे में एक प्रासंगिक उद्धरण और संक्षिप्त विवरण के साथ परिचय दीजिये।
- वर्तमान परोपकारिता का महत्त्व क्यों कम हो रहा है तथा यह अभी भी प्रासंगिक क्यों है।
- एक उदाहरण के साथ संतुलन उपाय सुझाएँ
- उचित निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
"लोक सेवा का अर्थ केवल कुशलतापूर्वक और ईमानदारी से कार्य करना नहीं होना चाहिये। यह जनता और राष्ट्र के प्रति पूर्ण समर्पण होना चाहिये।" - मार्गरेट चेज़ स्मिथ
- आज के लोक प्रशासन में, पारदर्शिता, दक्षता और सेवा वितरण सुनिश्चित करने के लिये संस्थागत जवाबदेही और प्रदर्शन मापदंड अपरिहार्य उपकरण बन गए हैं।
- फिर भी, इस तेज़ी से बढ़ते परिमाणात्मक पारिस्थितिकी तंत्र में, परोपकारिता- दूसरों के कल्याण के लिये निस्वार्थ चिंता, महत्त्वपूर्ण बनी हुई है, हालाँकि इसे हाशिए पर रखा जा रहा है।
मुख्य भाग:
आज परोपकारिता का महत्त्व क्यों कम हो रहा है:
- मात्रात्मक प्रदर्शन पर अत्यधिक ज़ोर: संख्याओं और लक्ष्यों पर सख्त ध्यान केंद्रित करने से करुणा, सहानुभूति या इरादे जैसे अमापनीय मूल्यों के लिये बहुत कम जगह बचती है।
- उदाहरण के लिये, स्वच्छता अभियान के परिणामों को शौचालय निर्माण के माध्यम से ट्रैक किया जाता है, लेकिन उपयोग या व्यवहार परिवर्तन के माध्यम से नहीं- जहाँ परोपकारिता एक भूमिका निभाती है।
- सीमाओं का अतिक्रमण करने का भय: लेखा-परीक्षण, आरटीआई का दबाव और मीडिया की जाँच बढ़ने से अधिकारी जोखिम से बचते हैं तथा परोपकारी सहजता पर अंकुश लगता है।
- "ऐसी पहल क्यों की जाए जो प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है या जिसके लिये अनुशासनात्मक कार्रवाई हो सकती है?" यह एक बढ़ती हुई भावना है।
- नियम-अनुपालन की नौकरशाही संस्कृति: प्रक्रियागत शुद्धता को पुरस्कृत करने वाली संस्कृति अक्सर भावनात्मक रूप से प्रेरित या करुणामय प्रतिक्रियाओं को हतोत्साहित करती है।
- व्यावसायिक बर्नआउट: अत्यधिक कार्यभार और कम मान्यता प्राप्त सिविल सेवक परोपकारी आवेगों सहित आंतरिक प्रेरणा खो सकते हैं।
- मास्लो का पदानुक्रम दर्शाता है कि परोपकारिता तभी उभरती है जब बुनियादी मनोवैज्ञानिक आवश्यकताएँ पूरी हो जाती हैं।
लोक प्रशासन में परोपकारिता अभी भी प्रासंगिक क्यों है?
- मानवीय शासन: मापदण्ड वितरण का मार्गदर्शन कर सकते हैं, लेकिन केवल परोपकारिता ही नागरिकों के साथ संवाद में सहानुभूति और सम्मान सुनिश्चित करती है- विशेष रूप से कमज़ोर लोगों के साथ।
- उदाहरण: COVID-19 संकट के दौरान, आईएएस राजेंद्र भट्ट जैसे लोक सेवकों ने अपने औपचारिक कर्तव्यों से परे, अलग-थलग पड़े वृद्ध नागरिकों को व्यक्तिगत सहायता प्रदान की।
- व्यवस्थागत कमियों को कम करना: कोई भी व्यवस्था या पैमाना हर स्थिति को कवर नहीं कर सकता। परोपकारी सिविल सेवक तब कार्य करते हैं जब व्यवस्था प्रभावित होती है।
- किसी निर्देश के बिना भी दूरदराज के क्षेत्रों में दवाइयों की अंतिम छोर तक आपूर्ति की व्यवस्था करने वाला ज़िला कलेक्टर परोपकारी पहल को दर्शाता है।
- सरकार में विश्वास बढ़ाना: जब नागरिकों को सरकार की मंशा और देखभाल का अहसास होता है, न कि केवल प्रक्रियागत क्रियान्वयन का, तो वे सरकार पर अधिक विश्वास करते हैं और सहयोग करते हैं।
- गांधीवादी विचार "सर्वोदय" (सभी का कल्याण) अपेक्षा रहित सेवा पर ज़ोर देता है।
- नैतिक दुविधाओं में नैतिक सहारा: जब नियमों में टकराव होता है या प्राथमिकताओं में टकराव होता है, तो परोपकारिता नैतिक निर्णय लेने के लिये नैतिक दिशासूचक के रूप में कार्य करती है।
- नैतिकता में, यह कांट के कर्तव्य-आधारित नैतिकता- जो सही है वह करो, न कि जो पुरस्कृत किया जाता है, के साथ प्रतिध्वनित होता है।
- परोपकारिता नवाचार और जुनून को बढ़ावा देती है: परोपकारिता से प्रेरित अधिकारी न्यूनतम आवश्यकताओं से आगे बढ़कर अक्सर अभिनव शासन की ओर अग्रसर होते हैं।
- मोहम्मद अली शिहाब आईएएस, जो एक अनाथालय में पले-बढ़े हैं, गरीबों के प्रति गहरी सहानुभूति के साथ अविकसित क्षेत्रों में अथक परिश्रम करते हैं।

उपकारिता (परार्थता) और प्रदर्शन मापदंडों का सह-अस्तित्व:
- कुशलता (efficiency) के लिये उपकारिता (altruism) की बलि नहीं दी जानी चाहिये। लोक सेवक सहानुभूति के साथ सेवा करते हुए प्रदर्शन ढाँचे के भीतर कार्य कर सकते हैं।
- कार्यकुशलता के लिये परोपकारिता का त्याग नहीं किया जाना चाहिये। लोक सेवक कार्य-निष्पादन ढाँचे के भीतर काम करते हुए सहानुभूति के साथ सेवा करके दोनों को एकीकृत कर सकते हैं।
- प्रदर्शन मेट्रिक्स में नैतिक व्यवहार, ईमानदारी और सार्वजनिक विश्वास के माप शामिल होने चाहिये
- उदाहरण के लिये, डॉ. वर्गीज कुरियन (श्वेत क्रांति) ने परार्थ भाव और लक्ष्य-आधारित प्रदर्शन को संतुलित कर भारत के दुग्ध उद्योग में क्रांतिकारी परिवर्तन किया।
निष्कर्ष:
कुशल लोक सेवा सुनिश्चित करने के लिए जवाबदेही तंत्र और मापदंड अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, लेकिन इन्हें हमारी अपेक्षाओं की सीमा नहीं बनना चाहिए। परोपकारिता वह मानवीय स्पर्श जोड़ती है जो मापदंड कभी प्राप्त नहीं कर सकते। जवाबदेही और परोपकारिता , दोनों को एक-दूसरे का विरोधी होना ज़रूरी नहीं है; वे नैतिक शासन में पूरक शक्तियाँ हो सकती हैं।