प्रश्न. मुगल काल के दौरान शुरू किये गए स्थापत्य कला संबंधी नवाचारों पर चर्चा कीजिये तथा फारसी और भारतीय शैलियों के मिश्रण की विवेचना कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- मुगल स्थापत्यकला के संदर्भ में जानकारी देते हुए उत्तर लेखन की शुरुआत कीजिये।
- मुगल काल के दौरान शुरू की गई स्थापत्यकला की नवीनताओं पर गहन विचार प्रस्तुत कीजिये।
- प्रमुख UNESCO विश्व धरोहर स्थलों का उल्लेख करते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
- फारसी, मध्य एशियाई और भारतीय स्थापत्य परंपराओं के समन्वय की प्रतीक मुगल स्थापत्यकला ने एक विशिष्ट शैली को जन्म दिया जिसने मुगल काल की सांस्कृतिक और कलात्मक पराकाष्ठा को अभिव्यक्त किया।
- इस्लामी स्थापत्य कला की विशेषताओं को स्थानीय भारतीय तत्त्वों, जैसे: राजपूत शैली के मेल से ऐसे भव्य निर्माण हुए जो आज भी भारत की समृद्ध विरासत के प्रतिष्ठित प्रतीक के रूप में विद्यमान हैं।
मुख्य भाग:
मुगल काल के दौरान शुरू किये गए स्थापत्य शिल्प नवाचार:
- फारसी गुम्बदों और भारतीय मेहराबों का सम्मिश्रण: मुगल स्थापत्य शैली में बड़े, बल्बनुमा गुंबदों को प्रमुखता दी गई है, जो फारसी स्थापत्यकला की एक पहचान है तथा इन पारंपरिक भारतीय मेहराबों एवं स्तंभों के साथ मिलाकर एक नवीन शैली का विकास हुआ।
- इस समन्वय से ताजमहल जैसी भव्य और सममित संरचनाएँ निर्मित हुईं, जहाँ फारसी-प्रेरित गुंबदों को भारतीय मेहराबों एवं सजावटी रूपांकनों के साथ सजाया जाता था।
- चारबाग गार्डन लेआउट: स्वर्ग का प्रतीक फारसी-प्रेरित चारबाग (चार-भाग वाला उद्यान) लेआउट, मुगल स्थापत्यकला में, विशेष रूप से कब्रों और महलों के आसपास एकीकृत किया गया था। फ़ारसी प्रेरणा से विकसित 'चारबाग' अर्थात् चार भागों में विभाजित उद्यान, मुगल स्थापत्य का प्रमुख अंग बना। यह योजना विशेषतः समाधियों और महलों के आसपास प्रयुक्त हुई।
- भारतीय बागवानी परंपराओं, जैसे जलधाराओं और फव्वारों के साथ इस शैली को इस तरह संयोजित किया गया तथा सौंदर्य एवं आध्यात्मिक प्रतीकात्मकता से भरपूर उद्यानों, जैसे: ताजमहल और हुमायूँ का मकबरा, का निर्माण हुआ।
- भारतीय सजावटी रूपांकनों के साथ समरूपता और ज्यामितीय परिशुद्धता: फारसी डिज़ाइन सिद्धांतों से प्रभावित मुगल इमारतें समरूपता और ज्यामितीय परिशुद्धता के सख्त पालन के लिये जानी जाती हैं।
- कमल के फूल, यलि (पौराणिक शेर) नक्काशी एवं जटिल नक्काशी जैसे भारतीय सजावटी तत्त्वों को मुगल संरचनाओं में शामिल किया गया था।
- इस मिश्रण को इस्लामी कैलीग्राफी और ज्यामितीय पैटर्न के साथ संयोजित कर एक अद्वितीय सौंदर्यशैली उत्पन्न हुई।
- जामा मस्जिद और लालकिला इसकी प्रमुख मिसालें हैं।
- हिंदू मंदिर स्थापत्यकला का प्रभाव: मुगल शासकों, विशेषकर अकबर ने अपने डिज़ाइनों में हिंदू मंदिर स्थापत्यकला के तत्त्वों को शामिल किया।
- इसमें हिंदू मंदिर संरचनाओं से छतरियों (ऊँचे मंडप) और स्तंभों का उपयोग किया गया, तथा उन्हें फारसी शैली के मेहराबों व गुंबदों के साथ संयोजित किया गया।
- यह मिश्रण फतेहपुर सीकरी में दीवान-ए-खास और सिकंदरा में अकबर के मकबरे जैसी संरचनाओं में दिखाई देता है।
- विस्तृत जड़ाऊ कार्य (पिएत्रा ड्यूरा): मुगल सजावट की एक पहचान (विशेष रूप से शाहजहाँ के शासनकाल के दौरान) पिएत्रा ड्यूरा (पत्थर पर जड़ाऊ कार्य) थी।
- इसमें फारसी तकनीकों को अपनाते हुए भारतीय पुष्प और ज्यामितीय डिज़ाइनों को अर्द्ध-मूल्यवान पत्थरों से तराशकर संगमरमर पर जड़ा गया। ताजमहल इसकी उत्कृष्ट मिसाल है।
- यह जटिल विवरण सबसे प्रसिद्ध रूप से ताजमहल में देखा जाता है, जहाँ संगमरमर को ज्यामितीय और पुष्प पैटर्न में सुंदर अर्द्ध-कीमती पत्थरों से सजाया गया है।
- विशाल, स्मारकीय प्रवेशद्वार डिज़ाइन: मुगल स्थापत्यकला भव्य प्रवेशद्वारों के लिये जानी जाती है, जैसे फतेहपुर सीकरी का बुलंद दरवाज़ा, जिसमें फारसी और भारतीय स्थापत्य तत्त्वों का मिश्रण है।
- दिलचस्प बात यह है कि इस मुगल प्रवेश द्वार का डिज़ाइन दक्षिणी भारतीय मंदिरों के गोपुरमों के साथ वैचारिक समानता रखता है, विशेष रूप से द्रविड़ स्थापत्य शैली में।
- लाल बलुआ पत्थर का प्रयोग: लाल बलुआ पत्थर, जिसका प्रयोग अकबर द्वारा आगरा किला और फतेहपुर सीकरी जैसी स्मारकीय संरचनाओं में व्यापक रूप से किया गया था, भारतीय स्थापत्य कला में, विशेष रूप से राजपूत शैली में गहराई से निहित है।
निष्कर्ष:
इस्लामी ज्यामितीय सटीकता और भारतीय शिल्प कौशल के सम्मिश्रण के परिणामस्वरूप इतिहास की कुछ सबसे प्रतिष्ठित और स्थायी संरचनाएँ बनीं। यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों के रूप में, ताजमहल और लाल किला जैसे स्मारक मुगल साम्राज्य की स्थापत्य विरासत के प्रमाण के रूप में खड़े हैं, जो फारसी एवं भारतीय शैलियों के सामंजस्यपूर्ण मिश्रण को भावी पीढ़ियों के लिये संरक्षित करते हैं।