प्रश्न. चीन और पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय संबंधों से उत्पन्न चुनौतियों का प्रबंधन करते हुए अपने भू-राजनीतिक लक्ष्यों के लिये शंघाई सहयोग संगठन (SCO) का लाभ उठाने के भारत के दृष्टिकोण पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- SCO के बारे में संक्षिप्त जानकारी देकर उत्तर की शुरुआत कीजिये तथा इससे संबंधित मुद्दों के लिये संदर्भ निर्धारित करने हेतु एक हालिया घटना पर प्रकाश डालें।
- SCO के माध्यम से भारत के रणनीतिक लक्ष्यों पर प्रकाश डालिये
- चीन और पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय संबंधों से उत्पन्न चुनौतियों का उल्लेख कीजिये
- इन चुनौतियों के प्रबंधन के लिये भारत की रणनीति पर गहराई से विचार कीजिये
- एक उद्धरण के साथ निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
शंघाई सहयोग संगठन (SCO) भारत को मध्य एशिया में अपने भू-राजनीतिक लक्ष्यों को आगे बढ़ाने का अवसर प्रदान करता है, विशेष रूप से आतंकवाद-निरोध, क्षेत्रीय सुरक्षा और आर्थिक सहयोग के संदर्भ में।
- हालाँकि, आतंकवाद पर SCO, 2025 रक्षा मंत्रियों के संयुक्त वक्तव्य पर हस्ताक्षर करने से भारत का इनकार, SCO के भीतर पाकिस्तान को चीन के समर्थन से उत्पन्न चुनौतियों को उजागर करता है।
मुख्य भाग:
SCO के माध्यम से भारत के रणनीतिक लक्ष्य:
- आतंकवाद विरोधी सहयोग: भारत का लक्ष्य सीमा पार आतंकवाद से निपटना है, जो पाकिस्तान द्वारा उत्पन्न एक प्रमुख खतरा है। SCO का क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी ढाँचा (RATS) ऐसे मुद्दों को संबोधित करने के लिये एक मंच प्रदान करता है।
- भारत ने SCO मंचों पर आतंकवाद के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई के लिये लगातार ज़ोर दिया है, हालांकि पाकिस्तान का प्रभाव और उसके प्रति चीन का सुरक्षात्मक रुख इन प्रयासों को कमज़ोर करता है।
- क्षेत्रीय संपर्क: भारत अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC) जैसी परियोजनाओं के माध्यम से मध्य एशिया के साथ अपने संपर्क को बढ़ाना चाहता है, जिससे व्यापार में सुविधा हो सकती है और यूरेशियाई बाज़ारों तक पहुँच में सुधार हो सकता है।
- अधिक कनेक्टिविटी को बढ़ावा देकर भारत का लक्ष्य क्षेत्रीय आर्थिक नेटवर्क में खुद को एकीकृत करना है तथा अपने विकास के लिये महत्त्वपूर्ण ऊर्जा और संसाधनों तक पहुँच सुनिश्चित करना है।
- आर्थिक सहयोग और ऊर्जा सुरक्षा: SCO भारत को ऊर्जा संसाधनों और क्षेत्रीय आर्थिक पहलों पर सहयोग करने के लिये एक मंच प्रदान करता है, जो भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- SCO में भारत की भागीदारी से मध्य एशिया के ऊर्जा संसाधनों तक बेहतर पहुँच हो सकेगी, क्योंकि कज़ाखस्तान और तुर्कमेनिस्तान जैसे देशों के पास महत्त्वपूर्ण ऊर्जा भंडार हैं।
- मध्य एशिया में भू-रणनीतिक संतुलन: SCO में भारत की पूर्ण सदस्यता उसे क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने में सक्षम बनाती है।
- भारत SCO के माध्यम से संबंधों को बढ़ावा देकर मध्य एशिया के साथ जुड़ना चाहता है तथा उसे चीनी प्रभाव क्षेत्र बनने से रोकना चाहता है।
- अफगानिस्तान में स्थिरता: अफगानिस्तान की स्थिरता में भारत का निहित स्वार्थ है, जो SCO की एक प्रमुख चिंता है, विशेष रूप से अमेरिकी सैन्य वापसी के बाद।
- पूर्ण सदस्य के रूप में भारत अफगानिस्तान में क्षेत्रीय शांति स्थापना प्रयासों में योगदान दे सकता है तथा यह सुनिश्चित कर सकता है, कि क्षेत्र में अस्थिरता का प्रभाव भारत पर न पड़े।
चीन और पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय संबंधों से उत्पन्न चुनौतियाँ:
- SCO में चीन का वर्चस्व: शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के भीतर चीन का प्रभाव असमान रूप से अधिक है, जो रणनीतिक सहयोग और निर्णय लेने की प्रक्रिया में अक्सर भारत के उद्देश्यों को पीछे छोड़ देता है।
- पाकिस्तान के साथ चीन के घनिष्ठ संबंध मंच के भीतर भारत के सुरक्षा लक्ष्यों को प्राप्त करने की क्षमता को और अधिक जटिल बना देते हैं।
- पाकिस्तान की शत्रुतापूर्ण स्थिति: भारत के साथ-साथ पाकिस्तान की SCO में उपस्थिति कई चुनौतियाँ उत्पन्न करती है, विशेष रूप से तब जब वह कश्मीर और अन्य विवादित मुद्दों पर अपना पक्ष बढ़-चढ़कर प्रस्तुत करता है।
- SCO की सर्वसम्मति-आधारित निर्णय प्रक्रिया भारत के हितों को आगे बढ़ाना कठिन बना देती है, क्योंकि पाकिस्तान के विरोध से चर्चाएँ बाधित हो सकती हैं।
- क्षेत्रीय कूटनीतिक ध्रुवीकरण: भारत, चीन और पाकिस्तान के बीच भिन्न-भिन्न प्राथमिकताएँ और हित SCO के भीतर एक भू-राजनीतिक विभाजन उत्पन्न करते हैं, जिससे भारत के लिये क्षेत्रीय रणनीतियों—विशेषकर आतंकवाद-रोधी प्रयासों और संपर्क परियोजनाओं को एकजुट रूप में आगे बढ़ाना मुश्किल हो जाता है।
इन चुनौतियों के प्रबंधन के लिये भारत की रणनीति:
- सामरिक कूटनीति और दृढ़ता: भारत ने अपने मूल हितों पर खतरा उत्पन्न होने पर दृढ़तापूर्ण रुख अपनाया है, जैसा कि वर्ष 2025 SCO रक्षा मंत्रियों की बैठक में संयुक्त वक्तव्य पर हस्ताक्षर करने से इनकार करने से देखा गया है।
- अपने आतंकवाद-रोधी एजेंडे को प्राथमिकता देकर भारत स्पष्ट संदेश देता है कि वह बहुपक्षीय मंचों पर भी अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता नहीं करेगा।
- चयनात्मक सहभागिता: भारत उन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करता है जहाँ सहयोग सबसे अधिक लाभकारी है, जैसे आर्थिक विकास, ऊर्जा सुरक्षा और आतंकवाद विरोधी प्रयास।
- चुनौतियों के बावजूद, भारत क्षेत्रीय सुरक्षा खतरों से निपटने के लिये SCO के प्रयासों में सक्रिय रूप से शामिल है, विशेष रूप से मध्य एशिया में, जहाँ इसके हित SCO के कुछ सदस्यों के साथ जुड़े हुए हैं।
- प्रमुख शक्तियों के साथ संबंधों में संतुलन: भारत केवल एससीओ पर निर्भर नहीं है, बल्कि अमेरिका, ब्रिटेन और इज़रायल जैसे अन्य क्षेत्रीय और वैश्विक साझेदारों के साथ भी रणनीतिक हितों को आगे बढ़ाने के लिये जुड़ा हुआ है।
- प्रमुख देशों के साथ मज़बूत द्विपक्षीय संबंध बनाए रखकर भारत यह सुनिश्चित करता है कि उसके क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा लक्ष्य केवल SCO के भीतर की गतिशीलता से निर्धारित न हों।
- सामरिक स्वायत्तता: SCO के प्रति भारत का दृष्टिकोण सामरिक स्वायत्तता के अपने व्यापक विदेश नीति सिद्धांत को प्रतिबिंबित करता है, जो यह सुनिश्चित करता है कि वह अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करते हुए बहुपक्षीय मंचों पर कार्य कर सके।
- भारत एक स्वतंत्र विदेश नीति बनाए रखने के लिये प्रतिबद्ध है और SCO के भीतर किसी भी गुटीय राजनीति में शामिल होने से बचता है।
- वैकल्पिक बहुपक्षीय मंचों के साथ सहभागिता: SCO की सीमाओं को पहचानते हुए, भारत अपने क्षेत्रीय उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के लिये भारत-मध्य एशिया शिखर सम्मेलन जैसे वैकल्पिक मंचों की ओर तेजी से बढ़ रहा है।
- छोटे, अधिक केंद्रित बहुपक्षीय मंचों के साथ संबंधों को मज़बूत करने का भारत का निर्णय, अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति के प्रति उसके व्यावहारिक दृष्टिकोण को दर्शाता है।
निष्कर्ष:
"भारत की कूटनीति व्यावहारिकता में निहित है, जो राष्ट्रीय हितों से संचालित होती है और शांति, सुरक्षा एवं समृद्धि की खोज से निर्देशित होती है।" जैसे-जैसे भारत चीन और पाकिस्तान के साथ अपने संबंधों की जटिलताओं को संभालते हुए SCO से लाभ प्राप्त करता है, उसकी विदेश नीति "सावधानीपूर्वक संवाद और स्पष्टता के साथ सहयोग" के सिद्धांत से ही निर्देशित होती रहती है।