प्रश्न. "विजयनगर साम्राज्य की कला और संस्कृति न केवल सौंदर्य उत्कृष्टता की अभिव्यक्ति थी, बल्कि राजनीतिक वैधता एवं धार्मिक सुदृढ़ीकरण के साधन भी थे।" चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- विजयनगर साम्राज्य के बारे में संक्षिप्त में परिचय देकर उत्तर की प्रस्तुत कीजिये।
- सौंदर्य उत्कृष्टता की अभिव्यक्ति के पक्ष में प्रमुख तर्क दीजिये।
- राजनीतिक वैधता के रूप में इसकी कला और वास्तुकला का गहराई से अध्ययन कीजिये।
- संस्कृति के माध्यम से इसके धार्मिक एकीकरण के बारे में संक्षिप्त जानकारी दीजिये।
- संबंधित यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों का उल्लेख करते हुए निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
विजयनगर साम्राज्य (1336–1565 ई.) अपनी भव्यता और दृढ़ता के लिए प्रसिद्ध एक शक्तिशाली दक्षिण भारतीय साम्राज्य था, जिसने वास्तुकला, मूर्तिकला, साहित्य, संगीत और चित्रकला के रूप में एक स्थायी विरासत छोड़ी।
इस युग की कला और संस्कृति जहाँ एक ओर सौंदर्यबोध की गहराई को दर्शाती थीं, वहीं इन्हें राजनीतिक सत्ता के प्रदर्शन और सांस्कृतिक रूप से विविध क्षेत्र में धार्मिक एकता स्थापित करने के साधन के रूप में भी सजगता से उपयोग किया गया।
मुख्य भाग:
सौंदर्य उत्कृष्टता की अभिव्यक्तियाँ:
- आध्यात्मिक कहानी कहने के रूप में चित्रात्मक भित्ति चित्र: लेपाक्षी जैसे भित्ति चित्रों में महाकाव्यों और स्थानीय किंवदंतियों के दृश्यों को स्पष्ट रूप से चित्रित किया गया है, न केवल भक्ति को प्रेरित करने के लिये, बल्कि राजवंशीय आदर्शों और नैतिक मूल्यों को बढ़ावा देने के लिये भी।
- मंडप की छतों पर अक्सर शाही समारोहों, त्यौहारों और दैवीय हस्तक्षेपों को दर्शाया जाता था, जो राज्य की पवित्र सत्ता को मज़बूत करता था।
- सांस्कृतिक कूटनीति के रूप में संगीत और नृत्य: पुरंदरदास की भक्ति रचनाएँ मंदिरों और सार्वजनिक समारोहों में गूंजती थीं तथा उनमें राजसी संरक्षण और आध्यात्मिक मार्गदर्शन का संदेश छिपा होता था।
- मंदिर और दरबार में प्रस्तुत किये जाने वाले भरतनाट्यम जैसे नृत्य रूपों ने धार्मिक पूजा और राजनीतिक उत्सव दोनों को भव्यता प्रदान की।
- दैनिक संदेश के माध्यम के रूप में मूर्तिकला: विशेष रूप से विरुपाक्ष मंदिर की मूर्तियाँ पौराणिक दृश्यों, नागरिक जीवन और राजकीय न्याय का सम्मिलन प्रस्तुत करती थीं, जिससे कला एक सुलभ सांस्कृतिक संप्रेषण का साधन बन जाती थी।
- राजाओं को देवताओं को नमन करते हुए दर्शाने वाले चित्र उनके शासन के पीछे दैवी समर्थन की धारणा को मज़बूत करते थे।
राजनीतिक वैधता के रूप में कला और वास्तुकला
- स्मारकीय वास्तुकला ने सत्ता का प्रतीक प्रस्तुत किया:
- महानवमी डिब्बा जैसी भव्य इमारतों में शाही समारोह आयोजित किये जाते थे, जो आम जनता को दिखाई देते थे, जिससे राजशाही शक्ति मज़बूत होती थी।
- हम्पी में बड़े पैमाने पर नगर नियोजन- किलेबंद क्षेत्रों, शाही बाड़ों और शहरी मंदिरों के साथ, राज्य की संगठनात्मक क्षमता को प्रदर्शित करता है।
- मंदिर संरक्षण एक राजनीतिक उपकरण के रूप में:
- दक्षिण भारत के प्रमुख मंदिरों में कृष्णदेवराय द्वारा रायगोपुरम (ऊँचे प्रवेशद्वार) का निर्माण उनकी धर्मपरायणता और सुदूर क्षेत्रों पर उनके नियंत्रण दोनों को दर्शाता है।
- तिरुपति, श्रीरंगम और कांचीपुरम जैसे पवित्र स्थलों के जीर्णोद्धार ने दैवीय सहयोग के माध्यम से राजनीतिक वैधता अर्जित की।
- नियंत्रण स्थापित करने के लिये स्थानीय शैलियों का एकीकरण
- चालुक्य, होयसला, चोल और पांड्य तत्वों के सम्मिश्रण से साम्राज्य ने एक वास्तुशिल्पीय पहचान को बढ़ावा दिया जो राजनीतिक और सांस्कृतिक एकीकरण का प्रतीक था।
- स्थानीय कारीगरों और परंपराओं को संरक्षण दिया गया, जिससे निष्ठा बढ़ी और सांस्कृतिक रूप से विविध क्षेत्रों को एकीकृत करने में मदद मिली।
- पवित्र स्थान में शाही प्रतिमा-विद्या
- हजारा राम जैसे मंदिरों में रामायण के दृश्यों को राजत्व के रूपकों के साथ चित्रित किया गया है, जो राजा को राम जैसे दिव्य अवतारों से सूक्ष्मता से जोड़ते हैं।
- देवताओं की छवियों वाले सिक्के और शिलालेखों ने शासन के लिए दैवीय अनुमोदन को मज़बूत किया।
संस्कृति के माध्यम से धार्मिक एकीकरण
- हिंदू मंदिरों और संस्थाओं का पुनरुद्धार
- व्यापक मंदिर-निर्माण अभियानों और दान-प्रदानों के माध्यम से उन प्रमुख धार्मिक केंद्रों को पुनर्जीवित किया गया, जो पूर्ववर्ती आक्रमणों के दौरान कमजोर हो गए थे।
- साम्राज्य ने मंदिरों का उपयोग प्रशासनिक केंद्रों के रूप में भी किया, जिससे आध्यात्मिक और राजनीतिक कार्यों का समन्वय स्थापित हुआ।
- भक्ति एवं संतों का प्रचार
- दरबार ने पुरंदरदास, अन्नामाचार्य और व्यासतीर्थ जैसे भक्ति संतों को संरक्षण दिया तथा हिंदू धर्म के एक व्यक्तिगत, भक्तिपूर्ण रूप को बढ़ावा दिया जो जाति और क्षेत्र से परे था।
- विद्यारण्य जैसे आध्यात्मिक सलाहकारों ने राज्य की नींव की ईश्वरशासित छवि को आकार देने में मदद की।
- मिशनरी और एकीकृत प्रयास
- अहोबिला दसारी को आदिवासी और वनवासी समुदायों को धार्मिक दायरे में एकीकृत करने तथा हिंदू धर्म की पहुँच बढ़ाने के लिये तैनात किया गया था।
- साम्राज्य भर में हनुमान मंदिरों की स्थापना एक साझा भक्ति नेटवर्क बनाने के प्रयासों को दर्शाती है।
- धार्मिक सहिष्णुता और समावेश:
- अपनी हिंदू स्थापना के बावजूद, विजयनगर शासकों ने रणनीतिक धार्मिक समायोजन को दर्शाते हुए, सेना और प्रशासन में मुसलमानों को अनुमति दी और यहां तक कि उन्हें रोज़गार भी दिया।
- बहु-सांप्रदायिक संरक्षण- शैव, वैष्णव और यहां तक कि जैन स्थलों - ने साम्राज्य की समावेशिता और राजनीतिक दूरदर्शिता को दर्शाया।
निष्कर्ष:
विजयनगर की कला और संस्कृति ने न केवल सौंदर्य की उत्कृष्ट कृतियों के रूप में बल्कि शासन कला और धार्मिक एकता के साधन के रूप में भी काम किया। आज, हम्पी के स्मारकों के समूह को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों के रूप में मान्यता प्राप्त है- जो विजयनगर शासन के तहत शक्ति, भक्ति और रचनात्मकता के एकीकरण के स्थायी प्रतीक के रूप में स्थापित हैं।