1. दूसरों की पहचान करना बुद्धिमत्ता है, स्वयं को पहचानना वास्तविक ज्ञान है।"
2. "तकनीकी प्रगति, नैतिक जिम्मेदारी का विकल्प नहीं, बल्कि उसकी अभिव्यक्ति का साधन है।"
उत्तर :
1. दूसरों की पहचान करना बुद्धिमत्ता है, स्वयं को पहचानना वास्तविक ज्ञान है।"
अपने निबंध को समृद्ध करने के लिये उद्धरण:
- लाओ त्ज़ू: "जो दूसरों को जानता है, वह बुद्धिमान है; परंतु जो स्वयं को जानता है, वह ज्ञान से प्रकाशित है।"
- सुकरात: "स्वयं को जानना ही ज्ञान का प्रारंभ है।"
- कार्ल युंग: "जो बाहर देखता है, वह स्वप्न देखता है; जो भीतर झाँकता है, वह जाग जाता है।"
सैद्धांतिक और दार्शनिक आयाम:
- बुद्धिमत्ता और प्रज्ञा (विवेक) में अंतर:
- बुद्धिमत्ता तर्कशक्ति, समस्या-समाधान और बाह्य निरीक्षण से जुड़ी होती है।
- जबकि प्रज्ञा आत्मचिंतन, आत्मबोध और नैतिक निर्णय से संबंधित होती है।
- व्यक्ति संसार के तथ्यों का ज्ञाता हो सकता है (बुद्धिमत्ता), परंतु यदि उसे स्वयं का बोध नहीं है, तो वह प्रज्ञा से वंचित रह जाता है।
- भारतीय दर्शन – आत्मबोध ही मोक्ष का मार्ग:
- वेदांत में 'आत्मज्ञान' को सर्वोच्च ज्ञान माना गया है।
- भगवद्गीता में कहा गया है कि अपने 'स्वधर्म' को जानना और निभाना, आत्मचेतना की गहराई से ही संभव है।
- मनोवैज्ञानिक और संज्ञानात्मक अंतर्दृष्टि:
- भावनात्मक बुद्धिमत्ता ( डैनियल गोलेमैन): डेनियल गोलमैन के अनुसार, 'भावनात्मक बुद्धिमत्ता' में आत्मबोध सबसे मूलभूत तत्त्व है, जो नेतृत्व और सामाजिक संबंधों की कुंजी है।
- युंगीय मनोविज्ञान में 'शैडो वर्क' (Shadow Work) अर्थात् अपनी अचेतन प्रवृत्तियों का बोध, आंतरिक संतुलन के लिये आवश्यक है।
- आधुनिक परिप्रेक्ष्य:
- आज के सोशल मीडिया युग में दूसरों को जानना पहले से कहीं अधिक आसान हो गया है, लेकिन स्वयं को जानना उतना ही कठिन और दुर्लभ होता जा रहा है।
- 'निगरानी पूँजीवाद' के इस दौर में हमारे बारे में बहुत-से आँकड़े मौजूद हो सकते हैं, परंतु यह आँकड़े जीवन के उद्देश्य या आंतरिक तृप्ति की कोई सच्ची समझ नहीं दे सकते।
नीति और ऐतिहासिक उदाहरण:
- गौतम बुद्ध :
- उनका आत्मबोध की ओर प्रयाण आत्मपरीक्षण से आरंभ हुआ, न कि किसी विजय-युद्ध या दूसरों के अध्ययन से। दुःख और इच्छा के विषय में उनके उपदेश गहन आत्म-चिन्तन और आत्मानुभूति का परिणाम थे।
- महात्मा गांधी:
- गांधीजी का सत्याग्रह का सिद्धांत आत्मानुशासन और आत्मज्ञान पर आधारित था।
- वे सत्य के प्रयोग करते थे और मानते थे कि समाज में वास्तविक परिवर्तन की शुरुआत व्यक्ति के भीतर के परिवर्तन से होती है।
- ए.पी.जे. अब्दुल कलाम:
- वैज्ञानिक बुद्धिमत्ता के लिये प्रसिद्ध डॉ. कलाम ने आजीवन इस बात पर बल दिया कि अर्थपूर्ण जीवन जीने के लिये अपने अंतर्मन की संभावनाओं और मूल्यों को जानना अत्यंत आवश्यक है।
समकालीन उदाहरण:
- मानसिक स्वास्थ्य के प्रति बढ़ती जागरूकता:
- आज के समय में आत्मचिंतन, सजगता (माइंडफुलनेस) और मनोचिकित्सा जैसी चीज़ों पर बढ़ता ज़ोर यह दर्शाता है कि केवल बाह्य सफलता की अपेक्षा आत्मज्ञान को अधिक महत्त्व दिया जा रहा है।
- नेतृत्व की सफलताएँ और विफलताएँ:
- राजनीति और कॉरपोरेट जगत में कई बार असफलताओं का कारण बुद्धिमत्ता की कमी नहीं होता, बल्कि अहंकार, सहानुभूति का अभाव एवं आत्मचेतना की कमी होता है।
- वहीं, जैसिंडा आर्डर्न जैसी राजनेता यह प्रमाणित करती हैं कि भावनात्मक बुद्धिमत्ता एवं आत्मचेतना से समावेशी और करुणामूलक शासन संभव है।
- युवा और कॅरियर विकल्प:
- आज के अत्यधिक प्रतिस्पर्द्धी माहौल में सफलता के नाम पर दूसरों की नकल करने से अधिक आवश्यक यह है कि युवा अपने रुचि-क्षेत्र, योग्यताओं और मूल्यों को पहचानें।
2. "तकनीकी प्रगति, नैतिक जिम्मेदारी का विकल्प नहीं, बल्कि उसकी अभिव्यक्ति का साधन है।"
अपने निबंध को समृद्ध करने के लिये उद्धरण:
- आल्बर्ट आइंस्टीन: "यह अत्यंत स्पष्ट होता जा रहा है कि हमारी तकनीक ने हमारी मानवता को पीछे छोड़ दिया है।"
- मार्टिन लूथर किंग जूनियर: "हमारी वैज्ञानिक शक्ति ने हमारी आध्यात्मिक शक्ति को पीछे छोड़ दिया है। हमारे पास 'मार्गदर्शित मिसाइलें' हैं, परंतु 'भ्रमित मनुष्य' भी।"
सैद्धांतिक और दार्शनिक आयाम:
- नैतिकता बनाम नवाचार:
- तकनीकी प्रगति स्वयं में मूल्य-निरपेक्ष होती है; इसका प्रभाव इस बात पर निर्भर करता है कि इसका नैतिक रूप से प्रयोग किया जा रहा है या नहीं।
- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), जैव-प्रौद्योगिकी और निगरानी जैसे उपकरण, नैतिक प्रयोग के अनुसार या तो मुक्त कर सकते हैं या दमनकारी बन सकते हैं।
- उपयोगितावाद और कर्त्तव्य-निष्ठा (Deontology):
- तकनीक का प्रयोग 'सर्वाधिक लोगों के सर्वाधिक हित' (उपयोगितावाद) के लिये होना चाहिये, परंतु साथ ही यह अधिकारों और कर्त्तव्यों (कांट के नैतिकता सिद्धांत) का सम्मान भी करे।
- यदि नवाचार में जवाबदेही का अभाव हो, तो यह मानव गरिमा और न्याय का उल्लंघन कर सकता है।
- धर्म की भूमिका (भारतीय नैतिकता):
- भारतीय चिन्तन में, कर्मों का मूल्यांकन केवल परिणामों से नहीं, अपितु उनके उद्देश्य (भाव) और कर्त्तव्य-बोध (धर्म) से होता है।
- इसलिये, तकनीकी शक्ति का उपयोग भी तभी न्यायसंगत माना जायेगा जब वह नैतिक ज़िम्मेदारी के अनुरूप हो।
नीति और ऐतिहासिक उदाहरण :
- परमाणु बम बनाम नाभिकीय ऊर्जा:
- एक ही वैज्ञानिक खोज़ ने हिरोशिमा का विनाश भी किया और सतत् ऊर्जा का मार्ग भी प्रशस्त किया। इसका उपयोग किस दिशा में होगा, यह नैतिक इरादे पर निर्भर करता है।
- आधार और डिजिटल गवर्नेंस:
- सार्वजनिक सेवाओं की आपूर्ति में आधार एक तकनीकी चमत्कार है, किंतु डेटा गोपनीयता और निगरानी पर उठते प्रश्न यह दर्शाते हैं कि नैतिक नियंत्रण एवं उत्तरदायित्व सुनिश्चित करना आवश्यक है।
- कोविड-19 प्रतिक्रिया:
- वैक्सीन विकास एक तकनीकी उपलब्धि थी, परंतु उनका समान वितरण (जैसे: COVAX बनाम वैक्सीन राष्ट्रवाद) वैश्विक शासन में नैतिक कमियों को उजागर करता है।
समकालीन उदाहरण:
- कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और एल्गोरिदमिक पूर्वाग्रह:
- AI स्वास्थ्य और कृषि जैसे क्षेत्रों में लाभकारी हो सकता है, लेकिन यदि नैतिक निगरानी न हो तो यह सामाजिक भेदभाव को बढ़ा सकता है (जैसे: चेहरे की पहचान में पक्षपात)।
- सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म:
- फेसबुक और ट्विटर जैसे तकनीकी मंच वैश्विक संवाद को आकार देते हैं, परंतु ये घृणा-प्रचार और गलत सूचना को भी बढ़ावा दे सकते हैं।
- इनकी दीर्घकालिक वैधता के लिये विषयवस्तु-संपादन और डेटा सुरक्षा में नैतिक उत्तरदायित्व अत्यंत आवश्यक है।
- हरित प्रौद्योगिकियाँ:
- सौर ऊर्जा, विद्युत-वाहन और कार्बन कैप्चर जैसी तकनीकें जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का समाधान प्रस्तुत करती हैं, ये भावी पीढ़ियों के प्रति नैतिक उत्तरदायित्व को दर्शाती हैं।
- अंतरिक्ष अन्वेषण:
- अमीरों द्वारा संचालित अंतरिक्ष अभियानों ने यह नैतिक प्रश्न खड़ा किया है कि क्या संसाधनों का प्रयोग अंतरिक्ष उपनिवेशीकरण के लिये हो या पृथ्वी की तत्काल समस्याओं के समाधान के लिये?