प्रश्न :
विक्रम एक तेजी से बढ़ते महानगरीय शहर में शहरी योजनाकार हैं। उनके विभाग को एक पुराने औद्योगिक क्षेत्र को आधुनिक आवासीय पड़ोस में पुनर्विकास करने की देखरेख का काम सौंपा गया है। इस परियोजना का उद्देश्य शहर के जीर्ण-शीर्ण हिस्से को पुनर्जीवित करना और सैकड़ों परिवारों को किफायती आवास प्रदान करना है। हालाँकि, जिस क्षेत्र में यह पुनर्विकास होना है, वहाँ एक जीवंत लेकिन निम्न-आय वाली समुदाय वर्षों से निवास कर रहा है। जबकि स्थानीय सरकार ने वादा किया है कि यह परियोजना आर्थिक अवसर और बेहतर जीवन स्तर लाएगी, विक्रम ने कुछ चिंताजनक तथ्य उजागर करने शुरू कर दिये हैं। वहाँ रहने वाले कई लोग दशकों से उस क्षेत्र में बसे हुए हैं और उनकी सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान उस जगह से जुड़ी हुई है। वे छोटे व्यवसाय भी चलाते हैं जो उनकी जीविका के लिये आवश्यक हैं।
पुनर्विकास योजना में उनके घरों और व्यवसायों को तोड़ने, उन्हें उस क्षेत्र से हटाकर शहर के एक अलग हिस्से में पुनर्वासित करने का प्रस्ताव है, जो उनके वर्तमान समुदाय और समर्थन प्रणाली से काफी दूर है। इसके अलावा, यह स्पष्ट नहीं है कि सरकार किस प्रकार विस्थापित परिवारों के लिये किफायती आवास सुनिश्चित करेगी या उन्हें उचित मुआवज़ा दिया जाएगा या नहीं। विक्रम यह भी जानते हैं कि इस परियोजना के पीछे बड़े आर्थिक हित छिपे हैं। कई प्रभावशाली रियल एस्टेट डेवलपर्स को इस पुनर्विकास से भारी लाभ होने की संभावना है, और उनके दबाव ने योजना प्रक्रिया को काफी प्रभावित किया है। विक्रम, जो शुरू में इस परियोजना की संभावनाओं को लेकर उत्साहित थे, अब गहरी उलझन में हैं।
एक ओर, यह परियोजना आर्थिक विकास ला सकती है, लेकिन दूसरी ओर, यह एक हाशिये पर खड़े समुदाय को भारी सामाजिक नुकसान पहुँचा सकती है। जैसे-जैसे परियोजना आगे बढ़ती है, विक्रम पर उनके वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा बिना और जाँच-पड़ताल के इसे मंज़ूरी देने का दबाव डाला जा रहा है, क्योंकि किसी भी देरी से फंडिंग खतरे में पड़ सकती है तथा शहर की समग्र विकास योजना प्रभावित हो सकती है।
विक्रम जानते हैं कि यदि वे आपत्ति उठाते हैं या योजना की समीक्षा की मांग करते हैं तो उनके करियर को नुकसान पहुँचाया जा सकता है। लेकिन साथ ही वे यह भी महसूस करते हैं कि सिर्फ आर्थिक विकास और रियल एस्टेट के लाभ के लिये एक संवेदनशील समुदाय को विस्थापित करना नैतिक रूप से गलत है। यह स्थिति विक्रम को एक गहरे नैतिक द्वंद्व में डाल देती है, जहाँ एक ओर एक शहरी योजनाकार के रूप में उनकी व्यावसायिक ज़िम्मेदारी है, वहीं दूसरी ओर एक नागरिक के रूप में उनकी सामाजिक और नैतिक ज़िम्मेदारी।
प्रश्न:
- इस स्थिति में प्रमुख नैतिक दुविधाएँ क्या हैं?
- विक्रम को इस स्थिति में हितों के टकराव को कैसे संभालना चाहिये, जिसमें शक्तिशाली डेवलपर्स परियोजना के लिये दबाव डाल रहे हैं तथा हाशिए पर पड़े समुदाय को विस्थापित कर रहे हैं?
- क्या आर्थिक विकास किसी समुदाय के विस्थापन को उचित ठहरा सकता है? ऐसी विकास परियोजनाओं की योजना बनाते समय नीति निर्माताओं को किन नैतिक सिद्धांतों का मार्गदर्शन करना चाहिये
27 Jun, 2025
सामान्य अध्ययन पेपर 4 केस स्टडीज़
उत्तर :
परिचय:
यह प्रकरण विक्रम नामक एक शहरी योजनाकार से संबद्ध है, जिसे एक पुनर्विकास परियोजना की देखरेख करते समय एक नैतिक द्वंद्व का सामना करना पड़ रहा है। यह परियोजना आर्थिक विकास का वादा तो करती है, परंतु इसके चलते एक लंबे समय से बसे, वंचित समुदाय के विस्थापन का जोखिम उत्पन्न होता है। स्वार्थपूर्ण हितों वाले पक्ष विक्रम पर यह दबाव बना रहे हैं कि वह इस परियोजना को बिना पर्याप्त सुरक्षा उपायों के ही स्वीकृति दे दें। ऐसे में विक्रम के समक्ष चुनौती है कि क्या वह व्यावसायिक अनुरूपता का पालन करे या नैतिक उत्तरदायित्व को प्राथमिकता दे।
- यह द्वंद्व जॉन रॉल्स के 'न्याय के सिद्धांत' से गहन रूप से संगत है, जिसके अनुसार वास्तविक विकास वही होता है जो समाज के सबसे वंचित वर्गों को भी न्यायसंगत लाभ पहुँचाये।
1. इस स्थिति में प्रमुख नैतिक दुविधाएँ क्या हैं?
- व्यावसायिक कर्त्तव्य बनाम नैतिक सत्यनिष्ठा: विक्रम से अपेक्षा की जाती है कि वह अपने वरिष्ठों के आदेशों का पालन करे और परियोजना को शीघ्रता से स्वीकृत करें। हालाँकि, वह नैतिक रूप से यह सुनिश्चित करने के लिये बाध्य है कि परियोजना सभी हितधारकों के लिये निष्पक्ष और न्यायसंगत हो।
- शहरी विकास बनाम सामाजिक न्याय: पुनर्विकास से बुनियादी अवसंरचना में वृद्धि और आर्थिक लाभ का वादा किया गया है। लेकिन इससे क्षेत्र में गहन सामाजिक और सांस्कृतिक जड़ें रखने वाले कमज़ोर समुदाय के विस्थापित होने का जोखिम है।
- व्यक्तिगत कॅरियर सुरक्षा बनाम नैतिक साहस: आपत्ति जताने से विक्रम के कॅरियर और भविष्य के अवसरों को नुकसान पहुँच सकता है। फिर भी चुप रहना उसके मूल्यों और प्रभावित नागरिकों के अधिकारों से समझौता है।
- दक्षता और समयसीमा बनाम व्यापक जाँच: योजना को बिना विलंब स्वीकृति देना नगर के विकास कार्यक्रम की प्रगति को बनाए रखेगा। हालाँकि, यदि मुआवज़ा और पुनर्वास जैसी महत्त्वपूर्ण कमियों को नज़रअंदाज़ किया गया तो दीर्घकालिक हानि हो सकती है।
- रियल एस्टेट हित बनाम जन कल्याण: शक्तिशाली डेवलपर्स को इस परियोजना से काफी लाभ होगा। विक्रम को इन हितों और वहाँ पहले से रह रहे लोगों के अधिकारों व कल्याण के बीच संतुलन सुनिश्चित करना होगा।
- सरकारी वादे बनाम वास्तविक स्थिति: सरकारी दावे सस्ती आवासीय सुविधा और सामाजिक उन्नयन की बात करते हैं, परंतु विक्रम के निष्कर्षों से पता चलता है कि विस्थापित समुदाय के लिये इन वादों के पीछे कोई स्पष्ट या बाध्यकारी गारंटी नहीं है।
2. विक्रम को इस स्थिति में हितों के टकराव को कैसे संभालना चाहिये, जिसमें शक्तिशाली डेवलपर्स परियोजना के लिये दबाव डाल रहे हैं तथा हाशिए पर पड़े समुदाय को विस्थापित कर रहे हैं?
- विस्तृत दस्तावेज़ीकरण और पारदर्शिता की मांग करना: विक्रम को पुनर्वास, मुआवज़े और किफायती आवास प्रावधानों पर औपचारिक रूप से लिखित विवरण का अनुरोध करना चाहिये।
- इससे बिना किसी टकराव के साक्ष्य-आधारित मामला बनता है।
- हितधारक परामर्श प्रक्रिया आरंभ करना: वह स्थानीय समुदाय, गैर सरकारी संगठनों और योजना प्राधिकरणों के साथ सार्वजनिक परामर्श या हितधारक सुनवाई का प्रस्ताव कर सकते हैं।
- इससे योजना को लोकतांत्रिक वैधता मिलेगी और अनदेखी सामाजिक चिंताओं पर प्रकाश डाला जा सकेगा।
- सामाजिक-आर्थिक प्रभाव आकलन की संस्तुति: त्वरित आकलन का सुझाव देने से आजीविका और संस्कृति पर पड़ने वाले प्रभाव के आकलन में सहायता मिल सकती है। यह पेशेवर कदम व्यावहारिक है और उठाई गई किसी भी चिंता को बल देता है।
- संशोधित, समावेशी विकास योजना का प्रस्ताव: विक्रम वैकल्पिक उपाय सुझा सकते हैं, जैसे कि यथास्थान पुनर्विकास, चरणबद्ध स्थानांतरण या EWS (आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग) आवास को शामिल करना, जो विकास और न्याय के बीच संतुलन स्थापित कर सके।
- आंतरिक रिपोर्टिंग तंत्र का उपयोग करना: यदि विक्रम पर अनुचित ढंग से दबाव डाला जाता है, तो उन्हें विभागीय औपचारिक संप्रेषण माध्यमों के माध्यम से अपनी शंकाओं को दर्ज कराना चाहिये। इससे एक ओर तो वह प्रतिशोध से सुरक्षित रहेंगे, वहीं दूसरी ओर नैतिक सावधानी का दस्तावेज़ी प्रमाण भी रहेगा।
- नागरिक समाज और विधिक उपायों से सावधानीपूर्वक संपर्क (यदि आवश्यक हो): यदि पुनर्वास-नियत सुरक्षा उपायों के बिना विस्थापन आगे बढ़ता है, तो विक्रम निगरानी संस्थाओं, नागरिक संगठनों या विधिक सहायता समूहों को गोपनीय रूप से सूचित कर सकते हैं ताकि संभावित अधिकार हनन के मामलों की ओर ध्यान आकर्षित किया जा सके।
- अपनी स्थिति का दस्तावेज़ीकरण करना: अपनी पेशेवर सत्यनिष्ठा की रक्षा के लिये विक्रम को चाहिये कि वह अपने सुझावों और आपत्तियों से संबंधित आंतरिक ज्ञापन या बैठक विवरण को सुरक्षित रखें। इससे भविष्य में उत्तरदायित्व तय करने में सहायता मिलेगी।
विक्रम को विरोधी होने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि उन्हें एक जिम्मेदार योजनाकार के रूप में काम करना चाहिये जो विकास को नैतिक शासन के साथ एकीकृत करता है। प्रणाली के भीतर रहकर, विधिसम्मत प्रक्रिया का पालन करते हुए और निष्पक्षता के लिये सामूहिक दबाव बनाते हुए वह जनहित एवं व्यक्तिगत नैतिकता, दोनों की रक्षा कर सकते हैं।
3. क्या आर्थिक विकास किसी समुदाय के विस्थापन को उचित ठहरा सकता है? ऐसी विकास परियोजनाओं की योजना बनाते समय नीति निर्माताओं को किन नैतिक सिद्धांतों का मार्गदर्शन करना चाहिये?
हालाँकि राष्ट्रीय प्रगति के लिये आर्थिक विकास अनिवार्य है, किंतु यह समुदायों के विस्थापन को बिना शर्त उचित नहीं ठहरा सकता, विशेषतः जब प्रभावित जनसंख्या संवेदनशील, ऐतिहासिक रूप से उपेक्षित अथवा सार्थक विकल्पों से वंचित हो। विकास की प्रक्रिया समावेशी, न्यायसंगत और नैतिक रूप से आधारित होनी चाहिये।
विकास के नाम पर विस्थापन को अंधाधुंध उचित क्यों नहीं ठहराया जा सकता:
- मानवाधिकार और गरिमा: हर व्यक्ति को आश्रय, आजीविका और सामाजिक पहचान का अधिकार है। इन अधिकारों की कीमत पर आर्थिक विकास नैतिक रूप से समस्याग्रस्त हो जाता है।
- सामाजिक विघटन और सांस्कृतिक क्षति: समुदाय केवल भौतिक बस्तियाँ नहीं हैं; वे सामाजिक पूंजी, सांस्कृतिक विरासत और अनौपचारिक अर्थव्यवस्थाओं का प्रतीक हैं, जो प्रायः अपूरणीय होती हैं।
- विषमता और अन्याय: विकास का लाभ प्रायः बड़े उद्योगों और संपन्न वर्गों को मिलता है, जबकि विस्थापितों को दीर्घकालिक कष्ट एवं असुरक्षा का सामना करना पड़ता है। यह स्थिति विकासात्मक अन्याय को जन्म देती है।
- ऐतिहासिक उदाहरण: पिछले अनेक अनुभव (जैसे: नर्मदा जैसी बड़ी बाँध परियोजनाएँ) दर्शाते हैं कि यदि विस्थापन का प्रबंध सही ढंग से न हो तो वह निर्धनता, सामाजिक अपवर्जन और अशांति को बढ़ावा देता है।
नीतिनिर्माताओं को जिन नैतिक सिद्धांतों का पालन करना चाहिये:
- सुरक्षा सहित उपयोगितावाद: समग्र रूप से अधिकतम कल्याण का प्रयास हो, पर यह भी सुनिश्चित हो कि किसी एक वर्ग पर अत्यधिक बोझ न पड़े।
- न्याय और समता (रॉल्स का नैतिक दृष्टिकोण): विस्थापित समुदायों को ऐसा मुआवज़ा मिलना चाहिये जिससे उनकी स्थिति सुधरे, न कि और खराब हो। विकास का लाभ सबसे पिछड़े वर्गों को मिलना चाहिये।
- सूचित सहमति का सिद्धांत:प्रभावित समुदायों से खुले संवाद के माध्यम से उनकी 'स्वतंत्र, पूर्व-प्राप्त और सूचित सहमति' प्राप्त करना अनिवार्य है।
- पुनर्वास एक अधिकार है, दान नहीं: पुनर्वास केवल औपचारिकता न होकर एक अधिकार होना चाहिये, जो प्रभावितों को समान या बेहतर जीवन-स्तर उपलब्ध कराये।
- संधारणीयता और समावेशिता: विकास को आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय चिंताओं के बीच संतुलन बनाना होगा तथा इसे ‘कोई वंचित न रह जाए’ के सतत् विकास लक्ष्य के सिद्धांतों के साथ संरेखित करना होगा।
- जवाबदेही और पारदर्शिता: नीतिगत निर्णयों में पारदर्शिता हो, स्वतंत्र मूल्यांकन हों और शिकायत निवारण की स्पष्ट व्यवस्था हो ताकि विस्थापितों के अधिकार सुरक्षित रहें।
निष्कर्ष:
"विकास का मतलब कारखानों, बाँधों और सड़कों से नहीं है। विकास का मतलब लोगों से है। इसका लक्ष्य लोगों की भलाई में सुधार करना है।"
विक्रम को विकास और सामाजिक न्याय के बीच इस नाजुक संतुलन को बनाये रखने की आवश्यकता है, जिसमें पारदर्शिता, समावेशी योजना एवं विस्थापित समुदायों की गरिमा व अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित हो। आर्थिक विकास आवश्यक है, पर यह नैतिक उत्तरदायित्व और मानवीय पीड़ा की अनदेखी करते हुए संभव नहीं हो सकता।