• प्रश्न :

    प्रश्न: राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन के भारत के विनिर्माण क्षेत्र पर संभावित प्रभाव का समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। यह पहल इस क्षेत्र की वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को कैसे बढ़ा सकती है? (250 शब्द)

    25 Jun, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन के परिचय के साथ अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन के संभावित प्रभाव बताइए।
    • इससे जुड़ी प्रमुख चुनौतियों पर प्रकाश डालिए।
    • सुझाव दीजिये कि राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन के साथ भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता कैसे बढ़ाई जा सकती है।
    • प्रासंगिक सतत् विकास लक्ष्यों से जोड़ते हुए निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    केंद्रीय बजट 2025-26 में घोषित राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन (NMM) का उद्देश्य व्यापार को आसान बनाकर, कुशल कार्यबल विकसित करके, एमएसएमई को समर्थन देकर तथा स्वच्छ तकनीक विनिर्माण को प्रोत्साहित करके भारत के विनिर्माण क्षेत्र में बदलाव लाना है।

    मुख्य भाग:

    राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन का संभावित प्रभाव:

    • नीतिगत समर्थन के माध्यम से वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता में वृद्धि: व्यापार विनियमन को आसान बनाने और नीतिगत सहायता प्रदान करने पर मिशन का ध्यान भारत के विनिर्माण क्षेत्र में निवेश को आकर्षित कर सकता है।
      • उदाहरण के लिये उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन (PIL) योजना ने पहले ही इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण निवेश आकर्षित किया है, फॉक्सकॉन और विस्ट्रॉन जैसी कंपनियाँ भारत में अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ा रही हैं।
    • उद्योग 4.0 के लिये कुशल कार्यबल का निर्माण: भविष्य के लिये तैयार कार्यबल विकसित करने पर मिशन का ज़ोर उच्च तकनीक विनिर्माण के लिये आधार प्रदान करेगा। भारत के तकनीकी क्षेत्र, विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक्स में, इसी तरह की अपस्किलिंग पहलों के कारण वृद्धि देखी गई है।
      • उदाहरण के लिये, भारत के सेमीकंडक्टर पारिस्थितिकी तंत्र को सेमीकॉन इंडिया कार्यक्रम जैसी पहलों के माध्यम से महत्त्वपूर्ण बढ़ावा मिल रहा है, जिसने चिप विनिर्माण सुविधाओं के निर्माण के लिये 76,000 करोड़ रुपए ($ 9 बिलियन) निर्धारित किये हैं।
    • MSME और नवाचार के लिये समर्थन: MSME पर मिशन का विशेष ध्यान विनिर्माण में उनके योगदान को बढ़ाने में मदद करेगा।
      • MSME ऋण गारंटी को 5 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 10 करोड़ रुपए करने से इन उद्यमों को परिचालन बढ़ाने और अंतर्राष्ट्रीय मानकों को पूरा करने के लिये आवश्यक पूंजी तक पहुँच में मदद मिलेगी।
      • इसके अतिरिक्त, वस्त्र उद्योग के लिये भारत की PIL योजना ने पहले ही इस क्षेत्र में विकास को बढ़ावा दिया है, जो लक्षित नीतिगत उपायों के सकारात्मक प्रभाव को दर्शाता है।

    हालाँकि, इसमें अपार संभावनाएँ हैं, लेकिन वैश्विक मंच पर भारत की विनिर्माण क्षमता को प्रभावी ढंग से बढ़ाने के लिये कई चुनौतियों का समाधान करना आवश्यक है, जैसे:

    • लॉजिस्टिक्स और बुनियादी ढाँचे की बाधाएँ: प्रगति के बावजूद, भारत की लॉजिस्टिक्स लागत वैश्विक मानकों की तुलना में काफी अधिक है।
      • आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 के अनुसार, भारत में लॉजिस्टिक्स लागत सकल घरेलू उत्पाद का 14-18% है, जबकि अमेरिका और जर्मनी जैसे विकसित देशों में यह लगभग 8% है।
      • बंदरगाहों पर देरी, जैसा कि मुंबई बंदरगाह में देखा गया, समय पर डिलीवरी को प्रभावित करती है, जिससे भारत की वैश्विक मांग को प्रतिस्पर्द्धात्मक रूप से पूरा करने की क्षमता में बाधा उत्पन्न होती है।
    • कौशल अंतराल और श्रम चुनौतियाँ: भारत का विनिर्माण क्षेत्र महत्त्वपूर्ण कौशल असंतुलन का सामना कर रहा है।
      • राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC) के अनुसार, AI-संचालित उत्पादन और सेमीकंडक्टर निर्माण जैसे विनिर्माण क्षेत्रों में 29 मिलियन कुशल श्रमिकों की कमी है।
      • PMKVY (प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना) जैसे कार्यक्रमों का उद्देश्य इस समस्या का समाधान करना है, लेकिन अंतर अभी भी बहुत बड़ा है।
    • आयात पर निर्भरता और भू-राजनीतिक जोखिम: आयात पर भारत की भारी निर्भरता, विशेष रूप से चीन से, इसकी आपूर्ति शृंखला की समुत्थानशीलता को कमज़ोर करती है।
      • उदाहरण के लिये भारत अपनी 70% सक्रिय औषधि सामग्री (PIL) का आयात चीन से करता है।
      • वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में व्यवधान, जैसा कि अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध के दौरान देखा गया, ने भारत की कमज़ोरी को उजागर किया है।

    राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन के साथ वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाना:

    • उच्च तकनीक विनिर्माण पर ध्यान केंद्रित: NMM अर्द्धचालक, EV और नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों जैसे उच्च तकनीक उद्योगों में विकास को बढ़ावा देकर भारत की वैश्विक स्थिति को बढ़ा सकता है।
      • EV क्षेत्र में, भारत पहले से ही FAME II योजना जैसी पहलों से लाभान्वित हो रहा है, जिसके कारण टेस्ला और BYD जैसी कंपनियों से महत्त्वपूर्ण निवेश प्राप्त हुआ है।
    • वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में एकीकरण: घरेलू उत्पादन को मज़बूत करके, विशेष रूप से सौर विनिर्माण और हरित हाइड्रोजन जैसे क्षेत्रों में, भारत आयात पर अपनी निर्भरता कम कर सकता है तथा अपनी निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ा सकता है।
      • उदाहरण के लिये सौर विनिर्माण के लिये PIL योजना ने पहले ही भारतीय सौर निर्माता संघ (ISMA) से निवेश आकर्षित किया है, जिससे स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा मिला है और चीनी सौर पैनलों पर निर्भरता कम हुई है।
    • अनुसंधान एवं विकास के माध्यम से नवाचार को प्रोत्साहित करना: NMM का नवाचार और अनुसंधान एवं विकास पर ध्यान केंद्रित करने से भारत की प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ सकती है।
      • विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (WIPO) द्वारा वर्ष 2023 में किये गए एक अध्ययन से पता चला है कि स्वच्छ प्रौद्योगिकी और इलेक्ट्रिक वाहनों में भारत की पेटेंट फाइलिंग में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जो अनुसंधान एवं विकास में वृद्धि का संकेत है।

    निष्कर्ष:

    इस पहल को SDG-9: उद्योग, नवाचार और बुनियादी ढाँचे के साथ जोड़कर सतत् विकास का मार्ग प्रशस्त किया जा सकता है। जैसा कि भारतीय प्रधानमंत्री ने सटीक रूप से कहा है, “मेक इन इंडिया, मेक फॉर द वर्ल्ड”, यह मिशन भारत को विनिर्माण में वैश्विक नेता के रूप में स्थापित करने की दिशा में एक कदम है, जो आर्थिक विकास और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा दोनों को बढ़ावा देगा।