• प्रश्न :

    प्रश्न. G7 के साथ भारत की भागीदारी किस तरह से उसकी वैश्विक कूटनीतिक आकांक्षाओं और रणनीतिक स्वायत्तता में योगदान करती है? वैश्विक दक्षिण में अपनी नेतृत्वकारी भूमिका को बनाए रखते हुए G7 की प्राथमिकताओं के साथ तालमेल बिठाने में भारत के समक्ष आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    24 Jun, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंध

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • G7 और ग्लोबल साउथ के साथ भारत के संपर्क के बारे में जानकारी देते हुये अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये
    • G7 के साथ भारत के जुड़ाव पर गहराई से विचार कीजिये: कूटनीतिक आकांक्षाओं में योगदान
    • G7 प्राथमिकताओं के साथ तालमेल बिठाने में चुनौतियों को उजागर करें और उपाय सुझाएँ
    • किसी प्रासंगिक उद्धरण के साथ निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    यद्यपि भारत G7 का सदस्य नहीं है, फिर भी कनाडा में आयोजित होने वाले G7 शिखर सम्मेलन 2025 जैसे शिखर सम्मेलन के आउटरीच सत्रों में इसकी लगातार उपस्थिति इसके सामरिक महत्त्व को रेखांकित करती है।

    • साथ ही, भारत का वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन विकासशील देशों के हितों का प्रतिनिधित्व करने की उसकी प्रतिबद्धता को और स्पष्ट करता है।
    • यह भागीदारी भारत की वैश्विक कूटनीतिक आकांक्षाओं को आगे बढ़ाने और इसकी सामरिक स्वायत्तता की सुरक्षा के बीच एक संतुलन स्थापित करती है।

    मुख्य भाग:

    G7 के साथ भारत की सहभागिता: कूटनीतिक आकांक्षाओं में योगदान

    • वैश्विक कूटनीतिक दृश्यता: G7 में भारत की भागीदारी, विश्व नेताओं के साथ सीधे संपर्क स्थापित करते हुए, वैश्विक दक्षिण की एक महत्त्वपूर्ण आवाज के रूप में स्वयं को प्रस्तुत करने के लिये एक स्थान प्रदान करती है।
      • इस भागीदारी के माध्यम से भारत एक आर्थिक और सामरिक शक्ति के रूप में अपनी उन्नति प्रदर्शित करता है।
        • हालिया शिखर सम्मेलन के दौरान, भारतीय प्रधानमंत्री मोदी ने वैश्विक दक्षिण की चिंताओं, जैसे ऊर्जा सुरक्षा और एकतरफा प्रतिबंधों के आर्थिक परिणामों को संबोधित करने की आवश्यकता पर बल दिया।
    • रणनीतिक साझेदारियाँ: एक उभरती वैश्विक शक्ति के रूप में, G7 के साथ भारत के संबंध वैश्विक शासन में इसकी भूमिका को मजबूत करने में मदद करते हैं।
      • वैश्विक सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन और आर्थिक न्याय पर भारत की आवाज बहुपक्षीय वार्ताओं में महत्त्वपूर्ण होती है।
      • यह महत्त्वपूर्ण खनिजों, ऊर्जा संक्रमण और साइबर सुरक्षा जैसे मामलों पर G7 देशों के साथ भारत के सहयोग में परिलक्षित होता है।
    • वैश्विक व्यापार और आर्थिक नीति को आकार देना: भारत की आर्थिक वृद्धि G7 देशों से कहीं अधिक है, जो वैश्विक आर्थिक पारिस्थितिकी तंत्र में प्रमुख भूमिका निभाता है।
    • विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था के रूप में, G7 शिखर सम्मेलन में भारत की भागीदारी, अधिक न्यायसंगत वैश्विक व्यापार प्रथाओं को आगे बढ़ाने, विश्व व्यापार संगठन जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं में सुधार की मांग करने तथा वैश्विक दक्षिण को लाभ पहुँचाने वाली नीतियों का समर्थन करने के लिये एक मंच के रूप में कार्य करती है।
    • चीन के प्रभाव का मुकाबला करना: G7 में भारत की भागीदारी से उसकी चीन विरोधी रणनीति को भी मजबूती मिलेगी।
    • चूँकि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की आक्रामकता और उसके बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के कारण तनाव बढ़ रहा है, इसलिये भारत स्वयं को चीन की ऋण-जाल कूटनीति के लिये एक विश्वसनीय विकल्प के रूप में स्थापित कर रहा है, विशेष रूप से वैश्विक दक्षिण में।
    • G7 देशों के साथ जुड़ने से भारत को महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों और सेक्टरों में चीन के प्रभाव को संतुलित करने का अवसर मिलता है।

    G7 प्राथमिकताओं के साथ तालमेल स्थापित करने के समक्ष चुनौतियाँ:

    हालाँकि G7 में भारत की भागीदारी अनेक महत्त्वपूर्ण लाभ प्रदान करती है, लेकिन यह कुछ चुनौतियाँ भी लेकर आती है, विशेष रूप से वैश्विक दक्षिण में नेतृत्व की भूमिका तथा पश्चिमी देशों की प्राथमिकताओं के बीच संतुलन बनाए रखने में।

    • जलवायु परिवर्तन और विकासात्मक आवश्यकताएँ: जबकि G7 तीव्र डीकार्बोनाइज़ेशन पर जोर दे रहा है, भारत को अपनी विकासात्मक आवश्यकताओं को वैश्विक जलवायु प्रतिबद्धताओं के साथ सामंजस्य स्थापित करना होगा।
    • चूँकि भारत और उसकी आबादी का एक बड़ा हिस्सा अभी भी जीविका के लिये जीवाश्म ईंधन पर निर्भर है, इसलिये भारत के समक्ष जलवायु कार्रवाई और आर्थिक विकास के बीच संतुलन स्थापित करने से संबंधित चुनौती है।
    • सामरिक स्वायत्तता बनाए रखना: भारत की सामरिक स्वायत्तता इसकी विदेश नीति के प्रमुख स्तंभों में से एक है।
      • भारत की स्वतंत्र विदेश नीति और रूस-यूक्रेन संघर्ष पर इसकी सूक्ष्म स्थिति कभी-कभी इसे G7 प्राथमिकताओं के साथ असंगत बना देती है, जहाँ पश्चिमी देश रूस के कार्यों की कड़ी निंदा करते हैं।
    • घरेलू बाधाएँ और वैश्विक अपेक्षाएँ: भारत को वैश्विक संवादों में भाग लेते हुए आर्थिक असमानता, बुनियादी ढाँचे की कमी और गरीबी उन्मूलन जैसी घरेलू चुनौतियों का भी समाधान करना होगा।
      • वैश्विक शासन में वैश्विक दक्षिण के अधिक प्रतिनिधित्व के लिये भारत के प्रयास को लगातार घरेलू सुधारों द्वारा समर्थित किया जाना चाहिये (विशेष रूप से शासन, जलवायु परिवर्तन और व्यापार के क्षेत्रों में), जो अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं के साथ संरेखित हों।
    • द्विपक्षीय तनाव: G7 में भारत की भागीदारी कुछ G7 देशों, विशेष रूप से कनाडा के साथ तनावपूर्ण द्विपक्षीय संबंधों के संदर्भ में भी होती है, जो खालिस्तानी अलगाववादी आंदोलन जैसे मुद्दों के कारण है।
    • यद्यपि भारत G7 के साथ संपर्क बनाए हुए है, लेकिन इस तरह के तनाव उसकी कूटनीतिक स्थिति को जटिल बनाते हैं।

    भारत की सामरिक स्वायत्तता और G7 में उसकी बढ़ती भागीदारी के बीच संतुलन स्थापित करने के लिये निम्नलिखित कूटनीतिक उपायों पर विचार किया जा सकता है:

    • बहुपक्षीय कूटनीति को बढ़ावा देना: G7 के अलावा, भारत को अपने कूटनीतिक प्रभाव को मज़बूत करने के लिये संयुक्त राष्ट्र, ब्रिक्स और शंघाई सहयोग संगठन (SCO) जैसे बहुपक्षीय मंचों में सक्रिय रूप से शामिल होना चाहिये, ताकि जलवायु परिवर्तन, व्यापार और सुरक्षा जैसे महत्त्वपूर्ण वैश्विक मुद्दों पर उसकी आवाज सुनी जा सके, साथ ही वैश्विक दक्षिण में अपने नेतृत्व को मज़बूत किया जा सके।
    • रणनीतिक द्विपक्षीय संबंध: भारत को G7 देशों के साथ द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये, साथ ही रचनात्मक वार्ता और कूटनीतिक माध्यमों से प्रमुख मतभेदों को दूर करना चाहिये।
      • इससे कनाडा के साथ तनाव को कम करने में मदद मिल सकती है, साथ ही विदेश नीति के निर्णयों में भारत की स्वायत्तता भी बनी रहेगी।
    • जलवायु कूटनीति और सतत् विकास: भारत को G7 के भीतर जलवायु कार्रवाई के लिये अधिक समावेशी और न्यायसंगत दृष्टिकोण का समर्थन करनी चाहिये तथा वैश्विक डीकार्बोनाइजेशन लक्ष्यों को वैश्विक दक्षिण की विकासात्मक आवश्यकताओं के साथ संरेखित करने के महत्त्व पर बल देना चाहिये।
      • वैश्विक चर्चाओं में “जलवायु न्याय” की अवधारणा को बढ़ावा देकर इसे हासिल किया जा सकता है।
    • अनुकूल विदेश नीति: भारत को एक सूक्ष्म विदेश नीति बनाना चाहिये जो उसे पश्चिमी और गैर-पश्चिमी दोनों देशों के साथ जुड़ने के अनुकूल हो तथा व्यापार, सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता जैसे क्षेत्रों में अपने हितों को संतुलित कर सके।
      • कनाडा के प्रधानमंत्री कार्नी ने कहा कि भारत वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका और विश्व के सबसे अधिक आबादी वाले लोकतंत्र के रूप में अपनी स्थिति का लाभ उठा सकता है।
    • दक्षिण-दक्षिण सहयोग को मजबूत करना: भारत को मज़बूत दक्षिण-दक्षिण सहयोग और साझेदारी को बढ़ावा देकर विकासशील देशों के हितों की रक्षा करना जारी रखना चाहिये।
    • इन संबंधों को सुदृढ़ करके, भारत एक सामूहिक आवाज का निर्माण कर सकता है जो वैश्विक दक्षिण की आकांक्षाओं के अनुरूप हो और इस प्रकार यह सुनिश्चित कर सके कि G7 के साथ उसकी भागीदारी इन क्षेत्रों में उसकी नेतृत्वकारी भूमिका को कमज़ोर न करे।

    निष्कर्ष

    सा कि विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने उचित रूप से कहा है कि "आज के समय में ‘इंडिया वे’ (The India Way) का मतलब केवल तटस्थ रहने वाला नहीं, बल्कि दिशा तय करने वाला और आकार देने वाला होना चाहिये।" यह बयान G7 के साथ भारत की भागीदारी के दृष्टिकोण (व्यावहारिक, सिद्धांत-आधारित और वैश्विक कूटनीति के भविष्य को आकार देने की दिशा में अग्रसर) को संक्षेप में प्रस्तुत करता है। G7 के आउटरीच सत्रों में भाग लेकर, भारत न केवल अपनी राजनयिक स्थिति को सुदृढ़ करता है, बल्कि वैश्विक दक्षिण की आवाज़ को भी प्रभावी रूप से प्रस्तुत करता है।