प्रश्न 1. हम सूचना के युग में जी रहे हैं, लेकिन बुद्धिमत्ता एक दुर्लभ संसाधन बन गई है।
प्रश्न 2. सच्ची स्वतंत्रता वही है, जहाँ हम अपनी सीमाएँ स्वयं तय करने के लिये स्वतंत्र हों।
उत्तर :
1. हम सूचना के युग में जी रहे हैं, लेकिन ज्ञान एक दुर्लभ संसाधन बन गई है।
अपने निबंध को समृद्ध करने के लिये उद्धरण:
- अल्बर्ट आइंस्टीन: “सूचना ज्ञान नहीं है।”
- सुकरात: “एकमात्र सच्ची बुद्धिमत्ता यह जानना है कि तुम कुछ नहीं जानते।”
- डैनियल जे. बूर्स्टिन: “ज्ञान का सबसे बड़ा शत्रु अज्ञानता नहीं, बल्कि ज्ञान का भ्रम है।”
सैद्धांतिक और दार्शनिक आयाम:
- सूचना बनाम ज्ञान: 'सूचना' कच्चे आँकड़ों या तथ्यों को दर्शाती है, जबकि 'ज्ञान' वह क्षमता है जिसके माध्यम से किसी व्यक्ति द्वारा ज्ञान का विवेकपूर्ण और नैतिक रूप से प्रयोग किया जाता है।
- ज्ञान प्रायः अनुभव, नैतिक अंतर्दृष्टि और दीर्घकालिक परिणामों के आधार पर निर्णय लेने में सहायता करता है, जबकि सूचना सतही या खंडित हो सकती है।
- प्रबोधन का दर्शन: प्राचीन भारतीय चिंतन विशेषतः वेदांत परंपरा में 'ज्ञान' (Jnana) को सर्वोच्च ज्ञान के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है, जो मात्र सूचना से कहीं आगे की वस्तु है।
- कच्चे तथ्यों के विपरीत, ज्ञान जीवन के गहरे सत्य को समझने की प्रक्रिया है।
- संसंज्ञानात्मक और भावनात्मक बुद्धिमत्ता: मनोविज्ञान यह सुझाव देता है कि ज्ञान केवल तथ्यों को जानने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें भावनात्मक नियंत्रण, सहानुभूति तथा जीवन की जटिलताओं से निपटने की क्षमता भी सम्मिलित है।
सूचना का अत्यधिक भार वास्तव में निर्णय-निर्माण और विवेक को बाधित कर सकता है।
नीतिगत तथा ऐतिहासिक उदाहरणः
- प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपराएँ: उपनिषदों और 'अर्थशास्त्र' की शिक्षाएँ सूचना की अपेक्षा ज्ञान या बुद्धिमत्ता को अधिक महत्त्व देती हैं।
- चाणक्य का 'अर्थशास्त्र' केवल आर्थिक नीतियों का ग्रंथ नहीं है बल्कि शासन के लिये रणनीतिक बुद्धिमत्ता का भी दिग्दर्शक है।
- आध्यात्मिकता की भूमिका: महात्मा गांधी जैसे नेताओं ने आध्यात्मिक बुद्धिमत्ता को सूचना के साथ जोड़ा।
- उनका अहिंसात्मक प्रतिरोध केवल ब्रिटिश साम्राज्यवाद से जुड़े तथ्यों पर आधारित नहीं था, बल्कि यह मानव स्वभाव, नैतिकता और सामूहिक शक्ति की गहन समझ पर आधारित था।
- स्वतंत्रोत्तर विकास मॉडल: हालाँकि भारत ने तकनीकी क्षेत्र में अत्यधिक प्रगति की है (जो सूचना-आधारित है), फिर भी नीति-निर्माण में समग्र बुद्धिमत्ता के अभाव के कारण गरीबी, असमानता और निरक्षरता जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
- डिजिटलीकरण की तीव्र गति को सामाजिक-आर्थिक विषमताओं की गहन समझ और जागरूकता के साथ जोड़ा जाना आवश्यक है।
समकालीन उदाहरण:
- सोशल मीडिया और सूचना का अतिरेक: व्हाट्सएप और फेसबुक जैसे मंचों पर अत्यधिक मात्रा में जानकारी प्रसारित होती है (जैसे: कोविड-19 महामारी के दौरान), किंतु उसमें प्रायः गहराई या संदर्भ की कमी होती है जिससे भ्रामक सूचनाएँ फैलती हैं।
- वास्तविक प्रज्ञा सत्य को शोर-शराबे से अलग पहचानने और उस जानकारी का रचनात्मक उद्देश्य के लिये उपयोग करने में निहित है।
- न्यायिक प्रज्ञा: भारतीय न्यायपालिका ने 'निजता का अधिकार' (वर्ष 2017) जैसे ऐतिहासिक निर्णयों के माध्यम से संविधान की व्याख्या में प्रायः प्रज्ञा का परिचय दिया है, जो व्यक्ति के अधिकारों और समाज की आवश्यकताओं के मध्य संतुलन स्थापित करता है, यद्यपि सूचना एवं कानूनी उदाहरणों की मात्रा निरंतर बढ़ रही है।
2. सच्ची स्वतंत्रता वही है, जहाँ हम अपनी सीमाएँ स्वयं तय करने के लिये स्वतंत्र हों।
अपने निबंध को समृद्ध करने के लिए उद्धरण:
- जीन-पॉल सार्त्र: "स्वतंत्रता वह है जो आप उस चीज़ के साथ करते हैं जो आपके साथ हुई है।"
- मैथ्यू केली: “स्वतंत्रता यह नहीं कि आप जो चाहें वह कर सकें, बल्कि यह वह चरित्रबल है जिससे आप जो अच्छा, सत्य, श्रेष्ठ और उचित हो वही करें।”
सैद्धांतिक और दार्शनिक आयाम:
- स्वतंत्रता बनाम जिम्मेदारी: सच्ची स्वतंत्रता असीमित विकल्पों के बारे में नहीं है; यह उन बाधाओं को चुनने के बारे में है जो व्यक्ति के कार्यों को जिम्मेदारी से निर्देशित करती हैं। सच्ची स्वतंत्रता अनंत विकल्पों की छूट नहीं है, बल्कि वह उन सीमाओं का चयन है जो व्यक्ति के आचरण को उत्तरदायित्वपूर्ण बनाती हैं।
- भारतीय दर्शन, विशेषतः भगवद्गीता में, स्वतंत्रता की संकल्पना अपने कर्त्तव्य (धर्म) को नैतिक एवं सामाजिक उत्तरदायित्व के भाव से चुनने से जुड़ी है।
- आत्म-अनुशासन और स्वतंत्रता: योग दर्शन आत्म-नियंत्रण एवं आंतरिक स्वतंत्रता पर ज़ोर देता है तथा यह सुझाव देता है कि सच्ची स्वतंत्रता अपने आवेगों और इच्छाओं पर नियंत्रण पाने तथा उन बाधाओं को चुनने में निहित है जो आध्यात्मिक विकास एवं सामाजिक सद्भाव की ओर ले जाती हैं।
- स्व-अनुशासन और स्वतंत्रताः योग-दर्शन आत्म-नियंत्रण एवं आंतरिक स्वतंत्रता पर बल देता है, यह सुझाव देते हुए कि सच्ची स्वतंत्रता व्यक्ति की इच्छाओं पर विजय प्राप्त कर उन सीमाओं का चयन करने में है जो आत्मिक विकास एवं सामाजिक समरसता की ओर ले जाती हैं।
- सामाजिक अनुबंध सिद्धांत: रूसो जैसे राजनीतिक सिद्धांतकारों ने तर्क दिया कि स्वतंत्रता का अर्थ पूर्ण स्वायत्तता नहीं है, बल्कि सामाजिक कल्याण सुनिश्चित करने वाली बाधाओं का सामूहिक विकल्प है।
- आधुनिक भारत में, यह देखा जा सकता है कि संवैधानिक स्वतंत्रताओं का प्रयोग कानूनों और नियमों के कार्यढाँचे के भीतर किस प्रकार किया जाता है।
नीति और ऐतिहासिक उदाहरण:
- भारतीय स्वतंत्रता संग्राम: जवाहरलाल नेहरू और सुभाष चंद्र बोस जैसे नेताओं ने भारत की स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिये क्रमशः अहिंसा एवं प्रत्यक्ष कार्रवाई का रास्ता चुना।
- उनके चुनाव अनियंत्रित स्वतंत्रता के बजाय रणनीतिक उद्देश्यों के आधार पर सचेत रूप से किये गए थे।
- भारत में संवैधानिक बाध्यताएँ: भारत का संविधान मौलिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है, लेकिन इसके साथ ही सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में उचित प्रतिबंध भी लगाए (जैसे: अनुच्छेद 19) गए हैं।
- यह इस समझ को प्रतिबिंबित करता है कि बिना किसी बाधा के स्वतंत्रता अराजकता को जन्म देती है।
- वर्ष 1991 के आर्थिक सुधार: भारत का आर्थिक उदारीकरण, एक कठोर नियंत्रित अर्थव्यवस्था की बाधाओं को कम करने के लिये एक सचेत निर्णय था, लेकिन इसमें बाज़ार विनियमन, उदारीकरण और सामाजिक सुरक्षा से संबंधित नई बाधाओं को चुनना भी शामिल था।
समकालीन उदाहरण:
- भारत का डिजिटल रूपांतरण: डिजिटल इंडिया के लिये सरकार के प्रयासों में प्रौद्योगिकी की स्वतंत्रता को अपनाते हुए डेटा गोपनीयता, साइबर सुरक्षा और बुनियादी अवसंरचना की सीमाओं पर नियंत्रण रखना शामिल है।
- यह संतुलन भारत के भावी विकास के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- पर्यावरण संरक्षण बनाम आर्थिक विकास: भारत के तीव्र औद्योगिकीकरण के संदर्भ में, संसाधनों के दोहन की स्वतंत्रता पर्यावरण कानूनों और स्थिरता सिद्धांतों द्वारा बाधित है, जो व्यापक लाभ के लिये बाधाओं को चुनने के दीर्घकालिक लाभों पर बल देता है।
- युवा और करियर विकल्प: भारत के युवा तेज़ी से एक दुविधा का सामना कर रहे हैं: अपने कॅरियर को चुनने की स्वतंत्रता प्रायः सामाजिक दबाव और पारिवारिक बाधाओं के साथ आती है। इन विकल्पों को चुनना व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक जिम्मेदारी के बीच संतुलन को दर्शाता है।
- एलन मस्क का नवाचार के प्रति दृष्टिकोण: एलन मस्क की कंपनियाँ— टेस्ला, SpaceX और न्यूरालिंक प्रायः कड़े बजट, कट्टरपंथी समय सीमा और महत्वाकांक्षी लक्ष्यों जैसी तीव्र बाधाओं के तहत काम करती हैं।
- मस्क इन बाधाओं को नवाचार को बढ़ावा देने और रचनात्मक समस्या-समाधान को प्रोत्साहित करने के तरीके के रूप में अपनाते हैं।
- उदाहरण के लिये SpaceX का पुन: प्रयोज्य रॉकेट विकसित करने का निर्णय एक बाधा थी, जिससे लागत में भारी कमी आई और एयरोस्पेस उद्योग में क्रांति आ गई।