प्रश्न. क्या मानवीय कृत्य नैतिक माने जा सकते हैं यदि वे सामाजिक मानदंडों का उल्लंघन करते हों, किंतु किसी उच्चतर नैतिक उद्देश्य की पूर्ति करते हों? उदाहरण सहित चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर :
हल करे का दृष्टिकोण:
- किसी उदाहरण के साथ उत्तर की शुरुआत कीजिये जिसमें मानवीय कृत्य सामाजिक मान्यताओं का उल्लंघन करते हुए भी नैतिक माने जा सकते हों।
- नैतिक सिद्धांतों के आधार पर उच्चतर नैतिक उद्देश्य के लिये सामाजिक मान्यताओं के उल्लंघन का औचित्य प्रस्तुत कीजिये।
- नैतिक व्यवहारवाद (Ethical Pragmatism) की दृष्टि से हानि को संतुलित करने की आवश्यकता का संकेत कीजिये।
- किसी सुसंगत उद्धरण के साथ उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
महाभारत में भगवान कृष्ण के ज्ञान यह दर्शाते हैं कि सामाजिक मानदंडों को तोड़ना तभी उचित हो सकता है जब इससे कोई बड़ा नैतिक उद्देश्य पूरा हो। अहिंसा के प्रचलित मानदंड के बावजूद, अर्जुन को कुरुक्षेत्र युद्ध में भाग लेने की उनकी सलाह धर्म को बनाए रखने और न्याय सुनिश्चित करने की अनिवार्यता पर आधारित थी।
इससे यह स्पष्ट होता है कि कभी-कभी उच्च नैतिक सिद्धांतों का पालन करने के लिये स्थापित सामाजिक अपेक्षाओं की अवहेलना करना भी आवश्यक हो सकता है।
मुख्य भाग:
उच्चतर नैतिक उद्देश्यों के लिये सामाजिक मानदंडों के उल्लंघन का औचित्यकरण:
- न्याय हेतु मानदंडों का उल्लंघन (उपयोगितावाद): उपयोगितावादी दृष्टिकोण के अनुसार, कोई भी कर्म तब नैतिक माना जाता है जब वह अधिकतम जनकल्याण को बढ़ावा देता है। यदि कोई सामाजिक मानदंड अन्यायपूर्ण व्यवस्था को बनाए रखता है तो उसका उल्लंघन व्यापक कल्याण के लिये उचित हो सकता है।
उदाहरण: गांधीजी का सविनय अवज्ञा आंदोलन — गांधीजी ने औपनिवेशिक कानूनों की अवज्ञा करते हुए भारत की स्वतंत्रता के लिये संघर्ष किया, जो लाखों लोगों के सामूहिक हित में था, यद्यपि वह तत्कालीन सामाजिक व कानूनी मानदंडों के विरुद्ध था।
- नैतिक कर्त्तव्य का निर्वाह (कर्त्तव्यवादी नैतिकता): कर्त्तव्यवादी नैतिक दृष्टिकोण में नैतिक कर्त्तव्य को सामाजिक मानदंडों से ऊपर माना गया है। यदि किसी सामाजिक मानदंड का उल्लंघन मानवीय गरिमा की रक्षा जैसे उच्चतर नैतिक कर्त्तव्य के अनुरूप है तो वह नैतिक रूप से उचित होता है।
- उदाहरण: रानी लक्ष्मीबाई द्वारा ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की ‘लैप्स नीति’ के विरुद्ध सशस्त्र प्रतिरोध— यह साहसी कदम उपनिवेशवादी नीतियों की अवहेलना करते हुए भारत की संप्रभुता की रक्षा का प्रतीक बना।
- सद्गुणों की अभिव्यक्ति (सद्गुण नैतिकता): सद्गुण नैतिकता चरित्र और नैतिक सत्यनिष्ठा पर बल देती है। यदि किसी सामाजिक मानदंड का उल्लंघन न्याय, साहस या ईमानदारी जैसे सद्गुणों के कारण किया जाये तो वह आचरण नैतिक समझा जाता है।
- उदाहरण: सत्येंद्र दुबे जैसे व्हिसलब्लोअर — उन्होंने कानूनी सीमाओं से परे जाकर सार्वजनिक हित में भ्रष्टाचार का खुलासा किया, जो नैतिक साहस और सत्यनिष्ठा का परिचायक है।
- दमनकारी व्यवस्थाओं को चुनौती देना (आलोचनात्मक सिद्धांत): समालोचनात्मक दृष्टिकोण के अनुसार, उन व्यवस्थाओं को चुनौती देना आवश्यक है जो असमानता और दमन को बनाए रखती हैं। ऐसी स्थिति में सामाजिक मानदंडों का उल्लंघन नैतिक उत्तरदायित्व बन जाता है।
- उदाहरण: जलियाँवाला बाग नरसंहार के पश्चात सिख नेता सरदार उधम सिंह द्वारा न्याय की माँग— यह कदम औपनिवेशिक कानूनों की अवज्ञा के माध्यम से अन्यायपूर्ण सत्ता को चुनौती देने का नैतिक प्रयास था।
- नैतिक व्यवहारिकता के आधार पर ‘मूल्यवान हानि’ का औचित्य: हालाँकि किसी भी सामाजिक मानदंड के उल्लंघन से होने वाली क्षति को नैतिक रूप से तभी उचित ठहराया जा सकता है जब वह व्यापक नैतिक कल्याण के सिद्धांत पर आधारित हो।
- उदाहरण: नर्मदा बचाओ आंदोलन— मेधा पाटकर द्वारा किये गये विरोध प्रदर्शनों ने विस्थापित समुदायों की रक्षा तथा पर्यावरण संरक्षण जैसे महत्त्वपूर्ण नैतिक उद्देश्यों के लिये स्थापित सामाजिक व आर्थिक मानदंडों का उल्लंघन किया, जो नैतिक दृष्टि से न्यायसंगत माना जा सकता है।
निष्कर्ष:
जैसा कि मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने कहा है, "व्यक्ति की यह नैतिक ज़िम्मेदारी है कि वह अन्यायपूर्ण कानूनों का उल्लंघन करे।"
जब कानून या सामाजिक मानदंड अन्याय, असमानता या दमन को बनाए रखते हैं, तब उनका उल्लंघन नैतिक कर्त्तव्य बन जाता है। ऐसे मामलों में अवज्ञा, न्याय, मानव गरिमा एवं समानता जैसे उच्च आदर्शों की सेवा करती है और सामाजिक परिवर्तन तथा व्यापक हित के लिये अनिवार्य कदम बन जाती है।