प्रश्न. भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI) की भूमिका और संस्थागत स्वायत्तता हाल के दिनों में चर्चा का विषय रही है। इसकी कार्यप्रणाली को प्रभावित करने वाले प्रमुख मुद्दों पर चर्चा कीजिये और इसकी स्वायत्तता बढ़ाने के लिये सुधार सुझाइये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत के निर्वाचन आयोग (ECI) के महत्त्व और इसके संवैधानिक महत्त्व का परिचय दीजिये।
- इसकी संस्थागत स्वतंत्रता और कार्यप्रणाली के समक्ष चुनौतियों को उजागर करें तथा इसकी स्वायत्तता और प्रभावशीलता को बढ़ाने के उपायों की विवेचना कीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
भारत के निर्वाचन आयोग, जिसे देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने का दायित्व सौंपा गया है (अनुच्छेद 324), को हाल के वर्षों में देश भर के विभिन्न राजनीतिक नेताओं, नागरिक समाज संगठनों, पूर्व प्रशासनिक अधिकारियों और नागरिक समूहों द्वारा अपनी स्वतंत्रता के संबंध में कई पहलुओं पर जाँच का सामना करना पड़ा है।
मुख्य भाग:
ECI की कार्यप्रणाली को प्रभावित करने वाले प्रमुख मुद्दे:
- राजनीतिक हस्तक्षेप: हाल ही में पारित मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) एवं चुनाव आयुक्तों (ECs) की नियुक्ति अधिनियम के अनुसार, नियुक्तियाँ एक चयन समिति की अनुशंसा पर की जाती हैं, जो एक जाँच समिति द्वारा तैयार की गई पैनल पर आधारित होती हैं।
- हालाँकि, इन दोनों समितियों को प्रायः केंद्र सरकार के प्रभाव में माना जाता है।
- इसके अतिरिक्त, चयन समिति को यह अधिकार है कि वह जाँच समिति की अनुशंसाओं की अनदेखी कर सकती है, जिससे केंद्र सरकार-प्रभावित चयन समिति को अधिक शक्ति प्राप्त हो जाती है।
- चुनाव आयुक्तों (EC) का कार्यकाल असुरक्षित: यद्यपि चुनाव आयुक्तों को मुख्य चुनाव आयुक्त के समान अधिकार प्राप्त हैं, परंतु उन्हें वही कार्यकाल-सुरक्षा प्राप्त नहीं है।
- उन्हें केवल मुख्य चुनाव आयुक्त की सिफारिश पर हटाया जा सकता है, जिससे वे कार्यपालिका के दबाव में आने के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं। जबकि EC को CEC के समान शक्तियाँ प्राप्त हैं, लेकिन उन्हें कार्यकाल की समान सुरक्षा नहीं है। उन्हें केवल CEC की सिफारिशों के आधार पर हटाया जा सकता है, जिससे वे कार्यकारी दबाव के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं।
- वित्तीय और प्रशासनिक निर्भरता: न्यायपालिका के विपरीत, निर्वाचन आयोग का व्यय भारत की संचित निधि (CFI) पर सीधे आरोपित नहीं होता, जिससे वह वित्तीय दृष्टि से सरकार पर निर्भर रहता है।
- इसके अतिरिक्त, निर्वाचन आयोग चुनाव संचालन हेतु सरकारी कर्मचारियों पर निर्भर रहता है, जिससे उसकी वित्तीय स्वायत्तता सीमित हो जाती है।
- सीमित अधिकार: राजनीतिक दलों को नियंत्रित करने के मामले में निर्वाचन आयोग की शक्ति सीमित है, क्योंकि उसे गंभीर उल्लंघनों के लिये दलों को पंजीकरण-रहित करने का अधिकार प्राप्त नहीं है।
- हाल के वर्षों में निर्वाचन आयोग की आलोचना इसलिये हुई है कि वह चुनाव अभियानों के दौरान हेट स्पीच पर रोक लगाने में असफल रहा है, हालाँकि आयोग ने यह कहा है कि इन मामलों में वह ‘अधिकांशतः असमर्थ’ है।
- कमज़ोर प्रवर्तन तंत्र: निर्वाचन आयोग को चुनावी कानूनों का उल्लंघन करने वालों के विरुद्ध कार्यवाही करने का अधिकार तो है, परंतु उसके प्रवर्तन तंत्र को प्रायः कमज़ोर माना जाता है, विशेष रूप से जब बात उच्च-प्रोफाइल राजनेताओं या दलों की हो।
- इसके अतिरिक्त, उसे आचार संहिता के उल्लंघनों के प्रति ‘निःशक्त दर्शक’ तक कहा गया है, क्योंकि उसे विधिक समर्थन प्राप्त नहीं है।
- चुनावी कदाचार: इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) और VVPAT जैसी तकनीकी प्रगति के बावजूद, फर्ज़ी मतदान, बूथ कैप्चरिंग और मतदान के लिये ज़बरदस्ती या खरीद-फरोख्त जैसी चुनावी धाँधलियाँ अब भी बनी हुई हैं, जो चुनावों की विश्वसनीयता को प्रभावित करती हैं।
- उभरती चुनौतियाँ: सोशल मीडिया के प्रसार ने निर्वाचन आयोग के समक्ष नयी चुनौतियाँ उत्पन्न कर दी हैं।
- फेक न्यूज़ और गलत सूचना के प्रसार ने मतदाताओं के निर्णयों को प्रभावित किया है।
- डीपफेक तकनीक एवं सोशल मीडिया अभियानों के प्रसार को नियंत्रित करने के लिये और अधिक सशक्त निगरानी की आवश्यकता है, ताकि चुनाव की निष्पक्षता बनी रहे।
भारत के निर्वाचन आयोग (ECI) की स्वायत्तता को सुदृढ़ करने हेतु सुधार
- अनूप बरनवाल बनाम भारत संघ (वर्ष 2023) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त (CEC) तथा निर्वाचन आयुक्तों (EC) की नियुक्ति हेतु एक ‘कोलेजियम प्रणाली’ का समर्थन किया, जो तब तक लागू रहनी चाहिये जब तक संसद इस विषय में नया कानून पारित न कर दे।
- इस निर्णय में प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता तथा भारत के प्रधान न्यायाधीश को सम्मिलित कर कोलेजियम की रूपरेखा प्रस्तावित की गई।
- कार्यकाल की सुरक्षा: चुनाव आयुक्तों की निष्कासन प्रक्रिया सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के समान होनी चाहिये, जैसा कि 255वीं विधि आयोग की रिपोर्ट में सिफारिश की गई है, ताकि स्वतंत्रता सुनिश्चित हो सके और कार्यपालिका के हस्तक्षेप से सुरक्षा मिले।
- संस्थागत स्वायत्तता: निर्वाचन आयोग की कार्यात्मक तथा प्रशासनिक स्वायत्तता को मज़बूती देने हेतु एक पृथक तथा स्वतंत्र सचिवालय की स्थापना की जानी चाहिये, जैसा कि 255वीं विधि आयोग की रिपोर्ट में भी अनुशंसित किया गया है।
- विधिक एवं प्रवर्तन शक्तियों को सुदृढ़ करना: निर्वाचन आयोग को अधिक विधिक अधिकार प्रदान किये जाने चाहिये, जैसे—राजनीतिक दलों के पंजीकरण को रद्द करने की शक्ति तथा आदर्श आचार संहिता (MCC) के उल्लंघन पर विधिक कार्रवाई करने की क्षमता। इससे आयोग की चुनावी कदाचार पर निर्णायक कार्यवाही की क्षमता बढ़ेगी।
- ECI को अवमानना शक्ति: निर्वाचन आयोग ने समय-समय पर यह माँग उठाई है कि उसे अवमानना की शक्ति प्रदान की जाये ताकि दुर्भावनापूर्ण आलोचनाओं एवं निराधार आरोपों को रोका जा सके जो राजनीतिक दलों या नेताओं द्वारा चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित करने हेतु लगाये जाते हैं।
- प्रौद्योगिकी का समावेश: कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और डेटा विश्लेषण तकनीकों का प्रयोग कर सोशल मीडिया पर घृणा-भाषण और झूठी ख़बरों की पहचान की जा सकती है।
- इसके अतिरिक्त, मतदाता सत्यापन की प्रक्रिया को अधिक मज़बूत बनाने के लिये चेहरे की पहचान (Facial Recognition) और आधार-लिंक्ड मतदाता पहचान प्रणाली का प्रयोग किया जा सकता है जिससे फर्जी मतदान को रोका जा सके।
- समावेशी मतदान प्रणाली: आंतरिक प्रवास से प्रभावित क्षेत्रों में मतदाता भागीदारी बढ़ाने हेतु विशेष उपाय किये जाने चाहिये।
- प्रवासी श्रमिकों को उनके गृह निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान की सुविधा प्रदान करने हेतु ‘रिमोट इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन’ (RVM) का परीक्षण किया जा सकता है।
निष्कर्ष:
लोकतंत्र की रक्षा करने और यह सुनिश्चित करने के लिये कि भारत में चुनाव स्वतंत्र, निष्पक्ष एवं विश्वसनीय बने रहें, ECI की स्वायत्तता को मज़बूत करना आवश्यक है। ECI की स्वतंत्रता और कार्यप्रणाली को मज़बूत करने के लिये, स्वतंत्र नियुक्ति प्रक्रिया जैसे सुधारों को लागू करना, इसकी कानूनी एवं प्रवर्तन शक्तियों को बढ़ाना तथा उभरती चुनौतियों से निपटने के लिये प्रौद्योगिकी का उपयोग करना महत्त्वपूर्ण है।