• प्रश्न :

    प्रश्न 1. किसी व्यक्ति की क्षमता का मापदंड यह है कि वह अपनी शक्ति का किस प्रकार उपयोग करता है।  

    प्रश्न 2. गरीबी हिंसा का सबसे बुरा रूप है।

    14 Jun, 2025 निबंध लेखन निबंध

    उत्तर :

    1. किसी व्यक्ति की क्षमता का मापदंड यह है कि वह अपनी शक्ति का किस प्रकार उपयोग करता है।

    अपने निबंध को समृद्ध करने के लिये उद्धरण:

    • "मैं इस संसार में केवल एक ही तानाशाह को स्वीकार करता हूँ, और वह है मेरे भीतर की मूक अंतःवाणी।" — महात्मा गाँधी
    • "लगभग सभी व्यक्ति विपत्ति को सह सकते हैं, लेकिन यदि आप किसी व्यक्ति के चरित्र की परीक्षा लेना चाहते हैं, तो उसे शक्ति दीजिये।" — अब्राहम लिंकन
    • "महान शक्ति के साथ बड़ा दायित्व भी आता है।" — एक प्रसिद्ध कहावत
    • "शक्ति भ्रष्ट करती है और पूर्ण शक्ति पूर्ण रूप से भ्रष्ट करती है।" — लॉर्ड एक्टन

    दार्शनिक और सैद्धांतिक आयाम:

    • शक्ति की नैतिकता: शक्ति अपने आप में केवल एक साधन है, उसकी वास्तविक महत्ता इस बात में निहित है कि उसका प्रयोग किस उद्देश्य और किस प्रकार किया जाता है। किसी नेता के द्वारा अधिकार के प्रयोग का तरीका न केवल उसकी विरासत को बल्कि उस समाज को भी आकार देता है जिसका वह नेतृत्व करता है।
      • प्लेटो और अरस्तू जैसे दार्शनिकों ने सत्ता की प्रकृति पर लंबे समय से विचार किया है।
        प्लेटो का मत था कि जिनके पास सत्ता हो, उन्हें विवेक, सद्गुण और न्याय की भावना से संचालित होना चाहिये।
      • अरस्तू के अनुसार, सत्ता का उद्देश्य सार्वजनिक हित की सिद्धि होना चाहिये— वह मानते थे कि वास्तविक सत्ता वही है जो दूसरों के उत्थान के लिये प्रयुक्त हो।

    गाँधीजी का उपर्युक्त कथन यही स्पष्ट करता है कि सच्चा नेतृत्व आत्मचिंतन और नैतिक मार्गदर्शन से उत्पन्न होता है, न कि दूसरों पर नियंत्रण स्थापित करने की इच्छा से।

    गाँधीजी के नेतृत्व का आधार अहिंसा और सत्य था, जिससे यह प्रमाणित होता है कि सत्ता का सबसे श्रेष्ठ रूप नैतिकता में निहित होता है।

    • इमैनुअल कांट का शक्ति सिद्धांत: कांट ने तर्क दिया कि सत्ता का प्रयोग सार्वभौमिक नैतिक नियमों के अनुरूप होना चाहिये। उनके अनुसार किसी कार्य की नैतिकता उसके परिणाम पर नहीं, बल्कि इस बात पर निर्भर करती है कि वह कर्त्तव्य की पूर्ति करता है या नहीं तथा क्या वह प्रत्येक व्यक्ति की अंतर्निहित गरिमा का सम्मान करता है।
      • कांट का दृष्टिकोण स्पष्ट करता है कि सत्ता का उपयोग किसी को शोषित या अधीन करने के लिये नहीं, बल्कि व्यापक हित में सेवा के लिये होना चाहिये।
    • हिंदू दर्शन और भगवद्गीता: भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को सिखाते हैं कि शक्ति का प्रयोग धर्म अर्थात् ब्रह्मांडीय नियम और नैतिक व्यवस्था के अनुसार होना चाहिये।
      • कृष्ण बताते हैं कि वास्तविक शक्ति बाह्य वर्चस्व में नहीं, बल्कि अपनी इच्छाओं और अहंकार पर नियंत्रण रखने में है। शक्ति वहीं सार्थक है जहाँ वह व्यक्तिगत स्वार्थ से मुक्त होकर लोककल्याण की दिशा में नियोजित हो।

    ऐतिहासिक एवं समकालीन उदाहरण:

    • अशोक द ग्रेट: एक शक्तिशाली सम्राट जिन्होंने प्रारंभ में सैन्य विजय के माध्यम से अपने साम्राज्य का विस्तार किया, लेकिन कलिंग युद्ध की भीषणता को देखने के बाद उनका अंतःकरण परिवर्तन हुआ। इसके पश्चात् उन्होंने अपनी शक्ति का प्रयोग जनकल्याण हेतु किया। अशोक इस बात का प्रतीक बन गये कि किस प्रकार विध्वंसक शक्ति को जनहित में रूपांतरित किया जा सकता है।
      • महात्मा गांधी और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन: महात्मा गांधी का नेतृत्व राजनीतिक सत्ता प्राप्त करने की चाह पर नहीं बल्कि सत्ता के नैतिक उपयोग पर आधारित था।
        • अहिंसा (हिंसा का पूर्ण निषेध) और सत्याग्रह (सत्य की शक्ति) के सिद्धांतों ने राजनीतिक क्षेत्र में शक्ति की परिभाषा को ही परिवर्तित कर दिया।
        • अत्यधिक प्रतिकूल परिस्थितियों में भी न्याय और समानता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता, इस बात को रेखांकित करती है कि किसी व्यक्ति के चरित्र का मूल्यांकन इस बात से होता है कि वह अपनी शक्ति का उपयोग किस प्रकार करता है।
    • नेल्सन मंडेला: कारावास से रिहाई के पश्चात मंडेला द्वारा सत्ता का प्रयोग नैतिक नेतृत्व का आदर्श प्रस्तुत करता है। उनका राष्ट्रपतित्व प्रतिशोध या दंड पर नहीं बल्कि पुनः मेल-मिलाप और राष्ट्र निर्माण पर केंद्रित था। उन्होंने सत्ता को व्यक्तिगत बदले के लिये नहीं बल्कि सामाजिक समरसता के लिये साधन बनाया।
    • एडॉल्फ हिटलर (विलोम उदाहरण): इसके विपरीत, हिटलर ने सत्ता का उपयोग दमन और विनाश के लिये किया। उनकी सत्ता लोलुपता ने मनुष्यता को नरसंहार, युद्ध और अपार पीड़ा की विरासत दी। यह उदाहरण दर्शाता है कि जब सत्ता का प्रयोग वैयक्तिक लाभ या विचारधारात्मक वर्चस्व के लिये किया जाता है, तब वह विनाशकारी बन जाती है।

    विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण से, ये उदाहरण यह स्पष्ट करते हैं कि शक्ति अपने आप में न तो नैतिक होती है न ही अनैतिक, बल्कि उसका उपयोग ही उसकी प्रकृति निर्धारित करता है। एक लोकसेवक के रूप में यह समझना आवश्यक है कि शक्ति का प्रयोग सेवा, न्याय तथा समावेशन के लिये होना चाहिये, न कि स्वार्थ, दमन या विभाजन के लिये।

    समाज पर सत्ता का प्रभाव:

    • सकारात्मक प्रभाव: जब सत्ता का प्रयोग नैतिकता के साथ किया जाता है, तो यह न्याय, समानता और प्रगति का माध्यम बन सकती है। ऐसे नेता जो सामूहिक कल्याण के लिये कार्य करते हैं (जैसे: महात्मा गांधी), वे सामाजिक एकता को सुदृढ़ करते हैं और उनका नेतृत्व समाज में दीर्घकालिक सकारात्मक परिवर्तन लाता है।
    • नकारात्मक प्रभाव: जब सत्ता का दुरुपयोग स्वार्थ के लिये किया जाता है, तो यह भ्रष्टाचार, विषमता और हिंसा को जन्म देता है। जो नेता केवल निजी लाभ की इच्छा से सत्ता का प्रयोग करते हैं (जैसे तानाशाही या निरंकुश शासन) वे समाज को आर्थिक और सामाजिक क्षति की ओर धकेलते हैं तथा सामाजिक विघटन और उत्पीड़न को बढ़ावा देते हैं।

    निष्कर्ष: जैसा कि महात्मा गांधी ने कहा था, "स्वयं को खोज़ करने का सबसे अच्छा तरीका है—अपने को दूसरों की सेवा में समर्पित कर देना।" वास्तविक नेतृत्व वह होता है जिसमें सत्ता का उपयोग दूसरों को सशक्त करने, न्याय को बढ़ावा देने और सामूहिक कल्याण के लिये किया जाता है। एक न्यायपूर्ण समाज उन नेताओं पर निर्भर करता है जो अपनी सत्ता का प्रयोग बुद्धिमत्ता, करुणा और नैतिकता के साथ करते हैं। सच्ची सत्ता का मापदंड नियंत्रण करने या अधीन रखने की क्षमता नहीं, बल्कि उस नैतिक दृष्टिकोण में निहित होता है जो सत्ता के प्रयोग को दिशा देता है।\


    2. गरीबी हिंसा का सबसे बुरा रूप है।

    अपने निबंध को समृद्ध करने के लिये उद्धरण:

    • "गरीबी केवल धन की कमी नहीं है; यह उस क्षमता की अनुपस्थिति है जो एक मानव के रूप में अपनी पूर्ण संभावनाओं की प्राप्ति में सहायक हो।" — अमर्त्य सेन
    • "गरीबी ही क्रांति और अपराध की जननी है।" — अरस्तू

    दार्शनिक एवं नैतिक आधारभूमि:

    • गरीबी केवल भौतिक अभाव नहीं है बल्कि यह व्यक्ति के 'मानवीकरण' की प्रक्रिया को ही बाधित करती है। यह एक प्रकार की संरचनात्मक हिंसा है, जो असमानता, पीड़ा तथा सामाजिक अस्थिरता को जन्म देती है। इस निबंध में यह विश्लेषण किया जाता है कि गरीबी किस प्रकार एक हिंसात्मक प्रक्रिया में बदल जाती है, जो व्यक्ति को केवल आर्थिक रूप से ही नहीं बल्कि मानसिक, सामाजिक और सांस्कृतिक स्तरों पर भी क्षति पहुँचाती है।
    • अमर्त्य सेन का दृष्टिकोण: अमर्त्य सेन के अनुसार गरीबी केवल आय की कमी नहीं है, बल्कि यह ‘क्षमताओं की कमी’ है, अर्थात्— समाज में सक्रिय और गरिमामय जीवन जीने की योग्यता का अभाव। इस दृष्टिकोण में गरीबी स्वतंत्रता की कमी है, जो एक पूर्ण मानव जीवन जीने के लिये आवश्यक है। इसलिये, गरीबी एक प्रकार की हिंसा है जो व्यक्ति की मानवीय संभावनाओं को सीमित कर देती है।
      • यह हिंसा का एक रूप है क्योंकि यह व्यक्तियों को उनकी मानवीय क्षमता का प्रयोग करने से रोकता है।
    • गांधीवादी दर्शन: गांधीजी गरीबी को एक नैतिक मुद्दा मानते थे। उनके अनुसार किसी समाज की नैतिक स्थिति का आकलन इस आधार पर किया जाना चाहिये कि वह अपने सबसे कमज़ोर वर्ग के साथ किस तरह का व्यवहार करता है।
      • गांधीजी के विचार में, गरीबी हिंसा है क्योंकि यह लोगों को उन संसाधनों और अवसरों तक पहुँच से वंचित करती है जिनकी उन्हें सम्मान और आत्म-सम्मान के साथ जीने के लिये आवश्यकता होती है।
    • बौद्ध नैतिकता: बौद्ध धर्म में ‘सम्यक आजीविका’ को मुक्ति (निर्वाण) प्राप्त करने हेतु आवश्यक माना गया है। गरीबी व्यक्ति को इस ‘सम्यक मार्ग’ से विचलित करती है, जिससे वह करुणा, सहानुभूति और मानव कल्याण जैसे मूल्यों को विकसित नहीं कर पाता।
      • इसलिये, गरीबी बौद्ध नैतिकता की दृष्टि में भी व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास में बाधा डालती है।

    ऐतिहासिक एवं समकालीन उदाहरण:

    • उपनिवेशवाद और गरीबी: औपनिवेशिक काल के दौरान यूरोपीय शक्तियों ने उपनिवेशों के संसाधनों का व्यवस्थित रूप से शोषण किया, जिससे वहाँ की पूरी जनसंख्या निर्धनता की गर्त में चली गयी। उपनिवेशवाद की हिंसा ने गरीबी की ऐसी विरासत छोड़ी जो आज भी अनेक क्षेत्रों में विद्यमान है।
    • आधुनिक समय की गरीबी और संघर्ष: आज भी गरीबी सामाजिक हिंसा का एक प्रमुख कारण है। उप-सहारा अफ्रीका जैसे क्षेत्रों में गरीबी राजनीतिक अस्थिरता, गृहयुद्धों और आतंकवाद को और तीव्र बना देती है।
    • गरीबी के कारण प्रवासन, शरणार्थी संकट और मानव तस्करी भी उत्प्रेरित होती है, जिससे वैश्विक विषमता एवं सामाजिक अशांति और भी गंभीर होती चली जाती है।
    • भारत की गरीबी-निवारण हेतु पहल: भारत सरकार द्वारा गरीबी की हिंसा से निपटने हेतु महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) तथा प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) जैसी योजनाएँ प्रारंभ की गयी हैं, जिनका उद्देश्य ग्रामीण निर्धनों को आर्थिक सुरक्षा, रोज़गार और आधारभूत संरचना प्रदान करना है।

    हिंसा के रूप में गरीबी का प्रभाव:

    • मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक हिंसा: गरीबी प्रायः तनाव, अवसाद और चिंता जैसे मानसिक स्वास्थ्य संकट उत्पन्न करती है, जो एक प्रकार की मनोवैज्ञानिक हिंसा है। यह सामाजिक अपवर्जन को भी जन्म देती है जिससे समुदायों में हिंसा की प्रवृत्ति बढ़ती है।
    • आर्थिक और प्रणालीगत हिंसा: गरीबी शिक्षा, स्वास्थ्य और न्याय तक पहुँच को बाधित करती है, जिससे विषमता एवं सामाजिक गतिशीलता का अभाव बना रहता है। यह एक ऐसी प्रणालीगत हिंसा को जन्म देती है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी गरीबी के चक्र को बनाए रखती है।

    निष्कर्ष:

    गरीबी केवल एक आर्थिक अवस्था नहीं है, बल्कि यह एक प्रकार की हिंसा है जो व्यक्ति से उसके अधिकार, स्वतंत्रता और मानवीय गरिमा को छीन लेती है। यह एक प्रणालीगत समस्या है, जो मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और आर्थिक हिंसा के विविध रूपों में व्यक्त होती है। जैसा कि गांधीजी ने कहा था, "गरीबी सबसे बड़ी हिंसा है।"

    अतः इससे निपटना केवल एक नीति निर्णय नहीं, बल्कि एक नैतिक प्रतिबद्धता भी है, ताकि एक न्यायपूर्ण और समतामूलक समाज की स्थापना हो सके। केवल गरीबी को समाप्त कर के ही हम एक ऐसा विश्व बना सकते हैं, जहाँ प्रत्येक व्यक्ति को गरिमापूर्ण और पूर्ण जीवन जीने का अवसर प्राप्त हो।