• प्रश्न :

    प्रश्न. भारत की आर्थिक वृद्धि रोज़गार सृजन और समान आय वितरण सुनिश्चित करने में असमान रही है। इस असमानता में योगदान देने वाले संरचनात्मक मुद्दों की विवेचना कीजिये और सुधारात्मक उपाय सुझाइये। (250 शब्द)

    04 Jun, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:
    भारत के आर्थिक विकास और समाज के सभी वर्गों में समान विकास सुनिश्चित करने की चुनौती का परिचय दीजिये।
    गरीबी, बेरोज़गारी, क्षेत्रीय असमानताएँ और आय असमानता जैसे संरचनात्मक मुद्दों की व्याख्या कीजिये और सुधारात्मक उपाय सुझाएँ।
    उपर्युक्त निष्कर्ष दीजिये
    परिचय:
    भारत के विश्व की चौथी अर्थव्यवस्था बनने के बावजूद, इसकी आर्थिक वृद्धि व्यापक रोजगार सृजन और समान आय वितरण में परिवर्तित होने में असफल रही है। यह असमानता भारतीय अर्थव्यवस्था की संरचनात्मक अक्षमताओं के प्रति गंभीर चिंताएँ खड़ी करती है। धन का केंद्रीकरण, अनौपचारिक श्रम बाजार और सामाजिक बहिष्कार जैसे कारक विकास की पहुँच को सीमित करते रहते हैं, जिससे विकास असंतुलित और अपवर्जक बना हुआ है।
    मुख्य भाग:
    असमानता में योगदान देने वाले संरचनात्मक मुद्दे:
    अनौपचारिक क्षेत्र का प्रभुत्व: भारत का 90% से अधिक कार्यबल अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत है, जिसमें नौकरी की सुरक्षा, सामाजिक लाभ और उचित वेतन का अभाव है। यह क्षेत्र पर्याप्त रूप से विनियमित नहीं है, जिससे वेतन वृद्धि और सामाजिक गतिशीलता की इसकी क्षमता सीमित हो जाती है।
    कृषि पर निर्भरता: भारत की लगभग आधी आबादी (आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 के अनुसार 46%) अभी भी कृषि पर निर्भर है, जिसमें धीमी वृद्धि और कम उत्पादकता देखी गई है। इससे विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में अल्परोज़गार और कम आय होती है।
    आधुनिकीकरण और निवेश के मामले में कृषि क्षेत्र की उपेक्षा की गई है, जिसके परिणामस्वरूप कृषि श्रमिकों को कम मज़दूरी प्राप्त होती है।
    सामाजिक सुरक्षा जाल की कमी: स्वास्थ्य सेवा पर जेब से अधिक खर्च के कारण, लगभग 63 मिलियन भारतीय प्रत्येक वर्ष गरीबी में धकेल दिये जाते हैं। FAO (2023) के अनुसार, लगभग 74% आबादी स्वस्थ आहार का खर्च नहीं उठा सकती है, जो मौजूदा कल्याणकारी उपायों की अपर्याप्तता को दर्शाता है।
    जेंडर पे गैप: 81.8% महिलाएँ अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत हैं, जहाँ उन्हें पुरुषों की तुलना में काफी कम वेतन प्राप्त होता है। लैंगिक आधार पर आय में भारी असमानता देखी जाती है, पुरुष कुल श्रम आय का 82% अर्जित करते हैं, जबकि महिलाएँ केवल 18% ही कमा पाती हैं (वर्ल्ड इनइक्वैलिटी रिपोर्ट के अनुसार)।
    धन संकेंद्रण: आय असमानता का माप, गिनी गुणांक, बढ़ रहा है, जो आर्थिक लाभ के वितरण में बढ़ती असमानता की ओर इशारा करता है।
    देश की शीर्ष 1% आबादी के पास देश की 53% संपत्ति है, जबकि सबसे निचले 50% के पास केवल 4.1% संपत्ति है, जिससे आय असमानता बनी हुई है।
    वर्ल्ड इनइक्वैलिटी रिपोर्ट के अनुसार, निचले 50% आबादी की आय का हिस्सा घटकर केवल 13% रह गया है, जो आर्थिक विषमता का संकेत देता है।
    कौशल विकास का अभाव: देश की जनसंख्या युवाओं से भरपूर होने के बावजूद, शिक्षा प्रणाली और आर्थिक आवश्यकताओं के बीच भारी अंतर है।
    विशेष रूप से विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों में, कौशल विकास बाज़ार की माँग के अनुसार नहीं हो पाया है।
    समावेशी विकास के लिये सुधारात्मक उपाय:
    कृषि उत्पादकता में वृद्धि: आधुनिक कृषि तकनीकों और प्रौद्योगिकी में निवेश से किसानों की कृषि उत्पादकता और मज़दूरी में सुधार हो सकता है।
    फसलों में विविधता लाने, बाज़ार तक पहुँच उपलब्ध कराने एवं किसान सहकारी समितियों को मज़बूत बनाने से असमान विकास को कम करने में मदद मिलेगी।
    श्रम सुधारों को मजबूत करना: न्यूनतम मज़दूरी कानूनों का प्रवर्तन सुनिश्चित करना और अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों के लिये व्यापक सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना उनकी आजीविका में सुधार के लिये आवश्यक है।
    SME को मज़बूत करने से रोज़गार के पर्याप्त अवसर उत्पन्न हो सकते हैं, विशेषकर ग्रामीण और अर्द्ध-कुशल श्रमिकों के लिये।
    प्रगतिशील कर सुधार: संपत्ति और विरासत कर लागू करने से स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और पोषण जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों को वित्तपोषित करने में मदद मिल सकती है। उदाहरण के लिये, अरबपतियों पर मामूली 1-2% संपत्ति कर से सार्वजनिक कल्याण योजनाओं का समर्थन करने और आर्थिक अंतर को कम करने के लिये पर्याप्त राजस्व उत्पन्न हो सकता है।
    सामाजिक बुनियादी ढाँचे का विस्तार: गुणवत्तापूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा तक सार्वभौमिक पहुँच मानव पूंजी के निर्माण और दीर्घकालिक असमानता को कम करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    मनरेगा जैसी योजनाओं में निवेश बढ़ाने से रोज़गार को बढ़ावा मिल सकता है तथा वित्तीय समावेशन के लिये PMGDISHA जैसी सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा योजनाएँ आय असमानताओं को कम करने में सहायक हो सकती हैं।
    महिलाओं को सशक्त बनाना: महिलाओं और सामाजिक रूप से वंचित समूहों के लिये शिक्षा, ऋण और रोज़गार के अवसरों तक पहुँच बढ़ाना समावेशी विकास के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    समावेशी शासन: पंचायती राज संस्थाओं और शहरी स्थानीय निकायों जैसे स्थानीय स्वशासन को सशक्त बनाने से विकेंद्रीकृत, आवश्यकता-आधारित नियोजन और अधिक जवाबदेह शासन सुनिश्चित होता है।
    क्षेत्रीय असंतुलन को कम करने के लिये, सरकार को बुनियादी ढाँचे में निवेश करना चाहिये, कनेक्टिविटी बढ़ानी चाहिये तथा SEZ और औद्योगिक गलियारों जैसी पहलों के माध्यम से पिछड़े क्षेत्रों में औद्योगिक निवेश को प्रोत्साहित करना चाहिये, जिससे रोज़गार और विकास को बढ़ावा मिलेगा।


    निष्कर्ष:
    भारत की आर्थिक वृद्धि में सतत् और समावेशी दोनों होने की क्षमता है, लेकिन संरचनात्मक चुनौतियों का समाधान करना न्यायसंगत विकास सुनिश्चित करने की कुंजी है। केंद्रित नीतिगत हस्तक्षेपों के माध्यम से, भारत इन चुनौतियों पर काबू पा सकता है तथा एक ऐसी अर्थव्यवस्था का मार्ग प्रशस्त कर सकता है जो समाज के सभी वर्गों को लाभान्वित क्र सके।