प्रश्न. उभरती बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था के संदर्भ में विदेश नीति उपागम के रूप में भारत द्वारा सॉफ्ट पावर के उपयोग की विवेचना कीजिये। भारत की वैश्विक स्थिति और प्रभाव को बढ़ाने में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डालिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- सॉफ्ट पावर की अवधारणा और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में इसके महत्त्व का संक्षेप में परिचय दीजिये।
- विदेश नीति उपागम के रूप में भारत के प्रमुख सॉफ्ट पावर टूल्स पर (विशेष रूप से बहुध्रुवीय विश्व के संदर्भ में) चर्चा कीजिये तथा इस बात पर प्रकाश डालिये कि ये उपागम किस प्रकार भारत की वैश्विक स्थिति और प्रभाव को बढ़ाते हैं।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
एक सतत् रूप से बहुध्रुवीय बनती जा रही विश्व व्यवस्था में भारत ने अपनी विदेश नीति में सॉफ्ट पावर को एक मूलभूत तत्त्व के रूप में रणनीतिक रूप से अपनाया है। जोसेफ नाई के अनुसार, सॉफ्ट पावर का तात्पर्य है — आकर्षण और मनोवैज्ञानिक प्रेरणा के माध्यम से दूसरों को प्रभावित करने की क्षमता, न कि बल प्रयोग से। भारत की सॉफ्ट पावर इसकी समृद्ध सांस्कृतिक एवं राजनीतिक मान्यताओं तथा सामरिक प्रयासों में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है। इसका एक प्रमुख उदाहरण योग का वैश्विक प्रचार है, जिसे 'अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस' की स्थापना के माध्यम से सांस्कृतिक कूटनीति के वैश्विक मंच पर दर्शाया गया है।
मुख्य भाग:
विदेश नीति उपागम के रूप में भारत द्वारा अपने सॉफ्ट पावर का प्रयोग:
- सांस्कृतिक कूटनीति: भारत की सॉफ्ट पावर का सबसे प्रमुख पहलू ‘योग’ है, जिसकी वैश्विक लोकप्रियता को स्वीकार करते हुए संयुक्त राष्ट्र ने 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस घोषित किया है।
- भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICCR) जैसी पहलों के माध्यम से भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार ने भारत की वैश्विक आकर्षण-क्षमता को बढ़ाया है।
- अपने संगीत और नृत्य के माध्यम से बॉलीवुड का वैश्विक प्रभाव, विशेषकर दक्षिण एशिया एवं अन्य क्षेत्रों में, भारत की आकर्षण शक्ति को सुदृढ़ करती है।
- भारतीय भोजन अपने समृद्ध स्वाद एवं विविधता के कारण विश्वभर में लोकप्रियता प्राप्त कर चुका है।
- मानवतावादी मूल्य एवं वैश्विक शासन: बौद्ध, जैन और हिंदू धर्म जैसे प्राचीन आध्यात्मिक परंपराओं में निहित अहिंसा, शांति एवं सहिष्णुता की भारत की दर्शन-प्रेरित विचारधारा ने उसे वैश्विक शासन-व्यवस्था में एक नैतिक नेतृत्वकर्त्ता के रूप में स्थापित करने में सहायता की है।
- शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के प्रति भारत की प्रतिबद्धता तथा इसकी विदेश नीति में 'वसुधैव कुटुम्बकम्' (अर्थात् – ‘समस्त विश्व एक परिवार है।’) एवं गुटनिरपेक्षता का जो आग्रह रहा है, वह समकालीन वैश्विक समुदाय को गहराई से प्रभावित करता है।
- विश्व का सबसे बड़ा प्रवासी समुदाय: विश्व का सबसे बड़ा भारतीय प्रवासी समुदाय, जिसकी संख्या वर्ष 2024 में लगभग 35.4 मिलियन रही, भारत की वैश्विक प्रभाव-क्षमता बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- ये प्रवासी भारतीय विदेशों में भारतीय त्योहारों, मूल्यों और व्यवसायों को बढ़ावा देकर सांस्कृतिक अग्रदूत के रूप में कार्य करते हैं। वे निवेश, व्यापार और प्रेषण के माध्यम से योगदान करते हैं, जो वर्ष 2024 में रिकॉर्ड 129.1 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया, जो किसी भी देश के समुदाय द्वारा प्राप्त अब तक की सर्वाधिक राशि है।
- इसके अतिरिक्त, वे भारत के हितों की वैश्विक स्तर पर प्रतिनिधित्व कर राजनयिक संबंधों को सशक्त करते हैं।
- आर्थिक कूटनीति: भारत की तीव्र आर्थिक प्रगति तथा विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में उसकी स्थिति (विशेष रूप से सूचना प्रौद्योगिकी और आउटसोर्सिंग के क्षेत्र में, जहाँ इसे एक दक्ष और अंग्रेज़ी-भाषी कार्यबल का समर्थन प्राप्त है) भारत की वैश्विक उपस्थिति को सुदृढ़ करती है।
- बहुपक्षीय कूटनीति: भारत BRICS, संयुक्त राष्ट्र तथा G-20 जैसे मंचों पर सक्रिय भूमिका निभाते हुए जलवायु परिवर्तन, सतत् विकास और शांति-स्थापना जैसे वैश्विक मुद्दों को बढ़ावा देता है।
- वह अफ्रीका, दक्षिण एशिया तथा हिंद महासागर क्षेत्र के देशों को विकास सहायता और तकनीकी सहयोग भी प्रदान करता है।
- भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलन जैसे उपक्रम साउथ-साउथ कोऑपरेशन के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं तथा उसे एक उत्तरदायी वैश्विक अभिकर्त्ता के रूप में इसकी छवि को प्रतिष्ठित करते हैं।
वैश्विक स्तर पर अपनी स्थिति को बढ़ाने में भारत की सॉफ्ट पावर की भूमिका:
- अग्रदूत के रूप में भूमिका: दक्षिण एशिया में भारत का नेतृत्व इसकी विदेश नीति के लिये महत्त्वपूर्ण है। गुजराल सिद्धांत जैसे सिद्धांतों में निहित भारत की ‘बिग ब्रदर रोल’ अर्थात् अग्रज के रूप में भूमिका छोटे पड़ोसी देशों को एकतरफा सहायता देने और पारस्परिकता की अपेक्षा न रखने पर बल देती है।
- इससे भारत की छवि एक शांतिदूत और क्षेत्रीय स्थायित्व के संरक्षक के रूप में सुदृढ़ होती है।
- क्षेत्रीय विवादों का समाधान: श्रीलंका और नेपाल जैसे देशों में भारत की सक्रिय मध्यस्थता ने न केवल उसकी क्षेत्रीय प्रभावशीलता को प्रबल किया है, बल्कि दक्षिण एशिया में एकीकरण एवं स्थिरता को भी प्रोत्साहित किया है।
- सामरिक प्रभाव: अमेरिका, रूस और चीन जैसे वैश्विक शक्तियों के साथ भारत की बढ़ती भागीदारी उसकी कूटनीतिक एवं रणनीतिक क्षमता में निरंतर वृद्धि को दर्शाती है। साथ ही, भारत द्वारा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता की माँग इसके वैश्विक शासन-सुधारों के साथ अपनी आकांक्षाओं के संयोजन का संकेत देती है।
- जन कूटनीति: जनसंपर्क आधारित कूटनीति, शैक्षिक सहयोग और सांस्कृतिक आयोजनों जैसे: भारतीय फिल्म महोत्सवों एवं छात्रवृत्तियों के माध्यम से भारत ने अपनी सॉफ्ट पावर को और भी व्यापक बनाया है।
भारत की सॉफ्ट पावर बढ़ाने के लिये चुनौतियाँ और सुझाए गए उपाय
चुनौतियाँ
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काबू पाने के उपाय
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आंतरिक सामाजिक-आर्थिक मुद्दे
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सॉफ्ट पावर कूटनीति को बढ़ाने के लिये समावेशी विकास नीतियों के माध्यम से गरीबी, असमानता और सामाजिक तनावों का समाधान करना।
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अपर्याप्त वित्तपोषण
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SPV के माध्यम से सांस्कृतिक कूटनीति में निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ाना।
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दक्षिण एशिया से परे विस्तार करने में आने वाली चुनौतियाँ
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अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और यूरोपीय देशों में क्षेत्रीय सहयोग, शैक्षिक पहल एवं व्यावसायिक सहयोग के माध्यम से द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ावा देना।
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निष्कर्ष:
भारत के लिये आंतरिक चुनौतियों को पार करना तथा दक्षिण एशिया से परे अपनी प्रभावक्षमता का विस्तार करना, वैश्विक व्यवस्था को आकार देने में उसकी निरंतर सफलता हेतु अनिवार्य है। एक उभरती हुई शक्ति के रूप में, भारत की विदेश नीति में उसकी 'सॉफ्ट पावर' का रणनीतिक उपयोग आगामी दशकों में भी एक महत्त्वपूर्ण उपागम बना रहेगा।