प्रश्न. अटॉर्नी जनरल (महान्यायवादी) भारत सरकार का प्रमुख विधिक सलाहकार और सर्वोच्च विधि अधिकारी होता है। इस कथन के आलोक में भारत के महान्यायवादी की भूमिका और उत्तरदायित्वों की विवेचना कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत के महान्यायवादी के पद को नियंत्रित करने वाले संवैधानिक प्रावधानों के साथ-साथ उसका संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- उनकी प्रमुख भूमिका और जिम्मेदारियों पर चर्चा कीजिये तथा सरकार को सलाह देने और कानूनी मामलों में उसका प्रतिनिधित्व करने में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डालिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
भारत के महान्यायवादी (Attorney General- AG) की नियुक्ति भारत सरकार के प्रमुख विधिक सलाहकार के रूप में की जाती है तथा वह देश का सर्वोच्च विधि अधिकारी (अनुच्छेद 76) होता है। महान्यायवादी का मूल कर्त्तव्य सरकार को विधिक मामलों में सहायता प्रदान करना, विधिक परामर्श देना तथा सर्वोच्च न्यायालय में सरकार का प्रतिनिधित्व करना होता है। इसके अतिरिक्त, वह यह सुनिश्चित करता है कि सरकार की कार्यवाहियाँ संवैधानिक एवं विधिक प्रावधानों के अनुरूप हों।
मुख्य भाग:
भारत के महान्यायवादी की भूमिका और जिम्मेदारियाँ
- सरकार के विधिक सलाहकार के रूप में भूमिका: भारत का महान्यायवादी राष्ट्रपति, सरकार या किसी विभाग द्वारा संदर्भित विधिक मुद्दों पर परामर्श प्रदान करता है। ये विधिक राय सरकार की नीतियों के निर्धारण, विधायी प्रारूप के निर्माण तथा विधिक मामलों में सरकारी कार्रवाई के मार्गदर्शन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
- अटॉर्नी जनरल/महान्यायवादी, सरकार की विधिक रणनीति का मार्गदर्शन करने में एक निर्णायक भूमिका निभाता है तथा यह सुनिश्चित करता है कि सरकार संवैधानिक मानदंडों का अनुपालन करती है।
- न्यायालय में प्रतिनिधित्व: महान्यायवादी भारत सरकार का प्रतिनिधित्व सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों में उन मामलों में करता है जिनमें सरकार पक्षकार होती है तथा उन्हें समस्त भारतीय न्यायालयों में उपस्थिति का विशेषाधिकार प्राप्त होता है।
- वह संवैधानिक विषयों, लोकहित याचिकाओं, अपीलों एवं अनुच्छेद 143 के अंतर्गत राष्ट्रपति द्वारा सर्वोच्च न्यायालय को प्रेषित किसी भी संदर्भ में सरकार की ओर से पक्ष रखता है।
- संसदीय कार्य से संबंधित कर्त्तव्य: महान्यायवादी संसद के दोनों सदनों तथा उनकी समितियों की कार्यवाही में भाग ले सकता है और वहाँ विधिक सलाह प्रदान करता है, विधियों की व्याख्या करता है तथा बहसों के दौरान उठाये गये विधिक प्रश्नों को स्पष्ट करता है, हालाँकि उसे मतदान का अधिकार प्राप्त नहीं है (अनुच्छेद 88)।
- इससे यह सुनिश्चित होता है कि संसदीय चर्चाएँ एवं निर्णय विधिसम्मत हों।
- स्वतंत्रता एवं जनहित: यद्यपि महान्यायवादी की नियुक्ति सरकार द्वारा की जाती है, तथापि उसे न्याय के हित में निष्पक्ष रूप से कार्य करना होता है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका के महान्यायवादी के विपरीत, भारत के महान्यायवादी को विधि प्रवर्तन पर कार्यकारी अधिकार प्राप्त नहीं होते और वह केवल विधिक सलाहकार तथा प्रतिनिधि की भूमिका में कार्य करता है।
निष्कर्ष:
भारत के महान्यायवादी सरकार की विधिक व्यवस्था में एक केंद्रीय व्यक्ति होता है; उसकी सलाहकार और प्रतिनिधिक भूमिकाएँ सरकार एवं न्यायपालिका की कार्यप्रणाली में अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। उसके विधिक ज्ञान से शासन-प्रशासन में विधि का शासन बना रहता है तथा यह सुनिश्चित होता है कि सरकार अपनी विधिक सीमाओं के भीतर ही कार्य करे।