प्रश्न. उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति महासागरीय और वायुमंडलीय प्रणालियों के बीच जटिल अंतःक्रियाओं के कारण होती है। हिंद महासागर क्षेत्र के विशेष संदर्भ में उनके निर्माण और क्षेत्रीय वितरण के लिये जिम्मेदार कारकों पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- उष्णकटिबंधीय चक्रवातों को परिभाषित कीजिये और इनकी प्रमुख विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
- उनके निर्माण के लिये आवश्यक महासागरीय और वायुमंडलीय स्थितियों की विवेचना कीजिये तथा बताइये कि चक्रवात मुख्य रूप से कुछ क्षेत्रों में ही (विशेष रूप से हिंद महासागर में) क्यों बनते हैं?
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
उष्णकटिबंधीय चक्रवात तीव्र निम्न-दाब प्रणालियाँ हैं, जहाँ तीव्र पवन और भारी वर्षा होती है, जो सागरीय एवं वायुमंडलीय स्थितियों के बीच जटिल अंतर्क्रियाओं के परिणामस्वरूप होती हैं। ये चक्रवात तटीय आबादी (विशेष रूप से हिंद महासागर क्षेत्र में जो प्रायः और कभी-कभी अत्यधिक विनाशकारी चक्रवातों के लिये प्रवण होता है) पर अपने विनाशकारी प्रभाव डालती हैं।
मुख्य भाग:
उष्णकटिबंधीय चक्रवात निर्माण के लिये उत्तरदायी प्रमुख कारक:

महासागरीय कारक:
- समुद्री सतह का तापमान (SST): उष्णकटिबंधीय चक्रवातों को आवश्यक नमी और संघनन की गुप्त उष्मा की आपूर्ति के लिये 27 डिग्री सेल्सियस से अधिक समुद्री सतह के तापमान की आवश्यकता होती है, जो संवहन को बढ़ावा देता है और चक्रवात के विकास को बनाए रखता है।
- हिंद महासागर में यह स्थिति आमतौर पर मानसून-पूर्व (अप्रैल-जून) और मानसून-पश्चात (अक्तूबर-दिसंबर) मौसमों के दौरान पाई जाती है, जिससे ये अवधि चक्रवात उत्पत्ति के लिये प्रवण होती है।
वायुमंडलीय कारक:
- वायुमंडलीय अस्थिरता: वायुमंडलीय अस्थिरता ऊर्ध्वाधर (ऊपर की ओर) पवनों की गति को बढ़ाती है। इसमें समुद्र सतह के निकट की गर्म एवं आर्द्र वायु ऊपर की ठंडी वायु के बीच तेज़ी से ऊपर उठती है, जिससे संवहन और चक्रवाती गतिविधि प्रारंभ हो जाती है।
- यह संवहनी प्रक्रिया, उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के निर्माण एवं तीव्रता के लिये आवश्यक है।
- कोरिओलिस बल: पृथ्वी के घूर्णन से पवनें विक्षेपित होती हैं, जिससे चक्रवाती भँवर बनता है। अपर्याप्त कोरिओलिस बल के कारण भूमध्य रेखा (5° अक्षांश के भीतर) के समीप चक्रवात नहीं बन सकते। अधिकांश चक्रवात 10° और 20° अक्षांशों के बीच बनते हैं।
- निम्न पवन अपरूपण: पवन अपरूपण का तात्पर्य ऊँचाई के साथ पवन की गति या दिशा में परिवर्तन से है। निम्न पवन अपरूपण चक्रवात की संरचना को बनाए रखने और तीव्र होने में सहायक होते हैं।
- अधिक पवन अपरूपण चक्रवात निर्माण में बाधक होता है, क्योंकि यह चक्रवात के संवहन को विस्थापित कर देता है।
- पूर्व-विद्यमान निम्न दाब विक्षोभ: उष्णकटिबंधीय चक्रवात सामान्यतः पहले से विद्यमान निम्न दाब प्रणालियों से उत्पन्न होते हैं, जैसे– पूर्वी लहरें, वायुमंडलीय द्रोणिकाएँ या निम्न दाब क्षेत्र।
- ये विक्षोभ प्रायः ITCZ (विषुवत रेखा के निकट स्थित एक क्षेत्र) के भीतर विकसित होते हैं, जहाँ, उत्तर-पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी व्यापारिक पवनें टकराती हैं, जिससे हवा ऊपर उठती है और लगातार संवहन होता है।
- उच्च वायुमंडलीय अपसरण: चक्रवात के विकास के लिये ऊपरी वायुमंडल में अपसरण आवश्यक है। यह उठती हुई पवन को तेज़ी से बाहर निकालकर केंद्र में निम्न दाब को बनाए रखता है।
हिंद महासागर में चक्रवातों का क्षेत्रीय वितरण और विशेषताएँ:
- हिंद महासागर में चक्रवात मुख्यतः दो क्षेत्रों में आते हैं - बंगाल की खाड़ी और अरब सागर (इनकी आवृत्ति कम होती है, लेकिन कभी-कभी बहुत भयंकर होते हैं)।
- बंगाल की खाड़ी में आने वाले चक्रवातों की आवृत्ति आमतौर पर अरब सागर की तुलना में अधिक होती है और अधिक तीव्र होते हैं, क्योंकि यहाँ समुद्र की सतह का तापमान अधिक होता है तथा वायुमंडलीय परिस्थितियाँ अनुकूल होती हैं।
- बंगाल की खाड़ी का गर्म जल एवं कीप (फनल) आकार की तटरेखा चक्रवाती लहरों को बढ़ाती है, जिससे भारत, बांग्लादेश और म्याँमार जैसे देशों में भारी बाढ़ व क्षति होती है।
- अरब सागर में चक्रवात की आवृत्ति कम होती है, लेकिन इनकी तीव्रता प्रबल हो सकती है, जो प्रायः पश्चिमी भारत, ओमान और यमन को प्रभावित करती है।
- भारतीय महासागर द्विध्रुव (IOD) और एल नीनो-दक्षिणी दोलन (ENSO) जैसी घटनाएँ समुद्री सतह के तापमान एवं वायुमंडलीय परिसंचरण को प्रभावित करती हैं, जिससे चक्रवाती गतिविधियों में परिवर्तन होता है।
निष्कर्ष:
उष्णकटिबंधीय चक्रवात जटिल प्राकृतिक घटनाएँ हैं जो समुद्री ऊष्मा और वायुमंडलीय पैटर्न द्वारा आकार लेती हैं। उनका क्षेत्रीय वितरण (विशेष रूप से हिंद महासागर में) समुद्र की सतह के तापमान, पवन की धाराओं और वायुमंडलीय स्थितियों द्वारा नियंत्रित होता है। चक्रवातों का पूर्वानुमान करने और प्रभावी निगरानी एवं प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों के माध्यम से उनके विनाशकारी प्रभाव को कम करने के लिये इन कारकों को समझना महत्त्वपूर्ण है।