1. नेतृत्व का वास्तविक कार्य अनुयायियों का समूह बनाना नहीं, बल्कि अधिक नेतृत्वकर्त्ता तैयार करना है।
2. स्वतंत्रता, स्वयं के प्रति उत्तरदायी होने की ही इच्छाशक्ति है।
उत्तर :
1. नेतृत्व का वास्तविक कार्य अनुयायियों का समूह बनाना नहीं, बल्कि अधिक नेतृत्वकर्त्ता तैयार करना है।
अपने निबंध को समृद्ध करने के लिये उद्धरण:
- नेतृत्व का वास्तविक कार्य अनुयायियों का समूह बनाना नहीं, बल्कि अधिक नेतृत्वकर्त्ता तैयार करना है। - राल्फ नादेर
- "नेतृत्व किसी उपाधि या पदनाम के बारे में नहीं है। यह प्रभाव, प्रभावशीलता और प्रेरणा के बारे में है।" रॉबिन एस. शर्मा।
- "नेतृत्वकर्त्ता वह है जो रास्ता जानता है, रास्ता चलता है, और रास्ता दिखाता है।" जॉन सी. मैक्सवेल।
- "नेतृत्वकर्त्ता बनने से पहले, सफलता का मतलब है खुद को आगे बढ़ाना। जब आप नेतृत्वकर्त्ता बन जाते हैं, तो सफलता का मतलब है दूसरों को आगे बढ़ाना।" जॉन सी. मैक्सवेल
सैद्धांतिक और दार्शनिक आयाम:
- नेतृत्व की प्रकृति: सच्चा नेतृत्व स्वायत्तता, विकास और समुत्थानशीलता को बढ़ावा देकर दूसरों को सशक्त बनाता है। व्यक्तियों को नेतृत्व करने के लिये प्रेरित करके, यह एक लहर जैसा प्रभाव उत्पन्न करता है जो दीर्घकालिक अनुकूलनशीलता और नवाचार सुनिश्चित करता है।
- उत्तराधिकार और विरासत: किसी नेता की अंतिम विरासत उसकी व्यक्तिगत उपलब्धियों से नहीं, बल्कि उसके द्वारा पीछे छोड़े गए नेताओं और उसके दृष्टिकोण की निरंतरता से मापी जाती है।
- प्रभावी नेता मार्गदर्शन करते हैं, ज़िम्मेदारी सौंपते हैं, आलोचनात्मक सोच को प्रोत्साहित करते हैं, जिससे अन्य लोग स्वामित्व लेने और नवप्रवर्तन करने में सक्षम होते हैं।
- महान नेता अपने दृष्टिकोण को दूसरों पर सख्ती से थोपने के बजाय उसे अपनाने और विस्तार देने के लिये दूसरों को प्रेरित करते हैं।
- भारतीय दर्शन और नेतृत्व: भगवद् गीता "धर्म" और "स्वधर्म" की अवधारणा सिखाती है, जहाँ नेताओं को दूसरों को अपने उद्देश्य और ज़िम्मेदारियों का एहसास कराने के लिये मार्गदर्शन करना चाहिये।
- सुकराती पद्धति: प्रश्न पूछने और संवाद को प्रोत्साहित करती है तथा दूसरों को अपने भीतर ज्ञान और नेतृत्व खोजने में मदद करती है।
ऐतिहासिक एवं नीतिगत उदाहरण:
- अशोक महान: चंद्रगुप्त मौर्य जैसे अपने पूर्ववर्तियों से प्रेरित और उत्साहित होकर, अशोक कलिंग युद्ध के बाद एक क्रूर विजेता से एक दयालु और नैतिक नेतृत्वकर्त्ता में परिवर्तित हो गया।
- गुरु नानक: उन्होंने सेवा और समानता पर आधारित आत्म-साक्षात्कार और नेतृत्व पर ज़ोर दिया तथा अनुयायियों को आध्यात्मिक रूप से नेतृत्वकर्त्ता बनने के लिये प्रेरित किया।
- महात्मा गांधी: लाखों लोगों को अपने क्षेत्र में नेता बनने के लिये प्रेरित किया, स्वतंत्रता के लिये एक जन आंदोलन को बढ़ावा दिया जिससे मार्टिन लूथर किंग जूनियर और नेल्सन मंडेला जैसे वैश्विक नेताओं को प्रभावित हुए।
- स्वामी विवेकानंद: भारतीय संस्कृति और मूल्यों में निहित युवा सशक्तीकरण और स्वतंत्र विचार को प्रोत्साहित किया। उनके मार्ग पर चलने वाले सुधारकों, स्वतंत्रता सेनानियों और आध्यात्मिक नेताओं को प्रेरित किया।
- शिक्षा और नेतृत्व विकास: राष्ट्रीय कैडेट कोर (NCC) और राष्ट्रीय सेवा योजना (NASS) जैसी पहल युवाओं में नेतृत्व गुणों का पोषण करती हैं।
- कॉर्पोरेट लीडरशिप मॉडल (CLM): सफल संगठन कमांड-एंड-कंट्रोल संरचनाओं के बजाय नेतृत्व पाइपलाइन, सलाह और सशक्तीकरण को बढ़ावा देते हैं।
- मिशन कर्मयोगी: यह नियमित प्रशासनिक कार्यों से रणनीतिक नेतृत्व भूमिकाओं पर ध्यान केंद्रित करके नेतृत्व विकास का समर्थन करता है। अधिकारियों को जटिल निर्णय लेने, नवाचार और सार्वजनिक नेतृत्व के लिये तैयार करता है।
समकालीन उदाहरण:
- डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम: विक्रम साराभाई जैसे नेताओं ने डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जैसे दूरदर्शी लोगों का समर्थन और मार्गदर्शन किया, जो बाद में स्वयं एक प्रेरक नेता के रूप में उभरे तथा शिक्षा और नवाचार के माध्यम से भविष्य के नेताओं को विकसित करने की विरासत को आगे बढ़ाया।
- रतन टाटा: भारत में नैतिक व्यावसायिक नेतृत्व को बढ़ावा देते हुए, टाटा समूह के भीतर भावी व्यावसायिक नेताओं को तैयार किया।
- उनकी नेतृत्व शैली को अक्सर ज़िम्मेदारी और नवाचार की संस्कृति विकसित करने का श्रेय दिया जाता है।
- इंद्रा नूयी (पूर्व CEO, पेप्सिको): उन्होंने नेतृत्व की अगली पीढ़ी तैयार करने पर ज़ोर दिया तथा महिलाओं व अल्पसंख्यकों के नेतृत्व की भूमिकाओं में प्रोत्साहित किया। वे मार्गदर्शन (मेंटोरशिप) और संगठन के भीतर दीर्घकालिक नेतृत्व विकास के लिये जानी जाती हैं।"
- जैसिंडा अर्डर्न (न्यूज़ीलैंड की पूर्व प्रधानमंत्री): समावेशी नेतृत्व का अभ्यास किया, युवाओं, महिलाओं और स्वदेशी समुदायों को आवाज दी।
निष्कर्ष: वह नेतृत्व जो स्वयं को दोहराता है, दीर्घकालिक सफलता, नवाचार और सामाजिक प्रगति की आधारशिला होता है। जब नेता दूसरों को नेतृत्व करने के लिये सशक्त बनाते हैं, तो वे एक ऐसी विरासत बनाते हैं जो उनके कार्यकाल से भी आगे तक जीवित रहती है तथा संगठनों व समाजों में सकारात्मक परिवर्तन लाती है। सबसे महान नेता वे होते हैं जो दूसरों को अपने साथ शीर्ष पर लाने के लिये प्रेरित करते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि नेतृत्व की मशाल आगे बढ़ाई जाए, न कि जमा की जाए।अपने निबंध को समृद्ध करने के लिये उद्धरण:
2. स्वतंत्रता, स्वयं के प्रति उत्तरदायी होने की ही इच्छाशक्ति है।
अपने निबंध को समृद्ध करने के लिये उद्धरण:
- "स्वतंत्रता स्वयं के प्रति उत्तरदायी होने की इच्छा है।" फ्रेडरिक नीत्शे
- "स्वतंत्रता का अर्थ है ज़िम्मेदारी है, यही कारण है कि अधिकांश लोग इससे डरते हैं।" जॉर्ज बर्नार्ड शॉ
- “स्वतंत्रता की कीमत है सतत् सतर्कता।” थॉमस जेफरसन
दार्शनिक और सैद्धांतिक आयाम:
- स्वतंत्रता की अवधारणा: स्वतंत्रता केवल संयम का अभाव नहीं है, बल्कि ज़िम्मेदारी और नैतिक रूप से कार्य करने और परिणामों को स्वीकार करने का सचेत विकल्प है।
- सामाजिक अनुबंध सिद्धांत: समाज में व्यवस्था और न्याय बनाए रखने के लिये स्वतंत्रता को सामाजिक ज़िम्मेदारी के साथ संतुलित किया जाता है। ज़िम्मेदारी के बिना स्वतंत्रता अराजकता की ओर ले जाती है, उत्तरदायी स्वतंत्र लोकतंत्र और सामाजिक सद्भाव को मजबूत करती है।
- मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण: उत्तरदायी या ज़िम्मेदार स्वतंत्रता स्वायत्तता, आत्म-नियमन और व्यक्तिगत विकास को बढ़ावा देती है। सार्त्र का दर्शन इस बात पर ज़ोर देता है कि स्वतंत्रता में व्यक्ति के विकल्पों और कार्यों के लिये ज़िम्मेदारी शामिल है।
- भगवद् गीता में मोक्ष को आत्म-अनुशासन और अपने धर्म के प्रति ज़िम्मेदारी के माध्यम से मुक्ति के रूप में वर्णित किया गया है। कर्म योग परिणाम के प्रति आसक्ति के बिना ज़िम्मेदारी से कार्य करना सिखाता है।
- गांधीवादी दृष्टिकोण: गांधीजी स्वतंत्रता को स्वयं, समुदाय और मानवता के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियों को पूरा करने के साधन के रूप में देखते थे। स्वशासन और अनुशासन सच्ची स्वतंत्रता के लिये आवश्यक शर्तें हैं।
- कांटियन एथिक्स: इमैनुअल कांट ने तर्क दिया कि स्वतंत्रता स्वयं-लगाए गए नैतिक कानूनों के माध्यम से प्राप्त की जाती है। ज़िम्मेदारी स्वतंत्रता का सार है, क्योंकि यह नैतिक विकल्प को सक्षम बनाती है।
- प्रामाणिकता: सच्ची स्वतंत्रता स्वयं के प्रति सच्चा होना है, भले ही इसका अर्थ सामाजिक अपेक्षाओं या बाहरी दबावों का विरोध करना हो।
- नैतिक एजेंसी: स्वतंत्र इच्छा से तात्पर्य नैतिक ज़िम्मेदारी से है, हमारे विकल्प सार्थक हैं क्योंकि हम उनके लिये जवाबदेह हैं।
ऐतिहासिक एवं नीतिगत उदाहरण:
- लोकतांत्रिक समाज: लोकतंत्र का आधार व्यक्तिगत स्वतंत्रता है जो नागरिक ज़िम्मेदारी के साथ संतुलित है, उदाहरण के लिये, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को हिंसा न भड़काने के कर्त्तव्य के साथ जोड़ा गया है।
- दक्षिण अफ्रीका का सत्य और सुलह आयोग (TRC) इस विचार का उदाहरण है कि सच्ची स्वतंत्रता में व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से अपने कार्यों की ज़िम्मेदारी लेना शामिल है।
- TRC प्रक्रिया ने अपराधियों को अपने गलत कार्यों को स्वीकार करने और पीड़ितों को अपने अनुभव बताने के लिये प्रोत्साहित किया, जिससे जवाबदेही और नैतिक ज़िम्मेदारी को बढ़ावा मिला।
- संवैधानिक प्रावधान: भारतीय संविधान कर्तव्यों के साथ-साथ मौलिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है (अनुच्छेद 51A)।
- RTI अधिनियम (भारत): सूचना का अधिकार नागरिकों को सशक्त बनाता है, लेकिन यह उनसे यह भी अपेक्षा करता है कि वे सूचना का उपयोग सार्वजनिक हित के लिये ज़िम्मेदारी से करें।
- पर्यावरण संरक्षण: संसाधनों के दोहन की स्वतंत्रता को भावी पीढ़ियों के प्रति ज़िम्मेदारी के साथ संतुलित किया जाना चाहिये।
समकालीन उदाहरण:
- सोशल मीडिया: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अक्सर ज़िम्मेदारी के बिना दुरुपयोग किया जाता है, जिससे गलत सूचना और ध्रुवीकरण को बढ़ावा मिलता है।
- उद्यमिता: जो समाज विफलता को कलंकमुक्त करते हैं, वे नवाचार को बढ़ावा देते हैं, लेकिन यह स्वतंत्रता हितधारकों और समाज के प्रति ज़िम्मेदारी के साथ आती है।
निष्कर्ष: स्वतंत्रता की सर्वोच्च अभिव्यक्ति स्वयं, दूसरों और समाज के प्रति उत्तरदायी होती है। सच्ची स्वतंत्रता कोई लाइसेंस नहीं है, बल्कि ईमानदारी, आत्म-नियंत्रण और कर्त्तव्य की भावना के साथ कार्य करने की इच्छा है। जब व्यक्ति ज़िम्मेदारी स्वीकार करता है तभी स्वतंत्रता न्याय, सद्भाव और प्रगति में योगदान देती है।