• प्रश्न :

    एक ग्राम पंचायत के सरपंच के रूप में, आप एक सरकारी प्राथमिक विद्यालय की देखरेख करते हैं, जहाँ छात्र-छात्राओं को मध्याह्न भोजन भी प्रदान किया जाता है। हाल ही में, उचित प्रक्रिया और पात्रता मानदंडों का पालन करते हुए, सरकारी मानदंडों के अनुसार एक नया रसोइया नियुक्त किया गया था। हालाँकि, यह पता चला है कि रसोइया अनुसूचित जाति समुदाय से है। जातिगत पूर्वाग्रहों से प्रभावित माता-पिता का एक वर्ग अपने बच्चों को भोजन खाने से रोकना शुरू कर देता है। परिणामस्वरुप, विद्यालय में उपस्थिति कम हो जाती है, जिससे मध्याह्न भोजन योजना की निरंतरता, शिक्षकों की नियुक्ति और यहाँ तक कि स्कूल के कामकाज़ को लेकर भी चिंताएँ बढ़ जाती हैं।

    यह स्थिति न केवल बच्चों की शिक्षा के लिये बल्कि सामाजिक सद्भाव, समावेशिता और लोक कल्याण कार्यक्रमों की विश्वसनीयता के लिये भी खतरा है।

    प्रश्न:

    1. सरपंच को किन नैतिक दुविधाओं का सामना करना पड़ता है?
    2. जातिगत संघर्ष को हल करने और विद्यालय में विद्यार्थियों की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिये सरपंच क्या कदम उठा सकते हैं?
    3. विभिन्न हितधारक सार्वजनिक सेवाओं में किस प्रकार समावेशी प्रथाओं का समर्थन कर सकते हैं?

    23 May, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 4 केस स्टडीज़

    उत्तर :

    परिचय:

    यह स्थिति एक जटिल नैतिक चुनौती प्रस्तुत करती है, जहाँ जाति-आधारित भेदभाव बच्चों की शिक्षा और सामाजिक सद्भाव दोनों को कमज़ोर करता है। सरपंच को शिक्षा प्रणाली के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करते हुए समानता और न्याय के संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखने की दुविधा का सामना करना पड़ता है। इस संघर्ष को हल करने के लिये एक व्यावहारिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो किसी भी समूह के अधिकारों से समझौता किये बिना समावेशिता को बढ़ावा दे सके।

    हितधारक

    भूमिका/रुचि

    सरपंच (मैं)

    मध्याह्न भोजन योजना की निरंतरता सुनिश्चित करना तथा सामाजिक सद्भाव बनाए रखना।

    अभिभावक

    अपने बच्चों के कल्याण के प्रति चिंता, लेकिन जातिगत पूर्वाग्रहों से भी प्रेरित।

    रसोइया

    अपने कर्त्तव्यों का सम्मानपूर्वक निर्वहन करना तथा विद्यालय के मध्याह्न भोजन कार्यक्रम में सहयोग करना।

    सरकारी अधिकारी

    शैक्षिक कार्यक्रमों का उचित कार्यान्वयन सुनिश्चित करना।

    मुख्य भाग:

    1.सरपंच को किन नैतिक दुविधाओं का सामना करना पड़ता है?

    • संवैधानिक नैतिकता बनाम सामाजिक पूर्वाग्रह: यह स्थिति अनुच्छेद 17 के तहत अस्पृश्यता को समाप्त करने के संवैधानिक आदेश और समुदाय के भीतर प्रचलित जातिगत पूर्वाग्रहों के बीच संघर्ष को प्रस्तुत करती है। यह परंपरा में निहित सामाजिक बहिष्कार के गंभीर मुद्दे को दर्शाता है।
    • शैक्षिक पहुँच बनाम सामाजिक सद्भाव: मध्याह्न भोजन योजना को लागू करने से समुदाय के एक वर्ग के अलग-थलग पड़ने का खतरा है, जिससे तनाव बढ़ सकता है तथा विद्यालय में उपस्थिति और भी कम हो सकती है।
      • दुविधा यह है कि रसोइये के सेवा करने के अधिकार (Right to Profession) को बरकरार रखा जाए या जाति के आधार पर रसोइये का विरोध करने वाले माता-पिता के सामाजिक दबाव को संतुष्ट किया जाए।
    • अल्पकालिक अनुपालन बनाम दीर्घकालिक प्रभाव: सरपंच को विद्यालय में उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिये अल्पकालिक उपायों (जैसे अभिभावकों को संतुष्ट करना) को लागू करने, या दीर्घकालिक सामाजिक न्याय के लिये दृढ़ रुख अपनाने के बीच निर्णय लेना होता है, जिससे अस्थायी अशांति उत्पन्न हो सकती है, लेकिन समुदाय के भविष्य के सामाजिक सामंजस्य को मज़बूती मिलेगी।

    2.जातिगत संघर्ष को हल करने और विद्यालय में विद्यार्थियों की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिये सरपंच क्या कदम उठा सकते हैं

    • माता-पिता को संवेदनशील बनाना: सरपंच माता-पिता को जाति-आधारित भेदभाव के हानिकारक प्रभाव और अनुसूचित जाति समुदायों के व्यक्तियों के कानूनी अधिकारों के बारे में शिक्षित करने के लिये सामुदायिक बैठकें (ग्राम सभा) आयोजित कर सकते हैं।
      • स्थानीय समुदाय के नेताओं द्वारा एकता और सामाजिक न्याय की अपील करने से पूर्वाग्रह को कम करने में मदद मिल सकती है।
    • कानूनी अधिकारों पर प्रकाश डालना: संवैधानिक प्रावधानों (अनुच्छेद 14, 15, 17) और सीमांत समुदायों के उत्थान के लिये बनाई गई सरकारी योजनाओं के बारे में जागरूकता बढ़ाने से रसोइये के प्रति समर्थन को बढ़ावा मिल सकता है तथा जाति-आधारित पूर्वाग्रहों को कम किया जा सकता है।
    • रसोइये के साथ संपर्क स्थापित करना: सरपंच को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि नये रसोइये को पेशेवर और व्यक्तिगत रूप से सहयोग मिले तथा विद्यालय के संचालन में उनकी भूमिका के महत्त्व को दोहराया जाना चाहिये।
      • सरपंच रसोइये की योग्यता और सरकारी मानदंडों के अनुपालन की सार्वजनिक रूप से पुष्टि करके समुदाय में विश्वास कायम कर सकते हैं, साथ ही नियमित भोजन की गुणवत्ता की जाँच और निगरानी के माध्यम से चिंताओं का समाधान भी कर सकते हैं।
    • यदि आवश्यक हो तो कठोर कार्रवाई करना: यदि जाति-आधारित बहिष्कार जारी रहता है, तो सरपंच को बिना किसी भेदभाव के विद्यालय का संचालन सुनिश्चित करके संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखना चाहिये।
      • इसके लिये कड़ा रुख अपनाने की आवश्यकता हो सकती है, जिसमें मामले को ज़िला शिक्षा अधिकारी जैसे उच्च अधिकारियों तक ले जाना भी शामिल है।
    • शिकायत निवारण समिति: पारदर्शी तरीके से चिंताओं का समाधान करने के लिये अभिभावकों, शिक्षकों और सीमांत वर्गों के प्रतिनिधियों वाला एक पैनल गठित किया जा सकता है।

    3.विभिन्न हितधारक सार्वजनिक सेवाओं में किस प्रकार समावेशी प्रथाओं का समर्थन कर सकते हैं?

    • स्थानीय सरकार (पंचायत): पंचायत गाँव के भीतर सामाजिक न्याय की मिसाल कायम करके जाति-आधारित बहिष्कार को दूर करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
      • यह स्थानीय प्राधिकारियों के साथ मिलकर यह सुनिश्चित कर सकता है कि शैक्षणिक योजना जातिगत पूर्वाग्रहों के हस्तक्षेप के बिना जारी रहे।
    • विद्यालय प्रशासन: विद्यालय प्रशासन और शिक्षकों को समावेशी प्रथाओं का समर्थन करना चाहिये तथा यह सुनिश्चित करना चाहिये कि सभी छात्रों को, चाहे वे किसी भी जाति के हों, शिक्षा एवं मध्याह्न भोजन योजना जैसे सरकारी संसाधनों तक समान पहुँच हो।
      • शिक्षक ऐसा वातावरण बनाकर समावेशिता को बढ़ावा दे सकते हैं जहाँ विद्यार्थियों को विविधता को स्वीकार करने के लिये प्रोत्साहित किया जा सके।
    • सरकारी प्राधिकारी: शिक्षा विभाग जैसे कि ज़िला शिक्षा अधिकारी यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि मध्याह्न भोजन योजना का क्रियान्वयन अपेक्षित रूप से हो तथा विद्यालय संचालन की नियमित निगरानी की जानी चाहिये, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई जाति-आधारित भेदभाव न हो।
    • सामुदायिक नेता: ये नेता सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिये प्रभावशाली आवाज़ के रूप में काम कर सकते हैं, जातिगत समानता के महत्त्व और सरकारी कल्याणकारी योजनाओं के मूल्य पर बल दे सकते हैं। उनका समर्थन समुदाय के दृष्टिकोण को बदलने और जाति-आधारित बहिष्कार को कम करने में एक लंबी राह तय कर सकता है।

    निष्कर्ष:

    सरपंच की रणनीति में त्वरित सुधारों की तुलना में प्रणालीगत बदलाव को प्राथमिकता दी जानी चाहिये। ज़मीनी स्तर पर समावेशन, संस्थागत सुधार और हितधारक सहयोग को मिलाकर, गाँव में शिक्षा की सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए जातिगत बाधाओं को समाप्त किया जा सकता है। यह दृष्टिकोण संवैधानिक मूल्यों के अनुरूप होगा, जो स्थायी सामाजिक सद्भाव सुनिश्चित करता है।