• प्रश्न :

    प्रश्न. भ्रष्टाचार राष्ट्रीय विकास में किस प्रकार बाधा उत्पन्न करता है तथा शासन में भ्रष्टाचार से निपटने के संबंध में कौटिल्य के क्या विचार थे? (150 शब्द)

    22 May, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भ्रष्टाचार राष्ट्रीय विकास के विभिन्न पहलुओं को किस प्रकार प्रभावित करता है। विवेचना कीजिये।
    • चर्चा कीजिये कि भ्रष्टाचार किस प्रकार विकास, समानता और संस्थाओं में विश्वास में बाधा डालता है, तथा अर्थशास्त्र से कौटिल्य के विचार एवं समाधान बताइये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    भ्रष्टाचार समस्त विश्व में राष्ट्रों के समक्ष उपस्थित एक अत्यंत गंभीर एवं व्यापक चुनौती है। यह आर्थिक समृद्धि को बाधित करता है, संस्थागत कार्यढाँचे को कमज़ोर करता है, सामाजिक विषमताओं को और अधिक गहराता है तथा जनता के विश्वास को क्षीण करता है। चाणक्य (कौटिल्य) ने अपने ग्रंथ अर्थशास्त्र में भ्रष्टाचार की भयावहता तथा उसके नियंत्रण हेतु उपायों का गहन विवेचन किया है, जो आज भी नीति-निर्माण और प्रशासन के क्षेत्र में अत्यंत प्रासंगिक हैं।

    मुख्य भाग:

    राष्ट्रीय विकास पर भ्रष्टाचार का प्रभाव:

    • आर्थिक परिणाम: भ्रष्टाचार लागत बढ़ाकर, निवेश को रोककर तथा सार्वजनिक धन को आवश्यक सेवाओं से हटाकर बाज़ार को विकृत करता है, जिससे अकुशलता और धीमी आर्थिक वृद्धि होती है।
    • सामाजिक बहिष्कार: भ्रष्टाचार सीमांत और कमज़ोर समूहों को सामाजिक कल्याण योजनाओं, न्याय एवं अवसरों तक पहुँच से वंचित करके उन्हें असमान रूप से नुकसान पहुँचाता है।
      • उदाहरण के लिये, कई राज्यों में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत सब्सिडी वाले खाद्यान्न का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग गरीबी उन्मूलन के प्रयासों को कमज़ोर करता है तथा कल्याणकारी योजनाओं में समानता एवं विश्वास को नुकसान पहुँचाता है।
    • विधि के शासन का क्षरण: भ्रष्टाचार संरक्षणवाद, वंशवाद और ग्राहकवाद को बढ़ावा देकर लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमज़ोर करता है।
      • लोक सेवक सार्वजनिक हित की अपेक्षा व्यक्तिगत लाभ को प्राथमिकता देते हैं, जिससे सरकार की विश्वसनीयता और कानूनों को न्यायसंगत रूप से लागू करने की उसकी क्षमता कम हो जाती है।
    • राजनीतिक अस्थिरता और संघर्ष: जब भ्रष्टाचार प्रणालीगत हो जाता है, तो इससे जनता में निराशा, विरोध और कभी-कभी हिंसा होती है।
    • यह सरकारों को अस्थिर कर सकता है और दीर्घकालिक नीति निरंतरता में बाधा उत्पन्न कर सकता है, जिससे राष्ट्रीय विकास की दिशा प्रभावित हो सकती है।

    भ्रष्टाचार और शासन पर कौटिल्य के विचार: कौटिल्य के अर्थशास्त्र (4 वीं शताब्दी ईसा पूर्व) में भ्रष्टाचार को शासक के अधिकार और राज्य के कल्याण के लिये एक गंभीर खतरा माना गया है। भ्रष्टाचार से निपटने के लिये उनका दृष्टिकोण बहुआयामी था:

    • कठोर कानूनी कार्यढाँचा और दंड: कौटिल्य ने भ्रष्ट अधिकारियों के लिये कठोर दंड का प्रावधान किया था, जिसमें जुर्माना, कारावास या यहाँ तक ​​कि मृत्युदंड भी शामिल था, ताकि वे मज़बूत निवारक के रूप में कार्य कर सकें।
    • निगरानी और खुफिया: राजा को अधिकारियों के आचरण पर नजर रखने, भ्रष्ट आचरण का शीघ्र पता लगाने तथा जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिये जासूसों और लेखा परीक्षकों का एक नेटवर्क नियुक्त करने की सलाह दी गई।
    • नैतिक शिक्षा: कौटिल्य ने अधिकारियों को नैतिक कर्त्तव्यों का प्रशिक्षण देने तथा राज्य और उसके लोगों के प्रति निष्ठा को बढ़ावा देने पर बल दिया। उन्होंने प्रशासकों में सत्यनिष्ठा उत्पन्न करने के महत्त्व को अभिनिर्धारित किया।
    • नियंत्रण और संतुलन: अर्थशास्त्र प्रशासनिक जिम्मेदारियों को विभाजित करने और सत्ता के संकेंद्रण, जो भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे सकता है, को रोकने के लिये अतिव्यापी नियंत्रण लागू करने पर बल देता है।
    • लोक कल्याण पर ध्यान: कौटिल्य ने इस बात पर बल दिया था कि सुशासन में लोक कल्याण को प्राथमिकता दी जानी चाहिये; भ्रष्टाचार के माध्यम से इस विश्वास के साथ विश्वासघात राज्य की नींव को ज़ोर करता है।

    निष्कर्ष:

    कौटिल्य के दृष्टिकोण में संस्थागत पारदर्शिता, स्वतंत्र निरीक्षण और सख्त विधिक नियंत्रण सहित कई आधुनिक भ्रष्टाचार विरोधी उपायों की अपेक्षा की गई है। उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण नैतिक शिक्षा को प्रवर्तन के साथ जोड़ता है, जो इस बात पर बल देता है कि भ्रष्टाचार से निपटने के लिये नैतिक नेतृत्व और संरचनात्मक सुधार दोनों की आवश्यकता होती है।