प्रश्न. 'अंत:करण की चेतना' शब्द का आपके लिये क्या अर्थ है तथा इसे सुनने और प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया देने के लिये कोई व्यक्ति स्वयं को किस प्रकार प्रशिक्षित कर सकता है? (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- 'अंत:करण की चेतना' शब्द को परिभाषित कीजिये तथा व्यक्तिगत नैतिकता और निर्णय लेने में इसके महत्त्व की व्याख्या कीजिये।
- चर्चा कीजिये कि अंत:करण की चेतना नैतिक निर्णय एवं नैतिक व्यवहार को किस प्रकार निर्देशित करती है तथा अंत:करण की चेतना सुनने और उसके अनुसार कार्य करने की क्षमता विकसित करने के व्यावहारिक तरीकों की व्याख्या कीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
'अंत:करण की चेतना' एक आंतरिक नैतिक मार्गदर्शक है जो किसी व्यक्ति को सही और गलत के बीच अंतर करने में मदद करती है। यह सूक्ष्म किंतु अंतरात्मा की वह शक्तिशाली आवाज़ है जो किसी व्यक्ति को सत्यनिष्ठा, निष्पक्षता एवं न्याय की ओर धकेलती है। यह विवेक व्यक्तिगत अखंडता और सामाजिक सद्भाव के लिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह जवाबदेही को बढ़ावा देता है तथा बाह्य प्रवर्तन के अभाव में भी नैतिक आचरण को प्रोत्साहित करता है।
मुख्य भाग:
- अंत:करण की चेतना एक सतत् स्व-नियामक तंत्र के रूप में कार्य करती है। यह गलत काम करने पर अपराध या पश्चाताप की भावना जागृत करके व्यवहार को प्रभावित करती है तथा जब कोई अच्छे काम करता है तो शांति की भावना उत्पन्न करती है।
- इमैनुअल कांट के अनुसार, विवेक नैतिक निर्णय का आंतरिक न्यायालय है।
- यह एक आंतरिक क्षमता है जो व्यक्ति के कार्यों के नैतिक मूल्य का आकलन करती है तथा व्यक्ति को कर्त्तव्य और नैतिक कानून के अनुसार कार्य करने के लिये बाध्य करती है।
- रूसो ने विवेक को एक दैवीय प्रवृत्ति के रूप में देखा, जो मनुष्यों के भीतर एक प्राकृतिक मार्गदर्शक है जो उन्हें अच्छाई एवं न्याय की ओर निर्देशित करता है।
- आध्यात्मिक रूप से, अंतःकरण को अंतर्यामी के रूप में देखा जाता है, जो सभी प्राणियों के भीतर दिव्य आंतरिक मार्गदर्शक या साक्षी है तथा यह आत्मा से निकटता से जुड़ा हुआ है, जो शुद्ध ‘आंतरिक स्व’ है जो व्यक्ति को धर्म की ओर ले जाता है।
सुनने और विवेक के अनुसार कार्य करने की क्षमता विकसित करने के तरीके
- आत्म-चिंतन: प्रतिदिन अपने निर्णयों, विचारों एवं भावनाओं की समीक्षा करने से व्यक्ति को अपनी नैतिक प्रेरणाओं और दुर्बलताओं का बोध होता है। विशेष रूप से यह अभ्यास आवश्यक है, क्योंकि यह आचरण में पारदर्शिता और आत्म-दायित्व को प्रोत्साहित करता है। भावनात्मक और नैतिक द्वंद्वों को डायरी में लिपिबद्ध करना अंतःकरण की चेतना को स्पष्टता प्रदान करता है।
- मानसिक सजगता: माइंडफुलनेस का अभ्यास करने से व्यक्ति अपने भीतरी संकेतों—जैसे कि किसी निर्णय के समय उत्पन्न होने वाला असहज भाव या संकोच, के प्रति अधिक संवेदनशील होता है, जो किसी नैतिक टकराव का संकेत हो सकते हैं।
- भावनात्मक रूप से जागरूक होने से व्यक्ति को आवेगपूर्ण प्रतिक्रिया करने के बजाय रुककर अपने विकल्पों के नैतिक आयामों का आकलन करने का अवसर मिलता है।
- नैतिक शिक्षा: नैतिक दार्शनिकों, धार्मिक परंपराओं तथा प्रेरणादायक व्यक्तित्वों के जीवन का अध्ययन करने से नैतिक विवेक विकसित होता है। 'न्याय', 'करुणा', 'कर्त्तव्य' जैसे सिद्धांतों का अध्ययन न केवल एक लोक सेवक की अंतरात्मा को मार्गदर्शन देता है, बल्कि प्रशासनिक निर्णयों में मानवीय मूल्यों को समाहित करने की क्षमता भी प्रदान करता है।
- नैतिक साहस का विकास करना, भय, सामाजिक दबाव या व्यक्तिगत क्षति के बावजूद सिद्धांतों के लिये खड़े रहना, अंत:करण की चेतना को सार्थक ढंग से प्रतिक्रिया देने के लिये आवश्यक है।
- संवाद और मार्गदर्शन की तलाश: नैतिक दुविधाओं को समझने और अपने मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता को सुदृढ़ करने के लिये विश्वसनीय मार्गदर्शकों और साथियों के साथ ईमानदार संवाद अत्यंत आवश्यक है। ऐसे संवाद न केवल नैतिक स्पष्टता प्रदान करते हैं, बल्कि आत्मचिंतन की प्रक्रिया को भी प्रोत्साहित करते हैं।
- नैतिक अभ्यास की आदत: अंतरात्मा की स्पष्टता और दृढ़ता नियमित नैतिक निर्णयों के अभ्यास से विकसित होती है। जब कोई अभ्यर्थी छोटे-छोटे निर्णयों में भी अपने अंतःकरण की चेतना के अनुरूप कार्य करता है, तो उससे नैतिक अनुशासन एवं आत्मविश्वास का विकास होता है, जो प्रशासनिक सेवा में अत्यंत आवश्यक गुण हैं।
निष्कर्ष:
सत्यनिष्ठा और सामाजिक जिम्मेदारी के जीवन के लिये अंत:करण की चेतना अपरिहार्य है। आत्म-जागरूकता, भावनात्मक बुद्धिमत्ता, नैतिक ज्ञान और साहस को सचेत रूप से विकसित करके, व्यक्ति इस आंतरिक आवाज़ को दृढ़ कर सकते हैं तथा यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि यह उनके निर्णयों एवं कार्यों को आकार दे।