प्रश्न. भारत में किन संरचनात्मक और सामाजिक-सांस्कृतिक कारकों के कारण ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को कल्याणकारी योजनाओं तक प्रभावी ढंग से पहुँचने में बाधाएँ आती हैं? साथ ही, इन बाधाओं को दूर करने और उनके बेहतर समावेशन को सुनिश्चित करने के लिये विशिष्ट उपाय सुझाएँ। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण :
- भारत में कल्याणकारी योजनाओं तक पहुँचने में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के समक्ष आने वाली चुनौतियों को परिभाषित कीजिये।
- ट्रांसजेंडर समुदाय के समक्ष आने वाली प्रणालीगत और सामाजिक बाधाओं की समीक्षा करना तथा उनके प्रभावी समावेशन के लिये समावेशी नीतियों और बेहतर सेवा वितरण का सुझाव दीजिये।
- उपर्युक्त निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को 'थर्ड जेंडर' के रूप में मान्यता दिये जाने और ट्रांसजेंडर व्यक्ति अधिनियम, 2019 के बावजूद, सरकारी नीतियाँ अभी भी लिंग आधारित दृष्टिकोण का पालन करती हैं। नतीजतन, 4.88 लाख ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (जनगणना 2011) में से कई हाशिये पर होने के कारण कल्याणकारी योजनाओं से वंचित रह गए हैं।
मुख्य भाग:
कल्याणकारी योजनाओं तक ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की पहुँच में संरचनात्मक और सामाजिक-सांस्कृतिक बाधाएँ:
- कानूनी मान्यता का अभाव: कई ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के पास उनके लिंग को दर्शाने वाले पहचान दस्तावेज़ों का अभाव होता है, जिससे कल्याणकारी योजनाओं तक उनकी पहुँच सीमित हो जाती है, जिनके लिये ऐसे सत्यापन की आवश्यकता होती है।
- सरकारी प्रणालियाँ अक्सर द्विआधारी (बाइनरी) लिंग मानदंडों का पालन करती हैं, जिसके कारण ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को लिंग-विशिष्ट लाभों से बाहर रखा जाता है।
- समाज से बहिष्कार: ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को समावेशी सुविधाओं के अभाव में सामाजिक बहिष्कार, सार्वजनिक स्थानों तक सीमित पहुँच और उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है।
- शिक्षा में भेदभाव: ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को स्कूलों/कॉलेजों में उत्पीड़न और भेदभाव का सामना करना पड़ता है, जिसके कारण उनमें ड्रॉपआउट रेट अधिक है। इनकी साक्षरता दर मात्र 46% है, जबकि राष्ट्रीय औसत 74% है।
- भारत में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को स्वास्थ्य देखभाल में भेदभाव का सामना करना पड़ता है तथा उनमें HIV के प्रति संवेदनशीलता अधिक होती है, जहाँ इसकी व्यापकता दर 3.1% (UNAIDS) है।
- उनके पास समर्पित स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं का अभाव है, केवल हैदराबाद में ही ऐसा एक केंद्र है, जो अब बंद हो चुका है।
- आजीविका के सीमित अवसरों के कारण ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को अक्सर भीख माँगने, यौनकर्म या शोषणमूलक मनोरंजन उद्योगों में कार्य करने के लिये मज़बूर होना पड़ता है।
- बेघर होना: परिवार द्वारा अस्वीकार किया जाना और समावेशी आवास विकल्पों का अभाव कई ट्रांसजेंडर युवाओं को बेघर होने के लिये मज़बूर करता है, जहाँ वे दुर्व्यवहार, मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं और मादक द्रव्यों के सेवन के प्रति संवेदनशील होते हैं।
- ट्रांसफोबिया: व्यापक ट्रांसफोबिया, जो ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के प्रति भय, पूर्वाग्रह और शत्रुता से चिह्नित है, के परिणामस्वरूप सार्वजनिक और निजी दोनों स्थानों पर व्यापक भेदभाव, उत्पीड़न और हिंसा होती है।
- ट्रांसफोबिया (ट्रांसजेंडरों के प्रति भय/घृणा): ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के प्रति व्याप्त भय, पूर्वाग्रह और शत्रुता की भावना, जिसे ट्रांसफोबिया कहा जाता है, के कारण सार्वजनिक और निजी दोनों ही क्षेत्रों में वह भेदभाव, उत्पीड़न और हिंसा के शिकार होते है।
- सामाजिक कलंक, पारिवारिक अस्वीकृति और निरंतर भेदभाव के कारण ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्यों का मानसिक स्वास्थ्य गंभीर रूप से प्रभावित होता है। उनमें तनाव संबंधी विकारों, गहन निराशा और आत्मघाती प्रवृत्तियों का जोखिम सामान्य आबादी की तुलना में कहीं अधिक होता है।
- सार्वजनिक प्रतिनिधित्व: मीडिया में नकारात्मक चित्रण और सार्वजनिक चर्चाओं में सीमित दृश्यता हानिकारक रूढ़िवादिता को बढ़ावा देती है, जिससे सामाजिक अस्वीकृति बदती है तथा भेदभाव को और बल मिलता है।
नीतिगत उपाय
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विवरण
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ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019
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इसका उद्देश्य शिक्षा, रोज़गार और स्वास्थ्य सेवा में भेदभाव को समाप्त करना है।
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ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिये राष्ट्रीय पोर्टल
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ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिये प्रमाण पत्र और पहचान पत्र के लिये डिजिटल रूप से आवेदन करने हेतु ऑनलाइन प्लेटफॉर्म।
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गरिमा गृह
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ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को आश्रय, भोजन, चिकित्सा देखभाल और मनोरंजन सुविधाएँ प्रदान करता है।
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ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिये राष्ट्रीय परिषद
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सरकार को सलाह देने हेतु ट्रांसजेंडर व्यक्ति अधिनियम के तहत स्थापित।
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इन बाधाओं को दूर करने के उपाय:
- कल्याणकारी योजनाओं को थर्ड जेंडर को ध्यान में रखकर तैयार किया जाना चाहिये तथा इसमें सरल दस्तावेज़ीकरण प्रक्रिया होनी चाहिये, जिससे ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को भी सुविधा मिल सके।
- इसके अतिरिक्त, नीति कार्यान्वयन में ट्रांसजेंडर समावेशन को बढ़ावा देना आवश्यक है, जैसे कि आशा कार्यकर्त्ताओं, आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं और महिला पुलिस स्वयंसेवकों जैसी भूमिकाओं के माध्यम से, यह सुनिश्चित करना कि समुदाय और स्वास्थ्य संबंधी पहलों में उनकी प्रमुख उपस्थिति हो।
- कल्याणकारी सेवाओं तक समान पहुँच सुनिश्चित करने के लिये सार्वजनिक सेवा कर्मचारियों को संवेदनशीलता और भेदभाव-विरोधी प्रथाओं में प्रशिक्षित किया जाना चाहिये।
- ट्रांसजेंडर पहचान की कानूनी मान्यता को मज़बूत तथा सामाजिक सुरक्षा प्रावधानों में सुधार करना।
निष्कर्ष:
ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के समक्ष आने वाली विशिष्ट चुनौतियों के प्रति कानूनी, प्रशासनिक और कानून प्रवर्तन प्रणालियों को संवेदनशील बनाने पर ध्यान केंद्रित करने वाली नीतियों तथा विनियमों से परे एक व्यापक एवं समावेशी दृष्टिकोण आवश्यक है।