• प्रश्न :

    प्रश्न .समकालीन समाज में नैतिक मूल्यों का संकट किस हद तक बेहतर जीवन की सीमित समझ का परिणाम है? (150 शब्द)

    08 May, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • ‘आदर्श जीवन’ की अवधारणा को परिभाषित कीजिये तथा बताइये कि इसकी संकीर्ण व्याख्या किस प्रकार नैतिक संकटों में योगदान करती है।
    • समकालीन नैतिक दुविधाओं को आयाम देने में भौतिकवाद, व्यक्तिवाद और तकनीकी प्रगति की भूमिका पर चर्चा कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    ‘आदर्श जीवन’ की अवधारणा कल्याण, पूर्णता और आनंद की एक आदर्श स्थिति को संदर्भित करती है। इसे प्रायः एक ऐसे जीवन के रूप में देखा जाता है जो सार्थक, आनंदमय तथा किसी के मूल्यों एवं इच्छाओं के अनुरूप होता है। आधुनिक समाज में नैतिक संकट का मुख्य कारण 'सुखी जीवन' की एक संकीर्ण और भौतिकवादी परिभाषा है, जिसे प्रायः 'धन', 'सत्ता' एवं 'बाह्य सफलता' से जोड़ा जाता है।

    मुख्य भाग:

    भौतिकवाद और नैतिक पतन:

    • उपभोक्तावाद और भौतिक सफलता: आधुनिक समाजों में, भौतिक संपदा की खोज़ प्रायः आदर्श जीवन के विचार पर हावी हो जाती है तथा ईमानदारी और करुणा जैसे नैतिक मूल्यों को दरकिनार कर देती है।
      • उदाहरण के लिये, कॉर्पोरेट भ्रष्टाचार और पर्यावरण क्षरण प्रायः आर्थिक विकास एवं भौतिक सफलता पर अत्यधिक ज़ोर देने से उत्पन्न होते हैं।
      • भूटान का सकल राष्ट्रीय प्रसन्नता सूचकांक इसे चुनौती देता है तथा भौतिक विकास की तुलना में खुशहाली को अधिक महत्त्व देता है।
    • नैतिक और आध्यात्मिक संतुष्टि की हानि: जब समाज आदर्श जीवन को भौतिक संपदा के बराबर मानने लगता है, तो वह ईमानदारी, दयालुता और सहानुभूति जैसे नैतिक गुणों के महत्त्व की उपेक्षा कर बैठता है।
      • यह संकीर्ण ध्यान नैतिक मूल्यों में संकट को बढ़ावा देता है, जैसा कि अनैतिक व्यापारिक प्रथाओं (क्रोनी पूंजीवाद) के उदय में देखा गया है।
      • उदाहरण के लिये, आपराधिक पृष्ठभूमि वाले राजनीतिक उम्मीदवारों को जनता को प्रभावित करने के लिये खड़ा किया जाता है तथा चरित्र पर नियंत्रण को प्राथमिकता दी जाती है।

    सामाजिक नैतिकता का विघटन:

    • सामूहिक भलाई पर आत्मकेंद्रन: आज के समाज में, व्यक्तिवाद प्रायः सामूहिक भलाई पर हावी हो जाता है। अच्छे जीवन की एक संकीर्ण परिभाषा व्यक्तिगत उपलब्धि और सफलता पर बल देती है, कभी-कभी दूसरों के अधिकारों या आम भलाई की कीमत पर।
      • उदाहरण के लिये, अमीर और गरीब के बीच बढ़ती असमानता निष्पक्षता, न्याय एवं सामाजिक एकजुटता के मूल्यों से दूर जाने को दर्शाती है।
    • सामुदायिक मूल्यों का क्षरण: सामुदायिक और सामाजिक उत्तरदायित्व पर कम ध्यान देने से नैतिक मूल्यों में कमज़ोरी आई है।
      • उदाहरण के लिये, व्यवसाय CSR को जनसंपर्क उपकरण के रूप में उपयोग करते हैं, जबकि वे श्रमिकों का शोषण करते हैं या पर्यावरण को नुकसान पहुँचाते हैं।
      • डिजिटल वर्ल्ड के तेज़ी से विस्तार ने नई नैतिक चिंताओं को जन्म दिया है, जिनका समाधान करने में पारंपरिक नैतिक कार्यढाँचे को संघर्ष करना पड़ता है।
        • उदाहरण के लिये, सोशल मीडिया प्रायः सनसनीखेज़ और स्वार्थ को प्राथमिकता देता है, जबकि संवाद में व्यक्तिगत जिम्मेदारी एवं सहानुभूति को कम करता है।

    निष्कर्ष:

    जब सफलता को भौतिक संपदा और व्यक्तिगत लाभ से मापा जाता है, तो न्याय, निष्पक्षता एवं सहानुभूति जैसे नैतिक सिद्धांतों को नजरअंदाज़ कर दिया जाता है। इस संकट को हल करने के लिये, सामूहिक कल्याण और जिम्मेदारी को बढ़ावा देने वाले नैतिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक आयामों को शामिल करके आदर्श जीवन को पुनः परिभाषित करना आवश्यक है