प्रश्न :
आप एक ऐसे शहर के ज़िला मजिस्ट्रेट हैं जहाँ काफी संख्या में ट्रांसजेंडर समुदाय के लोग रहते हैं। आपको व्यस्त यातायात चौराहों पर ट्रांसजेंडर समुदाय के कुछ सदस्यों द्वारा आक्रामक तरीके से भीख मांगने के बारे में बढ़ती हुई सार्वजनिक शिकायतों का सामना करना पड़ता है। यात्रियों ने बताया कि उन्हें परेशान किया जाता है या पैसे देने के लिए मजबूर किया जाता है साथ ही ट्रैफिक पुलिस ने चौराहों पर होने वाली अव्यवस्था और सुरक्षा जोखिमों के बारे में चिंता जताई है।
जाँच के बाद, आपको पता चलता है कि गहरी सामाजिक बहिष्कार के कारण कई ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को शिक्षा या रोज़गार तक पहुँच सीमित है। कई ट्रांसजेंडर अधिकार समूह इन शिकायतों को स्वीकार करते हैं, लेकिन उनका तर्क है कि समुदाय के कई लोगों के लिये भीख मांगना आजीविका का एकमात्र व्यवहार्य स्रोत बना हुआ है, क्योंकि मुख्यधारा के रोज़गार क्षेत्रों में उन्हें लगातार भेदभाव का सामना करना पड़ता है।
आप पर सार्वजनिक व्यवस्था बहाल करने और सड़क सुरक्षा सुनिश्चित करने का दबाव है, लेकिन साथ ही आप एक ऐतिहासिक रूप से हाशिये पर रहे समुदाय की गरिमा, अधिकारों और सामाजिक न्याय को बनाए रखने की आवश्यकता से भी अवगत हैं।
प्रश्न :
(a) सार्वजनिक व्यवस्था और ट्रांसजेंडर समुदाय के अधिकारों व गरिमा के बीच संतुलन बनाते समय कौन-से प्रमुख नैतिक दुविधाएँ उत्पन्न होती हैं? प्रचलित सामाजिक मानसिकता इन दुविधाओं को कैसे प्रभावित करती है?
(b) तात्कालिक चिंताओं और ट्रांसजेंडर समुदाय के दीर्घकालिक कल्याण को संबोधित करने के लिये आप कौन-सी नीतिगत हस्तक्षेपों पर विचार कर सकते हैं?
09 May, 2025
सामान्य अध्ययन पेपर 4 केस स्टडीज़
उत्तर :
परिचय:
यह मामला समाज के एक संवेदनशील वर्ग के अधिकारों की सुरक्षा और समुदाय के व्यापक सुखदायक अनुभव के बीच सन्तुलन स्थापित करने से सम्बंधित है। इसमें ट्रांसजेंडर व्यक्तियों द्वारा सामाजिक समावेशन में अनुभव किये जाने वाले भेदभाव के मुद्दे, उनकी आजीविका के साधनों (जैसे भीख माँगना या यौनकर्म) से जुड़ी सामाजिक चुनौतियाँ जैसे प्रतिस्पर्द्धी हितों को संबोधित करना शामिल है।
हितधारक
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हित
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ट्रांसजेंडर व्यक्ति
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सम्मानजनक आजीविका तक पहुँच, सामाजिक स्वीकृति, भेदभाव से सुरक्षा।
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यात्री
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निर्बाध एवं सुरक्षित यात्रा, उत्पीड़न में कमी, तथा सुचारू यातायात प्रवाह।
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ज़िला मजिस्ट्रेट (डीएम)
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सार्वजनिक व्यवस्था सुनिश्चित करना, कानूनी और नैतिक ज़िम्मेदारियों को कायम रखना तथा सामाजिक न्याय बनाए रखना।
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राज्य सरकार
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ऐसे कानून और नीतियाँ बनाना जो सार्वजनिक व्यवस्था और ट्रांसजेंडरों के कल्याण के बीच संतुलन बनाए रखें।
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NGO/धर्मार्थ संगठन
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सहायता सेवाएँ प्रदान करना, समान अधिकारों का समर्थन करना तथा पुनर्वास कार्यक्रमों पर कार्य करना।
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मुख्य भाग:
(a) सार्वजनिक व्यवस्था और ट्रांसजेंडर समुदाय के अधिकारों व गरिमा के बीच संतुलन बनाते समय कौन-से प्रमुख नैतिक दुविधाएँ उत्पन्न होती हैं? प्रचलित सामाजिक मानसिकता इन दुविधाओं को कैसे प्रभावित करती है?
- आजीविका का अधिकार बनाम सार्वजनिक व्यवस्था: सीमित सामाजिक-आर्थिक अवसरों के कारण ट्रांसजेंडर अक्सर ट्रैफिक सिग्नल पर भीख मांगने को मज़बूर हो जाते हैं।
- हालाँकि यह उनके लिये आजीविका का एक स्रोत है, लेकिन इससे कभी-कभी यात्रियों को असुविधा होती है, जिससे यातायात प्रभावित होता है।
- प्रशासनिक कर्तव्य बनाम मानवीय उत्तरदायित्व: दुविधा यह है कि कानूनों को प्रभावी ढंग से लागू किया जाए तथा साथ ही यह सुनिश्चित किया जाए कि हाशिये पर पड़े समुदायों को आर्थिक स्थिरता और सम्मान प्राप्त करने में सहायता मिले।
- सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखना महत्त्वपूर्ण है, लेकिन इसे ट्रांसजेंडरों की आर्थिक परेशानी को दूर करने के साथ संतुलित किया जाना चाहिये।
- बहिष्कार और अपेक्षा का विरोधाभास: नैतिक संघर्ष तब उत्पन्न होता है जब समाज ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिये आजीविका के अवसरों को सीमित कर देता है तथा जीवन यापन के लिये भीख मांगने पर उनकी आलोचना करता है।
- मूल मुद्दा सम्मानजनक जीवनयापन के उनके अधिकार, व्यवस्था एवं उत्पीड़न-मुक्त वातावरण के लिये जनता की अपेक्षा के बीच संतुलन स्थापित करना है।
नैतिक दुविधाओं को आकार प्रदान करने वाले सामाजिक दृष्टिकोण:
- भेदभावपूर्ण मानसिकता: समाज अक्सर पारंपरिक लैंगिक मानदंडों का अनुपालन न करने के कारण ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को हाशिए पर धकेल देता है, जिसके परिणामस्वरूप उनके अधिकारों और गरिमा को स्वीकार करने के बजाय, बहिष्कार और ऐतिहासिक वस्तुकरण की स्थिति उत्पन्न होती है।
- गैर-समावेशी दृष्टिकोण और सामाजिक बहिष्कार: ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को प्रायः 'अप्राकृतिक' माना जाता है या उनका मजाक उड़ाया जाता है तथा अंधविश्वास और सामाजिक भय का सामना करना पड़ता है।
- अपरिवार और समाज द्वारा अस्वीकृत होने के बाद, कई लोग भीख माँगने या यौनकर्म जैसे हाशिये के साधनों से जीवनयापन करने को मजबूर होते हैं, जिन्हें बाद में उसी समाज द्वारा निंदा की जाती है।
- राजनीतिक उपेक्षा: कम जनसंख्या के कारण ट्रांसजेंडर समुदाय राजनीतिक रूप से अप्रासंगिक माना जाता है, जिसके कारण विधायी और प्रशासनिक उदासीनता उत्पन्न होती है।
- उनकी चिंताओं को शायद ही कभी प्राथमिकता दी जाती है, जिसके परिणामस्वरूप उनके उत्थान और सामाजिक एकीकरण के लिये व्यापक नीतियों का अभाव होता है।
(b) तात्कालिक चिंताओं और ट्रांसजेंडर समुदाय के दीर्घकालिक कल्याण को संबोधित करने के लिये आप कौन-सी नीतिगत हस्तक्षेपों पर विचार कर सकते हैं?
तात्कालिक चिंताओं और दीर्घकालिक कल्याण के लिये हस्तक्षेप:
- निर्दिष्ट क्षेत्रों की स्थापना: त्वरित राहत के लिये बाज़ारों या सार्वजनिक स्थानों में विशिष्ट क्षेत्र आवंटित किये जाएँ, जहाँ यातायात या सार्वजनिक व्यवस्था को बाधित किये बिना स्वैच्छिक दान संग्रह की अनुमति हो।
- सर्वोच्च न्यायालय के नालसा निर्णय (2014) के बाद, राज्य को ट्रांसजेंडरों को रोज़गार, शिक्षा और सामाजिक स्वीकृति के समान अधिकारों के साथ ‘थर्ड जेंडर’ के रूप में मान्यता दी जानी चाहिये।
- दीर्घकालिक समाधान के रूप में, ट्रांसजेंडर समुदाय के सम्मानजनक आजीविका के अधिकार की रक्षा करते हुए बलपूर्वक भीख मांगने पर रोक लगाने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
- कानून प्रवर्तन एजेंसियों को मानवीय व्यवहार के लिये संवेदनशील बनाएँ तथा उद्यमशीलता को प्रोत्साहित करने और भीख मांगने पर निर्भरता कम करने के लिये माइक्रोफाइनेंस और स्वयं सहायता समूहों को बढ़ावा देना चाहिये।
- आपातकालीन सहायता सेवाएँ: अस्थायी आश्रय गृह और सामुदायिक केंद्र स्थापित करना जो कमज़ोर ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को भोजन, आवास, बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाएँ प्रदान करें।
- कौशल प्रशिक्षण का क्रियान्वयन: लक्षित कौशल विकास कार्यक्रम प्रदान करने के लिये गैर सरकारी संगठनों और सरकारी निकायों के साथ साझेदारी करना दीर्घकालिक परिवर्तन के लिये महत्त्वपूर्ण है। NALSA अधिनियम 2014 के तहत कानूनी सहायता का लाभ उठाने पर ध्यान केंद्रित करना।
- जन जागरूकता कार्यक्रम शुरू करना: सतत् एकीकरण के लिये सामाजिक मानसिकता में बदलाव ज़रूरी है। स्कूलों, कॉलेजों, मीडिया और सामुदायिक संवाद के ज़रिए जागरूकता अभियान चलाकर प्रचलित रूढ़िवादिता को चुनौती दी जा सकती है तथा सम्मान एवं समझ को बढ़ावा दिया जा सकता है।
- निगरानी और पुनर्वास कार्यक्रम: एक संरचित निगरानी और पुनर्वास ढाँचा आवश्यक है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को न केवल सहायता मिले बल्कि उन्हें धीरे-धीरे समाज की मुख्यधारा में भी शामिल किया जा सके।
- उदाहरण के लिये, गुजरात में गरिमा गृह में नामांकित ट्रांसजेंडर महिलाओं को मनोवैज्ञानिक परामर्श और मार्गदर्शन प्राप्त होता है।
निष्कर्ष:
प्रभावी पुनर्वास, व्यावसायिक प्रशिक्षण और जनसंवेदीकरण सतत् समावेशन की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम हैं। उचित सामाजिक न्याय केवल बहुसंख्यकों को राहत देने तक सीमित नहीं होना चाहिये, बल्कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को भी गरिमा एवं अवसर प्रदान किया जाना चाहिये।