प्रश्न .भक्ति साहित्य ने भारतीय संस्कृति को विकसित करने में किस प्रकार योगदान दिया तथा विभिन्न क्षेत्रों में इसकी अभिव्यक्ति की प्रकृति क्या थी?(250 शब्द)
05 May, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास| हल करने का दृष्टिकोण: 
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परिचय:
भक्ति आंदोलन, जो दक्षिण भारत में (7वीं-12वीं शताब्दी के दौरान) विकसित हुआ और बाद में पूरे उपमहाद्वीप में इसका विस्तार हुआ, ने आध्यात्मिक और सांस्कृतिक बदलाव को जन्म दिया, जिसमें कर्मकांड की तुलना में व्यक्तिगत भक्ति पर अधिक बल दिया गया। भक्ति साहित्य ने भारतीय संस्कृति को गहराई से प्रभावित किया, भक्ति के माध्यम से क्षेत्रों को एकजुट किया और स्थानीय परंपराओं को विविध रूपों में दर्शाया।
भक्ति साहित्य ने भारतीय संस्कृति को आकार दिया:
विभिन्न क्षेत्रों में भक्ति अभिव्यक्ति की प्रकृति:
| क्षेत्र | प्रमुख विशेषताएँ | प्रमुख संत | 
| दक्षिण भारत | प्रारंभिक उत्पत्ति (6वीं-9वीं शताब्दी), विष्णु और शिव की भक्ति की प्रधानता | अलवार और नयनार | 
| महाराष्ट्र | वारकरी परंपरा, विट्ठल पूजा, अभंगों (भक्ति कविता) के प्रयोग पर केंद्रित है। | संत तुकाराम, संत ज्ञानेश्वर | 
| उत्तर भारत | निर्गुण (निराकार) और सगुण (आकृति सहित) परंपराएँ, राम और कृष्ण भक्ति पर बल। | कबीर, तुलसीदास, सूरदास | 
| कर्नाटक | लिंगायत/वीरशैव आंदोलन, जातिवाद और कर्मकांड की सख्त अस्वीकृति। | बसवन्ना, अक्कमहादेवी | 
| बंगाल और ओडिशा | कृष्ण के प्रति भाव-भक्ति पर बल देने से स्थानीय वैष्णव धर्म प्रभावित हुआ। | चैतन्य महाप्रभु, जयदेव | 
निष्कर्ष
भक्ति साहित्य ने भारतीय संस्कृति को गहराई से आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है— जहाँ आध्यात्मिकता, सामाजिक जीवन के साथ एकीकृत हुई, कला का संबंध साहित्य से जुड़ा और व्यक्ति की अनुभूति सामूहिक चेतना में समाहित हुई। इसकी क्षेत्रीय विविधता ने एक अधिक समावेशी और मानवीय भारतीय समाज की नींव रखी, जिसकी प्रासंगिकता आज भी बनी हुई है।