• प्रश्न :

    प्रश्न. भ्रष्टाचार को प्रायः एक नैतिक विफलता के रूप में वर्णित किया जाता है जो किसी राष्ट्र की सामाजिक संरचना को नष्ट कर देता है। आपकी राय में, भ्रष्टाचार विरोधी उपायों का मार्गदर्शन किन नैतिक सिद्धांतों द्वारा किया जाना चाहिये? (150 शब्द)

    01 May, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भ्रष्टाचार को नैतिक एवं नैतिक विफलता के रूप में परिभाषित करते हुए उत्तर दीजिये।
    • भ्रष्टाचार विरोधी प्रयासों का मार्गदर्शन करने वाले प्रमुख नैतिक सिद्धांतों का उल्लेख कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    भ्रष्टाचार ईमानदारी, न्याय और जिम्मेदारी जैसे नैतिक मूल्यों की विफलता को दर्शाता है। यह जनता के भरोसे को कमज़ोर करता है, संस्थाओं को कमज़ोर करता है और शासन की नैतिक संरचना को नुकसान पहुँचाता है। इसलिये नैतिक सिद्धांतों को भ्रष्टाचार विरोधी रणनीतियों का केंद्रबिंदु होना आवश्यक है।

    मुख्य भाग:

    सत्यनिष्ठा और ईमानदारी:

    • सत्यनिष्ठा सुनिश्चित करती है कि प्रशासनिक अधिकारी सभी परिस्थितियों में सत्यनिष्ठ, निष्पक्ष और वैध आचरण के प्रति प्रतिबद्ध रहें।
    • घोषणाओं, लेखापरीक्षाओं और संसाधन आवंटन में ईमानदारी से शासन में विश्वसनीयता एवं जनता का विश्वास बढ़ता है।
      • उदाहरण: लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम स्वतंत्र निरीक्षण तंत्र के माध्यम से संस्थागत सत्यनिष्ठा को बढ़ावा देता है।

    जवाबदेही और पारदर्शिता:

    • नैतिक शासन के लिये कार्यों के प्रति स्पष्ट जिम्मेदारी और निर्णय लेने की प्रक्रिया में खुलापन आवश्यक है।
    • सूचना का सक्रिय प्रकटीकरण हेरफेर, पक्षपात और रिश्वतखोरी की सम्भावना को कम करता है।
      • RTI अधिनियम, 2005 नागरिकों को सार्वजनिक कार्यालयों से पारदर्शिता की मांग करने तथा भ्रष्ट व्यवहार पर अंकुश लगाने का अधिकार देता है।

    न्याय एवं निष्पक्षता:

    • भ्रष्टाचार गरीबों को असमान रूप से प्रभावित करता है तथा वितरणात्मक न्याय और समान अवसर के सिद्धांत का उल्लंघन करता है।
    • भ्रष्टाचार विरोधी प्रयासों से लोक सेवाओं तक समान पहुँच और कानूनों का निष्पक्ष अनुप्रयोग सुनिश्चित होना चाहिये।
      • उदाहरण: प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) मध्यवर्तियों और लीकेज को न्यूनतम करता है तथा कल्याणकारी वितरण में निष्पक्षता को बढ़ावा देता है।

    सहानुभूति और लोक सेवा नीति:

    • भ्रष्टाचार सार्वजनिक पीड़ा के प्रति उदासीनता और व्यक्तिगत लाभार्थी व्यवहार की संस्कृति में पनपता है।
    • सहानुभूति और सेवा उन्मुखता को बढ़ावा देने से कर्त्तव्य की भावना एवं सार्वजनिक कल्याण की देखभाल की भावना जागृत होती है।
    • लोक सेवाओं में नैतिक प्रशिक्षण अधिकारियों को सार्वजनिक संसाधनों के न्यासी के रूप में कार्य करने के लिये प्रोत्साहित करता है।

    साहस और नैतिक जिम्मेदारी:

    • भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने के लिये नैतिक साहस और संस्थागत संरक्षण की आवश्यकता होती है।
    • नैतिक कार्यढाँचे को उन लोगों का समर्थन करना चाहिये जो सार्वजनिक हित को बनाए रखते हैं, जैसे कि व्हिसलब्लोअर्स संरक्षण अधिनियम के माध्यम से।
      • उदाहरण: IAS अधिकारी सत्येंद्र दुबे, जिन्होंने राजमार्ग भ्रष्टाचार को उजागर किया, कार्य में नैतिक साहस का उदाहरण हैं।

    निष्कर्ष:

    भ्रष्टाचार एक गंभीर नैतिक मुद्दा है जिसके लिये पारदर्शिता, जवाबदेही और न्याय की आवश्यकता होती है। हाई-प्रोफाइल घोटाले भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम और व्हिसलब्लोअर संरक्षण अधिनियम जैसे सख्त कानूनों की आवश्यकता को उजागर करते हैं। नैतिक नेतृत्व और सुदृढ़ जवाबदेही को बढ़ावा देने से भ्रष्टाचार मुक्त शासन प्रणाली बनाने तथा जनता का विश्वास पुनर्स्थापित करने में मदद मिल सकती है।