प्रश्न. भारत में जैव प्रौद्योगिकी की बढ़ती गतिविधि में किन कारकों ने योगदान दिया है और इस विकास से बायोफार्मास्युटिकल क्षेत्रक को किस प्रकार लाभ हुआ है? (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत में जैव प्रौद्योगिकी का परिचय देते हुए इसकी हालिया वृद्धि और महत्त्व पर प्रकाश डालिये।
- जैवप्रौद्योगिकी के विकास को प्रेरित करने वाले प्रमुख कारकों का अभिनिर्धारण कीजिये तथा बायोफार्मास्युटिकल क्षेत्र को होने वाले लाभों की व्याख्या कीजिये।
- भारत के स्वास्थ्य देखभाल विकास में जैव प्रौद्योगिकी की भूमिका के सारांश के साथ उचित निष्कर्ष दीजिये।
|
परिचय:
भारत के जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, जो वर्ष 2014 में 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2024 में 130 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गई है। यह वृद्धि प्रमुख तकनीकी अनुसंधान में प्रगति से प्रेरित है। इस क्षेत्र ने बायोफार्मास्युटिकल उद्योग को उल्लेखनीय रूप से मज़बूत किया है, जिससे वैश्विक स्वास्थ्य सेवा नवाचार में भारत का कद बढ़ा है।
मुख्य भाग:
भारत में जैव प्रौद्योगिकी के विकास में योगदान देने वाले कारक:
- निजी क्षेत्र का निवेश: जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास, विशेषकर जेनेटिक इंजीनियरिंग, टीकों और जैविक औषधि निर्माण में भारत की प्रगति के परिणामस्वरूप अत्याधुनिक नवाचार सामने आए हैं, जो घरेलू एवं वैश्विक दोनों आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।
- उदाहरण के लिये; कोविड-19 टीके और नेफिथ्रोमाइसिन इन सफलताओं के उदाहरण हैं।
- संस्थागत समर्थन और नीतियाँ: भारत ने जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (BIRAC), BioE3 नीति और राष्ट्रीय जैव प्रौद्योगिकी विकास रणनीति जैसी पहलों के माध्यम से जैव प्रौद्योगिकी में महत्त्वपूर्ण निवेश किया है ताकि वित्तपोषण, अनुसंधान प्रोत्साहन एवं नवाचार के लिये वातावरण प्रदान किया जा सके।
- जैव प्रौद्योगिकी को एक उभरते क्षेत्र के रूप में मान्यता प्राप्त है, जो वर्ष 2024 तक 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की भारत की महत्त्वाकांक्षा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
- उन्नत वैश्विक बाज़ार पहुँच: वैश्विक जैव प्रौद्योगिकी बाज़ार में लगभग 3% हिस्सेदारी के साथ, भारत नवीन और किफायती स्वास्थ्य देखभाल सुविधाएँ/समाधान प्रदान करने का केंद्र बन रहा है।
- देश जेनेरिक दवा बाज़ार में अग्रणी बनकर उभरा है।
- कुशल कार्यबल और अनुसंधान सुविधाएँ: भारत में जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र में कुशल प्रतिभाओं का एक बड़ा समूह है, जिसे IIT, CSIR और विभिन्न जैव प्रौद्योगिकी-केंद्रित संस्थानों (SII) जैसे मज़बूत शैक्षणिक संस्थानों का समर्थन प्राप्त है।
- उद्योग और शिक्षा जगत के बीच सहयोग से जैव प्रौद्योगिकी नवाचार के लिये अनुकूल वातावरण तैयार हुआ है।
बायोफार्मास्युटिकल क्षेत्र में जैव प्रौद्योगिकी उन्नति के लाभ:
- भारत की वैश्विक फार्मा स्थिति: भारत ने वैश्विक जैव विनिर्माण में अपनी स्थिति मज़बूत की है तथा एशिया-प्रशांत क्षेत्र में तीसरा तथा विश्व स्तर पर 12वाँ स्थान प्राप्त किया है।
- यह जेनेरिक बायोलॉजिक्स और नवीन औषधि उत्पादन के लिये एक प्रमुख केंद्र के रूप में उभर रहा है।
- इस क्षेत्र का निर्यात योगदान बढ़ रहा है और अनुमान है कि वर्ष 2030 तक इसमें 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर की अतिरिक्त वृद्धि होगी।
- भारत का वैक्सीन नेतृत्व: वैक्सीन निर्माण में भारत की प्रबल क्षमताओं ने इसे ‘फार्मेसी ऑफ द वर्ल्ड अर्थात् विश्व की फार्मेसी’ का खिताब दिलाया है।
- यह देश वैश्विक वैक्सीन आपूर्ति का 60% उत्पादन करता है तथा डिप्थीरिया, टेटनस और पर्टुसिस (DPT) टीकों के लिये WHO की 40-70% मांग की आपूर्ति करता है।
- कोविड-19 महामारी के दौरान, सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया विश्व का सबसे बड़ा वैक्सीन उत्पादक बनकर उभरा।
जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र को बढ़ावा देने की दिशा में चुनौतियाँ और सुझाए गए उपाय:
चुनौतियाँ
|
आगे की राह
|
जैव प्रौद्योगिकी उत्पादों के लिये विलंबित स्वीकृति।
|
त्वरित अनुमोदन के लिये राष्ट्रीय जैव प्रौद्योगिकी नियामक प्राधिकरण (NBRA) जैसे केंद्रीकृत नियामक निकायों की स्थापना करने की आवश्यकता।
|
बायोटेक स्टार्टअप्स को फंड हासिल करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है (जैसे: बायोसिमिलर)
|
अनुसंधान एवं विकास को वित्तपोषित करने के लिये बायोराइड जैसी योजनाओं का विस्तार करने तथा बायोटेक स्टार्टअप्स के लिये कर प्रोत्साहन प्रदान करने की आवश्यकता।
|
अपर्याप्त जैव प्रौद्योगिकी पार्क (जैसे: पूर्वी भारत में सीमित जैव प्रौद्योगिकी केंद्र)।
|
उपयुक्त वातावरण बनाने और अविकसित क्षेत्रों में अधिक जैव प्रौद्योगिकी पार्क विकसित करने (जैव प्रौद्योगिकी नीति, 2015) की आवश्यकता।
|
नवाचारों के लिये अपर्याप्त IP संरक्षण (जैसे: टीकों के पेटेंट में समस्याएँ)।
|
पेटेंट कानून प्रवर्तन में सुधार करने और बायोटेक-विशिष्ट IP सेल के गठन की आवश्यकता।
|
महत्त्वपूर्ण कच्चे माल (जैसे: बायोफार्मास्युटिकल्स के एंज़ाइम) के लिये विदेशी आपूर्तिकर्त्ताओं पर निर्भरता।
|
कच्चे माल के लिये घरेलू विनिर्माण क्षमता में वृद्धि (जैसे: आत्मनिर्भर भारत के तहत API उत्पादन) की आवश्यकता।
|
निष्कर्ष:
विनियामक बाधाओं और वित्तपोषण अंतराल के बावजूद, भारत का जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र निरंतर विकास के लिये तैयार है। IPR, अनुसंधान वित्तपोषण एवं सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के बीच सहयोग में चल रहे सुधार SDG9 (उद्योग, नवाचार एवं बुनियादी सुविधाएँ) के अनुरूप हैं, जिनसे समावेशी व सतत् विकास सुनिश्चित होता है।