प्रश्न. मूल्यांकन कीजिये कि स्थिर GDP वृद्धि और निम्न मुद्रास्फीति भारतीय अर्थव्यवस्था के सुचारू प्रदर्शन के सूचक हैं। अपने तर्क की पुष्टि कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- प्रमुख आर्थिक संकेतकों के रूप में सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि और मुद्रास्फीति की अवधारणा का परिचय दीजिये।
- विश्लेषण कीजिये कि स्थिर सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि और निम्न मुद्रास्फीति आर्थिक प्रदर्शन को किस प्रकार प्रभावित करते हैं तथा उनके लाभों एवं सीमितताओं पर प्रकाश डालिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
पिछले कुछ वर्षों में भारत की GDP वृद्धि औसतन 6-7% के आसपास रही है, जबकि मुद्रास्फीति (कीमतों में वृद्धि की दर) आम तौर पर 4-5% के आसपास रही है। यद्यपि इन स्थिर संकेतकों को प्रायः एक सशक्त अर्थव्यवस्था के संकेत के रूप में देखा जाता है, फिर भी यह निर्धारित करना अत्यंत आवश्यक है कि वे वास्तव में दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता और जनकल्याण को दर्शाते हैं तथा इसके लिये व्यापक आर्थिक परिप्रेक्ष्य का निरीक्षण करना महत्त्वपूर्ण है।
मुख्य भाग:
स्थिर GDP वृद्धि और निम्न मुद्रास्फीति के आर्थिक लाभ:
- निवेश और आर्थिक स्थिरता: स्थिर सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि और निम्न मुद्रास्फीति (कीमतें धीरे-धीरे बढ़ती हैं), एक स्थिर आर्थिक वातावरण को बढ़ावा देती है जो निवेशकों का विश्वास बढ़ाती है, दीर्घकालिक निवेश को प्रोत्साहित करती है तथा भारतीय निर्यात की प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाती है।
- यह स्थिरता FDI और FII को आकर्षित करती है। UNCTAD के अनुसार, भारत वर्ष 2022 में FDI प्रवाह के मामले में वैश्विक स्तर पर 8वें स्थान पर है तथा इसे 49.3 बिलियन अमरीकी डॉलर का FDI प्रवाह प्राप्त हुआ है।
- प्रयोज्य आय और मांग में वृद्धि: निम्न मुद्रास्फीति के कारण वास्तविक मजदूरी में वृद्धि होती है और प्रयोज्य आय में वृद्धि होती है, क्योंकि कीमतें धीमी गति से बढ़ती हैं, जिससे उपभोक्ताओं को समान धनराशि से अधिक वस्तुएँ एवं सेवाएँ खरीदने की सुविधा मिलती है।
- इससे ब्याज दरों को स्थिर बनाए रखने में भी सहायता मिलती है, जिससे उद्योग और कॉर्पोरेट जैसे ऋण-निर्भर क्षेत्रों को लाभ मिलता है तथा अधिक कुशल विस्तार संभव होता है।
- सुधार और राजस्व वृद्धि: स्थिर GDP वृद्धि सरकार को GST जैसे प्रमुख सुधारों को लागू करने में सक्षम बनाती है, जिससे वित्त वर्ष 2023-24 में 20 लाख करोड़ रुपए से अधिक का राजस्व प्राप्त हुआ है, जो पिछले वर्ष की तुलना में 11.7% की वृद्धि है।
- इस राजस्व वृद्धि से सामाजिक व्यय में वृद्धि संभव हुई, जिसमें वित्त वर्ष 2023-24 में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के लिये आवंटन में 6% की वृद्धि भी शामिल है।
स्थिर GDP वृद्धि और निम्न मुद्रास्फीति की सीमाएँ:
- वास्तविक ब्याज दरें और निवेश: निम्न मुद्रास्फीति, मूल्य स्थिरता को बढ़ावा देते हुए वास्तविक ब्याज दरों को बढ़ा सकती है, जिससे व्यवसायों के लिये उधार लेना महंगा हो जाता है।
- इससे निजी निवेश पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है, विशेषकर MSME, आवास और बुनियादी अवसंरचना जैसे पूंजी-गहन और ऋण-निर्भर क्षेत्रों में।
- बेरोज़गारी और असमान वृद्धि: भारत की बेरोज़गारी दर मई में 7% से बढ़कर जून 2024 में 9.2% (CMIE) हो गई। मज़बूत GDP वृद्धि के बावजूद, आर्थिक विकास का लाभ आम लोगों तक, (विशेष रूप से युवाओं और महिलाओं तक) रोज़गार के रूप में नहीं पहुँच पा रहा है।
- विकास मुख्यतः पूंजी-प्रधान है, जिसमें IT और वित्त जैसे क्षेत्र हावी हैं, जबकि श्रम-प्रधान उद्योग पिछड़ रहे हैं।
- वर्ल्ड इनेक्वलिटी रिपोर्ट (वर्ष 2022) में यह उल्लेख किया गया है कि समाज के शीर्ष 10% और निचले 50% लोगों के बीच का अंतर लगातार बढ़ रहा है, जो आय असमानता में वृद्धि को दर्शाता है।
- राजकोषीय घाटा: यद्यपि सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि राजस्व सृजन में योगदान देती है, लेकिन यदि नाममात्र सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि धीमी हो जाती है, तो इससे हमेशा पर्याप्त कर राजस्व प्राप्त नहीं हो सकता है।
- इसके बाद सरकार को राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को पूरा करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, जिससे व्यय में कटौती करनी पड़ सकती है, जिसका लोक कल्याण कार्यक्रमों पर असर पड़ सकता है।
- कृषि संकट: लगातार निम्न खाद्य मुद्रास्फीति किसानों की आय को कम करती है। NABARD के वित्तीय समावेशन सर्वेक्षण (वर्ष 2022) के अनुसार, आधे से अधिक ग्रामीण परिवार कृषि पर निर्भर हैं, फिर भी कई लोग कम आय, बढ़ते कर्ज और रुद्ध मजदूरी का सामना कर रहे हैं, जिससे ग्रामीण अशांति बढ़ रही है।
निष्कर्ष:
स्थिर GDP वृद्धि और निम्न मुद्रास्फीति भारत की स्थिर अर्थव्यवस्था को तो उजागर करती है, लेकिन असमानता और बेरोज़गारी जैसे मुद्दों को छिपाती है। करों, श्रम बाज़ारों और वित्तीय समावेशन में संरचनात्मक सुधार, साथ ही कौशल, उद्यमशीलता एवं ग्रामीण समर्थन पर ध्यान केंद्रित करने से संधारणीय, समावेशी विकास को बढ़ावा मिल सकता है। MSME ऋण और श्रम-गहन उद्योगों को प्राथमिकता देने से दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी।