प्रश्न. भारत के एक प्रमुख रक्षा आयातक से संभावित वैश्विक रक्षा विनिर्माण केंद्र के रूप में परिवर्तन के सामरिक, आर्थिक एवं तकनीकी आयामों पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत की रक्षा प्रगति के संदर्भ में जानकारी के साथ उत्तर दीजिये।
- इसके रणनीतिक, आर्थिक और तकनीकी आयाम बताइये।
- परिवर्तन में बाधा डालने वाली चुनौतियों पर गहन विचार प्रस्तुत कीजिये तथा सुधार के लिये उपाय सुझाइये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
|
परिचय:
भारत, जो ऐतिहासिक रूप से विश्व के सबसे बड़े आयुध आयातकों में से एक है, एक आत्मनिर्भर और निर्यात-उन्मुख रक्षा विनिर्माण शक्ति के रूप में उभरने के लिये रणनीतिक परिवर्तन से गुजर रहा है। यह बदलाव राष्ट्रीय सुरक्षा आवश्यकताओं, आर्थिक अवसरों और वैश्विक नेतृत्व की आकांक्षाओं के संयोजन से प्रेरित है।
मुख्य भाग:
सामरिक आयाम
- राष्ट्रीय सुरक्षा और सामरिक स्वायत्तता में वृद्धि: विदेशी आयुधों (जैसे: रूस से S-400) पर भारी निर्भरता भू-राजनीतिक तनाव के दौरान भेद्यता उत्पन्न करती है।
- स्वदेशी रक्षा क्षमता बाह्य स्रोतों पर निर्भरता को कम करती है और परिचालन संप्रभुता को बढ़ाती है।
- भू-राजनीतिक प्रभाव का विस्तार: भारत 85 से अधिक देशों को रक्षा उपकरण निर्यात करता है, और विश्व स्तर पर शीर्ष 25 आयुध निर्यातकों की सूची में नामित है।
- भारत-जापान ACSA जैसे सरकार-से-सरकार (G2G) समझौते कूटनीतिक और रणनीतिक भागीदारी को बढ़ावा देते हैं।
- क्षेत्रीय उपस्थिति को सुदृढ़ करना: INS विक्रांत और प्रलय मिसाइल जैसे स्वदेशी प्लेटफॉर्म इंडो-पैसिफिक रीजन में समुद्री ताकत को बढ़ाते हैं। रक्षा निर्यात भारत के एक निवल सुरक्षा प्रदाता के रूप में दृष्टिकोण का समर्थन करता है।
- सॉफ्ट पावर के रूप में रक्षा कूटनीति: फिलीपींस के साथ ब्रह्मोस मिसाइल सौदा (375 मिलियन डॉलर) जैसे उच्च-स्तरीय निर्यात, भारत को एक जिम्मेदार और विश्वसनीय रक्षा साझेदार के रूप में स्थापित करने में मदद करते हैं।
आर्थिक आयाम
- रक्षा निर्यात में उछाल: पिछले दशक में निर्यात 31 गुना बढ़ा है, जो वित्त वर्ष 2023-24 में ₹21,083 करोड़ तक पहुँच गया है। वर्ष 2025 तक ₹35,000 करोड़ का निर्यात लक्ष्य है, जिससे रक्षा क्षेत्रक क्षेत्र मेक इन इंडिया के तहत एक प्रमुख क्षेत्र बन गया है।
- घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा: वित्त वर्ष 2024 में घरेलू उत्पादन 1.27 लाख करोड़ रुपए तक पहुँच गया, जिसमें रक्षा पूंजी खरीद बजट का 75% भारतीय उद्योग के लिये निर्धारित किया गया।
- निजी क्षेत्र और MSME की वृद्धि: रक्षा उपकरण लाइसेंस 215 (वर्ष 2014 से पहले) से बढ़कर 440 (वर्ष 2019 तक) हो गए, जो निजी क्षेत्र की बढ़ती भागीदारी को दर्शाता है।
- तमिलनाडु व उत्तर प्रदेश में iDEX एवं रक्षा औद्योगिक गलियारे जैसी पहल निवेश और नवाचार को बढ़ावा दे रही हैं।
तकनीकी आयाम:
- स्वदेशी अनुसंधान एवं विकास तथा नवाचार: DRDO के नेतृत्व वाले प्रयासों से ब्रह्मोस, आकाश, ALH और पिनाक जैसी निर्यात योग्य प्रणालियाँ प्राप्त हुई हैं।
- रणनीतिक सहयोग और संयुक्त विकास: भारत निम्नलिखित साझेदारों के साथ प्रमुख प्रौद्योगिकियों का सह-विकास कर रहा है:
- F414 इंजन के सह-उत्पादन के लिये HAL–GE समझौता।
- एयरो इंजन पर भारत-फ्राँस सहयोग।
- AI और हाइपरसोनिक्स के लिये अमेरिका के साथ INDUS-X पहल।
- उभरती हुई तकनीक पर ध्यान: भारत iDEX और रक्षा स्टार्टअप के माध्यम से कृत्रिम बुद्धिमत्ता, ड्रोन, युद्ध सामग्री तथा साइबर सुरक्षा में विशिष्ट क्षमताओं का विकास कर रहा है।
परिवर्तन में बाधा डालने वाली चुनौतियाँ
- निरंतर आयात निर्भरता: भारत अभी भी वैश्विक आयुध आयात (SIPRI) का लगभग 10% हिस्सा रखता है, जिससे आत्मनिर्भरता और रणनीतिक स्वायत्तता प्रभावित हो रही है।
- बोझिल खरीद प्रक्रिया: लंबे अधिग्रहण चक्र, जैसा कि रद्द किये गए MMRCA सौदे (वर्ष 2007-2015) में देखा गया, आधुनिकीकरण में विलंब करते हैं।
- निजी क्षेत्र की सीमित भागीदारी: रक्षा उत्पादन में निजी कंपनियों का योगदान केवल 22% है; बड़े ठेकों पर अभी भी सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों का प्रभुत्व है।
- ऑफसेट नीति का कमज़ोर कार्यान्वयन: ₹66,427 करोड़ मूल्य के ऑफसेट दायित्वों (वर्ष 2005-18) में से केवल ₹11,396 करोड़ की ही वसूली हो सकी (CAG रिपोर्ट), जिससे प्रौद्योगिकी अंतरण लाभ में कमी आई।
संक्रमण को तीव्र करने के उपाय:
- वैश्विक सहयोग को गहन करना: वैश्विक भागीदारों के साथ अधिक सह-विकास और सह-उत्पादन में संलग्न होने की आवश्यकता है। HAL-GE और Mazagon Dock-Thyssenkrupp जैसी साझेदारियों का विस्तार किया जाना चाहिये।
- निर्यात और उत्पादन प्रक्रियाओं को सरल बनाना: एकल-खिड़की निर्यात मंजूरी प्रणाली स्थापित किया जाना चाहिये। विलंब को कम करने के लिये SOP के माध्यम से परीक्षण और लाइसेंसिंग को डिजिटल बनाया जाना चाहिये।
- ऑफसेट प्रबंधन को सुदृढ़ करना: एक समर्पित ऑफसेट प्रबंधन एजेंसी बनाए जाने की आवश्यकता है। ऑफसेट को रणनीतिक तकनीकी आवश्यकताओं और निर्यातोन्मुखी परियोजनाओं के साथ संरेखित किया जाना चाहिये।
- नैतिक निर्यात के लिये कानूनी सुधार: आयुधों की बिक्री को मंजूरी देने से पहले अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून (IHL) के अनुपालन का आकलन करने के लिये एक कानूनी कार्यढाँचा पेश किया जाना चाहिये। इससे भारत वैश्विक मानदंडों के अनुरूप होगा और इसकी वैश्विक छवि की रक्षा होगी।
- आला रक्षा प्रौद्योगिकियों में निवेश करना: उच्च प्रभाव वाले क्षेत्रों: AI-आधारित युद्ध, हाइपरसोनिक्स, साइबर सुरक्षा और मानव रहित प्रणालियों के लिये अनुसंधान एवं विकास पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये तथा iDEX और रक्षा नवाचार केंद्रों का विस्तार किया जाना चाहिये।
निष्कर्ष:
एक प्रमुख रक्षा आयातक से वैश्विक विनिर्माण केंद्र में भारत का परिवर्तन एक बहुआयामी यात्रा है जिसमें रणनीतिक दूरदर्शिता, आर्थिक समुत्थानशक्ति और तकनीकी नवाचार शामिल हैं। नीति सुधार, नैतिक शासन, निजी क्षेत्र के तालमेल एवं वैश्विक भागीदारी को एकीकृत करना भारत को न केवल आत्मनिर्भर, बल्कि वैश्विक रक्षा पारिस्थितिकी तंत्र के एक विश्वसनीय एवं जिम्मेदार स्तंभ के रूप में स्थापित करेगा।