• प्रश्न :

    भारत सरकार अपने नागरिकों की खाद्य-सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित कर रही है लेकिन किसानों की स्थिति दिन-प्रतिदिन बिगड़ती जा रही है। खाद्य-सुरक्षा की चुनौतियों का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये तथा किसानों की स्थिति में सुधार लाने के उपाय भी सुझाइये।

    25 Apr, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा:

    • उत्तर की शुरुआत भारत में खाद्य सुरक्षा की आवश्यकता के साथ करें। 
    • चर्चा करें कि क्यों खाद्य सुरक्षा के लक्ष्य को हासिल करने के लिये किसानों की सुरक्षा आवश्यक है। 
    • खाद्य सुरक्षा हासिल करने के मार्ग में आने वाली चुनौतियों को लिखें।
    • अंत में किसानों की स्थिति में सुधार के लिये अपने सुझाव दें।

    खाद्य सुरक्षा एक दीर्घकालिक क्षमता है जिसके आधार पर कुल आबादी को समय पर विश्वसनीय तथा पर्याप्त पोषण युक्त भोजन की आपूर्ति सुनिश्चित की जाती है। चूँकि अब भारत की जनसंख्या 130 करोड़ के लगभग पहुँच चुकी है तो उचित मूल्य पर नियमित खाद्य आपूर्ति अधिक चुनौतीपूर्ण हो गई है। इस समस्या के निदान के लिये अक्तूबर, 2007 में गेहूँ, चावल तथा दाल का उत्पादन बढ़ाने के लिये राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अभियान के नाम से केंद्र प्रोयाजित योजना चलाई गई। 12वीं पंचवर्षीय योजना में वाणिज्यिक फसलों तथा मोटे अनाजों को शामिल किया गया। 2018 में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम लाया गया।

    परंतु भारत में खाद्य सुरक्षा तभी हासिल की जा सकती है, जब हमारे अन्नदाता किसान सुरक्षित हों। आज किसान कर्ज़ तले दबा हुआ है, कृषि की लागत बढ़ गई तथा मूल्यों में स्थिरता नहीं रही है, कृषि बीमा का प्रसार भी सीमित है।

    खाद्य सुरक्षा हासिल करने में चुनौतियाँ:

    • अन्य मुख्य खाद्यान्न उत्पादक राष्ट्रों की तुलना में खाद्यान्न की निम्न उत्पादकता।
    • भंडारण की बुनियादी सुविधा के अभाव में खाद्यान्न दूषित एवं नष्ट हो जाते हैं।
    • घटिया सड़कें तथा अक्षम परिवहन प्रणाली भारी देरी पैदा कर सकते हैं।
    • एक सुविकसित कृषि बैंकिग क्षेत्र का अभाव, जो कि किसानों को कमीशन एजेंट्स से ऋण लेने पर मजबूर करता है।
    • नई तकनीकों, प्रौद्योगिकियों तथा कृषि उत्पाद संबंधी शिक्षा तथा प्रशिक्षण का अभाव।
    • फैक्ट्रियों, गोदामों तथा आवासों के निर्माण के लिये उर्वर कृषिभूमि का स्थानांतरण किया जा रहा है।
    • जमीन की उत्पादकता में भी ह्रास हो रहा है, उर्वरक, पीड़कनाशी तथा कीटनाशी, जिन्होंने कभी चमत्कारी परिणाम दिया था, अब जमीन की उर्वरता में कमी के लिये दोषी ठहराए जा रहे हैं।

    मौजूदा महंगी, अक्षम और भ्रष्टाचार से ग्रस्त संस्थागत व्यवस्था में तत्काल बदलाव की आवश्यकता है जो अपेक्षित गुणवत्ता वाले अनाज का सस्ता वितरण एवं स्वलक्ष्यीकरण सुनिश्चित कर सके। कीमतों में व्यापक उतार-चढ़ाव से बचने के लिये और छोटे किसानों को संकट के समय बेचने से रोकने के लिये वायदा बाज़ार को प्रोत्साहित किया जा सकता है। सूचना प्रौद्योगिकी के उपयोग के ज़रिये बेहतर संचार प्रणालियाँ किसानों को उनके उत्पाद के बेहतर दाम दिलाने में मददगार हो सकती हैं। बीमा प्रीमियम का बड़ा हिस्सा सरकार द्वारा अदा करके फसल बीमा को बढ़ावा दिया जा सकता है, ताकि किसानों को प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षित किया जा सके।