• प्रश्न :

    प्रश्न. दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 के कार्यान्वयन की चुनौतियों का समाकलन कीजिये तथा इसकी प्रभावशीलता को सुदृढ़ करने के उपाय सुझाइये। (150 शब्द)

    18 Mar, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • दिव्यांगजन अधिकार (RPWD) अधिनियम, 2016 के संदर्भ में जानकारी प्रस्तुत करते हुए उत्तर दीजिये।
    • RPWD अधिनियम, 2016 के कार्यान्वयन में आने वाली चुनौतियों की चर्चा कीजिये।
    • RPWD अधिनियम, 2016 की प्रभावशीलता को मज़बूत करने के उपाय सुझाइये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    दिव्यांगजन अधिकार (RPWD) अधिनियम, 2016 को निःशक्त व्यक्ति (समान अवसर, अधिकारों का संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 को प्रतिस्थापित करने के लिये अधिनियमित किया गया था। इसने निःशक्तता की परिभाषा को 7 से बढ़ाकर 21 श्रेणियों तक कर दिया, जिसमें दिव्यांगजनों की गरिमा, गैर-भेदभाव और समावेश पर बल दिया गया। हालाँकि, इसके प्रगतिशील प्रावधानों के बावजूद, कार्यान्वयन की चुनौतियाँ बनी हुई हैं, जो इसके उद्देश्यों की प्राप्ति में बाधा बन रही हैं।

    मुख्य भाग:

    RPWD अधिनियम, 2016 के कार्यान्वयन की चुनौतियाँ

    • अपर्याप्त संसाधन आवंटन
      • संसदीय स्थायी समिति (सत्र 2022-23) ने निःशक्तता कार्यक्रमों के लिये उप-इष्टतम बजट आवंटन पर प्रकाश डाला।
      • कार्यक्रम घटकों के विस्तार के बावजूद, RPWD अधिनियम (SIPDA) के कार्यान्वयन के लिये योजनाओं का बजट सत्र 2016-17 और 2020-21 के दौरान 9% से भी कम बढ़ा।
        • इंदिरा गांधी राष्ट्रीय दिव्यांगता पेंशन योजना के तहत दिव्यांगता पेंशन केवल 300-500 रुपए प्रति माह है, जो बढ़ती मुद्रास्फीति को देखते हुए अपर्याप्त है।
    • समन्वय संबंधी मुद्दे और प्रशासनिक बाधाएँ
      • अंतर्विभागीय समन्वय में कमी के कारण प्रमुख प्रावधानों, जैसे सुलभ बुनियादी अवसंरचना और नौकरी में आरक्षण सुनिश्चित करने में विलंब हुआ है।
      • राज्य समय पर उपयोगिता प्रमाण पत्र (UC) प्रस्तुत करने में विफल रहते हैं, जिसके परिणामस्वरूप दिव्यांगजन कल्याण पहलों के लिये केंद्रीय निधि संवितरण में विलंब होता है।
        • कई दिव्यांगजनों को कठोर दस्तावेज़ीकरण आवश्यकताओं और प्रशासनिक अकुशलताओं के कारण विशिष्ट दिव्यांगता पहचान पत्र (UDID) प्राप्त करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
    • रोज़गार और आर्थिक हाशिये पर
      • यद्यपि अधिनियम में सरकारी नौकरियों में 4% आरक्षण का प्रावधान है, फिर भी रोजगार योग्य 1.3 करोड़ दिव्यांगों में से केवल 34 लाख ही औपचारिक रोजगार में हैं।
        • कई कंपनियाँ दिव्यांगता संबंधी नियुक्ति मानदंडों का पालन करने के बजाय जुर्माना भरना पसंद करती हैं।
      • अनौपचारिक क्षेत्र अभी भी बहुत हद तक अनियमित है, जिससे दिव्यांगजनों के आर्थिक समावेशन की बहुत कम गुंजाइश है।
        • स्किल इंडिया और PMKVY के अंतर्गत दिव्यांगजनों के लिये कौशल विकास कार्यक्रमों की कमी के कारण उनकी रोज़गार संभावनाएँ सीमित हो जाती हैं।
    • शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा में बाधाएँ
      • राष्ट्रीय फेलोशिप योजना एकमात्र शैक्षिक पहल है जो अपने लक्ष्यों को पूरा कर रही है, जबकि अन्य दिव्यांग शिक्षा योजनाएँ अपर्याप्त वित्तपोषित और स्थिर बनी हुई हैं।
        • कई उच्च शिक्षा संस्थान समावेशी शिक्षण सामग्री, सहायक प्रौद्योगिकियाँ और सुलभ बुनियादी अवसंरचना प्रदान करने में विफल रहते हैं।
      • स्वास्थ्य देखभाल चुनौतियों में शामिल हैं:
        • सार्वजनिक स्वास्थ्य योजनाएँ (जैसे: आयुष्मान भारत) पुनर्वास सेवाओं, सहायक उपकरणों या दीर्घकालिक दिव्यांगता देखभाल को कवर नहीं करती हैं।
        • दिव्यांगजनों के लिये मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ अभी भी अविकसित हैं।
      • सामाजिक कलंक और भेदभाव
        • गहरी जड़ें जमाए हुए सक्षमतावाद के परिणामस्वरूप कार्यस्थलों और सार्वजनिक स्थानों पर सामाजिक अपवर्जन और भेदभावपूर्ण रवैया देखने को मिलता है।
        • दिव्यांग महिलाओं को दोहरे भेदभाव का सामना करना पड़ता है- शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और रोज़गार तक उनकी पहुँच सीमित होती है (केवल 23% दिव्यांग महिलाएँ काम करती हैं, जबकि पुरुषों के लिये यह आंकड़ा 47% है)।
    • कमज़ोर निगरानी और जवाबदेही तंत्र
      • दिव्यांग व्यक्तियों के लिये आयुक्त कार्यालय में नीति कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिये पर्याप्त स्वायत्तता और प्रवर्तन शक्तियों का अभाव है।
        • भेदभाव या अधिकारों से वंचित होने का सामना करने वाले दिव्यांगजनों के लिये समयबद्ध शिकायत निवारण तंत्र का अभाव है।

    RPWD अधिनियम, 2016 की प्रभावशीलता को सुदृढ़ करने के उपाय:

    • बजट आवंटन और संसाधन उपलब्धता में वृद्धि
      • विकलांगता अधिकार कार्यक्रमों के विस्तारित दायरे के अनुरूप SIPDA के लिये वित्तीय आवंटन में वृद्धि की जाएगी।
        • मुद्रास्फीति-समायोजित जीवन-यापन लागत को प्रतिबिंबित करने के लिये विकलांगता पेंशन को संशोधित किया जाना चाहिये।
      • सहायक उपकरणों, पुनर्वास सेवाओं और डिजिटल सुलभता उपकरणों के लिये विशेष वित्तपोषण योजनाएँ शुरू की जानी चाहिये।
    • समन्वय और प्रशासनिक दक्षता सुनिश्चित करना
      • राज्य स्तरीय निधि उपयोग पर नज़र रखने और समय पर निधि जारी करने को सुनिश्चित करने के लिये एक केंद्रीकृत डिजिटल पोर्टल बनाया जाना चाहिये।
      • दस्तावेज़ीकरण बाधाओं को कम करने के लिये आधार और मौजूदा सरकारी डेटाबेस के साथ एकीकृत करके UDID ​​पंजीकरण प्रक्रिया को सरल बनाए जाने की आवश्यकता है।
    • बुनियादी अवसंरचना और डिजिटल प्लेटफॉर्मों की सुलभता में सुधार
      • सरकारी, वित्तीय और शैक्षिक डिजिटल सेवाओं में ICT एक्सेसिबिलिटी मानक IS 17802 के सार्वभौमिक अनुपालन को अनिवार्य बनाया जाना चाहिये।
      • यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि सभी सार्वजनिक परिवहन और शहरी बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं में दिव्यांगजनों के लिये सुलभ डिज़ाइन शामिल हों।
        • सुगम्य भारत अभियान का लक्ष्य निजी आवास परियोजनाओं को भी इसमें शामिल करना है।
    • समावेशी रोज़गार और कार्यस्थल नीतियों को बढ़ावा देना
      • एक राष्ट्रीय दिव्यांगता-समावेशी रोज़गार नीति लागू करने की आवश्यकता है, जो अनिवार्य करे:
        • कौशल भारत और PMKVY के तहत दिव्यांगजनों के लिये व्यावसायिक प्रशिक्षण।
        • सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में समावेशी नियुक्ति पर नज़र रखने के लिये दिव्यांगता रोज़गार सूचकांक।
      • दिव्यांगजनों को काम पर रखने वाले व्यवसायों को कर प्रोत्साहन प्रदान किया जाना चाहिये तथा आरक्षण नीतियों का अनुपालन न करने पर दण्ड का प्रावधान किया जाना चाहिये।
    • सामाजिक कलंक के विरुद्ध विशेष अभियान और जागरूकता बढ़ाना:
      • स्कूलों, कार्यस्थलों और लोक प्रशासन में दिव्यांगता संवेदनशीलता प्रशिक्षण को शामिल किया जाना चाहिये।
        • नकारात्मक रूढ़िवादिता का मुकाबला करने के लिये मीडिया में दिव्यांगता प्रतिनिधित्व पर सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देशों को लागू किया जाना चाहिये।

    निष्कर्ष:

    दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 दिव्यांग जनों के लिये समान अधिकार और सम्मान सुनिश्चित करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। यह भारत के कानूनी कार्यढाँचे को दिव्यांग जनों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (CRPD), 2006 के अनुरूप बनाता है।