• प्रश्न :

    प्रश्न. भारत के विभिन्न भागों में मृदा अपरदन के कारणों और परिणामों पर चर्चा कीजिये। उपयुक्त संरक्षण उपाय सुझाइये। (250 शब्द)

    10 Mar, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल

    उत्तर :

    दृष्टिकोण: 

    • मृदा अपरदन के संदर्भ में आँकड़ों सहित संक्षिप्त जानकारी के साथ उत्तर प्रस्तुत दीजिये। 
    • मृदा अपरदन के कारण और परिणाम बताइये।
    • मृदा अपरदन को रोकने के लिये संरक्षण उपायों पर प्रकाश डालिये।
    • एक दूरदर्शी दृष्टिकोण के साथ उचित निष्कर्ष दीजिये। 

    परिचय: 

    मृदा अपरदन भारत की कृषि संवहनीयता के लिये एक गंभीर चुनौती है, जो खाद्य सुरक्षा, आजीविका और पर्यावरण संतुलन को प्रभावित कर रहा है।

    • भारत के मरुस्थलीकरण और भूमि अपरदन एटलस (SAC- 2021) का अनुमान है कि 97.85 मिलियन हेक्टेयर (भारत के भौगोलिक क्षेत्र का 29.77%) भूमि क्षरित हो चुकी है तथा समय के साथ मरुस्थलीकरण की प्रक्रिया बढ़ती जा रही है।

    मुख्य भाग: 

    भारत में मृदा अपरदन के कारण

    • निर्वनीकरण और शहरीकरण
      • कृषि, बुनियादी अवसंरचना और शहरी विस्तार के लिये बड़े पैमाने पर निर्वनीकरण से मृदा का अपरदन बढ़ता है और जल प्रतिधारण क्षमता कम हो जाती है। यह समस्या पूरे भारत में व्याप्त है। 
      • वृक्ष आवरण की 95% हानि (वर्ष 2013-2023) प्राकृतिक वनों में हुई, जिसमें पश्चिमी घाट के सदाबहार वनों का 5% ह्रास हुआ।
    • असंवहनीय कृषि पद्धतियाँ
      • यूरिया आधारित उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग तथा फॉस्फोरस और पोटेशियम की उपेक्षा के कारण पोषक तत्त्वों की कमी हो गई है।
        • भारतीय मृदा के 5% से भी कम भाग में नाइट्रोजन का स्तर उच्च है, जबकि केवल 20% भाग में पर्याप्त मात्रा में जैविक कार्बन मौजूद है।
      • पंजाब और हरियाणा में गहन हरित क्रांति कृषि के कारण मृदा की उर्वरता में गिरावट आई है।
    • अतिचारण और पशुधन दबाव
      • भारत में 535 मिलियन पशुधन हैं, जो चारागाह भूमि की धारणीय वहन क्षमता से अधिक है, जिसके कारण वनस्पति को भारी क्षति हो रही है।
      • प्रमुख प्रभावित क्षेत्र:  राजस्थान और गुजरात जैसे राज्य अनियमित पशुचारण के कारण बड़े पैमाने पर ऊपरी मृदा अपरदन का सामना कर रहे हैं।
    • औद्योगिक प्रदूषण और खनन गतिविधियाँ
      • ओडिशा और झारखंड जैसे खनन राज्य भारी धातु संदूषण से ग्रस्त हैं।
      • स्टरलाइट कॉपर प्लांट (तमिलनाडु) के कारण मृदा और जल में गंभीर संदूषण हुआ।
    • जलवायु परिवर्तन और चरम मौसमी घटनाएँ
      • अनियमित वर्षा, सूखा और बाढ़ से मृदा अपरदन और पोषक तत्त्वों की कमी बढ़ जाती है।
        • वर्ष 2023 में हिमाचल प्रदेश में आई बाढ़ के कारण ऊपरी मृदा की काफी क्षति हुई।
      • जलवायु परिवर्तन के कारण सदी के अंत तक मृदा अपरदन की दर 35.3% से बढ़कर 40.3% हो जाने का अनुमान है।
    • स्थानांतरित कृषि (कर्तन एवं दहन पद्धति)
      • नगालैंड, असम और मिज़ोरम जैसे पूर्वोत्तर राज्यों में झूम कृषि के कारण 4,925 वर्ग किमी. भूमि क्षरित हो गई है, जिससे व्यापक मृदा अपरदन हुआ है।
      • बुनियादी अवसंरचना विकास एवं निर्माण गतिविधियाँ
      • उत्तराखंड में चार धाम राजमार्ग जैसी बड़ी परियोजनाओं के कारण मृदा की अस्थिरता के कारण भूस्खलन की 300 से अधिक घटनाएँ हुई हैं।

    मृदा अपरदन के परिणाम

    परिणाम

    प्रभाव

    कृषि उत्पादकता में कमी

    फसल की घटती पैदावार से खाद्य सुरक्षा को खतरा है। मृदा में पोषक तत्त्वों की कमी के कारण पंजाब में गेहूँ की उपज स्थिर हो रही है।

    मरुस्थलीकरण

    शुष्क भूमि के रूप में वर्गीकृत 83.69 मिलियन हेक्टेयर भूमि का मरुस्थलीकरण होता जा रहा है, जो राजस्थान, गुजरात व महाराष्ट्र में और भी बदतर हो रही है।

    जल की कमी

    क्षरित मृदा के कारण भूजल पुनर्भरण कम हो जाता है और अत्यधिक निकासी पर निर्भरता बढ़ जाती है।

    जैव-विविधता का ह्रास 

    मृदा अपरदन पारिस्थितिकी तंत्र को बाधित करता है, जिससे वनस्पतियों और जीवों की विविधता कम होती है। पश्चिमी घाट के वनों का ह्रास ने स्थानीय मृदा उर्वरता को प्रभावित किया है।

    प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि

    क्षरित मृदा से भूस्खलन (उत्तराखंड), बाढ़ (हिमाचल प्रदेश) और सूखे (बुंदेलखंड) का खतरा बढ़ जाता है।

    स्वास्थ्य खतरे

    खराब मृदा में भारी धातुएँ और कीटनाशक भोजन को दूषित कर देते हैं, जिससे स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।

    मृदा अपरदन को रोकने के लिये संरक्षण उपाय: 

    • संधारणीय कृषि पद्धतियाँ
      • संतुलित उर्वरक: सटीक उर्वरक उपयोग के लिये मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना को वास्तविक काल परामर्श सेवाओं के साथ जोड़ने की आवश्यकता है।
      • जैविक और प्राकृतिक कृषि: परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) और सुभाष पालेकर प्राकृतिक कृषि (SPNF) मॉडल का विस्तार किया जाना चाहिये।
    • बेहतर जल प्रबंधन
      • सूक्ष्म सिंचाई (ड्रिप और स्प्रिंकलर): जल की बर्बादी को कम करने के लिये प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) का विस्तार करने की आवश्यकता है।
      • वर्षा जल संचयन: भूजल पुनर्भरण को बढ़ाने के लिये वाटरशेड विकास और चेक-डैम निर्माण को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
    • पुनर्वनीकरण और कृषि वानिकी
      • समुदाय के नेतृत्व में वृक्षारोपण पहल के साथ राष्ट्रीय वनरोपण कार्यक्रम (NAP) का विस्तार किया जाना चाहिये।
      • मृदा संरक्षण के लिये कृषि, बागवानी और वानिकी को एकीकृत करते हुए वाडी प्रणाली को लागू किया जाना चाहिये।
    • खनन और औद्योगिक प्रदूषण पर नियंत्रण
      • ओडिशा, झारखंड और छत्तीसगढ़ में अवैध खनन एवं औद्योगिक अपशिष्ट निपटान पर कड़े नियमन किये जाने चाहिये।
      • दूषित मृदा को शुद्ध करने के लिये सूक्ष्मजीवी उपचार जैसी जैव-उपचार तकनीकों का विस्तार किया जाना चाहिये।
    • अपरदन नियंत्रण उपाय
      • मल्चिंग और कवर क्रॉपिंग: इस पद्धति से अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में हवा और जल के कारण होने वाले अपरदन को कम किया जा सकता है।
      • शून्य जुताई कृषि: पंजाब और हरियाणा जैसे उच्च उपज वाले क्षेत्रों में हैप्पी सीडर तकनीक का विस्तार किया जाना चाहिये।
    • मृदा संरक्षण के लिये अनुसंधान एवं विकास
      • बायोचार और माइक्रोबियल उर्वरकों में निवेश: मृदा कार्बन और माइक्रोबियल गतिविधि में वृद्धि की जानी चाहिये।
      • डिजिटल मृदा स्वास्थ्य मानचित्रण: अपरदन की प्रवृत्तियों पर नज़र रखने के लिये ISRO के पृथ्वी अवलोकन उपग्रहों का लाभ उठाने की आवश्यकता है।

    निष्कर्ष: 

    संधारणीय कृषि, वनरोपण, जल संरक्षण और समुदाय-नेतृत्व वाली पहलों को एकीकृत करना भारत की मृदा स्वास्थ्य को पुनर्स्थापित करने के लिये महत्त्वपूर्ण होगा। दीर्घकालिक कृषि संवहनीयता और पर्यावरणीय अनुकूलन सुनिश्चित करने के लिये एक समग्र, क्षेत्र-विशिष्ट एवं प्रौद्योगिकी-संचालित दृष्टिकोण की आवश्यकता है।