• प्रश्न :

    प्रश्न. भारत के तटीय पारिस्थितिकी तंत्र जलवायु परिवर्तन और विकास संबंधी दबावों के बढ़ते प्रभाव के कारण गंभीर जोखिमों का सामना कर रहे हैं। इस संदर्भ में, तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ) मानदंडों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन कीजिये। (250 शब्द)

    12 Feb, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरण

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ) मानदंडों की पृष्ठभूमि के रूप में भारत के तटीय पारिस्थितिकी तंत्र के संदर्भ में जानकारी के साथ उत्तर दीजिये। 
    • तटीय पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा में CRZ मानदंडों की प्रभावशीलता बताइये।
    • तटीय सुरक्षा को मज़बूत करने के उपाय सुझाइये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये। 

    परिचय:

    भारत के तटीय पारिस्थितिकी तंत्र- मैंग्रोव, प्रवाल भित्तियाँ, नदियाँ, आर्द्रभूमि और रेत के टीले- जैव-विविधता, जलवायु अनुकूलन और आजीविका के लिये महत्त्वपूर्ण हैं। 

    • हालाँकि, समुद्र-स्तर में वृद्धि, अपरदन, अलवण जल के अंतर्वेधन और अनियमित विकास के कारण उन पर खतरा बढ़ता जा रहा है। 
    • इन चुनौतियों को कम करने के लिये, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत वर्ष 1991 में तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ) मानदंड पेश किये गए, जिनमें संरक्षण और आर्थिक विकास के बीच संतुलन बनाने के लिये संशोधन किये गए।

    मुख्य भाग: 

    तटीय पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा में CRZ मानदंडों की प्रभावशीलता: 

    • CRZ मानदंडों की सफलताएँ
      • पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों का संरक्षण: CRZ-I वर्गीकरण मैंग्रोव, प्रवाल भित्तियों और रेत के टीलों में गतिविधियों को प्रतिबंधित करता है, जिससे बड़े पैमाने पर विनाश को रोका जा सके।
        • उदाहरण: सुंदरवन और महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र में मैंग्रोव संरक्षण से तटीय समुत्थानशक्ति में सुधार हुआ है।
      • औद्योगिक एवं अवसंरचना विकास का विनियमन: कड़े पर्यावरणीय मंजूरी मानदंड अनियंत्रित तटीय शहरीकरण और औद्योगिक अतिक्रमण को रोकते हैं।
        • उदाहरण: केरल में, CRZ के अंतर्गत प्रतिबंधों से वर्कला में अनियमित पर्यटन-संचालित निर्माण को नियंत्रित करने में मदद मिली।
      • समुदाय-केंद्रित दृष्टिकोण: CRZ- 2019 ने तटीय समुदायों की आजीविका आवश्यकताओं को मान्यता दी, जिससे संधारणीय मत्स्यन, एक्वाकल्चर और इको-पर्यटन की अनुमति मिली।
        • उदाहरण: तमिलनाडु में मछुआरा समुदाय को पारंपरिक गतिविधियों के लिये तनाव मुक्त मानदंडों से लाभ हुआ।
      • कानूनी और संस्थागत तंत्र: CRZ उल्लंघनों को राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) में चुनौती दी जा सकती है, जिससे जवाबदेही सुनिश्चित होगी।
    • चुनौतियाँ और सीमाएँ: 
      • कमजोर प्रवर्तन और उल्लंघन: अपर्याप्त निगरानी एवं राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण, विशेष रूप से मुंबई, गोवा और चेन्नई में बड़े पैमाने पर उल्लंघन हो रहे हैं।
        • उदाहरण: CRZ प्रतिबंधों के बावजूद गोवा में अवैध तटीय निर्माण।
      • संरक्षण तंत्र का कमज़ोर होना: CRZ- 2019 ने ग्रामीण क्षेत्रों में नो-डेवलपमेंट ज़ोन (NDZ) को 200 मीटर से घटाकर 50 मीटर कर दिया, जिससे तटीय भेद्यता बढ़ गई।
      • विकास और संरक्षण के बीच संघर्ष: बंदरगाह के बुनियादी अवसंरचना, पर्यटन और औद्योगिक गलियारों के विस्तार से पारिस्थितिकी तंत्र का क्षरण होता है।
        • उदाहरण: विझिंजम बंदरगाह (केरल) को पर्यावरणीय क्षति के लिये आलोचना का सामना करना पड़ा है।
      • जलवायु परिवर्तन के खतरों का पूरी तरह से समाधान नहीं किया गया: CRZ मानदंड दीर्घकालिक जलवायु अनुकूलन रणनीतियों के बजाय स्थानिक ज़ोनिंग पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं।
        • एकीकृत तटीय क्षेत्र प्रबंधन (ICZM) का अभाव, बढ़ते समुद्री स्तर और तूफानी लहरों के विरुद्ध अप्रभावी अनुकूलन का कारण बनता है।

    तटीय संरक्षण को सुदृढ़ करने के उपाय: 

    • सख्त निगरानी और प्रवर्तन: CRZ मानदंडों के बेहतर प्रवर्तन के लिये तटीय क्षेत्र प्रबंधन प्राधिकरणों (CZMA) को मज़बूत किया जाना चाहिये।
      • उल्लंघनों पर नज़र रखने के लिये GIS मैपिंग और उपग्रह निगरानी का उपयोग किया जाना चाहिये।
    • एकीकृत तटीय क्षेत्र प्रबंधन (ICZM): संधारणीय पर्यटन, जलवायु-अनुकूल बुनियादी अवसंरचना और पर्यावरण-संवेदनशील विकास को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
    • मज़बूत सामुदायिक भागीदारी: निर्णय लेने में मछुआरा समुदायों, स्थानीय हितधारकों और पंचायतों को शामिल किया जाना चाहिये।
      • टिकाऊ जलकृषि और मैंग्रोव पुनर्भरण कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
    • जलवायु-अनुकूल तटीय योजना: मैंग्रोव वनरोपण और टीलों के स्थिरीकरण जैसी प्राकृतिक अवरोधों को लागू किया जाना चाहिये।
      • चक्रवातों और बढ़ते समुद्री स्तर के विरुद्ध आपदा तैयारी उपायों को मज़बूत किया जाना चाहिये।
    • विकास और संरक्षण में संतुलन: बंदरगाहों, उद्योगों और पर्यटन परियोजनाओं को मंजूरी देने से पहले पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
      • निर्माण एवं बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं में पर्यावरण अनुकूल विकल्पों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।

    निष्कर्ष: 

    केंद्रीय बजट 2023-24 में शुरू की गई MISHTI योजना (तटरेखा आवास और मूर्त आय के लिये मैंग्रोव पहल) मैंग्रोव वनीकरण और संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करते हुए सही दिशा में एक कदम है। MISHTI जैसी जलवायु-अनुकूल पहलों के साथ CRZ मानदंडों को एकीकृत करके, भारत सतत् विकास सुनिश्चित करते हुए तटीय संरक्षण को बढ़ा सकता है।