• प्रश्न :

    1. यदि सीढ़ी गलत दिशा में लगी हो, तो उसकी उपयोगिता समाप्त हो जाती है।
    2. नक्शे के बिना यात्री भटक सकता है, लेकिन जिज्ञासा के बिना वह स्थिर रहता है।

    08 Feb, 2025 निबंध लेखन निबंध

    उत्तर :

    1. अपने निबंध को समृद्ध करने के लिये उद्धरण:

    • स्टीफन आर. कोवे: "यदि सीढ़ी सही दीवार के सहारे नहीं टिकी है, तो हमारा हर कदम हमें तेज़ी से गलत जगह पर पहुँचा देगा।"
    • हेनरी डेविड थोरो: "व्यस्त रहना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि प्रश्न यह है: "हम किस काम में व्यस्त हैं?"

    सैद्धांतिक और दार्शनिक आयाम:

    • प्रगति में उद्देश्य और दिशा का महत्त्व:
      • उद्देश्य की स्पष्टता के बिना प्रगति से व्यर्थ प्रयास और अवांछनीय परिणाम हो सकते हैं।
      • जीन-पॉल सार्त्र जैसे अस्तित्ववादी दार्शनिक इस बात पर बल देते हैं कि मानवीय क्रियाएँ सचेत विकल्प और अर्थ द्वारा निर्देशित होनी चाहिये।
      • बौद्ध दर्शन नैतिक कार्य के एक अनिवार्य भाग के रूप में सही उद्देश्य (सम्यक संकल्प) पर बल देता है।
    • महत्त्वाकांक्षा और सफलता में नैतिक विचार:
      • अनैतिक कार्य में यदि सफलता मिल भी जाए, तो यह अंततः पतन (जैसे: कॉर्पोरेट धोखाधड़ी, पर्यावरण शोषण) की ओर ले जाते हैं।
      • अरस्तू की यूडेमोनिया की अवधारणा इस बात पर प्रकाश डालती है कि वास्तविक सफलता समग्र कल्याण पर आधारित होती है, न कि केवल भौतिक उपलब्धि पर।
      • भगवद्गीता हमें सफलता की आसक्ति के बिना, सही उद्देश्य के साथ कर्त्तव्य करने की शिक्षा देती है।
    • सामाजिक और आर्थिक समानताएँ— विकास बनाम सार्थक विकास:
      • समावेशिता के बिना आर्थिक विकास असमानता और सामाजिक अशांति को जन्म देता है।
      • GDP बनाम हैप्पीनेस इंडेक्स डिबेट- देशों को न केवल आर्थिक प्रगति पर बल्कि कल्याण और स्थिरता पर भी केंद्रित होना चाहिये।

    नीति और ऐतिहासिक उदाहरण:

    • पथभ्रामक नीतियाँ और उनके परिणाम:
      • सबप्राइम मॉर्गेज संकट (वर्ष 2008): लाभ की तात्कालिक प्राप्ति की लापरवाह खोज़ ने वैश्विक आर्थिक पतन को जन्म दिया।
      • अनियोजित शहरीकरण: तीव्र लेकिन अव्यवस्थित शहरी विकास के परिणामस्वरूप प्रदूषण, झुग्गी बस्तियाँ और निम्नस्तरीय जीवन स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं।
      • औपनिवेशिक वाणिज्यवाद: उपनिवेशों के अल्पकालिक आर्थिक शोषण के कारण दीर्घकालिक गरीबी और अविकसितता उत्पन्न हुई।
    • रणनीतिक एवं सुनियोजित दृष्टिकोण:
      • भारत की श्वेत क्रांति: पश्चिमी मॉडलों की अंधी नकल के बजाय डेयरी उत्पादन में आत्मनिर्भरता पर केंद्रित।
      • स्कैंडिनेवियाई कल्याण मॉडल: आर्थिक सफलता को सामाजिक सुरक्षा के साथ मिलाकर संतुलित और सतत् विकास सुनिश्चित करना।
      • जापान की युद्धोत्तर औद्योगिक नीति: अल्पकालिक औद्योगिक लाभ की तुलना में दीर्घकालिक तकनीकी उन्नति और शिक्षा को प्राथमिकता दी गई।

    समकालीन उदाहरण:

    • कॉर्पोरेट और व्यावसायिक रणनीतियाँ:
      • स्टार्टअप और यूनिकॉर्न बूम: कई स्टार्टअप इसलिये असफल हो जाते हैं क्योंकि वे दीर्घकालिक संधारणीयता के बजाय मूल्यांकन पर केंद्रित होते हैं।
    • पर्यावरण एवं जलवायु नीतियाँ:
      • भारत का नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा: कोयला-चालित औद्योगिकीकरण पर निर्भर रहने के बजाय स्थिरता की ओर बढ़ना।

    2. अपने निबंध को समृद्ध करने के लिये उद्धरण:

    • अल्बर्ट आइंस्टीन: "मेरे पास कोई विशेष प्रतिभा नहीं है। मैं केवल उत्सुकता से जिज्ञासु हूँ।"
    • जे.आर.आर. टोल्किन: "वे सभी लोग जो भटकते हैं, खोए हुए नहीं हैं।"
    • कन्फ्यूशियस: "वास्तविक ज्ञान अपनी अज्ञानता की सीमा को जानना है।"

    सैद्धांतिक और दार्शनिक आयाम:

    • योजना और अन्वेषण के बीच संतुलन:
      • जिज्ञासा के बिना एक दृढ़ योजना (कार्यढाँचा) सीमित विकास की ओर ले जाती है, जबकि दिशा के बिना जिज्ञासा का परिणाम अराजकता है।
      • स्टोइक दर्शन (मार्कस ऑरेलियस): यह न केवल योजना को प्रोत्साहित करता है, बल्कि अनिश्चितता का सामना करने के लिये अनुकूलनशीलता को भी प्रोत्साहित करता है।
    • नवाचार और प्रगति – जिज्ञासा की भूमिका:
      • लियोनार्डो दा विंची के आविष्कार मौजूदा ज्ञान के प्रति दृढ़ निष्ठा की बजाय अतृप्त जिज्ञासा से उपजे थे।
      • अंतरिक्ष अन्वेषण (ISRO, NASA: यद्यपि ब्लूप्रिंट (कार्यढाँचा) आवश्यक हैं, किंतु अज्ञात की खोज़ से ही सफलता प्राप्त होती है।
    • शिक्षा और ज्ञान – पाठ्यक्रम से परे अधिगम:
      • सुकरात की पद्धति: रटने की बजाय प्रश्न पूछने (जिज्ञासा) को प्रोत्साहित करती है।
      • रवींद्रनाथ टैगोर का शांतिनिकेतन मॉडल: कठोर शैक्षणिक मानदंडों की तुलना में स्वतंत्र सोच वाली शिक्षा का समर्थन किया जाता है।

    नीति और ऐतिहासिक उदाहरण:

    • दिशा के अभाव के कारण विफलताएँ (मैपलेस वांडरर्स):
      • डॉट-कॉम बबल (1990-2000 का दशक): बिना किसी ठोस बिज़नेस मॉडल के अति उत्साही स्टार्टअप नवीन विचारों के बावजूद ध्वस्त हो गए।
    • जिज्ञासा की कमी के कारण विफलताएँ (कार्यढाँचे पर अत्यधिक निर्भरता):
      • कोडक और नोकिया का पतन: कंपनियों ने विद्यमान मॉडलों (कार्यढाँचों) का अनुसरण किया, लेकिन तकनीकी बदलावों (भविष्य के रुझानों के बारे में जिज्ञासा) को नजरअंदाज़ कर दिया।
    • संरचना और जिज्ञासा में संतुलन से सफलताएँ:
      • भारत का आईटी बूम (1990-2000 का दशक): संरचित नियोजन (सरकारी नीतियों) और जिज्ञासा से प्रेरित उद्यमशीलता के मिश्रण ने सॉफ्टवेयर सेवाओं में वैश्विक नेतृत्व को जन्म दिया।
      • सिंधु घाटी सभ्यता की शहरी योजना: इसमें एक संरचित नगर योजना थी, साथ ही भूगोल और व्यापार गतिशीलता के लिये नवीन अनुकूलन भी था।

    समकालीन उदाहरण:

    • प्रौद्योगिकी और कृत्रिम बुद्धिमत्ता:
      • गूगल की 20% नवाचार समय नीति: कर्मचारियों को जिज्ञासा-संचालित परियोजनाओं पर समय बिताने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है, जिससे Gmail जैसे नवाचारों को बढ़ावा मिलता है।
      • कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) नैतिकता पर बहस: जबकि संरचित दिशानिर्देचा (कार्यढाँचा) आवश्यक हैं, नैतिक विचारों और अज्ञात घटकों के लिये जिज्ञासा-संचालित अन्वेषण की आवश्यकता होती है।
    • वैश्विक आर्थिक और राजनीतिक परिदृश्य:
      • चीन की बेल्ट एंड रोड पहल (BRI): भू-राजनीतिक वास्तविकताओं के अनुकूल प्रतिक्रियाओं के साथ संयुक्त एक दीर्घकालिक रणनीतिक दृष्टि (कार्यढाँचा)।