• प्रश्न :

    प्रश्न: "पर्यावरणीय नैतिकता के दृष्टिकोण से चर्चा कीजिये कि कैसे अंतर-पीढ़ीगत समानता वर्तमान आर्थिक और विकासात्मक प्रतिमानों के मौलिक पुनर्विचार की आवश्यकता को रेखांकित करती है।" (150 शब्द)

    23 Jan, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • अंतर-पीढ़ीगत समानता को परिभाषित करके उत्तर प्रस्तुत कीजिये।
    • अंतर-पीढ़ीगत समानता और पर्यावरणीय नैतिकता के मूल सिद्धांत बताइये।
    • वर्तमान आर्थिक और विकास प्रतिमानों से जुड़े मुद्दों पर प्रकाश डालिये।
    • विकास प्रतिमानों की पुनःकल्पना की आवश्यकता पर गहन विचार कीजिये।
    • अंतर-पीढ़ीगत समानता के नैतिक आयामों पर प्रकाश डालिये।
    • अंतर-पीढ़ीगत समानता प्राप्त करने के लिये चुनौतियाँ दीजिये।
    • उचित निष्कर्ष निकालिये। 

    परिचय: 

    अंतर-पीढ़ीगत समता से तात्पर्य वर्तमान पीढ़ियों की नैतिक ज़िम्मेदारी से है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करते समय भावी पीढ़ियों की आवश्यकताओं से समझौता न किया जाए।

    पर्यावरणीय नैतिकता के दृष्टिकोण से, शोषणकारी, संसाधन-गहन विकास से हटकर एक सतत्  और समावेशी आर्थिक मॉडल की ओर बदलाव आवश्यक है। 

    मुख्य भाग:

    अंतर-पीढ़ीगत समानता और पर्यावरणीय नैतिकता के मूल सिद्धांत

    • संसाधनों का संरक्षण: यह सुनिश्चित करना कि प्राकृतिक संसाधनों का क्षय पृथ्वी की भावी पीढ़ियों के लिये पुनर्जनन क्षमता से अधिक न हो।
    • स्थिरता: ऐसी प्रथाओं को अपनाना जो आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय कल्याण की त्रिस्तरीय आधार रेखा को पूर्ण करती हों।

    वर्तमान आर्थिक और विकास प्रतिमानों से संबंधित मुद्दे

    • संसाधन-गहन विकास मॉडल: सकल घरेलू उत्पाद (GDP)-संचालित विकास पर ध्यान केंद्रित करने से पारिस्थितिक क्षरण की अनदेखी होती है।
      • उदाहरण: मवेशी पालन और कृषि के लिये अमेज़न वर्षावनों की कटाई से वैश्विक कार्बन चक्र बाधित होता है।
    • दीर्घकालिक स्थिरता की तुलना में अल्पकालिक लाभ: नीतियाँ स्थायी प्रथाओं की तुलना में तत्काल आर्थिक लाभ को प्राथमिकता देती हैं।
      • उदाहरण: झारखंड में व्यापक कोयला खनन परियोजनाएँ ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा तो देती हैं, लेकिन पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचाती हैं और समुदायों को विस्थापित करती हैं।
    • उपभोक्तावाद और अपशिष्ट उत्पादन: तीव्र शहरीकरण और औद्योगीकरण से अपशिष्ट एवं प्रदूषण बढ़ता है।
      • उदाहरण: भारत में प्रतिवर्ष 3.5 मिलियन टन से अधिक प्लास्टिक उत्पन्न होता है, जिसमें से अधिकांश गैर-जैवनिम्नीकरणीय होता है।

    विकास प्रतिमानों की पुनर्कल्पना की आवश्यकता

    • चक्राकार अर्थव्यवस्था की ओर बदलाव: "ले-बनाएँ-निपटान करें" मॉडल से पुनर्योजी प्रणाली की ओर बढ़ना, जहाँ अपशिष्ट को न्यूनतम किया जाता है तथा संसाधनों का पुनः उपयोग किया जाता है।
      • उदाहरण: स्वीडन ने मज़बूत पुनर्चक्रण प्रणाली और अपशिष्ट से ऊर्जा कार्यक्रम लागू किया है।
    • पारिस्थितिकी बहाली एक प्राथमिकता: जैवविविधता और पारिस्थितिकी संतुलन को बढ़ाने के लिये बिगड़े पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करना।
      • उदाहरण: नमामि गंगे कार्यक्रम का उद्देश्य गंगा नदी के पारिस्थितिकी तंत्र को पुनर्जीवित करना है।
    • हरित प्रौद्योगिकियाँ और नवाचार: पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिये निम्न-कार्बन प्रौद्योगिकियों में निवेश करना।
      • उदाहरण: भारत की FAME II योजना के अंतर्गत इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देना।

    अंतर-पीढ़ीगत समानता के नैतिक आयाम

    • नैतिक उत्तरदायित्व: गांधीवादी ट्रस्टीशिप जैसे नैतिक ढाँचे, भावी पीढ़ियों के प्रति एक कर्त्तव्य के रूप में संसाधन प्रबंधन का समर्थन करते हैं।
      • उदाहरण: आर्कटिक क्षेत्र के मूल निवासी समुदाय अपने पारिस्थितिकी तंत्र को सुरक्षित रखने के लिये शिकार और मछली पकड़ने का अभ्यास करते हैं।
    • न्याय और समावेशिता: संसाधनों तक समान पहुँच सुनिश्चित करती है कि हाशिये पर पड़े लोग और भावी पीढ़ियाँ वंचित न रहें।
      • उदाहरण: पेरिस समझौता जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को सीमित करने के लिये वैश्विक सहयोग पर ज़ोर देता है, विशेष रूप से संवेदनशील क्षेत्रों पर।

    अंतर-पीढ़ीगत समानता प्राप्त करने की चुनौतियाँ

    • परिवर्तन का प्रतिरोध: पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों पर निर्भर उद्योगों और अर्थव्यवस्थाओं को हरित प्रौद्योगिकियों में रूपांतरित होने में महत्त्वपूर्ण प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है।
    • वैश्विक असमानताएँ: विकसित देश, जो उत्सर्जन के लिये ऐतिहासिक रूप से ज़िम्मेदार हैं, अक्सर उत्सर्जन में कमी का बोझ विकासशील देशों पर डाल देते हैं।
      • उदाहरण: भारत पर उत्सर्जन कम करने का असमान दबाव है, जबकि इसका प्रति व्यक्ति कार्बन फुटप्रिंट अमेरिका या चीन की तुलना में काफी कम है।
    • जागरूकता का अभाव: हितधारकों के बीच स्थिरता की खराब समझ पर्यावरण अनुकूल प्रथाओं को अपनाने में बाधा डालती है।

    निष्कर्ष

    अंतर-पीढ़ीगत समानता पर्यावरणीय नैतिकता की आधारशिला है। संधारणीय प्रथाओं को अपनाकर, हरित प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देकर और वैश्विक सहयोग को बढ़ावा देकर, मानवता वर्तमान आवश्यकताओं तथा भावी पीढ़ियों के अधिकारों के बीच संतुलन प्राप्त कर सकती है। जैसा कि महात्मा गांधी ने ठीक ही कहा था, "पृथ्वी सभी की ज़रूरतों के लिये पर्याप्त है, लेकिन सभी के लालच हेतु नहीं।"