• प्रश्न :

    क्या आप सोचते हैं कि प्रशासनिक न्यायाधिकरणों में अंधाधुंध बढ़ोतरी न्यायिक प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न कर रही है? चर्चा करें।

    07 May, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा:

    • न्यायाधिकरण को परिभाषित करते हुए, इसकी भूमिका एवं कार्य लिखें।
    • इसके न्यायाधिकरण से जुड़े मुद्दे
    • संक्षेप में सुझाव

    न्यायाधिकरण को प्रशासनिक या न्यायिक कार्यों के साथ अदालतों के पदानुक्रम के बाहर एक निकाय के रूप में परिभाषित किया गया है।

    प्रशासनिक न्यायाधिकरण राज्य के विभिन्न अंगों के मध्य विवाद का निराकरण करता है, उदाहरण के लिये नागरिक तथा सरकारी एजेंसी का अधिकारी या कानून के किसी क्षेत्र में व्यक्तियों के बीच जहाँ सरकार ने कानून बनाया हो।

    प्रशासनिक न्यायाधिकरण अधिनियम,1985 के भारत में लागू होने से पीडि़त सरकारी सेवकों को न्याय प्रदान करने के क्षेत्र में नया अध्याय जुड़ा। प्रशासनिक न्यायाधिकरण अधिनियम का उद्भव भारतीय संविधान के अनुच्छेद 323 (42 वें संशोधन द्वारा) से हुआ है जो कि केंद्र सरकार को यह अधिकार प्रदान करता है कि संसदीय अधिनियम के द्वारा लोक सेवा में नियुक्त कर्मियों के चयन तथा सेवा शर्तों के संबंध में विवादों तथा शिकायतों के अधिनिर्णयन के लिये प्रशासनिक न्यायाधिकरण का गठन कर सके।

    1985 के बाद न्यायाधिकरणों की संख्या में वृद्धि हुई तथा इन न्यायाधिकरणों ने सामान्य न्यायिक व्यवस्था की कार्यप्रणाली को बाधित किया है।

    प्रशासनिक न्यायाधिकरण अधिनियम, 1985 के लागू होने के बाद से संसद ने यथाक्रम उच्च न्यायालयों तथा दीवानी न्यायालयों के महत्त्वपूर्ण न्यायिक कार्य अपनी देख-रेख में अर्द्धन्यायिक निकायों को स्थानांतरित कर दिये हैं।

    विधि मंत्रालय ने बताया है कि इन केंद्रीय न्यायाधिकरणों में से कई यथोचित ढंग से तथा सर्वोत्तम क्षमता से कार्य नहीं कर रहे हैं।

    यद्यपि न्यायाधिकरणों की स्थापना त्वरित तथा विशेष न्याय प्रदान करने के लिये की गई थी, परंतु न्यायाधिकरणों के निर्णय के विरुद्ध उच्च तथा सर्वोच्च न्यायालय में बड़ी संख्या में अपीलें की जा रही हैं जो कि न्यायिक व्यवस्था को अवरुद्ध कर रहा है। इससे यह शंका उत्पन्न होती है कि क्या न्यायाधिकरण अपने शासनादेश के लक्ष्य को हासिल कर रहे हैं?

    • अधिकतर न्यायाधिकरण पर्याप्त कार्यबल की कमी की समस्या से जूझ रहे हैं।
    • इन न्यायाधिकरणों की क्षमता में वृद्धि के लिये प्रायः सुधारों की अनुशंसा की जाती है, परंतु शायद ही कभी इनका पालन होता है।
    • न्यायाधिकरण पैतृक मंत्रालय के प्रशासन के अंतर्गत कार्य करते हैं, जिनके विरुद्ध उन्हें आदेश पारित करना होता है, इसलिये बुनियादी ढांचे और नियम बनाने के लिये उन्हें उनकी दया पर निर्भर रहना पड़ता है।
    • सस्ते और अनौपचारिक निर्णय के तहत अपील को बहुत सीमित आधार प्रदान किया गया है तथा प्राकृतिक न्याय के आधार पर दिया गया निर्णय उचित प्रक्रिया की अनदेखी कर सकता है।
    • अधिसंख्य गैर-न्यायिक सदस्य विधिक अर्हता प्राप्त नहीं हैं, अतः वे इन न्यायाधिकरणों के समक्ष पेश होने के भी योग्य नहीं हैं परंतु उन्हें न्यायिक कार्यों की अनुमति दी गई है।
    • कुछ न्यायाधिकरणों के पास नागरिक अवमानना की शक्ति नहीं है, अतः उन्हें दंतहीन बनाकर छोड़ दिया गया है।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने यह अनुशंसा की है कि सभी न्यायाधिकरणों को तुरंत प्रभाव से विधि एवं न्याय मंत्रालय के अधीन कर देना चाहिये और बाद में सभी पैतृक मंत्रलयों की परिधि से दूर एक स्वतंत्र राष्ट्रीय न्यायाधिकरण आयोग का गठन किया जाना चाहिये। न्यायाधिकरणों की नियुक्ति केवल उच्च तकनीकी मामलों के लिये की जानी चाहिये, जहाँ गैर-न्यायिक सदस्यों के वैज्ञानिक विशेषज्ञता की आवश्यकता हो, जैसे कि अभियंत्रण एवं विद्युत या फिर सौम्य क्षेत्रों में जहाँ अनौपचारिक दृष्टिकोण को अधिमान्यता दी जाती है।